Hanuman Shatak - Samiksha evm Padya - 5 - Last part in Hindi Book Reviews by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य - 5 (अंतिम भाग)

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हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य - 5 (अंतिम भाग)

हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य 5

 

हनुमान शतक सवैया कविता और दोहों में रचा गया 100 छंदों का ग्रंथ है। जो महा कवि करुणेश "द्वारका" द्वारा सम्वत 2012 के वैशाख माह की तृतीया तिथि रविवार को रचे गए छंदों का संकलन है( 100 वे छन्द के बाद का दोहा अनुसार) इसके कुछ छंदों में जहां कवि का नाम करुणेश आता है, और कुछ छंदों में द्वारका आता है। एक विद्वान का मत है कि संभवत: यह द्वारका और करुणेश दो कवियों के हनुमान जी की स्तुति के छंदों का संकलन है। बहरहाल हम दोनों कवियों को एक ही मानते हुए इस पुस्तक पर यहां विचार कर रहे हैं।

 यह पुस्तक 100 छंदों का संकलन है।

 इस पुस्तक में हनुमान जी के विभिन्न महान कार्यों और उनके श्री राम की सेवा में बल, बुद्धि समेत संपन्न किए गए कार्यों का उल्लेख है । हनुमान जी की स्तुति भी इसमें अनेक रूप में की गई है। निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाए तो अगर हनुमान पताका, हनुमान साठिका,बजरंग बत्तीसी की तुलना में  और हनुमान बाहुक की को की तुलना में इन छंदों को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि कवि करुणेश  'द्वारका' के आरंभिक रचनाओं में यह ग्रँथ रहा होगा। जो संस्कृत निष्ठ  हिंदी और समृद्ध छन्द की परंपरा हनुमान पताका वह अन्य ग्रँथों में मिलती है इस ग्रंथ में अभी विकास के दौर में वह चल रही थी। लेकिन प्रभु स्तुति,  हनुमान जी की प्रार्थना तो किसी भी रूप में की जाए, किसी भी छन्द में की जाए, सदैव उसकी सराहना की जानी चाहिए। अतः हनुमान जी की उपासना के इस ग्रंथ को हनुमान जी के चरणों में कवि करुणेश द्वारका की विनम्र स्तुति मानकर इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ग्रंथ के कुछ छंदों का यहां उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है-

 

 

 

 

 

:-81-:

 

मूर्छा के शान्त होत उठे वीर लक्ष्मण जो. तब घननाद युद्ध करवो विचारौ है ।

काली के मंदिर में कियो तब विजय यज्ञ, राम सों विमुख तिन्हे देय को सहारौ है ।।

कर सको न यज्ञ पूर्ण देवी ना प्रसन्न हुई. बीच ही विनाशो राम कारज संभारो है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-82-:

 

जब अहिरावण श्री राम, लक्ष्मण दोनों को, हर कर ले वेग पाताल सो सिधारौ है।

चाहौ बलि देन प्रात काली के समक्ष तभी, जाकर निशंक अहिरावण संहारौ है ।।

निश्चर संहार आप कीन्ही है विजय प्राप्त, राम-लक्ष्मण लाये कार्य सारो संहारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

-83-

 

लखन लखे मूर्छित रावण की शक्ति से, तब तुम नाथ युद्ध कीनों अति भारो है।

 डारे तब बड़े-बड़े पर्वत उठाके और, नष्ट कियो रथ और सारथी संहारौ है ।।

जीत न सको है वह मल्ल युद्ध ठानो तब, एक ही गदा मार मूर्छित कर डारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-84-:

 

हो गयो विनाश जब दुष्ट दशकंधर को, सीय पास जाय सब हाल कह डारौ है ।

 रावण मरण राज तिलक सो विभीषण को . नष्ट कियो सूर जिमि मेघनाथ मारौ है ।।

राम दरस दें हैं वेग चिन्ता ना कीजै मातु ऐसे समझाय सीय संकट निवारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-85-:

