तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब भी सहदेव के ज़हन में थी। कंपनी में नई मैनेजर मनीषा के स्वागत के लिए होटल में पार्टी का आयोजन हुआ था। उस रात, सब कुछ अच्छा लग रहा था, जब तक देर रात का सफ़र एक अप्रत्याशित मोड़ नहीं ले आया। 
पार्टी खत्म होते-होते रात के 10 बज चुके थे। सहदेव, मनोज, और आदित्य ने अपनी बाइक अपनी सहकर्मी महिलाओं को दे दी थी ताकि वे सुरक्षित घर पहुंच सकें। तीनों पैदल ही होटल से निकल पड़े। ठंडी हवा और सड़क की खामोशी ने उन्हें दिनभर की भागदौड़ से राहत का अहसास कराया, लेकिन यह राहत ज्यादा देर टिक नहीं पाई। 
जैसे ही वे एक सुनसान सड़क से गुज़रे, उन्हें एक महिला और कम उम्र की लड़की की चीख सुनाई दी। तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, और बिना कोई सवाल किए, तेज़ी से उस ओर बढ़े। तीन बदमाश उन पर अभद्र टिप्पणियां कर रहे थे और महिला को जबरदस्ती घसीटने की कोशिश कर रहे थे। 
सहदेव ने गुस्से से अपनी मुठ्ठी भींच ली।  
"ऐ! क्या कर रहे हो?" उसकी कड़क आवाज़ ने बदमाशों का ध्यान खींचा। 
"तुमसे मतलब?" उनमें से एक ने पलटकर जवाब दिया। 
लेकिन मनोज और आदित्य ने बिना देर किए उन पर धावा बोल दिया। बदमाश घबराकर भाग खड़े हुए। महिला और लड़की ने डरी हुई आंखों से उनका धन्यवाद किया। 
"आप लोग ठीक हैं?" सहदेव ने गहरी सांस लेते हुए पूछा। 
महिला ने आंसू पोंछते हुए सिर हिलाया।  
"भगवान आपका भला करे।" 
हालांकि, कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कुछ ही देर बाद, जब ये तीनों एक ठेके के पास पहुंचे, तो वही बदमाश अपने कुछ और साथियों को लेकर वापस आ गए। इस बार उनके पास हथियार भी थे। 
झगड़ा भड़कने में देर नहीं लगी। सड़क पर गालियों और चिल्लाहटों की गूंज ने माहौल को और खतरनाक बना दिया। हालांकि, किसी तरह ये तीनों अपनी जान बचाकर हॉस्टल लौट आए। 
इस घटना की जानकारी कंपनी में केवल कुछ चुनिंदा लोगों को थी। 90% लोग इससे अनजान थे, और सहदेव चाहता था कि यह बात यूं ही बनी रहे।
सुबह की पहली किरण के साथ ही सादाब के कमरे में अलार्म की कर्कश आवाज गूंजी। सादाब ने हाथ बढ़ाकर अलार्म बंद कर दिया, लेकिन पांच मिनट बाद फिर वही आवाज़। झुंझलाते हुए उसने अलार्म की बैटरी निकाल दी और फिर से सो गया। 
पर नींद कब तक टिकती? 
दूसरी ओर, सहदेव की आंखें खुलीं। उसने गहरी अंगड़ाई ली और अपने होठों पर हल्की मुस्कान के साथ सोचा,  
"आज तो नींद भी अच्छी आई और सपने भी।" 
लेकिन ये शांति ज्यादा देर नहीं टिकने वाली थी। 
जैसे ही उसने बेड के पास रखी घड़ी पर नज़र डाली, उसका चेहरा पीला पड़ गया। 
"शिट! 8:20 हो चुके हैं!" उसने लगभग चीखते हुए कहा।  
"बेटा सहदेव, अगर 9 बजे तक ऑफिस नहीं पहुंचा, तो मनीषा जान खा जाएगी।"  
जल्दी-जल्दी वह बाथरूम की ओर भागा। ठंडे पानी के छींटों ने उसे पूरी तरह जगा दिया। 
सहदेव की सुबह की दिनचर्या हमेशा हड़बड़ी में होती थी। उसने अलमारी से कपड़े निकाले और तुरंत इंस्टेंट नूडल का पैकेट खोलकर केतली में पानी गर्म करने रख दिया।  
"गुरुवार है," उसने खुद से कहा।  
"आज साबुन और शैंपू मत लगाना, मम्मी और दादी की बातें याद हैं।" 
जल्दी-जल्दी नहाकर बाहर निकला तो नूडल्स तैयार थे। उसने मसाला डालकर नाश्ता किया, लेकिन घड़ी की सुइयां उसकी धड़कनों से तेज़ भाग रही थीं। 
8:40।
"लेट हुआ तो मनीषा का गुस्सा झेलने से कोई नहीं बचा सकता।"  
ऑफिस पहुंचते ही सहदेव ने राहत की सांस ली। ठीक 8:59 पर वह अपनी सीट पर बैठ चुका था। मनीषा ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर नजरें हटा लीं।  
"बच गया," सहदेव ने अपने दिल में सोचा। 
लेकिन दिन की शुरुआत इतनी आसान नहीं थी। 
"सहदेव, एक मिनट मेरे केबिन में आना।" मनीषा की आवाज़ उसकी तरफ आई।  
सहदेव की धड़कनें तेज़ हो गईं।  
"अब क्या हुआ?"  
