रात के ढाई बजे थे। खिड़की से चाँद की हल्की रौशनी कमरे में उतर रही थी। रूहानी अपने बिस्तर पर पसीने-पसीने उठी। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जैसे अभी छाती से बाहर निकल आएगा। फिर वही सपना...
एक वीरान हवेली... दीवारों पर फटी हुई तस्वीरें, धूल जमीं किताबें, और आँगन में रखा टूटा-सा झूला। और उस झूले के पास खड़ा एक लड़का, जिसकी आंखों में बरसों का इंतज़ार था।
वो हर बार एक ही नाम लेकर पुकारता था –"ज़ररीन..."
रूहानी ने आईने में खुद को देखा। वो जानती थी उसका नाम ज़ररीन नहीं है। लेकिन जब भी कोई ये नाम लेता है, उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं... बिना किसी वजह के।
सुबह कॉलेज जाना था, पर नींद अब कोसों दूर थी।
अगले दिन...
कॉलेज का पहला दिन था। रूहानी किताबें लेकर लाइब्रेरी की तरफ जा रही थी, जब किसी के कंधे से टकरा गई। किताबें ज़मीन पर गिर गईं।
"सॉरी..." दोनों एक साथ बोले।
रूहानी ने जैसे ही आंखें उठाईं, सामने खड़ा लड़का... उसकी आंखें! वही बेचैन, गहरी आंखें... जैसे कई जन्मों की थकावट लिए हों।
"मेरा नाम अयान है," उसने मुस्कुरा कर कहा।
"मैं रूहानी..."
अयान कुछ पल उसे देखता रहा, फिर हल्के से बोला, "क्या तुम्हें... कभी किसी पुराने झूले का सपना आता है?"
रूहानी के कदम वहीं थम गए। उसकी सांसें जैसे एक पल के लिए रुक गईं।
"क्या... क्या तुमने कभी किसी को ज़ररीन कहते सुना है?" उसने धीरे से पूछा।
अयान की आंखें नम हो गईं।
"हाँ... और हर बार मैं तुम्हें उस हवेली में अकेला छोड़ देता हूँ।"
रूहानी और अयान–दो नाम, दो जिस्म, पर एक ही रूह।
उनकी रूहों के बीच जो रिश्ता था, वो इस जन्म का नहीं था। शायद किसी और युग से जुड़ा हुआ था। अब सवाल सिर्फ इतना था–क्या इस जन्म में उनका साथ मुकम्मल हो पाएगा?
कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठा अयान उस मोटी सी किताब को पलट रहा था जिसमें बनारस की पुरानी हवेलियों और रियासतों का ज़िक्र था। उसका ध्यान पढ़ाई में कम, और रूहानी की आँखों में ज़्यादा था। उसे यकीन था–यह वही है। वही लड़की जिसे हर जन्म में उसने खोया है।
उधर रूहानी भी बेचैन थी।
घर आकर उसने माँ से एक अजीब सवाल पूछा–
"क्या कभी मेरा नाम कुछ और था? ज़ररीन... कुछ ऐसा?"
माँ चौंकी, लेकिन फिर हल्के से हँसकर बोली,
"बचपन में तू पगली जैसी बातें करती थी। दीवारों से बात करती, झूले से गाना गाती, और एक ही नाम दोहराती रहती–‘अयान’।"
रूहानी का दिल जैसे किसी अदृश्य धड़कन से जुड़ गया। क्या ये सब महज़ इत्तेफ़ाक था?
अगले दिन, कॉलेज के बाद...
अयान ने रूहानी को उस पुरानी हवेली तक ले जाने का मन बनाया–जो शहर के बाहर वीरान पड़ी थी।
“मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ,” अयान बोला।
हवेली की दीवारें टूटी हुई थीं, लेकिन एक कोना ऐसा था... जहां झूला अब भी था।
रूहानी की आंखें उस पर पड़ते ही भर आईं।
"मैं... मैं यहाँ पहले भी आ चुकी हूँ।" उसकी आवाज़ कांप रही थी।
अचानक हवा में ठंडक सी भर गई। झूला अपने-आप हिलने लगा। और तभी...
