Hanuman Baahuk Rahashy - 1 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 1

Featured Books
Categories
Share

हनुमान बाहुक रहस्य -प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा - 1

हनुमान बाहुक रहस्य-श्री गङ्गाराम शास्त्री

यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।हनुमान बाहुक पुस्तक  हनुमान जी की स्तुति में लिखे गए कुछ छन्द हैं जो गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा विरचित हैं। सामान्यतः जन सामान्य गीता प्रेस गोरखपुर के द्वारा छापे गए 44 छंद का ही पाठ करते हैं । लेकिन श्री खेमराज वेंकटेश्वर मुंबई छापा खाने से प्रकाशित पुस्तक में इसी नाम की पूस्तक में 58 छंद बताए गए हैं । लेकिन पंडित गंगाराम शास्त्री जी ने छन्द संख्या के बारे में इस विषय पर गहरा अनुसंधान किया है । श्री गंगाराम शास्त्री संस्कृत के बड़े विद्वान थे। तंत्र शास्त्र के बड़े तपस्वी पुरोधा थे और साहित्य के प्रति रात दिन समर्पित रहकर काम करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने तंत्र के प्रयोग किये, नए तंत्र प्रयोग के अनुसंधान किये और हनुमान बाहुक को लेकर उन्होंने बहुत खास तौर पर तांत्रिक प्रयोग किया। उन्होंने भूमिका में लिखा है कि हनुमान बाहुक के असली छन्द खोजने के लिए कई हस्तलिखित ग्रंथ इकट्ठा किये। पंडित बाबूलाल गोस्वामी बिहारी जी  मंदिर , बिहारी जी रोड दतिया से तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में जाकर वहां के विद्वानों से उन्होंने  हनुमान बाहुक के छन्द प्राप्त किए । जिनका मिलान गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तक और श्री खेमराज वेंकटेश्वर मुंबई छापे की पुस्तक के छंदों से किया तथा श्री जगमोहन लाल दीक्षित सेंवढ़ा वालों द्वारा प्राप्त की गई पुस्तक से भी ऐसे छन्द , ग्रंथावली, छन्द  की संख्या का मिलान किया और यह अद्भुत मेहनत थी।  अनेक ग्रंथ ऐसे थे जिनके अनेक छन्द ऐसे थे जो हनुमान बाहुक में शामिल नहीं थे। श्री गंगाराम शास्त्री जी का अभिमत है कि वे सब छन्द इसी पुस्तक का हिस्सा होना चाहिए, जैसे दोहावली के कुछ दोहे हनुमान जी की स्तुति में कह गए हैं, इस प्रार्थना के साथ की वे शरीर की पीड़ा , दैहिक व  दैविक जीवन , भौतिक जीवन में आई पीड़ाओं को समाप्त करें। उनको भी उन्होंने सम्मिलित करके एक विशिष्ट हनुमान बाहुक ग्रंथ की संरचना की। इसमें 85 छन्द शामिल किए हैं , इन 87 छंदों का संकलित किए हैं । इन 87 छंदों को अर्थ सहित उन्होंने एक जगह लिखा फिर उनके प्रयोग बताए हैं। किस छन्द च का किस समस्या में प्रयोग किया जाता है । यानी अगर न्यायालय में प्रकरण चल रहा है और उससे मुक्ति प्राप्त करना है तो हनुमान जी के हनुमान बाहुक के कितने पाठ किए जाने चाहिए? अथवा हनुमान बाहुक के किन-किन छंदों का पाठ किया जाना चाहिए? कितने दिन किए जाएंगे?  भक्त को क्या नियम रखने पड़ेंगे? क्या भोजन करना होगा? क्या उपवास करना होगा ?क्या फलाहार करना होगा ? क्या भोग लगाना होगा और इसके बाद भी अगर सीधा उपचार न हो तो वे किसी कुशल ब्राह्मण से पाठ करवाए जा सकते हैं, करवाना पड़ेगा। ऐसे प्रयोग उन्होंने हनुमान बाहुक की इस पुस्तक बाहुक रहस्य में किया है। यह ग्रंथ बहुत दुर्लभ है। यह ग्रंथ गुप्त रखने योग्य है। यह ग्रंथ विश्वास करने योग्य है ।पंडित गंगाराम शास्त्री ने अपना पूरा जीवन इस ग्रंथ को रचना में लगाया है । इस ग्रंथ की समीक्षा करने पर हम देखते हैं कि काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पृष्ठ 2145, 2140, 2148 नंबर के पृष्ठ पर जो छन्द लिखे गए हैं , वह किसी अनुमान भाव को पुस्तक में शामिल नहीं है। लेकिन गंगाराम शास्त्री जी ने गिरता पूर्वक कहा है कि यह सब हनुमान बाहुक के ही हिस्से हैं वह तो यह तक कहते हैं हनुमान भाव के नाम से कोई पुस्तक नहीं है बल्कि गोस्वामी जी द्वारा रचित छंदों को संकलित करके गीता प्रेस गोरखपुर ने भी और खेमराज वेंकटेश्वर ने भी यह इन पुस्तकों को प्रकाशित किया है की वेदांती है कि हनुमान जी से गोस्वामी जी ने अपनी बहू की प्रार्थना हेतु बाएं के दर्द हेतु इन छंदों को रचा है जबकि जब हनुमान भाव के छंदों का अध्ययन अनुशीलन किया जाता है

