latch in Hindi Short Stories by Deepak sharma books and stories PDF | सिटकिनी

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सिटकिनी

“देखिए,” पति से रमा अपना शारीरिक कष्ट हमेशा बढ़ा -चढ़ा कर बताती, “आज मुझे हाथ में भयंकर चोट लग गयी। पूजाघर की सिटकिनी  पुरानी थी। खोलते समय टूट कर मेरे हाथ में आन गिरी । बत्ती उस समय गई हुई थी और उस के एक काबले ने..…..”

“कल सुबह उठते ही सी.एम.ओ. को फ़ोन कर दूंगा,” अपनी शाम की ड्रिंक ले रहे पति ने रमा की बात पूरी न होने दी, “ड्राइवर अस्पताल की सब से काबिल लेडी डाक्टर को यहां लिवा लाएगा और वह सब देख- वेख लेगी। तुम जाओ और मेरे लिए मसाला पापड़ बना लाओ। इस समय मैं इन तमाम अखबारों के संपादकीय पढ़ना चाहता हूं।इधर की राजनीतिक स्थिति विकट चल रही है और मैं बहुुत चिंतित हूं…..”

रात में पति अलग कमरे में सोने गए। ऐसा अक्सर होता था,जब भी रमा अस्वस्थ होती,पति अलग कमरे ही में सोते।

रमा अपने बिस्तर से खुली आलमारी की अंदर वाली सिटकिनी पर नज़र गड़ाए देर तक अनुमान लगाती रही।जब उसे विश्वास हो गया घर के सारे सदस्य सो चुके थे तो वह दबे पांव उठ खड़ी हुई।

बगल वाले गुसलखाने से झांक रहे प्रकाश में वह अपने ड्रेसिंग टेबल तक गयी। उस की दराज़ में एक पेचकस रखा रहता था।

रमा ने पेचकस उठाया और आलमारी की सिटकिनी की ओर बढ़ ली।

पेचकस उस ने सिटकिनी के दांए घुमाया, बांए घुमाया, ऊपर घुमाया, नीचे घुमाया किंतु सिटकिनी टस से मस न हुई।

रमा वहीं ज़मीन पर बैठ कर रोने लगी।

“क्या हुआ तुझे?” रमा की सास ने उस के कमरे की बत्ती आन जलाई, “ रोती क्यों है? इस पेचकस से क्या करेगी?”

“क्या हुआ भाभी?” रमा की ननद भी मां के पीछे आन धमकी, “भैया पर पहले ही अपनी ड्यूटी का इतना बोझ है। अब आप क्या नया बखेड़ा खड़ा करेंगी?”

घटने की बजाए रमा की रुलाई बढ़ गयी।

“हैं? बात क्या है?” रमा के ससुर भी कमरे में आन खड़े हुए, “यह लड़की ज़मीन पर क्यों बैठी है? इस के हाथ में क्या है?”

“पेचकस है,” रमा की ननद ने मुंह बिचकाया, “क्या मालूम इस के साथ क्या करेगी?”

“कैैसी नादान लड़की है!  सिरे से संस्कार विहीन!! वहां बाप ने कुछ नहीं सिखाया तो हमीं से कुछ सीख-समझ लेती। और कुछ नहीं तो पति ही का कुछ ख्याल करती। रात को भी बेचारे को आराम न मिला तो उस की सेहत पर कितना बुरा असर पड़ेगा। यह तो दिन में सो कर अपनी नींद पूरी कर लेगी मगर उस बेचारे को तो कल फिर दिन भर खटना है,” रमा के ससुर की भृकुटि तन गयी।

रमा की सिसकियां फिर भी मंद न पड़ीं।

“यह क्या हो रहा है?” मजबूर हो कर रमा के पति को अब आना ही पड़ा, “ यह कैसी बदतमीज़ी है,रमा? नीचे ज़मीन से उठो, रमा। बड़ों का कुछ तो लिहाज़ रखो। उन की नींद मत खराब करो….”

रमा के गले ने फिर भी उस की आवाज़ को संकुचित नहीं किया।

“कल इस के बाप को इधर बुलाना पड़ेगा। कहना होगा, बेेटी उस की पागल है। इसे अपने घर पर लौटा ले जाओ…..” और रमा के पति ने रमा के गाल पर अपना पुलिसिया हाथ छोड़ दिया– कड़ा और ज़ोरदार। रमा का मुड़क रहा चेहरा तुरंत खिंच गया और कंठगत उस का क्रंदन वहीं रुक गया। बोली,

“उन्हें मत बुलाना।”

“क्यों न बुलाऊं?”

