BIKHARE SAPNE in Hindi Moral Stories by RAJESH NATHMAL KABRA NAGPUR books and stories PDF | बिखरे सपने

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बिखरे सपने

इंदौर के एक शांत, मध्यमवर्गीय इलाके में, सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी, कर्नल सूर्यकांत वर्मा, अपनी पत्नी शोभा और दो बेटियों, अदिति और सिया के साथ रहते थे। कर्नल वर्मा, अनुशासन और परंपरा के सख्त पालनकर्ता थे, जिनके लिए परिवार की प्रतिष्ठा और सामाजिक मान-मर्यादा सर्वोपरि थी। शोभा, एक गृहणी थीं, जिन्होंने अपने पति की इच्छाओं को ही अपना जीवन मान लिया था।
बड़ी बेटी, अदिति, स्वभाव से चंचल और आधुनिक विचारों वाली थी। कॉलेज के दिनों में उसे अपने सहपाठी, रोहन, से प्यार हो गया। रोहन एक साधारण परिवार से था, लेकिन मेहनती और नेक इंसान था। जब अदिति ने अपने प्रेम के बारे में घर पर बताया और रोहन से शादी करने की इच्छा जताई, तो घर में भूचाल आ गया। कर्नल वर्मा के लिए यह अस्वीकार्य था। उनके लिए जाति, पृष्ठभूमि और सामाजिक स्तर मायने रखते थे। शोभा ने भी अपने पति का साथ दिया। अदिति पर पाबंदियां लगा दी गईं, उसका कॉलेज जाना बंद कर दिया गया और घर में पहरा बिठा दिया गया। लेकिन अदिति अपने प्यार के लिए दृढ़ थी। एक रात, वह घर से भाग गई और रोहन से आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली।
अदिति और रोहन इंदौर से दूर, भोपाल शहर में एक किराए के मकान में खुशी से रहने लगे। रोहन को भोपाल में एक निजी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी और दोनों अपने नए जीवन में संतुष्ट थे। छोटी बेटी, सिया, इस पूरे घटनाक्रम से अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रही थी। उसने अपनी बहन के विद्रोह और उसके बाद घर के तनाव को करीब से देखा था।
कुछ महीने बाद, रोहन की छोटी बहन, नेहा की शादी तय हुई। अदिति और रोहन, परिवार के आग्रह और रिश्तों को निभाने की इच्छा से, कुछ दिनों के लिए भोपाल से इंदौर आए। कर्नल वर्मा का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था। नेहा के विवाह समारोह में, सबके सामने, उन्होंने अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर निकाली और अदिति पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। अदिति ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। रोहन ने अपनी पत्नी को बचाने की कोशिश की, लेकिन वह भी गंभीर रूप से घायल हो गया। इस भयानक घटना के बाद कर्नल वर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल भेज दिया गया।
घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। शोभा अकेली और बेसहारा महसूस कर रही थीं। सिया, जिसने अभी अपनी किशोरावस्था पार की थी, परिवार को चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी। घर में पसरा सन्नाटा और मां की उदासी सिया के दिल पर बोझ बन गई थी।
