Tere ishq mi ho jau fana - 18 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 18

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 18

सानियाल हवेली का हंगामेदार डिनर

रात का समय था, और सानियाल हवेली के विशाल डायनिंग हॉल में डिनर की तैयारी हो रही थी। सानियाल और पोद्दार परिवार के सभी सदस्य बड़े डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठे थे। खाने की सुगंध पूरे हॉल में फैल रही थी। नौकर बड़े अदब से गर्मागर्म रोटियां परोस रहे थे। माहौल हल्का-फुल्का और खुशनुमा था, लेकिन जैसे ही नौकर ने दानिश के पास आकर कहा—

"सर, कुछ दिन बाद बड़े साहब की बरसी है, उसकी तैयारी कैसी करें?"

पूरा हॉल एक पल के लिए शांत हो गया। दानिश ने अभी कुछ कहा भी नहीं था कि त्रिशा ने तपाक से जवाब दे दिया—

"अरे, इसका तो बहुत ही बड़ा हवन कराना चाहिए! मैं एक पंडित जी को जानती हूँ, वही आकर ये सब करा देंगे। आजकल सभी उन्हें ही बुलाते हैं, बहुत अच्छी पूजा-पाठ करते हैं।"

"अरे, वही न, जिनको हमने उस दिन मिसेज वर्मा के यहाँ देखा था?" सोनिया ने बीच में टोकते हुए कहा।

"हाँ हाँ, वही! जब उन्होंने मंत्र पढ़ना शुरू किया था, तो पूरा माहौल आध्यात्मिक हो गया था। मैंने तो उन्हें वहीं से फॉलो करना शुरू कर दिया।" त्रिशा उत्साहित होकर बोली।

"अरे हाँ, उनका तो यूट्यूब चैनल भी है! मैंने भी देखा है, बहुत बढ़िया तरीके से पूजा-पाठ करवाते हैं।" सोनिया ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

दानिश और बाकी लोग चुपचाप यह बातचीत सुन रहे थे। लेकिन तभी, माहौल में एक तड़का लगाने के लिए सानियाल परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य, दादी, ने अपनी विशेष टिप्पणी दी—

"हम्म... पता नहीं ये दोनों अभी भी खुद को जवान क्यों समझती हैं! बात तो ऐसे कर रही हैं जैसे आज भी कोई नई नवेली दुल्हनें हों। बुढ़ी घोड़ी लाल लगाम!"

पूरा टेबल ठहाकों से गूंज उठा। सोनिया और त्रिशा ने एक-दूसरे को घूरा और फिर हंस पड़ीं।

"दादी, क्या बात कर रही हैं आप? हम अभी भी जवान हैं!" सोनिया ने इतराते हुए कहा।

"हां, बिल्कुल! उम्र तो बस एक नंबर होती है, दिल जवान होना चाहिए!" त्रिशा ने बालों को झटका देते हुए कहा।

"तो इसका मतलब तुम दोनों अभी भी कॉलेज गर्ल्स की तरह बातें करोगी?" दादी ने चुटकी ली।

"और नहीं तो क्या? हम लाइफ एन्जॉय करते हैं!" सोनिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

तभी दादी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—

"चलो, हवन की तैयारी कर लेते हैं, लेकिन एक शर्त है!"

"क्या?" त्रिशा और सोनिया ने एक साथ पूछा।

"तुम दोनों को इस बार पूजा में गंभीरता से बैठना पड़ेगा, फोन नहीं चलाना, और मंत्र भी सही से दोहराने पड़ेंगे!"

"ओहो! ये तो बहुत मुश्किल टास्क दे दिया!" सोनिया ने नाटक करते हुए कहा।

"अरे, लेकिन तुम पंडित जी को बुलाने की बात कर रही थी ना, उनका नाम क्या था?" दादी ने पूछा।

"पंडित शिवानंद! वो बहुत फेमस हैं। पूरा माहौल भक्ति से भर देते हैं। मैंने तो सोचा है कि उनकी लाइव स्ट्रीमिंग भी करवा दें!" त्रिशा ने उत्साह से कहा।

"वाह! पूजा भी और फुल डिजिटल स्टाइल में!" दादी हँस पड़ा।

तभी नौकर ने गरमागरम गुलाब जामुन टेबल पर रख दिए और सारी चर्चा अचानक मिठाई की तरफ मुड़ गई।

"अरे वाह! पहले गुलाब जामुन खाएं, फिर आगे की बात करें!" सोनिया ने झट से प्लेट उठा ली।

गुलाब जामुन की खुशबू पूरे हॉल में फैल चुकी थी। हर कोई मिठाई का आनंद ले रहा था, लेकिन त्रिशा और सोनिया के दिमाग में अभी भी हवन की ही बातें चल रही थीं।

"तो फिर फाइनल हो गया न?" त्रिशा ने गुलाब जामुन का एक टुकड़ा मुँह में डालते हुए पूछा।

