Restlessness - An unspoken relationship in Hindi Philosophy by Karunesh Maurya books and stories PDF | बेचैनी - एक अनकहा रिश्ता

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बेचैनी - एक अनकहा रिश्ता

कुछ लोग होते हैं जो दुनिया को सिर्फ देख नहीं पाते, महसूस करते हैं। जैसे हर मुस्कान के पीछे की हल्की सी थरथराहट, हर खामोशी में छुपी हुई चीख… और हर "मैं ठीक हूँ" के नीचे दबी हुई तन्हाई। ये कहानी ऐसे ही एक लड़के की है—शांत, गहरा, और हर किसी की नज़रों में एक रहस्य… लेकिन खुद की नज़रों में बस एक अधूरा सवाल।

वो ज़्यादा सोचता था। इतना कि कभी-कभी खुद ही थक जाता था अपने ही ख्यालों से। लोग कहते, "यार थोड़ा कम सोचा कर, सब ठीक हो जाएगा।" लेकिन उन्हें क्या पता था कि उसके लिए सोचना सांस लेने जितना जरूरी था। हर रात जब सब सोते थे, वो जागता था… किसी बीते लम्हे की धुंध में आंखें गुम करके।

कभी लगता जैसे वो फँस गया है—किसी ऐसे मोड़ पर, जहां से आगे रास्ता नहीं दिखता और पीछे लौटने का हक भी नहीं रहा। पर ये कोई जगह नहीं थी, ये तो उसके अंदर का एक कोना था—जिसमें न कोई खिड़की थी, न दरवाज़ा… बस एक बेचैनी थी, जो हर वक्त उसके साथ चलती।

वो नहीं चाहता था कि सब कुछ इतना धीमा चले। पर वक्त भी अजीब है—जब हम जल्दी चाहते हैं, वो रुक जाता है… और जब हम ठहरना चाहते हैं, वो भागने लगता है।

और फिर आई वो बेचैनी… जो पहले अनचाही थी, लेकिन धीरे-धीरे वो उसकी साथी बन गई। अब वो उसे मिटाना नहीं चाहता था। वो जानता था—ये बेचैनी ही है जिसने उसे इंसान बनाए रखा, उसे महसूस करना सिखाया, उसे उसकी गहराई से मिलवाया।

उसने कहा,
"रहना मेरे साथ… पर इतना पास भी मत आना कि सांस रुक जाए। और इतना दूर भी नहीं कि मैं खुद को खो दूँ।"

कभी-कभी वो अपने अंदर किसी ऐसे चेहरे को महसूस करता… जो शायद कभी था, या बस किसी एहसास का हिस्सा था। वो चेहरा उसकी बेचैनी का आकार बन चुका था—वो कुछ नहीं कहता, बस आंखों में तैरता रहता।

वो जानता था कि उसकी ये हालत कुछ लोगों को अजीब लगती है। कुछ उसे समझने की कोशिश करते हैं, कुछ बस चुपचाप छोड़ देते हैं। लेकिन वो खुद को खोना नहीं चाहता था। इसलिए उसने अपने अंदर उस बेचैनी के लिए एक कोना बना लिया—एक ऐसी जगह, जहाँ वो उससे बात कर सके, उसे महसूस कर सके, और कभी-कभी बस चुपचाप उसके साथ बैठ सके।

उसका दिन सामान्य सा होता—लोगों के बीच हँसना, बात करना, सब ठीक दिखाना। लेकिन जैसे ही वो अपने कमरे में लौटता, सब कुछ बदल जाता। उसकी दीवारें उससे बातें करने लगती थीं। उसका बिस्तर उसकी थकान समझता था। और उसकी बेचैनी धीरे-धीरे उसके पास आकर बैठ जाती थी—बिना कोई सवाल किए, बिना कोई जवाब मांगे।

उसने खुद को एक कहानी बना लिया था—ऐसी कहानी, जो शायद ही किसी ने पूरी पढ़ी हो। जो लोग उसके पास आए, उन्होंने सिर्फ़ कुछ पन्ने ही पलटे और चले गए। लेकिन वो जानता था, उसकी असली कहानी उन्हीं अधूरे पन्नों में थी।

कभी-कभी वो सोचता—क्या ये सब कभी खत्म होगा? क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब वो बिना उस बेचैनी के जी पाएगा? लेकिन फिर वो खुद ही जवाब दे देता—शायद नहीं। और शायद यही ठीक है।

क्योंकि अब वो बेचैनी उसके लिए दर्द नहीं, पहचान बन चुकी थी। अब वो उससे डरता नहीं था, बल्कि उससे बातें करता था।

एक रात जब बारिश हो रही थी, वो बालकनी में बैठा था। आसमान से गिरती हर बूँद जैसे उसकी बेचैनी को धो रही थी। उसने आंखें बंद कीं और पहली बार दिल से मुस्कुराया।

उसने खुद से कहा,
"मैं टूटता हूँ, बिखरता हूँ, पर खत्म नहीं होता। और जब तक मैं महसूस करता हूँ, तब तक मैं जिंदा हूँ।"

ये कहानी सिर्फ उसकी नहीं है। ये हर उस इंसान की है जो ज़्यादा सोचता है, जो अपनी बेचैनियों को अपने तक रखता है, जो खुद से लड़ते हुए भी मुस्कुराता है। अगर तुमने भी कभी ये सब महसूस किया है… तो जान लो, तुम अकेले नहीं हो। तुम्हारे जैसे बहुत से लोग हैं—जो दुनिया के शोर में भी अपनी खामोशी को पहचानते हैं।

– करुणेश की कलम से
(उन सबके लिए, जो रोज़ अपने अंदर के शोर को खामोशी में समेट लेते हैं.)