उसने जल्दी से फाइलें समेटीं और मनीषा के केबिन की ओर बढ़ा। 
"बैठो," मनीषा ने बिना किसी भूमिका के कहा।  
"कल की रिपोर्ट कहां है?"  
सहदेव ने झिझकते हुए फाइल दी।  
"ये क्या है? गलत डेटा है इसमें। क्या तुम काम में फोकस नहीं कर रहे?"  
उसके हाथ पसीने से भीग गए।  
"सॉरी, मैम। मैं इसे ठीक कर देता हूं।"  
"देखो, सहदेव," मनीषा ने गहरी सांस लेते हुए कहा।  
"मैं जानती हूं तुम मेहनती हो, लेकिन ये लापरवाही कब तक चलेगी?"  
सहदेव ने सिर झुका लिया।  
"जाओ, और अगली बार गलती न हो," मनीषा ने फाइल वापस करते हुए कहा।  
सहदेव मनीषा के केबिन से बाहर निकला, लेकिन उसके चेहरे पर राहत के साथ-साथ हल्की झुंझलाहट भी थी। काम के दबाव और मनीषा की सख्ती ने उसे अंदर ही अंदर कचोटा, लेकिन उसने गहरी सांस ली और खुद को शांत किया। 
अपने डेस्क पर लौटते हुए उसकी नज़र वित्तीय विभाग की ओर पड़ी। वहाँ काव्या और उसकी सहेली लताशा कुछ चर्चा में मग्न थीं। काव्या, जो वित्तीय विभाग में काम करती थी, अपनी तीखी बुद्धि और सहज मुस्कान के लिए जानी जाती थी। सहदेव को जब भी काव्या के करीब से गुजरने का मौका मिलता, वह एक पल के लिए ठहर जाता। 
"सहदेव!"
काव्या की आवाज़ सुनकर वह चौंका।  
"तुम्हारे चेहरे पर ये तनाव क्यों है? लगता है कि मनीषा का गुस्सा झेल लिया है," काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा।  
सहदेव ने बनावटी गंभीरता के साथ सिर हिलाया।  
"हाँ, वो तो रोज़ का किस्सा है। वैसे, क्या तुमने कभी नोटिस किया है कि मनीषा के गुस्से और थंडरस्टॉर्म में कोई खास फर्क नहीं है?"  
काव्या और लताशा एक साथ हंस पड़ीं।  
"सच कहा," लताशा ने सहमति जताई। "लेकिन ये भी मानना पड़ेगा कि मनीषा का डिसिप्लिन कंपनी को काफी फायदा दे रहा है।"  
"फायदा? या फिर हम सबके सिर के ऊपर एक खतरनाक तलवार लटकाकर काम करवाने का तरीका?" सहदेव ने मुस्कान के साथ कहा।  
"तुम्हारे तर्क तो मजेदार हैं, लेकिन सुनो," काव्या ने अपनी आवाज धीमी करते हुए कहा, "आज लंच में हमारे साथ जुड़ना। तुम्हें कुछ ज़रूरी बात करनी है।"  
"ज़रूरी बात?" सहदेव ने भौहें उठाईं। "ऐसा क्या हो गया?"  