"हाँ, पंडित शिवानंद जी को बुलाएंगे!" सोनिया ने समर्थन किया।

दानिश, जो अब तक चुपचाप खाना खा रहा था, ने हल्की खाँसी के साथ गिलास उठाया और पानी पीते हुए कहा—

"मैंने इस बारे में सोच लिया है। इस साल भी हवन वही पुराने पंडित जी करवाएँगे, जो हमेशा से पिताजी की बरसी पर पूजा कराते आए हैं।"

हॉल में अचानक सन्नाटा छा गया। त्रिशा और सोनिया ने चौंककर एक-दूसरे की ओर देखा।

"क्या? लेकिन... दानिश बेटा, तुम मजाक कर रहे हो ना?" त्रिशा ने भौचक्की होकर पूछा।

"बिल्कुल नहीं, पंडित जी हमारे परिवार से सालों से जुड़े हुए हैं। वो हमें और हमारी परंपराओं को अच्छे से जानते हैं। इसलिए बदलाव की कोई जरूरत नहीं है।"

"लेकिन दानिश! पंडित शिवानंद जी कितने प्रसिद्ध हैं, उनका नाम पूरे शहर में है! और उनका तरीका भी कितना मॉडर्न है! हमें इस बार कुछ नया ट्राई करना चाहिए!" सोनिया ने जोर देकर कहा।

"सही कह रही हो, !" त्रिशा ने समर्थन किया। "हर साल एक ही पुरानी विधि-विधान से पूजा करवा लेना क्या जरूरी है? थोड़ी नई सोच भी तो होनी चाहिए!"

दानिश ने गहरी सांस ली और संयम से जवाब दिया—

"ये कोई फैशन शो नहीं है, जो हर साल कुछ नया ट्राई करें। ये पिताजी की बरसी है, एक श्रद्धांजलि। इसमें परंपराओं का पालन करना जरूरी है। और हमारे पुराने पंडित जी इस काम को पूरी श्रद्धा और सही विधि से करते हैं।"

"लेकिन बेटा, जमाना बदल रहा है! पंडित शिवानंद जी मंत्रों का इतना अच्छा उच्चारण करते हैं, उनकी पूजा में कितना आध्यात्मिक माहौल बन जाता है!" त्रिशा ने समझाने की कोशिश की।

"और हाँ, उनकी लाइव स्ट्रीमिंग भी होती है! विदेश में बैठे रिश्तेदार भी पूजा देख सकेंगे!" सोनिया ने उत्साहित होकर जोड़ा।

"मुझे नहीं लगता कि पिताजी की बरसी कोई सोशल मीडिया इवेंट होना चाहिए।" दानिश का स्वर दृढ़ था।

त्रिशा और सोनिया दोनों को यह सुनकर गुस्सा आ गया।

"तो तुम्हारा मतलब है कि हम गलत कह रहे हैं?" त्रिशा ने भौंहें चढ़ाकर कहा।

"नहीं , मेरा मतलब बस इतना है कि जो परंपराएँ हमेशा से चली आ रही हैं, उन्हें बिना किसी ठोस कारण के क्यों बदला जाए?"

"तो फिर ये मान लो कि अब हम इस पूजा में कोई दिलचस्पी नहीं रखने वाले!" सोनिया ने चिढ़कर कहा।

"हां! अगर तुम वही पुराने तरीके से पूजा करवाना चाहते हो, तो हमें मत बुलाना!" सोनिया ने हाथ जोड़कर कहा।

"आप इस तरह क्यों नाराज हो रही हैं?" दानिश ने नरमी से पूछा।

"क्योंकि हमें इग्नोर किया जा रहा है! हमने इतने उत्साह से नए पंडित जी को बुलाने का सोचा, और तुमने हमारी बात को ऐसे ही नकार दिया!" सोनिया ने नाराजगी दिखाई।

"बिलकुल! जैसे हम कोई मायने ही नहीं रखते!" त्रिशा ने उसका समर्थन किया।

इतना सुनते ही दादी, जो अब तक चुपचाप तमाशा देख रही थीं, धीरे से मुस्कुराईं और बोलीं—

"अरे वाह! मतलब अब पूजा-पाठ भी स्टाइलिश होना चाहिए? और शिवानंद जी को बुलाने से पुण्य ज्यादा मिलेगा?"

"सासू मां, आप हमारी बात का मजाक उड़ा रही हैं!" त्रिशा ने शिकायती लहजे में कहा।

"बिलकुल नहीं, मैं तो बस ये कह रही हूँ कि असली पूजा वो होती है जो मन से की जाए, न कि वो जो सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए हो!" दादी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

सोनिया और त्रिशा कुछ बोलने ही वाली थीं कि नौकर फिर से आ गया—

"मैडम, क्या गुलाब जामुन और लाने हैं?"

"हाँ हाँ, लेकर आओ! और साथ में कुछ ठंडा भी ले आना, हमारी बहू और उनकी सहेली का गुस्सा ठंडा करना है!" दादी ने मजाक में कहा।

यह सुनकर पूरे हॉल में फिर से ठहाके गूंज उठे। सोनिया और त्रिशा ने एक-दूसरे को देखा, फिर मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया।