शहर से दूर, प्रकृति की गोद में एक बेहद खूबसूरत गांव था, जिसका नाम 'आदित्यपुर' था। इसी गांव में दो दोस्त रहते थे — राम और श्याम। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि उसके चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे। राम एक मेहनती, संतोषी और शांत स्वभाव का व्यक्ति था, जबकि श्याम चालाक और कामचोर था। दोनों के व्यक्तित्व में इतनी असमानताएं होने के बावजूद उनकी दोस्ती पर कभी कोई फर्क नहीं पड़ा।
एक बार की बात है, आदित्यपुर में अफवाह फैल गई कि जंगल के बीच वाले मंदिर के पास कहीं खजाना छिपा है। जब यह बात श्याम को पता चली, तो उसने तय किया कि वह उस खजाने को हासिल करेगा और रातों-रात अमीर बन जाएगा। लेकिन क्योंकि मंदिर जंगल के बीचों-बीच था, वहां तक पहुंचना अकेले उसके बस की बात नहीं थी। उस रास्ते में दुर्गम पहाड़ियाँ और जंगली जानवरों का सामना करना पड़ता। इसलिए उसने राम से सहायता लेने का निश्चय किया।
श्याम ने राम को बताया, “गांव वाले कह रहे हैं कि मंदिर के पास कहीं खजाना छिपा है। क्यों न हम उसे हासिल कर लें और रातों-रात अमीर बन जाएं?” पहले तो राम ने श्याम को समझाने की कोशिश की कि यह खतरनाक है, इसमें जान भी जा सकती है। लेकिन खजाने की लालसा में श्याम ने कुछ भी सुनना बंद कर दिया था। जब राम के सभी प्रयास असफल हो गए, तो उसने थक हारकर श्याम का साथ देने की हाँ कर दी, क्योंकि वह श्याम को अकेले नहीं जाने देना चाहता था।
श्याम ने राम को विश्वास दिलाया कि जैसे ही उन्हें खजाना मिलेगा, वे दोनों उसे आधा-आधा बांट लेंगे।
अगले दिन वे मंदिर की ओर निकल पड़े। जंगल के दुर्गम रास्तों को पार करते हुए और कई जंगली जानवरों का सामना करते हुए वे अंततः जंगल के बीचों-बीच स्थित मंदिर तक पहुँच ही गए। उन्होंने मंदिर के चारों ओर तलाश शुरू की। तलाश के दौरान उन्हें एक गुफा मिली। श्याम ने कहा, “मुझे यकीन है कि खजाना यहीं छिपा होगा।” लेकिन गुफा काफी गहरी और अंधेरी थी, जिससे राम ने चिंता जताई कि कहीं कोई जंगली जानवर न हो। तब श्याम ने कहा, “तुम यहीं मेरा इंतजार करो, मैं अंदर जाकर देखता हूँ। अगर कोई खतरा होगा, तो तुम्हें मदद के लिए पुकार लूंगा।”
कुछ समय बाद, गुफा के अंदर चलते-चलते श्याम को एक संदूक दिखाई दिया। जैसे ही उसने संदूक खोला, उसमें बेशकीमती हीरे, रत्न और जवाहरात थे। यह देखकर श्याम के मन में लालच पैदा हो गया। उसने तय किया कि वह यह सब अकेला ही रखेगा और राम को कुछ नहीं बताएगा। उसने सारे रत्नों और हीरों को अपने बैग में भर लिया और बाहर आकर राम से कहा, “अंदर कुछ नहीं मिला। शायद खजाने की बात महज एक अफवाह थी। अब हमें वापस चलना चाहिए।” राम को श्याम का व्यवहार थोड़ा अजीब लगा, लेकिन वह कुछ बोला नहीं और दोनों वापस लौट आए।
अगले दिन राम ने गांव में ढिंढोरा पीट दिया कि उसे खजाना मिल गया है। जब यह बात श्याम को पता चली, तो उसे सब कुछ समझ में आ गया। उसे बहुत दुख हुआ कि उसके सबसे अच्छे दोस्त ने उसे धोखा दिया। लेकिन राम ने श्याम से बदला लेने का मन नहीं बनाया, बल्कि उसे माफ कर दिया और फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी में व्यस्त हो गया। फर्क सिर्फ इतना आया कि अब राम और श्याम ने एक-दूसरे से बात करना छोड़ दिया था।
कुछ समय तक तो श्याम की ज़िंदगी ऐशो-आराम से कटी, लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि उसने खजाना तो हासिल कर लिया, पर एक बेहद कीमती चीज़ — अपनी दोस्ती — खो दी। अब वह अकेला पड़ चुका था और अकेलापन उसे अंदर से खोखला कर रहा था।
आख़िरकार उसने तय किया कि वह राम से माफी मांगेगा। उसे यकीन था कि राम उसे माफ कर देगा और उनकी दोस्ती फिर से जीवित हो जाएगी। राम ने उसे माफ तो कर दिया, लेकिन उसने जो कहा, वह श्याम के लिए अप्रत्याशित था। राम ने कहा, “रिश्ते सच्चाई और भरोसे की कोमल और बारीक डोर से बंधे होते हैं। जो एक बार टूट जाए, तो दोबारा पहले जैसे नहीं जुड़ सकते।”
भले ही राम के बड़प्पन ने श्याम को माफ कर दिया हो और वे अब फिर से बातें भी करते हों, पर उनकी दोस्ती में अब पहले जैसी आत्मीयता नहीं रही। श्याम ने लालच में एक ऐसी अमूल्य चीज़ खो दी थी, जिसकी कीमत वह जीवन भर नहीं चुका सकता।