Who is the bigger actor - Amitabh vs Shatrughan Sinha in Hindi Anything by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | कौन बड़ा अभिनेता - अमिताभ vs शत्रुघ्न सिन्हा

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कौन बड़ा अभिनेता - अमिताभ vs शत्रुघ्न सिन्हा

कौन किस पर भारी पड़ा ?

___________________________अभिनय जगत के दो बड़े नाम। शत्रुघ्न सिन्हा जहां अमिताभ से दस वर्ष सीनियर, स्थापित, लोकप्रिय विलेन और पुणे फिल्म और टेलीविजन संस्थान से अभिनय में प्रशिक्षित। वहीं अमिताभ कोलकाता में कोल कंपनी के मुलाजिम और कोई वास्ता नहीं अभिनय से। माताजी तेजी बच्चन के प्रोत्साहन और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री नेहरू की सुपुत्री से सिफारिश करवा ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म सात हिंदुस्तानी में सात पात्रों में एक की भूमिका मिली। कुछ नहीं आता और अभिनय में कोरे अमिताभ लगातार दस फिल्मों तक फ्लॉप हुए वर्ष उन्हतर से 73 तक । उनके निर्माताओं का क्या हाल हुआ होगा उस वक्त? बर्बाद हुए, बाल नोचे? कुछ भी किया पर धैर्य रखा और दो साल बाद ही किस्मत पलटी एंग्रीयंग मैन बन अमिताभ सुपर स्टार, बिना अभिनय की कोई ट्रेनिंग लिए इंदिरा जी के नाम के सहारे चल गए। जिसका कर्ज उन्होंने जिंदगी भर उतारा। कभी राजीव गांधी की सहायता हेतु इलाहाबाद से चुनाव लड़ा और विपक्ष जनता पार्टी के मजबूत, दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा दिया।हालांकि तभी विश्वनाथ प्रताप सिंह का उदय हुआ और बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी फंसे तो उनके बाल सखा मित्र अमिताभ का भी सीबीआई सूची में नाम था कमीशन लेने वालों में।इस तरह अमिताभ का राजनीतिक करियर प्रारंभ होते ही खत्म हो गया। तभी उनकी फिर उन्नीस सौ पिछयासी से लाइन से दस फिल्में लुढ़की और सुपरस्टार खत्म हो गया।

 

अभिनय और मुकाबला

-------------------------------- शत्रुघ्न सिन्हा, बिना शक ऐसे खलनायक रहे जो अपने खास व्यक्तित्व से हीरो पर भी भारी पड़ते थे। ऊपर से उनका बेलौस, बेफिक्री भरा अभिनय का अंदाज उन्हें सबसे अलग करता है। अमिताभ जहां कुछ जगह दिलीपकुमार की कॉपी करते दिखे वहीं शत्रु की स्टाइल कोई कॉपी नहीं कर सका।उन्नीस सौ छियासठ में फिल्म साजन, मनोज कुमार हीरो, में इंस्पेक्टर के छोटे रोल से उनका डेब्यू हुआ। फिर उन्नीस सौ सत्तर आते आते वह बड़े और हिट खलनायक बन चुके थे। अमिताभ अभी संघर्ष की पहली सीढ़ी पर थे। खैर समय बीता और भारतीय इतिहास का पहला खलनायक जो सफल नायक बना। कालीचरण फिल्म, सुभाष घई, जो पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में उनके सहपाठी थे, द्वारा निर्देशित और जीपी सिप्पी द्वारा प्रोड्यूस सुपर हिट रही।इसमें एंटी हीरो का किरदार क्या खूब निभाया था शत्रु ने। उधर अमिताभ दौड़ में काफी आगे निकल गए थे। जंजीर, दीवार, खून पसीना, हेराफेरी शोले आ चुकी थी और वह सुपर स्टार थे।

यह अमिताभ खुद कह चुके हैं कि संघर्ष के दिनों में शत्रु की पुरानी फ़ियेट गाड़ी में खूब चले हैं । तो शत्रु उन्हें अपना जूनियर बालक ही मानते थे। क्योंकि जब स्टार खलनायक के तौर पर उनका रुतबा था तब अमिताभ महज संघर्ष कर रहे थे।