 

आय के अयोध्या में निहारे है भरत और लंकहू को हाल सब आप कह डारौ है ।

 कुम्भकरण, मेघनाथ, बड़े-बड़े शूर वीर, वरने सवंश जिमि रावण संहारौ है ।।

 कुशलता बखानी श्री राम, लक्ष्मण, सीता की, आगमन सुनाय त्यों संकट निवारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

-86-

 

देवों के महान कार्य कीन्हे है सहज भांति कहां लो बखानों जग जानत ये सारो है।

बड़े-बड़े शत्रुओं से आपने विजय पायी, बाल ब्रह्मचारी सदा रामजी को प्यारो  है ।।

 पौन राम वेग और काल सम दुष्टन को, भक्त भय हारी सदा दीन दुख टारो है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ. कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-87-

 

मैं तो अति दीन, बलहीन पुरूपुरुषार्थ, मित्रहीन दृव्य हीन, आसरो तिहारौ है ।

 घेर लियो शत्रुन ने दुष्टन ने, कष्टन ने, रोगन ने शोकन ने दास ये तिहारौ है ।।

 आईये, संहारिये, विनाशिये निवारिये और. वेग ही हटाओ नाथ दास ये पुकारौ है।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-88-:

सवैया

हे बलवीर हरो जन पीर अब, व्याकुल शरीर कष्ट मेंटिये हमारी है

 

 । लीजिये उवार अब कीजिये उवार नही, ठाड़ौ तुम द्वार नाथ दास ये तिहारौ है ।।

सुनौ कपि भगवान दीजौ बुद्धि महान है, सेवक अज्ञान अब शरण तिहारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारो है ।।

 

89

 

मेरे हो ईश और सहायक सब भांति सदा मातु-पिता, सखा-बन्धु जो कछु हमारो हौ।

आपके सिवाय अबलम्व है ना और कोई. आप स्वामी हमारे ये सेवक तिहारो है ।।

 दीजै अबलम्व नाथ कीजिये बिलम्व नहीं, मेंटिये महान कष्ट, सेवक पुकारो है।

 दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।

 

:-अष्टक इति:

 

:- रचयिता - स्वामी श्री करुणेश

 

 

:- क्षमा-याचना एवं विसर्जन :

 

90

 

दीन बन्धु दीनानाथ, दीन हितकारी वीर, दास निज जान मोहि वेग अपनाईये ।

केतिक असहायों को आप अपनाईये नाथ, कीजै अपराध माफ पातक उठाइये ।।

घेर लिया शत्रुन ने रोगन ने कष्टन ने. व्याकुलता वाढ़ी वेग ढाढस बंधाइये ।

दास "द्वारिका" के नाथ आप हनुमंत वीर, कृपा दृष्टि कीजै वेग संकट मिटाइये ।।

 

-91-:

 

जैसे दीन जानके सुकण्ठ अपनायौ आप, तैसे दीन दास जन नाथ अपनाईये ।

 बड़े-बड़े निश्चर जिमि क्षण में विनासे त्यों त बाढ़े बहु शत्रु प्रभु वेग ही नशाईये ।।

पापों और रोगों के उदर विदार बे को तुव, नाम असि धारा तासें शीघ्र ही हटाईये ।

 दास "द्वारिका" के नाथ आप हनुमंत वीर. कृपा दृष्टि कीजै, वेग संकट मिटाईये ।।

 

:-92-

 

हार नही मानी, जब सागर उलांघ गये. हार नहीं मानी, जब लंकहू जलाई है ।

 हार नही मानी जब द्रोणागिर लाये धाय, आपकी कृपा सों मत्स्य द्रव्य तनु पाई है ।।

 हार नही मानी मेघनाथ और दशानन से. अक्षय संहार हेतु हार नहि खाई है ।

दास "द्वारिका" के ऐसे कौन प्रबल शत्रु . तिन्हे विनाशार्थ नाथ देर सो लगाई है ।।

 

