beete na rena in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | बीते न रैना भाग - 2

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बीते न रैना भाग - 2

                " बीते न रैना "

                     (2)

 जीप का सफर भी कितना थकाने वाला था, ये फिरोज को ही पता था.... मेहरा साहब तो अलबेले व्यक्ति थे।साय काल हो गया था... सूर्य अस्त पहाड़ो की चोटियों के पीछे इतना सुन्दर दृश्य.... जैसे कोई चित्रकार केन्वेंस पे उतार ले। टरू टरू की गति किर्या शुरू हो चुकी थी... शत शत शांत वातावरण मे सर्द हवा का झोका कभी कभी आ जाता था। जीप रहन बसेरा मे लगाने के पश्चात मेहरा साहब ने पूछा, " ये सेबो के बाग बाऊ जी की कमाई है। बहुत मेहनत की,बाऊ जी ने पूरी कमर तोड़ी... "  फिरोज मुस्करा पड़ा। माली काका ने कहा, " जनाब नमस्ते। " उसकी पत्नी माधवी पीछे से किधर से आ गयी, " हाँ, जी आप तो सारा दिन ही लगा आये... पहचानो कौन है, पांच साल की हो गयी, गुड़ी आपकी। " मदन साहब ने गंभीर होकर कहा, " ओह मेरी बेटी... गुड़ी कैसी हो... कौनसी क्लास मे पढ़ रही हो... "ऐसे कितने प्रश्न किये! मेहरा कुछ सोच कर हसने लगा, " लो बेटी को फिरोज ये टोकरी सेबो की दो तुम "----"आप की किर्पा बनी है हम पर..." गुड़ी बच्ची के गाल पे चुटकी काटी... वो कुछ इस तरा से बोली.. " ताऊ जी.. आप मेरे साथ खेलो। " ये सुन कर मदन महरा मुस्करा कर गाल थपती देते अंदर को चले गए।

" बाऊ जी आज केले के पते पे मछली खायेंगे... बड़ी लजीज है.." मेहरा ने मुँह भरते हुए कहा... " वाह.. कया बात है, कैसे और किस तरा तैयार करते हो। "  मेहरा ने पूछा।

" साहब चीर कर... पुछ भी फ्रायी कर दी, केले के पते मे टेस्टी वाह.... कया बात है। " उसकी पत्नी ने परोस कर कहा।" बाऊ जी को कभी कछुआ खिलाऊंगी। " हस पड़ा मदन.... "सारा चिड़िया घर यही है। "  फिरोज हस पड़ा। अलबेला मेहरा साथ मे विस्की के पेग बना कर पीने लगा। फिरोज को चेयरस कर एक बोतल तो पी गए। मछलीं एक बड़ी और साथ दो छोटी भी खा कर खराटे लेने लगे।

                         माली की पत्नी को चोरी की आदत थी... कुछ पैसे और सोने की अंगूठी छपन छू कर के उड़ गयी थी...

दोनों टूटे से थे, दोनों ने ही करोली की... नाईट गाउन उतारा और फिरोज ने पजामा और सादा कुरता पहन लिया था .. मदन बता रहा था,---" जिसकी ये लड़की है, वो फिरोज इतनी खूबसूरत थी... कमबख्त को बच्चा कैसे ठहर गया, कमबख्त आज तक नहीं समझ लगी... एक दम ---- कया बताऊ ---" मदन जैसे पछचाताप सा कर रहा था। फिरोज चुप था। फरोज बोला, " याद इतना रखुगा, कि अब तक जवानी की कहानी सुना रहे हो, कुछ मेरे बारे मे ही सोच लेते। "  उच्ची देना हसा मेहरा। " तुम भी कोई पाप करोगे, लगता है, पीछे मत रह जाना... " दोनों ताड़ी मार कर हस पड़े। 

" अख़बार वाला " अख़बार फेक कर चला गया। इंग्लिश टिइरबून थी। उठायी और मेहरा पढ़ने लगा। अख़बार 1977 का था। हाँ भाई ग़रीबी कितनी थी, कौन जानता था, कल कया हो जाए।

कांग्रेस का बोल बाला था... जनता दल हिदुपार्टी थी। कल रात कया हुआ कुछ पता नहीं था.. चाली रुपए उड़ गए कुछ नहीं पता चला... सब  भलेमान्स ही है, तुम्हे ऐसे ही दिखेंगे। सच मे....

फिरोज को शक हुआ था... उसका संभाला सौ का नोट उड़ गया था... हाँ वो केले के पते वाली से हिसाब बराबर करुँगा... मन मे ठानी... " बात बोलू... ये जो मछली वाली है, ठोक के मारती है, चुना लगा के। " मदन हस पड़ा। " पता है " मेहरा बोला....

(चलदा )                       👍🏻 नीरज शर्मा।