पर जनता का वर्डिक्ट और अमिताभ सुपर स्टार सलीम जावेद, कादर खान और उच्च कोटि के निर्देशकों की फौज का साथ। यह भी ध्यान रखें कि न जाने कितनी बार सलीम जावेद अमिताभ की सफल फिल्मों को गिनाते हैं जो कुल जमा आठ हैं जबकि उनसे अधिक सुपर हिट फिल्म और अधिक समय दूसरे लेखक का रहा अमिताभ के साथ। उस लेखक ने कभी भी जावेद सलीम की तरह गिनाया नहीं की अमिताभ की यह यह फिल्में मैने लिखीं। वह लेखक रहे कादर खान, खून पसीना, हेराफेरी, मुकद्दर का सिकंदर, कुली, दोनों ऑल टाइम ब्लॉक बस्टर, लावारिस, नमकहलाल, शराबी, नसीब, अमर अकबर एंथोनी, याराना, मिस्टर नटवरलाल, परवरिश, गंगा की सौगंध, राम बलराम, सत्ते पे सत्ता, अग्निपथ, हम तक अनेक फिल्में लिखी भी और अभिनय भी किया। पर कभी भी उन्होंने सलीम जावेद की तरह क्लेम नहीं किया कि अमिताभ की इतनी हिट सुपरहिट फिल्में उन्होंने दी।उन पर आगे कभी लिखूंगा। तो अमिताभ बच्चन की शत्रुघ्न सिन्हा के साथ कुल जमा छ फिल्में रहीं। दो अनजाने, बॉम्बे टू गोवा का वक्त संघर्ष का था अमिताभ का। आगे खासकर अस्सी के दशक में नसीब, काला पत्थर, शान, दोस्ताना फिल्मों में दोनों शानदार अभिनेताओं की बराबरी की टक्कर हुई। क्या खूब टक्कर हुई कि सत्तर एमएम के पर्दे पर बाकायदा दिखा सुपरस्टार अमिताभ और बेहतरीन, ट्रेंड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के अभिनय और बॉडी लैंग्वेज का जलवा।

 

फिल्मों के आइकॉनिक दृश्य

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काला पत्थर, यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म थी जो वर्ष 1979 में रिलीज हुई। यह बिहार में हुई कोल माइंस दुर्घटना पर आधारित थी, जिसमें करीब हजार से अधिक कोल माइंस वर्कर मारे गए थे।बहुत अच्छे ढंग से सलीम जावेद द्वारा लिखित और अच्छे अभिनय, शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया के बेहतरीन संगीत से सजी फिल्म है।नायक विजय बाहर से आया है और कोल माइंस में काम करता एक लोकप्रिय व्यक्ति है। तभी जेल से फरार कैदी मंगल, (शत्रुघ्न) भी माइंस में मजदूर बन फरारी काटता है।

दोनों का पहला टकराव होता है जब मशीन लेने जाते हैं ट्रक में और फरमा बरदार अमिताभ जल्द से जल्द फैक्ट्री पहुंचना चाहते हैं तो वहीं मंगल, बीच रास्ते में ट्रक की चाबी छीनकर लस्सी, खाना आदि के लिए ढाबे पर बैठ जाता है। दूसरा दृश्य उससे भी रोचक है जब कैंटीन में एक ही वक्त में दोनों के ऑर्डर की चाय पर मंगल अड़ जाता है। साफ है मंगल आगे बढ़कर पंगा ले रहा है। तीसरे दृश्य से पूर्व बरसात की रात्रि में वह अमिताभ से हमदर्दी रखने वाली डॉक्टर, राखी ने यह रोल खूब संयम से निभाया है, को छोड़ने जाते अमिताभ को देखता है।