हनुमान बाहुक(१)दोहा

श्रीरघुवीर प्रणाम करि सहित लखन हनुमान ।

 राखि हृदय विश्वास दृढ़ पुनि पुनि करों प्रणाम।        {खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (१)}

प्रथम मंगलाचरण करते हुए यहां देवसम्बन्धी काव्य होने के कारण नमस्कारात्मक कथन करते हैं। मंगलाचरण तीन प्रकार का होता है-आशीर्वादात्मक, नमस्क्रियात्मक और वस्तुनिर्देशात्मक। जहां किसी राजा आदि की प्रशस्ति में कुछ लिखा जाता है, वहाँ कवि आशीर्वाद के रूप में मंगलाचरण करता है। वर्णनात्मक काव्य अथवा महाकाव्य में वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण होता है। देवस्तुति में नमस्कारात्मक मंगलाचरण किया जाता है यहां तुलसीदास लक्ष्मण और हनुमान सहित रामचन्द्र को प्रणाम करते हुए फिर लक्ष्मण, हनुमान सहित उनका ध्यान करते हुए, दृढ़ विश्वास के साथ बारम्बार प्रणाम निवेदन करते हैं। दृढ़ विश्वास ही को श्रद्धा कहा जाता है। अतः भक्तों के लिये यहां पूर्ण श्रद्धा, भगवान का हृदय में ध्यान और उन्हें प्रणाम निवेदन करते हुए पाठ करने का संकेत किया गया है। यहां लखन हनुमान सहित श्रीरघुवीर को प्रणाम करि उन्हें हृदय में राखि हृदय में दृढ़ विश्वास राखि पुनि पुनि प्रणाम करने की बात कही गई है। अथवा लखन सहित श्रीरघुवीर को प्रणाम करि, हनुमान को हृदय में राखि कर दृढ़ विश्वास के साथ पुनि पुनि प्रणाम किया गया है।