:-93-:

 

नारी विलोकी इक गये जो सिया खोज हेतु. जानकर अनाथ निष्पाप कर डारी है।

 वृद्ध सम्पाती पक्षहीन रहौ कंदरा महि आपकी कृपा सों भौ सपक्ष पक्षधारी है ।।

लंकनी कलंकनी कुटिल कुविचारी नारि, दर्श देय नाथ आप ताहू को उधारी है ।

 दास "द्वारिका" के नाथ ऐसे कौन से कठिन पाप. तिनके मोक्षार्थ कीनी नाथ सो अवारी है ।।

 

:-94-:

 

कौन पाप भारी जानें आनके दबाया मोहि. दीन दास जान गयो आप सो ना टारौ है ।

हो गयो जो होनो थो था अब भी है खैर नाथ, आश पूर्ण कर रहौ संकट हमारो है ।।

पापी दुष्ट जैसो तैसो सेवक तिहारो प्रभु. कीजिये सहाय अब शरण तिहारौ है ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, राखौ या विगाड़ो अधिकार ये तिहारौ है ।।

 

:-95-:

 

नाथ बड़े-बड़े पापियों को पापन को आपने ही, दर्श दे निवारे अरू शीघ्र अपनाये हैं।

 करके कृपा की दृष्टि दीने आराम सदा, संकट निवारे जो शरण तुम आये हैं।।

ऐसो अपराध कहा दास "द्वारिका" को प्रभु. देते नहि ध्यान ऐसे मुझको भुलाये हैं ।

कीजै खता माफ मेरी प्रार्थना यही है सदा, राखौ या विसारो आगे मस्तक नवाये हैँ ।।

 

-96-:

 

हे बलवीर कछु चाह न  करत नाथ, दीजै प्रभु ध्यान यही प्रार्थना हमारी है ।

दास हम होके करू जानके अनीत नहि, लीजै अपनाय मैटो आपदा हमारी है ।।

धर्म अरू नीति अपने हों सतमार्ग सदा, छोड़ के कुचाल रहौ आपको पुजारी है।

दास "द्वारिका" को अब दीजे अविलम्ब शीघ्र, अर्ज यह हमारी अब मर्जी तुम्हारी है ।।

 

:-97-

 

लीजे अपनाय सुन कीनो प्रण ताहि नाथ. करके दया की दृष्टि चरणन में लीजिये ।

 भंग ना करेंगों कभी राखेगों ये ध्यान सदा, आज्ञा निवाहों सदा संकट हर लीजिये ।।

भंग यदि करों तो दण्ड दीजे जो भावै मन, विलंग न मानो नेंक अब तो पसीजिये ।

दास "द्वारिका" की लाज नाथ अबकी बचाओ लाज कृपा दृष्टि कीजै अबलम्व शीघ्र दीजिये ।।

 

:-98-:

 

अब भी ध्यान नहीं दोगे कदाचित ही, विलग न मानो कछु शरण तिहारी है ।

जान लों में ये ही समझाय लगों मन कोऊ भी, स्वामी हुये वृद्ध अब सुनत ना पुकारी है ।।

लोग वाग दास जान लांछन लगायें यदि, भला बुरा कहा करें बुराई तुम्हारी है ।

 दास "द्वारिका" को तब बस ना चलेगौ कछु, लाज को बचाओ तारों आपनी हमारी है ।।

 

 

:-99-:

 

पिंगल ना जाने गुण दोष हू ना जानें और. कविता के अंग तिन्हे एक हू ना जानें हैं ।

 लालसा बढ़ी थी कछु आपकी कृपा से नाथ, सेवक ने विनती के छन्द ये बखाने हैं ।।

भाव को सुधारो सर्व दोष को निवारो प्रभु . कीजै सब माफ भूल कीनी अन्जाने हैं ।

कहें "करूणेश" अज्ञान हम न जानें कछु. रावरौ भरोसौ एक सच्चो यह जानें हैं ।।

 