“नहीं बुलाना,”रमा ने पति के पैर पकड़ लिए, “मुझ से भंयकर भूल हुई। अब ऐसा कभी न होगा.….”

“तो अपनी आवाज़ फिर अब बंद रखना,” रमा के पति ने कमरे की बत्ती बुझा दी, “ हम लोग की नींद में अब विघ्न नहीं पड़ना चाहिए…..”

“नहीं पड़ेगा। विघ्न कभी नहीं पड़ेगा….”

 

अगली सुबह घर से निकलते समय रमा के पति ने ज़िले के मुख्य चिकित्सा-अधिकारी से बात की, “मेरी पत्नी के हाथ में लोहे के एक काबले से गहरी चोट आई है। मैं तो यहां रहूंगा नहीं। केंद्र से आ रहे एक जांच दल के साथ दंगा- ग्रस्त क्षेत्रों का सर्वेक्षण करूंगा। आप अपनी किसी योग्य महिला-डाक्टर को पट्टी- वट्टी करने के लिए भेज दीजिएगा । और ज़रूरत हुई तो वह एंटी - टौक्सिन इंजेक्शन भी दे देगी। ठीक है न?”

“क्यों नहीं? एस.एस.पी.साहब?” चिकित्सा-अधिकारी  ने खुशामदी आवाज़ में रमा के पति का आदेश ग्रहण किया, “आप इत्मीनान से ज़िला संभालिए। हम सब आप की सेवा में उपस्थित रहेंगे……”

“धन्यवाद। इस समय तो केवल एक महिला -डाक्टर ही प्रयाप्त रहेगी..….”

 

“मैं वह सिटकिनी देखना चाहूंगी,” महिला - डाक्टर ने आते ही अपनी चिकित्सा-अभिक्रिया प्रारंभ कर दी, “ कई बार लोहे में जंग रहता है। जंग में टेटनोस्पेस्पिन नाम का एक जानलेवा विष होता है जो घाव के द्वारा रक्तशिरांओं में प्रवेश कर रीढ़ की हड्डी के गैंग्लियौन सैल्ज़ तक पहुंच जाता है…..”

“आप ज़रूर तिल का ताड़ बना रही हैं,” रमा मुस्कराती, “यह तो एक मामूली खराश है….”

“नहीं,” महिला- डाक्टर ने सिर हिलाया , “सिटकिनी का निरीक्षण ज़रूरी है…..”

“आइए,” रमा ने अपने पूजाघर के दरवाज़े पर पड़े ताले को खोला।

“ओह! यहां तो आप अर्चना- आराधना करती हैं,” महिला- डाक्टर  ने अपनी चप्पल उतार दी और सिर ढक लिया, “मैं तो स्वंय संध्या,पूजा,जप और पाठ में गहरी आस्था रखती हूं…..”

“यह सिटकिनी देखिए,”रमा ने महिला- डाक्टर का ध्यान पूजाघर के दरवाज़े की अंदर वाली टूटी हुई सिटकिनी की ओर निर्देशित किया, “क्या आप समझती हैं इस में जंग लगा है?”

“आप की पूजा सामग्री तो एकदम भव्य है,” उत्साहित हो कर महिला- डाक्टर ने लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां छुंईं, “क्या ये चांदी की हैं?”

“हां,” रमा ने कहा।

“इतनी विशाल! इतनी उत्कृष्ट!! कहां से लीं आप ने?”

“ये मेरे नाना ने मेरी मां को दहेज में दी थीं। और मां के बाद ये मेरी सम्पत्ति बन गईं।”

“मां के बाद? यानी……”

“अभी मैं सात साल ही की थी जब मेरी मां का देहांत……” रमा का गला रुंध चला।

“और यह रुद्राक्ष?” महिला- डाक्टर ने रुद्राक्ष की माला अपने हाथ में ले ली, “पंचमुखी है क्या? कहां से ली आप ने? मैं भी मंगवाना चाहूंगी……”

“वाराणसी से यह माला मेरे पति लाए थे।”

“सुना है,इस का जाप ज़रूर फल देता है।आप कितने जाप करती हैं?”