(२)दोहा-भौमवार आदिक पढ़े जो नर सहित सनेह।

 रुज संकट व्यापे नहीं बाढ़े सुख धन गेह।         {खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (२)}जो व्यक्ति प्रेम के साथ इस हनुमान बाहुक का पाठ मंगलवार से प्रारम्भ कर करेंगे उन्हें किसी भी प्रकार का दैहिक अथवा मानसिक रोग नहीं होगा, उन पर किसी प्रकार का संकट आ नहीं सकता। यदि रोग और संकट आ भी गया हो तो वह व्याप नहीं सकेगा। अर्थात् अपना प्रभाव नहीं दिखा सकेगा। और उसके घर में सब प्रकार की समृद्धि रहेगी। सुख और धन की वृद्धि होगी।43प्रथम दोहा का इस प्रकार भी दूसरा पाठ मिलता है-दोहाश्रीरघुवरहि प्रनाम करि, सहित लखन हनुमान । राखि हृदय विश्वास दृढ़ पुनि प्रनवउँ भगवान।दोहा क्रमांक दो में आदिक के स्थान पर आदित पाठ भी मिलता है। अर्थ वही है कि मंगलवार के आदि से प्रारम्भ करके पढ़े। अथवा मंगलवार और आदित्यवार-इतवार भी अर्थ हो सकता हैं

।(३)दोहा-शुचि सनेम पढ़ि है जु नर, निरुज गात बल धाम। ह्वै है रति तुलसी-सपदि, यश पैहै सब ठाम।{

खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (३)}

जो मनुष्य पवित्र रहकर नियम पूर्वक इसे पढ़ेगा, वह नीरोग रहते हुए बलिष्ठ होगा। उसकी हनुमान के चरणों में प्रीति होगी और शीघ्र ही सर्वत्र यश पायगा अथवा तुलसी के स्वामी श्रीराम में उसकी भक्ति बढ़ेगी और वह सर्वत्र यश पायगा। तुलसी सपदि और तुलसीस पदि इस प्रकार दो अर्थ किये गये हैं। सपदि का अर्थ शीघ्र होता है। 

(४)दोहा-सुचि है कुस कर लेइ के , फूंक इकादस वार। 

तेहि अधिकै रुज हरहिगे, जनरुचि पवनकुमार।

जो मनुष्य पवित्र होकर हाथ में कुश लेकर हनुमान बाहुक के इन मन्त्रों को पढ़कर ग्यारह बार फूंक देगा तो भयंकर से भयंकर रोग को श्रीहनुमान दूर कर देंगे, क्योंकि वे तो अपने भक्त की रुचि रखने वाले हैं। इस के द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि जहां अन्यथा विधि न लिखी हो, वहां केवल कुश लेकर ग्यारह बार संबंधित मन्त्र पढ़कर झाड़ देने से रोग दूर होता है। कुश लेकर जल से ग्यारह बार मार्जन भी किया जाता है। इस प्रकार पवित्र जल को ग्यारह बार अभिमन्त्रित कर उस जल को रोगी को औषधि की भांति पिलाने और उसी कुश के द्वारा रोगी के शरीर पर छींटे देने से रोग में तत्काल लाभ होता है।

(५)दोहा-मंजुल मंगल मोदमय, मूरति मारुत पूत। 

सकल सिद्धि करकमल तल, सुमिरत रघुबर-दूत ।

रामचन्द्र के दूत हनुमान मनोहर, मंगलकारी, आनन्द देने वाले स्वरूप हैं। उन पवनपुत्र का स्मरण करते ही सभी प्रकार की सफलता हस्तगत-प्राप्त हो जाती है।

(६)धीर-वीर रघुवीर प्रिय, सुमिर समीर कुमार। 

अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि विचार।

धीर, वीर और श्रीराम के प्यारे पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करके जो भी कठिन से कठिन काम किया जायगा वह अगम से सुगम हो जाता है। उनके स्मरण मात्र से कार्य की सिद्धि तो हाथ में आई ही समझिये।प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा और इण्टरव्यू में चुने जाने के लिये एक सप्ताह पूर्व किसी भी मंगलवार से प्रतिदिन मंन्त्र संख्या 5 व 6 का एक हजार पाठ करे । कार्य पूर्ण होने पर अथवा परीक्षा अथवा इण्टरव्यू पूरा होने के दिन हवन करे। इससे सामान्य परीक्षा में भी उत्तीर्ण होना सरल है। परीक्षा के समय प्रतिदिन प्रातः काल स्नान कर के हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी सफलता मिलती है।अभीष्ट वर कन्या की प्राप्ति- मंगलवार से प्रारम्भ कर इस दोहे की दस माला आवृत्ति दस दिन तक करे। ग्यारहवें दिन दस माला से हवन करे। हवन में घी में डुबोकर महुवा के पुष्प की आहुति दे। इस प्रकार करने से वर को अभीष्ट कन्या अथवा कन्या को अभीष्ट वर की प्राप्ति होती हैं