:-100-:

 

ऐसी मम शक्ति कहां कीरत बखाने नाथ, आपकी कृपा सों गुण सूक्ष्म कह डारे हैं ।

बड़े-बड़े मुनियों ने पार नहि पाई तब, हम तो अज्ञान प्रभु पंडित भी हारे हैं ।।

 गुण है अनंत और अनन्त बल विक्रम है, पौरष अनन्त काम अद्भुद तिहारौ हैं ।

कहें "करूणेश" होवे दोष या विरूद्ध बैन, कीजै सब माफ हम शरण तिहारे हैं ।।

 

दोहा:-

 

दो हजार बारह विसे अरू महिना वैशाख,।

 तिथि तीज रविवार पुनि है अंधियारौ पाख ।

सतक कहों "करूणेश" यह रक्षक श्री बजरंग,।

दीन आस पूरण करें करें शत्रु बल भंग ।।

पाठ करै मन लायके तज संशय अभिमान.।

 ताके सफल मनोरथहिं सिद्ध करहि हनुमान ।

:- शुभम् भवत् श्री संत करूणेश

 

आरती-
 

सब मिल के आज जय कहो बजरंग बली की ।

 कर जोर कर अस्तुति करो, बजरंग बली की ।1।

जय के लिए बल के लिए, कल्याण के लिए ।

गाथा पुनीत गा चलो, बजरंग बली की ।2।

निर्भय बनो निरद्वन्द हो, आनंद से रहो ।

आराधना करते रहो, बजरंग बली की ।3।

दासों की किया करते है, लांगूल से ये रक्षा ।

 यह आन बान जान लो, बजरंग बली की ।4।

 माला प्रसाद और ले सिन्दुर राधेश्याम ।

सुन्दर सरस कथा कहो बजरंग बली की ।5।

 

:- शुभम् भवत्

 

जय जय जय बजरंग बली

 

:-विसर्जन:

 

आवाहन न जानूं और जानूं विसर्जन ना बुद्धि ना हमारी करें पूजा सो तिहारी है ।

बड़े-बड़े ऋषियों ने नाथ कर पाई नही लीने अपनाय यही कीन्ही कृपा भारी है ।।

 मार्ग में आपने उठाये जो महान कष्ट, वाके उपलक्ष में क्षमा याचना हमारी है।

 कहें "करूणेश" जाओ आते अरू जाते रहो, दर्श नित देन हेतु प्रार्थना हमारी है ।।

 

।।। ॐ शान्तिः, शान्तिः शान्तिः ।।।

 

इति - श्री हनुः हनुः हनुमते नमः

 

जय श्रीराम जय जय हनुमान संकट मोचन कृपा निधान

 

-वंदना-:

 

सच्ची सेवा भाव से मुग्ध हुये रघुनाथ ।

 ऐसे वीर हनुमान को सत्-सत् वार प्रमाण ।।

 

:- श्री हनुमान जी महाराज की स्तुति:

 

 

 

हनुमानांज्जनी सुतुर्वायु पुत्रो महाबलः

रामेष्ठ, फाल्गुनसखः , पिंगाक्षों, अमित विक्रम ।

उदधि क्रमणश्चैव, सीता शोक विनाशनम्

लक्ष्मण प्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा एवं

द्वादश नामानि कपीन्दस्य महात्मनः ।।

 

स्वाप काले प्रवोधेच यात्राकालेचयः पठेत

तस्य सर्व भयं नास्ति रणेच विजयी भवेत्

राज द्वारे ग्रहचरेच भयं नास्ति कदाचनाः

 

जय श्रीराम जै जै हनुमान्

संकट मोचन कृपा निधान

 

श्री श्री