"बस, समय पर लंच रूम में आओ, समझे?" काव्या ने मुस्कराते हुए उसे झिड़की दी और अपनी फाइल्स उठाकर चली गई।  
दोपहर के समय, जब पूरा ऑफिस लंच ब्रेक पर था, सहदेव धीरे-धीरे लंच रूम की ओर बढ़ा। काव्या और लताशा पहले से वहाँ थीं। 
"तुम तो हमेशा की तरह लेट हो," काव्या ने व्यंग्य किया।  
"मैं लेट नहीं हुआ। मैंने बस समय का थोड़ा लचीलापन लिया," सहदेव ने हँसते हुए कहा। 
"बैठो," काव्या ने आदेश दिया। "अब सीधे मुद्दे पर आते हैं। तुम्हें मनीषा से डरने की जरूरत नहीं है।"  
"डर? मैं डरता नहीं। मैं बस सम्मान करता हूँ," सहदेव ने कहा।  
"हम्म, सम्मान।" काव्या ने चुटकी ली। "लेकिन सच कहूँ तो, तुम्हें अपनी आत्मविश्वास बढ़ाने की ज़रूरत है। तुम हर बार खुद को छोटा क्यों महसूस करते हो?"  
"काव्या, मैं आत्मविश्वास खोता नहीं। बस ये ऑफिस की राजनीति मुझे परेशान करती है। हर कोई किसी न किसी के पीछे पड़ा है," सहदेव ने गहरी सांस लेते हुए कहा।  
"तो तुम्हें ये समझना चाहिए कि मनीषा की तरह लोग हर जगह मिलेंगे। ये दुनिया उन्हीं की है जो अपना रास्ता खुद बनाते हैं," काव्या ने समझाते हुए कहा।  
"और वैसे भी," लताशा ने हंसते हुए कहा, "अगर तुम्हें कोई दिक्कत हो, तो काव्या से मदद ले सकते हो। ये तो हमारी मिनी-मनीषा है।"  
"क्या?" काव्या ने नकली गुस्से से लताशा को घूरा। "तुम्हारी ये तुलना तो बिल्कुल बेकार है।"  
तीनों ठहाका लगाकर हँस पड़े। 
लंच खत्म होने के बाद, सहदेव अपने डेस्क पर लौट आया। लेकिन अब उसका मूड हल्का था। काव्या और लताशा के साथ की गई बातें उसे सकारात्मकता से भर गई थीं।  
काम करते-करते, सहदेव ने एक बार फिर वित्तीय विभाग की ओर देखा। काव्या अपने काम में मग्न थी। लेकिन जब उसकी नजरें सहदेव से टकराईं, तो उसने हल्की मुस्कान दी। सहदेव का चेहरा हल्का गुलाबी हो गया।  
"फोकस, सहदेव," उसने खुद को याद दिलाया। "काम पर ध्यान दो।"  
शाम को ऑफिस खत्म होने के बाद, सहदेव, काव्या, और लताशा ने तय किया कि वे पास के एक कैफे में मिलेंगे। कैफे में हल्की रोशनी, धीमा संगीत, और खुशबूदार कॉफी का माहौल था। 
"तो, अब बताओ," काव्या ने कॉफी का घूंट लेते हुए पूछा, "तुम्हारा अगला कदम क्या है?"  
"कदम? किस चीज़ का?" सहदेव ने भ्रमित होकर पूछा।  
"तुम्हारे करियर का। तुम्हारे सपनों का। तुम हर दिन सिर्फ मनीषा के डर से जीते हो। क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम क्या चाहते हो?"  
सहदेव ने गंभीरता से सोचा।  
"मुझे नहीं पता। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं बस दिन काट रहा हूँ।"  
"तो इसे बदलो," काव्या ने कहा। "जिंदगी तुम्हारे लिए इंतजार नहीं करेगी। तुम्हें उसे पकड़ना पड़ेगा।"  
"और हाँ," लताशा ने मजाकिया अंदाज में कहा, "अगर तुम्हें कोई प्रेरणा चाहिए, तो हमारी मैडम काव्या से टिप्स ले लो। ये तो वैसे भी ऑफिस की अनऑफिशियल मोटिवेशनल स्पीकर है।"  
"तुम दोनों मेरा मजाक बनाना बंद करो," काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा।  
लेकिन सहदेव को यह समझ आ गया था कि उसकी जिंदगी में कुछ बदलाव की जरूरत है।  
कैफे से बाहर निकलते वक्त, सहदेव ने हल्के मन से काव्या की ओर देखा।  
"थैंक यू, काव्या। आज जो तुमने कहा, उससे मुझे काफी कुछ समझ आया।"  
काव्या ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराई।  
"सहदेव, तुम बेहतर कर सकते हो। बस खुद पर भरोसा रखना।"  
उनकी बातें और हंसी का यह छोटा सा पल सहदेव की जिंदगी में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत था।