बस अगले ही दिन वह कोल खदान के दवाखाने पहुंच जाता है। अब दृश्य का आनंद लें। मरीजों की लाइन लगी है और कंपाउंडर मंगल को लाइन में आने को कहता है। मंगल, "अबे चल, लल्लू, पंजू" कहकर अंदर घुस जाता है। डॉ. साहिबा, राखी गुलजार, एक मजदूर का गंभीरता से मुआयना कर रही होती हैं। यहां एक्टर की रेंज और बॉडी लेंग्वेज जो शत्रुघ्न ने दिखाई है वह लाजवाब है। गले में एक अंगोछे को दोनो हाथों से पकड़े बड़ी विनम्रता से वह कहते हैं, " देवी जी, कल से बुखार है कुछ और थोड़ी सी तबियत नरम है। दवाई दे दो।" राखी जो उन्हें इस तरह लाइन तोड़कर जबरदस्ती अंदर आते देख गुस्से में है वह कहती हैं, "पहले आप बाहर जाइए और लाइन से आइए।दिखाई नहीं देता यह सब लाइन में हैं?"

शत्रु अब दबंगई से कहते हैं, " कौनसी हमें नब्ज दिखानी है ?वह रखी है बुखार खांसी की दवाई हमें दे दो हम चले जाते हैं।"

राखी, " गेटआउट, बाहर निकल जाओ।"

किरदार को अमर करने और आज चालीस वर्षों के बाद भी दृश्य आंखों में ताजा है तो वह शत्रु की मौलिक सोच और अभिनय से। वह जो करते हैं जबरदस्त है।उसी वक्त, सख्त आंखों और मुस्कराते हुए अपनी एक कोहनी मार कर दवाई की अलमारी का कांच तोड़ते हैं, आराम से दवाई स्ट्रिप निकालते हैं और उसे चीरते हुए होठों की चबाते हुए डायलॉग क्या बोलते हैं, अमिताभ के लिए पूरा बारूद बिछाते हैं। संवाद सुनें, "देवी जी, औरत हो तो हमने सुन लिया अगर यही बात " तुम्हारे विजय ने" कही होती तो यहीं चीर देता।"

सभी मजदूरों के सामने एक शरीफ डॉक्टर की जो घनघोर बेइज्जती मंगल उर्फ शत्रुघ्न करते हैं, उससे राखी सन्न रह जाती है। मंगल शान से चला जाता है।

तुरंत बाद कंपाउंडर सारी घटना विजय, अमिताभ बच्चन को बताते हुए कहता है, "....अंदर जाकर बहुत रो रही थी बेचारी।"

अब सोचें एक तो महिला डॉक्टर और दूसरे एंटी नायक की मित्र के साथ जानकर, सबके सामने जबरदस्त अपमान? क्या होगा फिर? जब कुछ देर बाद अमिताभ मंगल को ढूंढ रहे होते हैं और मंगल आराम से कैंटीन में बैठकर चाय पी रहा होता है। आगे का दृश्य आप यूट्यूब पर फिल्म के नाम से देख सकते हैं। फिर यह बात उभरती है कि जन्मजात अभिनेता, क्योंकि अमिताभ ने, दो महीने प्रारंभ में, अभिनय सीखा हो अन्यथा कुछ खास नहीं। इधर शत्रुघ्न सिन्हा, ट्रेंड अभिनेता फिल्म और टेलीविजन संस्थान पुणे से। वह तो सफल खलनायक बनते ही थोड़ा एटीट्यूड आ गया और लेट आना, सुबह की शिफ्ट में शाम, शाम की में आना ही नहीं और अन्य बुराइयों ने घर कर लिया तो आगे अधिक सफल नहीं रहे। इधर अमिताभ पूर्ण अनुशासित, समयबद्ध, निर्देशक के अनुकूल अभिनेता। सुपरस्टार बनना ही था।

यह रेडिकल किरदार मंगल का सलीम जावेद ने लिखा था और उसे अपने अभिनय से यादगार बना गए शत्रुघ्न सिन्हा। ऐसा की आज भी काला पत्थर फिल्म में जो भी दृश्य देखने और रोमांचक हैं वह शत्रु वाले ही हैं। नायक पर अपने किरदार में रहते हुए भारी पड़े। यह बहुत बड़ी बात है कि किरदार की सीमा नहीं लांघी और उसी में ऐसा अभिनय कर गए कि कमाल कर गए।