रूहानी की आंखों के आगे सब कुछ धुंधला होने लगा।
(फ्लैशबैक – 1920 का समय)
हवेली में संगीत गूंज रहा है। महफ़िल सजी है। ज़ररीन, नवाब अली ज़ाफर की बेटी, महँगे लहंगे में सजी बैठी है।
उसकी आँखें सिर्फ एक शख़्स को खोज रही हैं–अयान।
अयान, एक किताबों में खोया रहने वाला दरबारी युवक, जो रूह से मोहब्बत करता था, शौक से नहीं।
"अगर अब्बू को पता चला, तो वो तुम्हें इस हवेली से हमेशा के लिए निकाल देंगे," ज़ररीन फुसफुसाई।
अयान मुस्कराया–"तो निकाल दें। मोहब्बत को दीवारों में नहीं कैद किया जा सकता।"
लेकिन वो नहीं जानते थे... मोहब्बत को सज़ा भी मिलती है।
(वापस वर्तमान में...)
रूहानी ज़मीन पर बैठ गई थी, उसका माथा पसीने से भीगा था।
"मैंने... मैंने सब देखा," वह कांपती हुई बोली,
"मैं ज़ररीन थी... और तुम..."
अयान ने उसका हाथ थामा, "मैं वही हूँ, जिसने हर जन्म में तुम्हें ढूंढा। लेकिन हर बार... तुम्हें खो दिया।"
हवेली से लौटते वक्त रूहानी का मन भारी था। उस झूले पर बैठते ही जैसे एक दरवाज़ा खुल गया हो... बीते जन्म की यादें धीरे-धीरे उसकी रगों में उतर रही थीं।
अयान बाइक चला रहा था, पर उसका ध्यान रियर-व्यू मिरर में था–क्योंकि एक और परछाई उनके पीछे थी। हल्के धुएँ जैसी आकृति... काली आंखें और होंठों पर कटाक्ष भरी मुस्कान।
अगली रात...
रूहानी की नींद खुली तो कमरे में एक अजीब सी गंध थी–जैसे चंदन में कोई पुराना धूप जल रहा हो। और खिड़की के पास कोई खड़ा था।
“तुम्हें फिर उसी राह पर चलना है, ज़ररीन?”
आवाज़ स्त्री की थी–पर स्वर में जलन थी, ज़हर था।
रूहानी ने डरते हुए पूछा, “कौन हो तुम?”
“मैं वही जो हर जन्म में तुम्हारा अंत देखती है... क्योंकि जो मेरा था, तुमने उससे मोहब्बत की थी।”
उसका नाम था–नैला।
(फ्लैशबैक – 1920 का जन्म)
नैला, एक तवायफ़ की बेटी, जिसे नवाब ने हवेली में पनाह दी थी। वो अयान से प्यार करती थी, लेकिन अयान ने उसे कभी एक नजर तक न देखा।
"तू एक रक़्स है, नैला। और ज़ररीन उसकी रूह," अयान ने कहा था।
नैला ने उसी दिन कसम खाई थी–“जिस जन्म में वो ज़ररीन से मिलेगा, मैं उन्हें जुदा करूँगी।”
और एक रात, उसने ज़ररीन को ज़हर पिला दिया। हवेली की दीवारों ने वो चीखें सुनी थीं...
(वर्तमान में...)
"तुम अब भी वही करोगी?" रूहानी की आंखों में आंसू थे।
"तुम्हें कभी मोहब्बत मिली नहीं, इसलिए क्या हर जन्म में मेरी मोहब्बत को भी खत्म कर दोगी?"