एक दिन, सिया ने हिम्मत करके अपनी मां को अपने प्यार, अर्जुन, के बारे में बताया। अर्जुन, सिया के कॉलेज का एक सहपाठी था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से था, लेकिन महत्वाकांक्षी और मिलनसार लड़का था। शोभा, पहले से ही अदिति के कारण गहरे सदमे में थीं। अर्जुन के बारे में सुनकर उनका गुस्सा फूट पड़ा। "तुम दोनों लड़कियां ही हमारे लिए खराब हो। एक के कारण तुम्हारा बाप जेल में है और अब तुम भी वही काम कर रही हो। हमारा जीना मुश्किल कर दिया है। माने कौन से नक्षत्र में तुम दोनों मनहूस पैदा हुई?" शोभा ने सिया को बुरी तरह डांटा और उस पर भी पाबंदियां लगा दीं। डरी हुई सिया और अर्जुन ने अपने संबंध तोड़ लिए।
गरीबी और सामाजिक दबाव के कारण सिया के लिए अच्छे घरों से रिश्ते नहीं आ रहे थे। शोभा भी अपनी जाति और बिरादरी में ही रिश्ता ढूंढ रही थीं। आखिरकार, उन्हें सीहोर नाम के एक छोटे कस्बे से एक ठीक-ठाक रिश्ता मिला। लड़का, प्रकाश, और उसके दो भाई मिलकर एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे। प्रकाश देखने में साधारण था, बातचीत में सीधा-सादा और शोभा को इस बात से तसल्ली थी कि लड़का उनकी ही जाति का है और एक 'स्थापित' व्यवसाय से जुड़ा है, भले ही वह छोटा ही क्यों न हो। जल्दबाजी में सिया और प्रकाश की शादी हो गई। सिया के मन में अर्जुन की यादें धुंधली पड़ चुकी थीं, और वह एक सामान्य, स्थिर जीवन की उम्मीद कर रही थी।
सीहोर पहुंचकर सिया निराश हो गई। वह इंदौर की रौनक और आधुनिकता की आदी थी, जबकि सीहोर एक शांत और पिछड़ा हुआ कस्बा था। गलियां संकरी थीं, महिलाओं का घूंघट में रहना आम बात थी और मनोरंजन के सीमित साधन थे। सिया ने खुद को एडजस्ट करने की कोशिश की, लेकिन उसका मन उदास रहता था। उसे लगता था कि वह एक सुनहरे पिंजरे में कैद हो गई है। कुछ सालों बाद, सिया को प्रकाश की एक भयानक आदत के बारे में पता चला - वह चोरी-छिपे जुआ और सट्टा खेलता था। पहले तो यह मामूली शौक की तरह लगा, लेकिन धीरे-धीरे यह उसकी लत बन गई। उसने कई लोगों से कर्ज ले रखा था और कर्ज वसूली के लिए अक्सर अनजान लोग घर आते और हंगामा करते थे, सिया को और उसके ससुराल वालों को धमकाते थे। प्रकाश अपनी पत्नी की इज्जत की भी परवाह नहीं करता था और नशे में अक्सर बदतमीजी करता था। प्रकाश के इस लत के कारण उसके दोनों भाइयों ने भी उससे किनारा कर लिया, क्योंकि उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और व्यवसाय की चिंता थी। घर में कलह और अशांति का माहौल बन गया था। सिया अंदर ही अंदर टूट रही थी। उसकी उम्मीदें बिखर रही थीं और उसे लगने लगा था कि उसने एक गलत फैसला लिया है।
आर्थिक तंगी और सामाजिक बदनामी से परेशान होकर, सिया और प्रकाश इंदौर लौट आए और कर्नल वर्मा के घर में रहने लगे। शोभा भी अब कमजोर और निराश हो चुकी थीं, लेकिन उन्हें अपनी बेटी की दुर्दशा पर गुस्सा आता था। प्रकाश ने यहां भी अपनी आदत नहीं छोड़ी और जल्द ही उसने सिया के रिश्तेदारों से भी उधार पैसे ले लिए, झूठे वादे करके और भावनात्मक ब्लैकमेल करके। जब रिश्तेदारों को प्रकाश की सच्चाई पता चली, तो उन्होंने सिया को तलाक लेने की सलाह दी, लेकिन प्रकाश तलाक के लिए राजी नहीं था। वह रोज रात को शराब पीकर घर आता और हंगामा करता, सिया को मारता-पीटता। सिया डर के मारे अकेली बाहर निकलना भी बंद कर दिया। एक रात, शोभा अपने दामाद को समझाने गईं, तो प्रकाश ने अपनी सास को भी पीट दिया। सिया अब पूरी तरह से टूट चुकी थी। उसे अपने भविष्य में अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था।