दोस्ताना फिल्म भी इसी वध आई थी।निर्देशक राज खोसला की यह हिट फिल्म में अमिताभ ईमानदार पुलिस ऑफिसर और शत्रुघ्न सिन्हा, ऐसे वकील के किरदार में जो स्मगलरों के केस लड़ता और जीतता है। सलीम जावेद थे यहां भी और दोनों किरदार बिल्कुल सफेद और स्याह, पटकथा लेखन की पहली शर्त। मज़ेदार बात यह अमिताभ के पकड़े लोगोंको शत्रुघ्न छुड़वाते है तो उस पर दोनों की दोस्ती नहीं टूटी।टूटी एक बहुत खूबसूरत, ग्लैमर्स लड़की शीतल के कारण।जिससे दोनों ही एक ही वक्त में प्यार करते हैं। लड़कियां पता नहीं क्यों हमेशा से भोली भाली बनकर उनसे भी भोले भाले लड़कों को एक साथ चुनती है, आजमाती है और फिर फैसला करती हैं कि किसके साथ जिंदगी बितानी है।और स्वतंत्र स्त्री है, तो फिल्म में भी वह नहीं बताती एक की बात दूसरे को की वकील साहब से आज घर मिलने जा रही हूं।

यह ग्लैमर्स रोल बहुत प्यारे ढंग से जीनत अमान ने निभाया था। कहीं भी वह अश्लील नहीं लगी बल्कि भरी पूरी युवती होते हुए भी मासूम लगी।

कहानी में टर्न ऐसे दिए लेखकों ने की इंटरवल तक दोस्त और उसके बाद घोर दुश्मनी।उसमें भी स्मगलर प्रेम चोपड़ा के सारे काले कारनामे शत्रुघ्न बचा देते हैं जिन्हें अमिताभ ने पकड़ा था।पूर्ण नेगेटिव किरदार शत्रु का। फिर शीतल कह देती है कि मैं विजय यानि अमिताभ से प्यार करती हूं तुमसे नहीं।फिर जो आमने सामने शत्रु अमिताभ को लताड़ते हैं, दोस्त की पीठ में खंजर भौंकने वाला सब कह देते हैं।उन दृश्यों में दोनों की आंखों और बॉडी लैंग्वेज से साफ दिखता है कि दोनों में जबरदस्त गुस्सा, बेबसी वास्तव में है एक दूसरे के खिलाफ। दिलचस्प यह है कि इंडस्ट्री में रहते हुए किसी का नुकसान खास नहीं हुआ। हां, अमिताभ ने जरूर सभी अच्छे निर्देशकों की फिल्में आगे शत्रु को नहीं लेने दी। जब भी अच्छे रोल आते अमिताभ खुद पहुंच जाते की मुझे इस रोल में लें। अब उसे भूख, तड़प और काम करने की लगन कहो या राजनीति एक सुपर स्टार की आपके ऊपर है।वैसे पहले ही बात सही है अन्यथा एक ही वक्त में अमिताभ, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, उधर साल भर बाद राज बब्बर तो उसी दौर में दिलीप कुमार के साथ शक्ति इन सभी में राजनीति ही कर रहे होते तो अभिनय में इतनी ऊंचाइयां कैसे छुते?

आप टाइटिल गीत "सलामत रहे दोस्ताना हमारा" देखें यूट्यूब पर।जिसे रफी और किशोर कुमार ने क्या तबियत से गाया है, मन खुश हो जाता है आज भी। इस गीत में ही दोनों अभिनेताओं की स्टेज पर एक्टिंग देख लें, शत्रु यहां भी भारी पड़े।