नैला की रूह मुस्कराई–“मैं सज़ा हूँ तुम्हारी। मेरा श्राप सिर्फ एक शर्त पर टूटेगा–जब तुम मेरी तरह खोओ... बिना बदले के प्यार करो, बिना साथ के इंतज़ार करो।”
और वह गायब हो गई। पीछे सिर्फ वो गंध बची।
अयान दौड़ता हुआ रूहानी के घर आया।
“मैंने उसे देखा था। वो वही औरत है जो हर जन्म में हमारे बीच आती है।”
रूहानी ने उसका हाथ पकड़ा, “अगर सज़ा ही मोहब्बत की किस्मत है, तो चलो इसे निभा लेते हैं... साथ में।”
उनकी रूहों ने संकल्प लिया–इस जन्म में चाहे जो हो, ये रिश्ता अधूरा नहीं रहेगा।
लेकिन नैला अब अकेली नहीं थी।
उसके साथ अब और भी परछाइयाँ थीं। वो रूहें, जो प्रेम में अधूरी रह गई थीं, और अब उनका एक ही उद्देश्य था–मोहब्बत को मिटा देना।
अयान और रूहानी ने तय किया कि उन्हें अपनी पिछली ज़िंदगियों की परतें खोलनी होंगी, ताकि उस श्राप की जड़ तक पहुँचा जा सके।
इसके लिए अयान उन्हें एक रहस्यमयी साधु के पास ले गया, जो बनारस की एक वीरान घाटी में वर्षों से तपस्या कर रहा था।
साधु ने आंखें मूँदी और कहा:
"तुम दोनों एक नहीं, तीन जन्मों से बंधे हो। पहला नवाबी दौर... दूसरा 1947 का विभाजन... और तीसरा आज का। पर जिस जन्म ने तुम्हारे रिश्ते पर सबसे गहरा ज़ख्म दिया, वो था... विभाजन का साल।"
(फ्लैशबैक – जन्म 2: लाहौर, 1947)
नाम थे आरिफ़ और सुरैया।
आरिफ़ एक मुस्लिम शिक्षक, सुरैया एक हिंदू लेखिका। दोनों की मोहब्बत सरहदों से ऊपर थी।
वो एक कोठी के पीछे वाले बाग में मिलते थे, जहां आमों के पेड़ थे और एक पुराना झूला भी।
"अगर बँटवारा हुआ, तो?" सुरैया ने एक बार पूछा था।
आरिफ़ ने कहा था, "तब भी मैं तुझे उस झूले के पास ढूंढ लूँगा, चाहे दुनिया के किसी कोने में हो।"
लेकिन वो नहीं जानता था कि उस समय भी नैला वहाँ थी–अब एक क्रांतिकारी के वेश में।
उसने झूठ फैलाया–आरिफ़ एक गद्दार है, और सुरैया एक जासूस।
दंगे भड़के।
और एक रात, दोनों को पकड़ लिया गया।
झूले के पेड़ के नीचे, जहां उन्होंने मिलने की कसम खाई थी... दोनों को एक-दूसरे के सामने मार दिया गया।
रूहों ने तब भी एक-दूसरे की आँखों में देखा था...
मोहब्बत बची रही, पर जिस्म खत्म कर दिए गए।
(वर्तमान में...)
रूहानी ज़मीन पर बैठ गई, आँखों से आंसू बह रहे थे।
"मैंने फिर से तुम्हें खोया था, अयान। उसी झूले के नीचे..."
अयान ने उसका चेहरा उठाया, "और अब हम उसी झूले को अपनी मोहब्बत की आख़िरी मंज़िल बनाएँगे... लेकिन इस बार अधूरा कुछ नहीं रहेगा।"
लेकिन... नैला को इस बार और ताक़त मिली थी।
वो उन रूहों को इकट्ठा कर रही थी जो किसी न किसी जन्म में धोखा खा चुकी थीं।
उनका मकसद अब साफ था–सिर्फ एक जोड़ी को अधूरा छोड़ना नहीं, बल्कि मोहब्बत को नामुमकिन बना देना।
रूहानी और अयान उस झूले तक लौटेंगे जहाँ तीन जन्मों की कहानियाँ दफन हैं।
लेकिन नैला अब उन्हें सिर्फ डराएगी नहीं – वो रूहानी को चुरा ले जाएगी।
क्या अयान अपनी मोहब्बत को फिर से बचा पाएगा?
या इस बार ये प्रेम, रूह से निकलकर एक आख़िरी कुर्बानी माँगेगा?
बारिश की तेज़ बूँदें हवेली की छतों पर टकरा रही थीं।
रूहानी अयान से दूर जा चुकी थी–या कहिए, उसकी रूह को नैला अपने साथ ले गई थी।
शरीर वही था, लेकिन आत्मा... कहीं और थी।
अयान अकेला हवेली में बैठा था।
उसने वही झूला देखा, और जैसे ही पास गया, नैला की परछाई सामने आ गई।
पर इस बार वो पहले जैसी क्रूर नहीं लग रही थी। उसकी आँखें भीगी थीं।
और उसने खुद कहा–
"तुम जानना चाहते हो न, कि मैं क्यों हर जन्म में तुम्हें जुदा करती हूँ?"