।(७)सुख मुद मंगल कुमुद विधु सगुन सरोरुह भानु। 

करहु काज सब सिद्धि सुभ, आनि हिये हनुमान ।

सुख, आनन्द और कल्याण रूपी कुमुद को खिलाने के लिए चन्द्रमा के समान और सद्‌गुणों के कमल को विकसित करने में सूर्य के समान श्री हनुमान का हृदय में स्मरण करें तो सभी कामों में सफलता मिलती है।

(८)सकल काज सुभ समउ भल, सगुन सुमंगल जान।

कीरति विजय विभूति भलि, हिय हनुमानहि आन।

श्री हनुमान का हृदय में ध्यान करने से सभी कार्य शुभ होते हैं. सभी समय-बिना मुहूर्त का विचार किये-शुभ हो जाते हैं, सभी सगुन मंगलकारी होते है उसके फलस्वरूप यश, ऐश्वर्य और काम में विजय प्राप्त होती है।चुनाव में विजय के लिए-हं हनुमते नमः के सम्पुट के साथ इस दोहे की प्रतिदिन एक सहस्र आवृत्ति करने और यथाविधि हवन करने से चुनाव में विजय प्राप्त होती है।कार्य की सफलता के लिए कार्य प्रारम्भ करने से लेकर कार्य सफल  होने तक इच्छानुसार इस दोहे का स्मरण  करता रहे।निर्विघ्न यात्रा सम्पन्न होने के लिए यात्रा के प्रारम्भसे लेकर यात्रा में अनेक बार इस दोहे को दुहराता रहे और यह कल्पना करता रहे कि हनुमान हमारी रक्षा के लिए यात्रा में हमारे साथ ही हैं।

(९)सूर सिरोमनि साहसी, सुमति समीर कुमार। 

सुमिरत सब सुख सम्पदा, मुद मंगल दातार। 

शूरवीरों में श्रेष्ठ, साहसी, बुद्धिमान श्रीहनुमान का स्मरण करते ही सभी प्रकार की सम्पत्ति और सुख प्राप्त होता है, वे आनन्द और कल्याण के करने वाले हैं।क्रमांक 5 से 9 तक दोहों का प्रतिदिन प्रातः काल स्मरण करते रहने से जीवन भर, कार्य में सफलता,और यश की प्राप्ति होती है।(१०)सवैयाराम कृपालु विराजत मध्य महा छविधाम गहे धनु बाना। 

वाम दिसा महिजा सुठ सुन्दर दक्षिण ओर लखन बलवाना। चामर पाणि लिये प्रभु के ढिंग शोभित वायुतनै हनुमाना। तुलसी हिरदे धरु ध्यान सदा भ्रम संशय त्याग कहो परवाना।{खेमराज श्रीकृष्णदास  बम्बई छापा में (4)}

इस सवैया में भगवान राम के साथ लक्ष्मण, सीता और हनुमान का ध्यान बताया गया है। श्रीरामचन्द्र सिंहासन के बीच में विराजमान हैं, उनके वाम भाग में जगज्जननी श्री सीता विराजमान हैं। दाहिनी ओर छोटे भ्राता बलशाली लक्ष्मण हैं। चँवर हाथ में लिये हनुमान भगवान राम के समीप स्थितहैं। रामचन्द्र के हाथ मे धनुष वाण हैं और वे अत्यन्त शोभा के धाम कहिये स्थान हैं। तुलसीदास कहते हैं कि भ्रम और सन्देह का त्यागकर इस झांकी का हृदय में सदा ध्यान करना चाहिये ।