Nagendra - 16 in Hindi Fiction Stories by anita bashal books and stories PDF | नागेंद्र - भाग 16

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नागेंद्र - भाग 16

दिलावर सिंह को पता चला कि यह लोग दूसरे लोगों को नींद में ले जाने के लिए किसी तरह की पेड़ की छाल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन फिर भी उसमें यही मत नहीं थी कि वह यह बता सके की पीली आंख वाला इंसान कोई और नहीं नागेंद्र है। माया झुकी एक इच्छाधारी नागिन थी उसने नागेंद्र को बताया कि नाग गुरु ने उसे यहां पर नागेंद्र की मदद के लिए भेजा है क्योंकि कोई नागास्त्र की खोज कर रहा है। नागास्त्र की मदद से कोई भी पूरे नागलोक को खत्म कर सकता है।
सवेरे की धूप खिड़की से होते हुए आराम से सोई हुई अवनी के चेहरे पर गिर रही थी। अवनी एक लंबी अंगड़ाई लेते हुए उठ कर बैठ गई। उसे अभी भी नींद आ रही थी लेकिन उसे होटल भी जाना था और न्यू ईयर की पार्टी का इंतजाम भी करना था। उसकी आंखों में अभी भी आलस दिख रही थी लेकिन यह आलस तब उड़ी जब उसने घड़ी की तरफ देखा।
" ओ शीट! 10:00 बज गए मुझे 11:00 बजे तक वहां पहुंचना है।"
अवनी तेजी के साथ अपने बिस्तर से उठी और सीधा बाथरूम के अंदर घुस गई। आधे घंटे के अंदर ही तैयारी करके जैसे ही अपने कमरे के दरवाजे के पास पहुंचे उसे बाहर से सावित्री जी के जोर-जोर से हंसने की आवाज आ रही थी। 
" मां इस तरह से तो कभी नहीं हंसती है। आज क्या बात है?"
सावित्री जी की आवाज सुनकर वह काफी हैरान थी क्योंकि सावित्री जी एक रॉयल फैमिली से बिलॉन्ग करती थी और उसमें कभी इस तरह से जोर-जोर से हंसना नहीं सीखते हैं. यहां तक वह खुद अपनी को सिखाया करती थी किउन्हें इस तरह से नहीं हंसना चाहिए क्योंकि वह लोग आम लोगों से अलग है।
यह देखने के लिए कि उसकी मां इस तरह से क्यों हंस रही है अवनी जल्दी-जल्दी नीचे आई लेकिन उसने जो देखा उसे वह और गुस्सा हो गई। माया सावित्री जी के साथ हंस कर बातें कर रही थी और सावित्री की उसकी बात सुनकर हस्ती जा रही थी। 
" मां आप इस तरह से क्यों हंस रही है? और तुम यहां क्या कर रही हो?"
माया की जगह सावित्री जी ने जवाब दिया।
" अरे यह स्कूटी की चाबी देने आई थी। बहुत ही प्यारी और भोली बच्ची है। मुझे नहीं पता था कि नागेंद्र की इतने अच्छे-अच्छे दोस्त है। माया मैं तो कहती हूं कि तुम हमेशा यहां आया करो।"
अवनी ने हैरान नजरों से अपनी मां की तरफ देखा और फिर किचन से बाहर आते हुए नागेंद्र की तरफ देखा। नागेंद्र अपने साथ चाय और कॉफी लेकर आया था। उसे ट्रे को टेबल पर रखते हुए नागेंद्र चाय बनाने लगा। जैसे ही उसने कॉफी के मग को हाथ लगाया माया ने उसे रोकते हुए कहा।
" तुम रुको मैं तुम्हारे लिए कॉफी बना देती हूं। मुझे पता है तुम्हें चाय नहीं पसंद।"
कहते हुए माया नागेंद्र के लिए कॉफी बनाने लगी। यह देखकर अवनी ने एक गहरी सांस ली और वहां से चली गई। उसके पीछे से उसे अपनी मां की आवाज सुनाई दी।
" अवनी तुम चाय को और टिफिन लेकर जाओ ना।"
अवनी ने बिना पीछे मुड़े हाथ हिलाते हुए जवाब दिया।
" मैं होटल में ही कुछ खा लूंगी।"
उसने घड़ी की तरफ देखा तो 10:40 बज गए थे। उसे पता था क्यों 11:00 बजे तक तो बिल्कुल नहीं पहुंच पाएगी और वहां से ऑटो स्टैंड भी काफी दूरी पर था। वह होटल में समय पर कैसे पहुंचेगी यह सोच रही थी कि उसे आवाज आई।
" अवनी लगता है कि आप लेट हो गई है।"
अवनी ने देखा तो वहां एक सिल्वर कलर की ह्युन्डाय अल्काजार टाईफून कार खड़ी थी जिसमें से उसके बॉस बलराज सोलंकी उसकी तरफ ही देख रहे थे। अवनी ने हैरानी से उनकी तरफ देखा क्योंकि उसने अपने इस घर के बारे में तो किसी को कुछ नहीं बताया था। वह उनके पास गई और वहीं पर खड़े रहकर पूछने लगी।
" बॉस आप यहां क्या कर रहे हैं?"