शान, निर्देशक रमेश सिप्पी की शोले की अपार सफलता के बाद प्रारंभ की गई बेहतरीन फिल्म थी।जानते ही हैं सब की शोले में अमिताभ का रोल शत्रुघ्न करने वाले थे पर रोल कमजोर देख उन्होंने नहीं किया।फिर धर्मेंद्र की सिफारिश पर अमिताभ आए। इस बार रमेश सिप्पी ने ऑफर दिया शान का और शत्रुघ्न फिल्म में हाजिर।शान उतनी नहीं चली पर कई दृश्य अच्छे थे।खासकर वीरू देवगन, अजय देवगन के फाइट मास्टर पिताजी, द्वारा संयोजित चार चलते ट्रकों से एक कार को किडनेप करना। खंडाला मुंबई हाइवे पर यह सीक्वेंस शूट हुआ था। फिल्म में डीसीपी बने सुनील दत्त को मुख्य विलेन शाकाल इस तरह पकड़ मंगवाता है। उसमें छोटे रोल में शत्रुघ्न थे और एक शूटर थे जो सर्कस में काम करता है। अकेले भी जिन दृश्यों में वह रहे उनकी स्क्रीन प्रेजेंस शानदार रही।इसमें दोनों के आमने सामने के दृश्य नहीं थे। और यह बात भी फिल्म को ले डूबी। फिर कमजोर खलनायक गब्बर सिंह के तुरंत बाद की फिल्म में। वह भी ऐसा की उसे देखकर डर तो दूर हंसी आती। फिर भी वह दृश्य जिसमें राखी और उनकी बेटी को शत्रुघ्न दुश्मनों के हाथ से बचाते हैं, यादगार बन गया है।

नसीब, उन्नीस सौ अस्सी, इस जोड़ी की साथ में आखिरी फिल्म थी। ब्लॉक बस्टर निर्देशक मनमोहन देसाई ने इस फिल्म में कुछ सीन रखे अमिताभ शत्रुघ्न के टकराव के। खोया पाया के फार्मूले में माहिर मन जी ने फिल्म में अजीब लव रेक्टेंगल बुना। रीना रॉय प्यार करती है शत्रुघ्न को, शत्रु करते हैं हेमा को, हेमा करती हैं अमिताभ को और अमिताभ करते है रीना रॉय को। हो गया सर्कल पूरा न, यह मनमोहन देसाई की खास बात थी। प्रयागराज के साथ पटकथा उन्हीं की थी। तो जब पता लगता है कि शत्रुघ्न का प्यार हेमा है तो अमिताभ दोस्ती की खातिर त्याग करते हैं। उधर रीना रॉय, शत्रुघ्न के प्रति प्यार बताती हैं अमिताभ को। पता नहीं जैसे ठीक होता है पर शत्रु अमिताभ पर प्यार छीनने का आरोप लगाकर गुस्से वाला दृश्य निभाते हैं। अमिताभ सफाई देते रह जाते हैं।