(फ्लैशबैक – नैला की कहानी, 1884)
नैला एक तवायफ़ की बेटी थी। लेकिन उसे गाने-बजाने से नफ़रत थी।
उसका दिल चाहता था – किसी एक की हो जाए, किसी के घर की दहलीज़ पार करे।
उसने एक नौजवान मुंशी से मोहब्बत की – नाम था इमरान।
इमरान ने भी उसे क़ुबूल किया, मगर जब हवेली वालों को पता चला, नैला को ही गुनहगार ठहराया गया।
उसे जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया।
मरते वक्त उसकी रूह ने एक श्राप दिया –
"जो भी लड़की सच्चे प्यार को पायेगी, मैं उसे वैसा ही दर्द दूँगी जैसा मैंने जिया है।"
पर उसकी रूह चैन नहीं पा सकी।
वो हर जन्म में लौटती रही... हर उस रूह को अधूरा करने जो पूर्ण होना चाहती थी।
(वर्तमान में...)
अयान ने उसका चेहरा देखा, और पहली बार दर्द महसूस किया...
“तू जो कर रही है वो बदला नहीं... वो पुकार है।”
नैला की आंखों से आँसू निकले।
“तुम पहले हो जिसने मुझे इंसान समझा... रूह नहीं।”
रूहानी की आत्मा अब एक वीरान बाग में थी, एक पुराने कुएँ के पास।
वो अयान को पुकार रही थी–
"अगर मैं इस जन्म में भी खो गई, तो मेरी रूह बिखर जाएगी।"
अयान ने निर्णय लिया–
“इस बार मैं सिर्फ प्यार नहीं करूँगा...
इस बार मैं एक रूह को मुक्ति दूँगा।
चाहे वो नैला हो या मेरी ज़ररीन।”
तीन रातें बीत चुकी थीं।
रूहानी का शरीर बेसुध था, आत्मा नैला की कैद में, और अयान... बनारस की गलियों से घाटों तक भटक रहा था, सिर्फ एक उपाय की तलाश में।
वो पहुँचा एक बूढ़े तांत्रिक के पास, जिसे लोग “श्वेत-अग्नि बाबा” कहते थे।
उसने आँखें मूँदी और बस इतना कहा–
“रूह को मुक्त करना है?
तो अपने हृदय की धड़कन देनी होगी…
जिससे वो जुड़ी है, वही उसे आज़ाद कर सकता है।”
अयान समझ गया था – उसे रूहानी से दूर जाना होगा, हमेशा के लिए।
क्योंकि नैला की रूह को तभी शांति मिलेगी जब उसे ये यक़ीन होगा कि कोई उसका दर्द समझता है, और उस दर्द को खुद अपनाता है।
अयान झूले के उसी बाग में पहुँचा, जहाँ तीन जन्मों का हिसाब था।
आसमान काला था, हवा भारी।
नैला सामने आई।
पर इस बार उसकी आँखों में घृणा नहीं थी... एक गहरी उलझन थी।
"तुम अब भी उसे बचाने आए हो?" नैला ने पूछा।
अयान ने चुपचाप अपनी हथेली काटी।
उस रक्त की कुछ बूंदें ज़मीन पर गिरीं – और वहाँ से हल्की सफ़ेद रोशनी उठने लगी।
"ये तुम्हारे लिए है, नैला।
तुम्हें किसी ने चाहा नहीं... तो मैं वो कर रहा हूँ।
मैं तुम्हारा दर्द बाँट रहा हूँ…
और अपनी रूहानी को छोड़ रहा हूँ।"
नैला कांप गई।
“तू... तू मुझे मुक्त कर रहा है?”
उसके आँसू गिरने लगे – पर वो जल नहीं रहे थे, पिघल रहे थे।
धीरे-धीरे उसका चेहरा शांत हुआ।
उसने रूहानी की आत्मा की ओर देखा, जो कोहरे में लिपटी थी।
"अब ये मोहब्बत मुकम्मल हो," उसने कहा।
और नैला की रूह जलते दीपक की लौ की तरह धीरे-धीरे हवा में विलीन हो गई।
रूहानी की आंखें खुलीं।
अयान बेसुध पड़ा था, मगर मुस्करा रहा था।
रूहानी ने उसे पकड़कर झकझोरा, “अयान! उठो... मैंने तुम्हें पा लिया है!”