बलराज ने एक गली की तरफ इशारा किया और कहा।
" बजरंगबली के मंदिर गया था वहां से होटल की तरफ ही जा रहा था कि मैं तुम्हें यहां पर देखा। क्या तुम इस एरिया के आसपास रहती हो? यह तो काफी वेल्ड सेटल्ड एरिया है और काफी बड़े-बड़े लोग रहते हैं यहां पर।"
अवनी ने उसे गाली की तरफ देखा। उसे गाली के आखिरी छोर पर एक बजरंगबली का मंदिर था जहां पर कई लोग आते थे। इस बजरंगबली के मंदिर के बाजू में श्री गणेश का भी मंदिर था। अवनी यह बताना नहीं चाहती थी तो यहां पर रहती है और इसलिए उसने कहा।
" जीप में गणेश जी के दर्शन करने आई थी। मेरा कल यहां नहीं है यहां से काफी दूरी पर है लेकिन मुझे इस मंदिर में आना बहुत पसंद है बहुत श्रद्धा है मुझे, इसलिए मैं यहां पर आती हूं।"
बलराज ने अवनी को घर के अंदर बैठने का इशारा करते हुए कहा।
" चलो मैं भी होटल ही जा रहा हूं साथ में ही चलते हैं। अगर ऑटो का इंतजार करोगी तो बहुत लेट हो जाएगा।"
अवनी अपने पर्स को पकड़ कर कुछ देर तक सोचती रही तो उसे जाना चाहिए या नहीं। फिर आखिरकार वह कार में जाकर बैठ गई। कर में काफी खामोशी थी अवनी कार्की विंडो से बाहर की तरफ देख रही थी। 
एक समय था कि उसके पास भी ऐसी या फिर काहे की इससे भी महंगी कार थी। लेकिन कुछ ही समय में इतना कुछ बदल गया था क्या उन्हें को ऑटो से होटल की तरफ जाना पड़ता था। उसे इस बात की भी फिक्र थी के उसे एक अच्छा वकील ढूंढना होगा नहीं तो यह रहने की जगह भी उसके हाथ से चली जाएगी। 
" वैसे अवनी तुमने बताया नहीं कि तुम कहां रहती हो? तुम्हारे बायो में भी तुम्हारा पूरा एड्रेस नहीं है।"
अवनी ने बलराज की तरफ देखा और कहा।
" वह हम लोग किराए के घर में रहते हैं और एड्रेस चेंज होता रहता है इसलिए। वैसे आपको मुझसे कुछ काम था?"
