wings of happiness in Hindi Short Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | खुशियों के पँख

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खुशियों के पँख

लघु कहानी

खुशियों के पँख 

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  कालबेल की आवाज सुनकर रिचा ने दरवाजा खोला तो सामने सीमा को देखकर चौंक बड़ी -अरे...आप... !   हां भाभी! मुझे माफ़ कर दीजिए। मेरी भूल माफी योग्य नहीं है। फिर भी मुझे पता है भैया भी मुझे माफ़ कर देंगे।      मुझे तो कुछ कुछ समझ नहीं आ रहा है। भूल ... माफी.... भैया....। पहले अंदर चलिए।  रिचा सीमा को लेकर अंदर गई। सीमा ने रिचा से कहा - भाभी! मैं सबसे पहले भैया से मिलना चाहती हूँ।     जरुर मिलिए। मैं कब रोक रही हूँ, लेकिन वह अभी दवा खाकर सो रहे हैं। डाक्टर ने उन्हें जगाने के लिए मना किया है। तब तक आप कुछ खा पी लीजिए, फिर आराम से मिलिए। थोड़ी देर में वो भी उठ ही जायेंगे।      सीमा ने मना किया - नहीं भाभी, मैं भैया के हाथ से ही खाऊँगी। मैं जानती हूँ , और मुझे पता भी है कि भैया मुझसे बहुत नाराज़ हैं, और होना भी चाहिए, ये उनका अधिकार भी हो। लेकिन..... उन्होंने मुझे बहन ही नहीं बेटी का स्थान दिया है। मुझे विश्वास है कि मुझे यहाँ देखकर वो जरूर खुश होंगे, शायद डाँटें भी, पर माफ़ भी कर देंगे।    ठीक कह रही हैं आप। ऐसा हो सके तो आपके लिए नहीं हम सबके लिए ही अच्छा होगा। रिचा की आवाज भर्रा गई।       क्या मतलब है आपका? सीमा आश्चर्य से बोली        कुछ नहीं। आप बैठो। सब ठीक हो जाएगा। रिचा ने सीमा का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाते हुए कहा......। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि इतने दिनों से आपका फ़ोन भी नहीं आया। वो भी काफी समय से आप लोगों की चर्चा तक नहीं करते। कभी कुछ पूछती भी हूँ, तो टाल जाते हैं।इस साल तो आपकी राखी भी नहीं आई। आखिर ऐसा क्या कुछ हो गया आप दोनों में, जिसने राखी के धागों को भी कमजोर कर दिया।     

सीमा रुआँसे स्वर में रिचा के कँधे पर सिर रख कर बोली - हाँ भाभी। ग़लती मेरी ही है, जो मैं भाई के लाड़, प्यार, दुलार, अधिकार को सहेज नहीं पाई। इतना सम्मान तो अपना भाई भी नहीं देता, जितना भैया मुझे देते हैं। छोटी हूँ, बहन कहते हैं, पर बेटी मानते हैं, बड़ा होकर भी मेरे पैर छूते हैं। हमारा हर तरह से ख्याल रखते हैं। हर समस्या का समाधान करने की कोशिश करते हैं।        

रिचा सीमा को ढांढस बंधाते हुए आप दोनों भाई-बहन की माया आप दोनों ही जानो। पर मैं सब समझती हूँ, मैं भी एक औरत हूँ और दुनिया समाज की इतनी परख मुझे भी है।       

तब श्रवण ने रिचा को पुकारकर पूछा - कौन आया है, जिससे तुम बातें कर रही हो।       

रिचा ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया - कोई तो नहीं। लगता है आपको दिन में भी सपने आने लगे।       

श्रवण चिढ़कर बोला - जो तुम कहो, वही सही है।रिचा और सीमा श्रवण के पास गईं।     

 सीमा को देखकर श्रवण चौंक गया - अरे! तू कब आई, बेटा! न कोई फोन, न सूचना, अचानक.....। सब ठीक तो है न?     

सीमा श्रवण से लिपटकर रो पड़ी। भैया मुझे माफ़ कर दो।      श्रवण सीमा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - पागल लड़की, पहले रोना बंद कर। फिर बता किस बात की माफी?       

माफी तो मुझे माँगनी चाहिए तुझसे, जो मैं तुझ पर कुछ ज्यादा ही अधिकार समझ बैठा, तेरे प्रति अपने कर्तव्यों को अपनी जिम्मेदारी मान, तुझे अपनी बहन, बेटी की जगह महसूस कर बैठा। ग़लती मेरी थी बेटा। जिसका दंड मुझे मिल रहा। फिर भी कोई बात नहीं बेटा। परेशान मत हो, सब ठीक हो जाएगा। ईश्वर ने हमें खून के रिश्तों से नहीं जोड़ा तो क्या हुआ? तुम्हारे लिए मेरे मन के जो भाव पहले दिन थे, वही भाव आज भी हैं, मेरे आखिरी साँस तक रहेंगे। तुमने हमें जरूर पराया कर दिया, लेकिन हमने तेरी राखी के बंधन को अपना कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारी समझा। मैं तुम्हारा या किसी और का  कोई दोष नहीं दे रहा, बस समय का खेल है बेटा।   

सीमा अपना कान पकड़ते हुए बोली - सारी भैया....     श्रवण सीमा का हाथ पकड़ते हुए बोला - कोई बात नहीं है बेटा। तुम खुश रहो, मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है। बाकी तुम्हें सब पता है। हाँ इस बात का संतोष जरुर है कि अब शायद तुमको आखिरी बार देख पा रहा हूँ।     

सीमा गुस्से से बोली - ऐसा क्यों कह रहे हैं।आपको कुछ नहीं होगा। आपने जो वादा किया है मुझसे, वो तो आपको निभाना ही पड़ेगा, वो अधिकार अब केवल आपका है, मेरी भूल का दंड मेरी बच्ची को मत दीजिए भैया।     

   मैं कौन होता हूँ किसी को दंड या आशीर्वाद देने वाला। वैसे एक तुझे बता दूँ, तुझसे ज्यादा तेरी बच्ची मुझे प्यारी है। मगर अब झूठी तसल्ली देने का समय नहीं है बेटा। बाकी जैसी ईश्वर की इच्छा।     

 ये सब फालतू की बात क्यों करते हैं? मरने जीने की बातों से फुर्सत मिल गई हो तो अपनी लाड़ली के भोजन पानी की चिंता कीजिए - रिचा खीझते हुए बोली      

मैं क्यों करुँ? वैसे तो ये काम आपका है और वो कोई रिश्तेदार थोड़े है। जब जो मन करेगा, खा पी लेगी।       

हाँ सब मेरा ही तो ठेका है, आप दोनों का नाटक मेरी समझ से बाहर है, आपकी बेटा जी आपके साथ, आपके हाथ से ही खायेंगी।     

मगर क्यों?     

ताकि इन्हें विश्वास हो जाय कि आपने इन्हें क्षमा कर दिया है।       

अरे भाई! मैं नाराज़ ही कहाँ हूँ? फिर भी सीमा बेटा - यदि तुझे ऐसा लगता है तो जा। तू खुद खाना निकाल कर ले आ। सब साथ - साथ ही खायेंगे।     

जी भैया! सीमा की खुशियों को जैसे पँख लग गए हों। वह रिचा के साथ रसोई की ओर बढ़ गई।


सुधीर श्रीवास्तव