पता नहीं क्यों हमारी हिंदी फिल्मों की नायिका को ऐसी बेचारी, सीधी और कुछ भी उस पर थोप दो, वह मानेगी ही और अभी अमिताभ के किरदार से प्यार करती है तो अब शत्रुघ्न के किरदार से प्यार करने लग जाएगी, क्या फर्क पड़ता है? यह अस्सी ही नहीं बल्कि नई सदी तक की सोच रही। ऐसा ही आगे फिल्म साजन, संजय दत्त, सलमान और माधुरी के मध्य हुआ था पर यहां माधुरी दीक्षित सुपर स्टार थी और दोनों हीरो, इंडस्ट्री में उनसे छोटी हैसियत के ।तो फिल्म में जब संजय को पता लगता है कि माधुरी से ही सलमान प्यार करते हैं तो वह माधुरी के प्यार को अस्वीकार करते हैं। तब माधुरी, नई सदी की स्त्री का परिचय देती हुई, साफ साफ कहती है, कि औरत की भावनाएं, दिल नहीं होता क्या? वह जिसे प्यार करती है उसे दिल में सर्वोच्च स्थान देती है, उसकी अपनी मर्जी होती है। तुमने कैसे सोच लिया कि तुम कहोगे और मैं तुम्हारे प्यार को भुलाकर दूसरे से प्यार करूंगी? यह जबरदस्त बराबरी और स्त्री सशक्तिकरण के संवाद और कहानी लिखी थी कादर खान साहब ने। जो खुद भी दोनों हीरो के पिता के छोटे परंतु मजबूत रोल में थे। साजन से स्त्री जीती और दोनों पुरुषों द्वारा तय करने के बाद भी की अच्छा मैंने त्याग किया अब तू ही विवाह कर ले ।वह कहती है, "मैं क्या कोई ट्राफी हूं जिसे तुम एक दूसरे को दे रहे हो? मैं एक जीती जागती स्त्री हूं जो अपने मन से अपना साथी चुनती है।"पूर्व में ऐसी ही स्त्री हमें राजश्री की फिल्मों चितचोर, नदिया के पार, अंखियों के झरोखों से और आगे सूरज बड़जात्या की सभी पारिवारिक और बेहद सफल फिल्मों हम आपके हैं कौन, विवाह, एक विवाह ऐसा भी, मैं प्रेम की दीवानी हूं, प्रेम रतन धन पायों में भी मिलती है। वह स्त्री जो सही रूप से हमारी संस्कृति, भारतीयता में अलग अलग जगह पर गांधारी, द्रोपदी, बुद्ध की पत्नी सुभद्रा, आम्रपाली, आलोपा मुद्रा, भारती, मीरा के रूप में मिलती है। पश्चिम में तो औरतों की स्वतंत्रता संचेतना बहुत बाद में बीसवीं सदी में आई।हमारे यहां तो तीन हजार साल पूर्व से है।

तो नसीब के बाद अमिताभ बहुत आगे बढ़ गए और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ की सभी फिल्में उन्होंने मना कर दी।इसके बाद की फिल्मों में अव्वल तो दूसरा हीरो ही नहीं हुआ।क्योंकि अमिताभ इतने बड़े सुपर स्टार हो गए कि उनका नाम ही काफी था ।हैरानी होती है उनकी शुरुआती दस फ्लॉप फिल्मों ने भी आगे निर्माताओं को करोड़ों का मुनाफा दिया।चाहे मंजिल, कसौटी, मिली, बेशर्म, आलाप ही क्यों न हो।

अमिताभ की अपनी अभिनय रेंज जबरदस्त है परंतु वह फिल्में शशि कपूर, ऋषि कपूर, धर्मेंद्र या फिर अकेले की रहीं।जहां यह दो जबरदस्त अभिनेता आए अमिताभ उन्नीस ही रहे।

दरअसल हम जो कुछ वर्षों से नेचुरल अभिनय की बात कर रहे वह अमिताभ अस्सी के दशक से ही करने लगे थे। सभी बड़े निर्देशकों की एक्शन फिल्मों के अलावा उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की चुपके चुपके, अभिमान, मिली, बेमिसाल की तो बासु चटर्जी की छोटी सी बात, आलाप जैसी छोटे बजट की सामाजिक फिल्मों में भी अपने किरदारों को बखूबी जिया।

आज जब हम सामान्य से चेहरे मोहरे वाले हीरो देखते हैं जो आसपास के गली मोहल्ले के लड़के लगते हैं। या फिर ऐसे हीरो हैं जिनका तीस साल से अधिक काम करते हो गया और दर्शक तक उनसे ऊब गए पर फिर भी वह अपनी पोती की उम्र की लड़कियों के साथ सींग कटाकर बछड़ा बने फिरते हैं।

तब यह दौर याद आता है जब ऐसे अभिनय के दिग्गज हुआ करते थे। दोनों आज भी बातचीत करते हैं। जहां शत्रुघ्न सिन्हा आसनसोल से तृणमूल के सांसद हैं वहीं अमिताभ केबीसी से लेकर फिल्मों में उम्र के अनुसार भूमिकाएं कर रहे हैं।

 

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(डॉ.संदीप अवस्थी, आलोचक, कथा, पटकथा लेखक। देश विदेश से पुरस्कृत।

संपर्क : 8279272900, 7737407061.)