DOO PAL (LOVE IS BLIND) - 9 in Hindi Love Stories by ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત books and stories PDF | दो पल (love is blind) - 9

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दो पल (love is blind) - 9

9

     मीरा के चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी। मायूसी की वजह थी नोवेल्स न पढ़ पाना और वही बात उनको लाइफ में अधूरी सी कोई कहानी की तरह लग रही थी। जीवन के अंतिम क्षण चल रहे हो और कोई चीज या कोई बात न पूरी होने के कारण अधूरा सा महसूस होता है वैसा ही महसूस मीरा को हो रहा था।
   हॉस्पिटल में अंतिम घड़ी गुजार रही थी। आंखों में सिर्फ अधूरापन नजर आ रहा था। वह अधूरापन एक बात का नहीं था। वो जिसे अपना मानने लगी थी, प्यार करने लगी थी और उसकी लिखी कहानी और कविताओं से बेहद लगाव था, उसको ही वह न जानती थी, न देखा था और उसी को ही प्यार कर बैठी थी। कहते है कि प्यार अंधा होता है, आज वही दिख रहा था। पर आज उसकी आंखों में बसा वो नूर मिलने आने वाला था। मीरा की आंखे बस उसका ही इंतजार कर रही थी। शायद ऐसा लग रहा था कि उसकी सांसे दो पल के लिए मिल जाए वहीं एहसास में जिंदा हो। जिंदगी की अंतिम ख्वाइश भी शायद वही थी। 
 
     मीरा दौड़ती और चिल्लाते हुए कमरे से बहार आती है। खुशी के मारे अपनी मम्मी से भेट पड़ती है।
  " क्या हुआ, बाबा? क्यूं पागल बनी जा रही हो?"
  "मां, आज गुरु का खत आ ही गया।"
   "इसलिए इतनी खुश हो। क्या लिखा है खत में?"
   "लिखा है कि इस बुक को पढ़ने वाली पहली इंसान हो। और खत भी पहला तुम्हारा ही आया।"
   " पर तुमने कहा बुक पढ़ी है। वो तो गटर में गिर गई थी।" 
   मीरा के चेहरे पर अफसोस छा जाता है। साफ साफ बुक न पढ़ने का ग़म दिखाई देता है। इतने में डॉर बेल बजता है। संगीतजी दरवाजा खोलने के लिए जाती है।
 "तुम तैयार हो ?" विशाखदेवी दरवाजा खोलते ही बोल पड़ी।
  " पहले आप घर में तो आईए, फिर निकलते है।" संगीतजी ने धैर्य बर्ताव से बोली।
  " मीरा, जरा दरवाजा बंद करना।" 
  मीरा दरवाजा बंद करती है। इतने में दोनों बाजार जाने के लिए निकलते है।
 "तुम लोग कहा जा रहे हो।"
 " मैं विशाखा के साथ बाजार जा रही हूं, थोड़ी देर में लौट आऊंगी।"
  मीरा दरवाजा बंद करके अपने कमरे में वापस चली जाती है। आज इतनी खुश थी कि दोबारा लेटर बाहर निकालकर पढ़ लेती है।
 
     इंसान की बुरी या अच्छी घटना अपने साथ घटती है तो वो साफ चेहरे पर दिखाई देती है। सभी भाव चेहरे से बया हो ही जाते है। वो चाहे ग़म हो, खुशी हो, गुस्सा हो या प्यार हो। इसलिए तो कभी किसी के चेहरे को देखकर हम समझ जाते है कि वो खुश है कि दुखी है। पर कुछ लोग ऐसे भी होते है कि उनके चेहरे भाव दिखाई न दे, या दिखाई देने में देरी भी लग जाए। हम सब अपने मित्र या स्नेही के चेहरे के भाव को देखकर ही उसके साथी ऐसा ही बर्ताव करने लगते है। जो मित्र दुःखी हो तो उसके खुश करने का प्रयत्न करते है। मीरा के चेहरे पर भी ऐसा ही भाव दिखाई दे रहा था। फिर वो सोचें में पड़ जाती है। उसमें मन में हज़ारों की मात्रा में सवाल और उत्तर चल रहे थे।
मीरा आए लेटर का रिप्लाई अलग और अनोखे तरीके से भेजना चाहती थी। पर एक सवाल भी खड़ा था कि उपन्यास तो नहीं पढ़ी और उसके बारे में कैसे कुछ बता सकती हूं। मीरा के दिमाग में ये सवाल जोरो से गुम रहा था। उसका हाल सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।