उधर, अर्जुन, सिया का पूर्व प्रेमी, जीवन में बहुत आगे बढ़ गया था। उसने चीन से माल इंपोर्ट करके इंडिया में डिस्ट्रीब्यूट करने का सफल व्यवसाय शुरू कर लिया था। उसने शहर के पॉश इलाके में एक आलीशान बंगला खरीदा और मर्सिडीज कार में घूमता था। उसने एक चीनी लड़की से शादी कर ली थी, जो देखने में सुंदर और आधुनिक विचारों वाली थी। यह सब सिया को उसकी एक पुरानी सहेली से पता चला। अर्जुन की सफलता और खुशी सुनकर सिया को अपनी किस्मत पर और भी ज्यादा दुख हुआ। उसे लगने लगा कि उसके जीवन के सारे रास्ते बंद हो गए हैं।
कुछ सालों बाद सिया का प्रकाश से तलाक हो गया, एक लंबी और कड़वी कानूनी लड़ाई के बाद। शोभा अब भी अपनी बेटी के दुर्भाग्य पर आंसू बहाती थीं और खुद को कोसती थीं कि उन्होंने सिया पर अर्जुन से शादी न करने का दबाव डाला था। सिया की दूसरी शादी की बात चलने लगी, लेकिन पहले से ही गरीब और तलाकशुदा होने के कारण अच्छे रिश्ते नहीं आ रहे थे। आखिरकार, शोभा ने एक अमीर लेकिन सिया से उम्र में काफी बड़े और कुरूप धनवान व्यक्ति से उसकी शादी तय कर दी, यह सोचकर कि शायद अब उसकी बेटी को कुछ सुख मिले। सिया उस आदमी को देखकर ही डर गई थी, लेकिन अपनी मां की मर्जी और एक सुरक्षित भविष्य की धुंधली उम्मीद में उसने शादी कर ली।
उस डरावने आदमी के साथ रहना सिया के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। वह अक्सर बीमार रहने लगी। इस दौरान उसकी मुलाकात अस्पताल में एक महिला डॉक्टर, डॉ. नैना, से हुई और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। वे अक्सर अपना सुख-दुख बांटती थीं।
एक दिन उसे पता चला कि अर्जुन के बेटे की शादी है। यह जानकर सिया अपने बच्चे न होने के बारे में सोचकर गहरी पीड़ा में डूब गई। उसे याद आया कि कैसे उसके माता-पिता ने उसकी भावनाओं और इच्छाओं को कभी महत्व नहीं दिया। उन्हें हमेशा अपने समाज, रीति-रिवाजों और परिवार की प्रतिष्ठा की चिंता रही। शादियों के जंजाल में फंसकर उसकी अपनी कोई संतान नहीं हुई थी और उम्र भी 50 के करीब आ गई थी। इसी पीड़ा में उसे यह दृढ़ निश्चय हुआ कि जब उसके माता-पिता ने उसकी परवाह नहीं की, तो वह भी उनकी परवाह क्यों करे। तभी उसे खबर मिली कि उसके पिता, कर्नल सूर्यकांत वर्मा, जेल से छूटकर बीमार हैं और अंतिम सांसें गिन रहे हैं। अपनी डॉक्टर दोस्त, नैना, के साथ मिलकर उसने बीमारी का नाटक किया और अस्पताल में भर्ती हो गई, न पिता को देखने की इच्छा जताई, न उनकी मृत्यु पर घर गई। अपनी बीमारी का बहाना बनाकर वह अस्पताल में ही रही।
कुछ सालों बाद, शोभा बाथरूम में फिसल गईं और उनकी टांग टूट गई। सिया फिर अस्पताल में भर्ती हो गई। घर पर मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। नतीजतन, शोभा को बेडसोर हो गए और वह तड़प-तड़प कर मर गईं। सिया का बूढ़ा और कुरूप पति यह सब देखता और समझता रहा।
सिया ने अपनी मां-बाप की परवाह न करने का बदला उनसे उनके अंतिम समय में दूर रहकर ले लिया। उसका मानना था कि जिन्होंने उसकी खुशी की कभी परवाह नहीं की, उनकी परवाह वह क्यों करे। इस तरह, सिया ने अपने जीवन का एक कड़वा और अकेला रास्ता चुन लिया था, जिसमें पश्चाताप की कोई जगह नहीं थी।