उसने आँखें खोलीं, "अब तू अधूरी नहीं है, ज़ररीन… अब तू मुकम्मल है…"
अंत में,
झूले पर बैठी रूहानी ने अयान का हाथ पकड़ा।
"अब कोई श्राप नहीं, कोई परछाई नहीं," वो बोली।
अयान मुस्कराया, "अब सिर्फ रूह का रिश्ता है – जो वक़्त से, मौत से, और जन्मों से परे है।"
पाँच साल बाद
वाराणसी की वही हवेली अब एक किताबघर बन चुकी थी – जहाँ अयान और रूहानी ने मिलकर "रूह का रिश्ता" नाम से एक किताब लिखी थी।
लोग दूर-दूर से आते थे, उस झूले को देखने जहाँ तीन जन्मों की मोहब्बत लिपटी थी।
रूहानी अब बच्चों को रूहों और प्रेम पर कहानियाँ सुनाती, और अयान… उसे हर शाम वही चाय लाकर देता जिसमें तुलसी की पत्तियाँ होतीं – ठीक वैसी, जैसी वो अपने पहले जन्म में पिया करता था।
किसी और शहर में…
किसी और वक़्त में…
एक बच्ची जन्म लेती है – उसकी आँखें बिलकुल वैसी ही हैं, जैसी नैला की थीं।
पर इस बार उसकी मुस्कान में न जलन है, न शोक –
बस एक खामोश शांति है।
उसकी माँ जब उससे पूछती है –
"बेटी, तुम्हारा नाम क्या रखें?"
वो मासूमियत से जवाब देती है –
"इमराना..."
बहुत सुंदर! आप चाहते हैं कि "रूह का रिश्ता" की कहानी आगे भी कुछ अध्यायों में बहे – एक नई सुबह के साथ, कुछ नई उलझनों, भावनाओं और शायद किसी छुपी रहस्य की परत के साथ।
तो लीजिए, प्रस्तुत हैं तीन नए अध्याय, जो एपिलॉग के बाद की कहानी को एक और गहराई देते हैं...
वाराणसी से दूर, हिमाचल की वादियों में एक शांत-सी जगह पर, एक बच्ची बड़ी हो रही थी – इमराना।
सात साल की उम्र में, वो कुछ अजीब बातें करने लगी थी।
"माँ, झूला कहाँ है?
मैंने किसी को उस झूले पर छोड़ दिया था…"
उसकी माँ घबरा गई। डॉक्टरों को दिखाया गया, पर सबने कहा –
“बच्ची का मन कल्पनाओं में उड़ता है।”
पर एक रात, जब बिजली चली गई, और इमराना अकेली थी –
उसने अपनी दीवारों पर अपनी उंगली से नाम लिखा:
"रूहानी"
अयान और रूहानी अब शांत जीवन जी रहे थे, पर रूहानी को बार-बार सपने आते –
एक बच्ची की आवाज़:
"आप मुझे छोड़ कर क्यों आ गए थे?"
रूहानी डर गई। उसने अयान से कहा,
"शायद नैला की रूह अब किसी और रूप में हमारे पास लौट आई है।
लेकिन इस बार बदले के लिए नहीं… शायद जवाबों के लिए।"
अयान ने सोचा –
"अगर नैला अब एक बच्ची बन चुकी है, तो क्या हम उसके अतीत का बोझ उतार सकते हैं?"
अयान और रूहानी हिमाचल पहुँचे, एक लाइब्रेरी कार्यक्रम के बहाने।
वहीं उन्हें इमराना मिली – उसकी आंखों में वही गहराई, वही सवाल।
जब रूहानी ने उसे देखा, उसकी आँखें छलक गईं।
इमराना दौड़ी और रूहानी को गले लगाकर बोली,
"मुझे माफ़ कर दोगी न?"
रूहानी सिहर गई – ये कोई बच्ची नहीं थी, ये एक पिघलती रूह थी।
उन्होंने उसे वाराणसी लाया, उसी हवेली में, उसी झूले के पास।
झूला फिर से हिला… बिना हवा के।
इमराना हँसी, और बोली,
"अब मैं पूरी हूँ। अब मैं कोई श्राप नहीं, सिर्फ प्यार हूँ।"
और उसी क्षण, आसमान से एक धीमी सी सफ़ेद रौशनी उतरी –
नैला की रूह अब हमेशा के लिए मुक्त हो चुकी थी।