“ग्यारह।”

“ग्यारह जाप?” महिला- डाक्टर ने रमा की ओर आशंकित हो कर देखा और अपने हाथ के रुमाल से उस माला पर जमी पुरानी धूल पोंछ दी।

“जाप के लिए मैं अपनी मां की पुरानी तुलसी की माला प्रयोग में लाती हूं,” रमा ने महिला- डाक्टर के हाथ से रुद्राक्ष की माला अपने हाथ में ले ली, “आप इधर यह सिटकिनी देखिए।  क्या इस में जंग लगा है?”

“तो क्या आप गायत्री मंत्र का जाप करती हैं?”महिला- डाक्टर ने रमा को घेर लेना चाहा। न मालूम उसे कैसा यह आभास हुआ रमा को किसी भी जाप में आस्था न थी…..

“नहीं।”

“क्या किसी पंडित ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए कोई और मंत्र दे रखा है?”

“प्रयोजन है। तभी तो दिया है,” रमा का स्वर क्षुब्ध हो आया, “मेरे विवाह को सात साल होने को आए और अभी तक मैं मां नहीं बन पायी। दो बार गर्भ ठहरा भी किंतु किन्हीं कारणों से गिर गया…..”

“आप किसी दिन अस्पताल में आइए।  मैं आप का पूरा चेक- अप करूंगी.…..”

“बहुत से डाक्टरों को बहुत बार दिखा चुकी हूं, मगर बात नहीं बनी। अब सास के ज़ोर देने पर जप- तप आज़मा रही हूं……”

“हां,कहते तो हैं,कुछ मंत्रों की संख्यापूर्वक आवृत्ति से मन की इच्छा अवश्य पूरी होती है…….

दस दिसि देखते सगुन शुभ

पूजहिं मन अभिलाष…..

जप से आप को अपने प्रयत्न की सिद्धि में अवश्य सफलता मिलेगी……

पूजहिं माधव पद जल जाता।

परसि अषयबटु हर्षित गाता।।…….”

“आप सिटकिनी देखिए,” प्रेरित होने की बजाय रमा व्याकुल हो उठी, “क्या इस में जंग लगा है?”

“हां। पुरानी सिटकिनी है। इस में जंग है,” महिला- डाक्टर अपने बाकी परिप्रश्न टाल गयीं, “ऐसे में ऐंटी- टौक्सिन का एक इंजेक्शन आप के शरीर की प्रतिरोध- शक्ति बढ़ाएगा और टेटनस नहीं होने देगा…..”

 

महिला- डाक्टर के लोप होते ही रमा ने दो अर्दलिओं को अपनी आलमारी के पट की अंदर वाली सिटकिनी उतारने का निर्देश दिया।

दोनों अर्दली चतुर थे और उन्हों ने बड़ी मुस्तैदी व निपुणता से वह सिटकिनी उतार ली।

सिटकिनी के बारे में रमा का अनुमान सही निकला और वह रमा के पूजाघर के दरवाज़े पर ठीक बैठ गयी।

सिटकिनी चढ़ाते ही रमा अपनी लहर में बह चली……

सब से पहले उस ने विधवा अपनी ताई को कोसा……..

फिर अपने पिता को कोसा, जिन्हों ने रमा की मां की आखिरी सांसें उस ताई की संगति में एकसाथ सुनीं और गिनी थीं…….

फिर ताई के उन चार गुणक बेटों को कोसा,जो रमा के पिता के पितृतंत्र के आवाह- क्षेत्र में अपने अनैतिक प्रवेश के बावजूद रमा से ऊपर रमा के पिता पर परिपूर्ण प्रभाव व अधिकार रखे थे……..

फिर उस ने अपनी सास के दुर्वचनों का पलट कर जवाब दिया……

फिर ननद की फबतियों पर उसे जली- कटी सुनाई………

फिर उस ने ससुर की कुड़कुड़ाहट पर विवाद खड़ा किया…….

फिर पति के झीखने पर उन्हें धौंसिया दिया……

फिर पूजाघर से बाहर आयी तो तुरंत सास के सामने जा उपस्थित हुई। उन के चरण- स्पर्श किए और अपने स्वर में अपनी पुरानी घिसी- पिटी,चिकनी- चुपड़ी,झूठी व मीठी तितिक्षा भर कर सास से बोली, “मम्मी जी,आज मौसम खूब अच्छा है। आप कहें तो शाम की मघौरी के लिए मूंग की दाल भिगो दूं…….”