बलराज ने कार ड्राइव करते हुए जवाब दिया।
" मैंने सोचा था कि तुम्हारे फैमिली मेंबर को पर्सनली जा कर होटल के 25 ईयर की पार्टी में इनवाइट करूं।"
अवनी ने नकली मुस्कान लाते हुए कहा।
" बॉस इसकी कोई जरूरत नहीं है मैं उन्हें कह दूंगी।"
कुछ ही देर में वह लोग होटल पहुंच चुके थे। होटल में काम कर रहे कई लोगों ने उन दोनों को साथ में कार के बाहर निकलते हुए देखा। अवनी ने देखा कि उन दोनों को वहां से आते हुए सब लोग देख रहे थे और आपस में कुछ इशारों से बातें भी कर रहे थे। उसने कुछ नहीं कहा और अपने केबिन में चली गई।
दिलावर सिंह अभी भी क्लब में मौजूद था और एक कमरे में लेटा हुआ था। वहां पर कुछ कैमरे भी थे जिसे वह लोग कपल के लिए प्रोवाइड करते थे लेकिन उन्हें रेस्ट करने के लिए भी वह लोग इस्तेमाल करते थे। ‌ दिलावर को वहां पर सवेरे के चार बज गए थे इसीलिए मार्को ने उसे वहीं पर रहने की सलाह दी थी।
दिलावर उठा तो उसने देखा कि उसके बाजू में एक लड़की सोई हुई थी जिसका हाथ उसके सीने में था। दोनों के शरीर चद्दर से कवर थे और दोनों के कपड़े पूरी जगह पर फैले हुए थे। वह लड़की भी उठ कर दी लवर की तरफ देखने लगी क्योंकि वह अब उठकर बैठ गया था। वह अपने कपड़े पहनने लगा तब उस लड़की ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।
" दिल इतनी भी क्या जल्दी है जाने की?"
दिलावर जल्दी से कपड़े पहन कर बाहर की तरफ जाते हुए कहने लगा।
" मुझे मेरे पापा से कुछ सवाल पूछने है। आज रात को मिलता हूं, बाय।"
कहते हुए दिलावर ने एक फ्लाइंग किस दी और वहां से चला गया। वह लड़की वापस बिस्तर में जैसी थी वैसे ही लेट गई। अपने केबिन में बैठकर कुछ सोच रही थी तभी राजश्री अंदर आई और उसने अग्नि को सोचते हुई देखकर पूछा।
" अवनी मैंने तुझे कहा था कि बॉस के साथ बात कर उसे वकील के बारे में, क्या तूने वह काम किया?"
अवनी ने राजश्री की तरफ देखा और जवाब दिया।
" नहीं मैं नहीं कर पाई।"
" अच्छा तो इस वजह से तो इतनी परेशान है।"
राजश्री ने सामने वाली कुर्सी में बैठे हुए पूछा।
" नहीं मैं नागेंद्र के बारे में सोच रही हूं। मुझे लगता है उसे लड़की माया के कारण मेरी शादीशुदा जिंदगी में परेशानी आ जाएगी।"
राजश्री अभी कुर्सी में बैठी नहीं थी लेकिन अवनी की बात सुनकर वह रुक गई और अवनी की तरफ बिना पलके झपकाएं देखने लगी। राजश्री अपनी जगह पर बैठी और कुर्सी को आगे खींचकर पूछने लगी।
" अवनी कल तो तू कह रही थी कि तेरी और नागेंद्र के बीच में ऐसा कोई रिश्ता ही नहीं है जिसे तुम शादी कह शको फिर अचानक तुम्हें यह चीज परेशान क्यों करने लगी? ओर यह लड़की माया कौन है?"
यहां अवनी नागेंद्र और माया को लेकर परेशान थी वहां पर वह दोनों उसे नाग मंदिर के सामने आकर खड़े थे। नागेंद्र ने मंदिर को देखते हुए पूछा।
" तुम्हें क्या लगता है यह कौन सा मंदिर है। यहां पर इस तरह का कोई मंदिर है इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्या तुम जानती हो?"
माया ने मंदिर को एक चक्कर मार कर घूमते हुए देखा और फिर नागेंद्र की तरफ देखते हुए कहने लगी।
" देखो पृथ्वी लोक में इस तरह की कई सारे मंदिर है। कुछ मंदिर काफी प्राचीन होते हैं जिन्हें राजा महाराजाओं ने बनाए रहते हैं और कुछ मंदिर हमारे किसी चमत्कार की वजह से बन जाते हैं। लेकिन जरूरी नहीं है कि हम सब मंदिर के बारे में जानकारी रखते हो।"
नागेंद्र ने अपने बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
" वह सब तो ठीक है लेकिन हम इसके बारे में पता कैसे करेंगे? जब तक हमें इस मंदिर के बारे में कुछ पता नहीं चलता हम इस बात को कैसे पता करेंगे कि यहां पर क्या हो रहा था?"
क्या नागेंद्र और माया उसे मंदिर की हिस्ट्री के बारे में जान पाएंगे? अवनी आखिर नागेंद्र और माया को लेकर इतनी परेशान क्यों है? दिलावर क्या जान पाएगा नागेंद्र के बारे में?