पुस्तक समीक्षा -
श्री हनुमंत प्रकाश- सुंदर काण्ड का नवोन्मेषी स्वरूप
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लोक कल्याण की भावना और उद्देश्य से प्रस्तुत पुस्तिका का एक मात्र उद्देश्य श्री बजरंग बली जी महाराज से जन-जन के कल्याण हेतु निवेदन करना है।
जिसे पुस्तिका के लेखक विजय प्रताप शाही 'विजय' ने खुले मन से स्वीकार किया है। लेखक की भावनाओं को महसूस किया जाय तो ऐसा लगता है कि उनका उद्देश्य पवित्र, सात्विक और सोद्देश्य पूर्ण होने के साथ सर्व जनकल्याण के लिए कुछ करने की प्रबल इच्छा शक्ति का द्योतक है। हालांकि आज ऐसी सोच और जन-जन के कल्याण की सोच रखने वालों की संख्या नगण्य ही है, तब उनका ये छोटा सा प्रयास अपने आप में अद्वितीय ही कहा जाएगा।
पाँच सोरठों, इक्यावन दोहों और चार सौ चौपाइयों के साथ प्रस्तुत पुस्तिका का पाठन करने पर महसूस होता है कि इसके लेखन को बड़े मनोयोग और प्रभु श्रीराम की कृपा, बजरंगबली महराज की देखरेख में तुलसी दास जी की आत्मा का प्रवेश लेखक भीतर उपस्थित रहा।
आज जन के कल्याण केउद्देश्य के मद्देनजर लेखक ने अपने लेखन में सहजता सरलता और आसानी के साथ मनोयोग से पाठन करने की उत्कंठा जागृति होती महसूस की जा सकती है। धार्मिक और सात्विक विचार रखने और बजरंग बली महराज में निष्ठा रखने वाले आम जन/भक्त इसका नियमित अथवा मंगलवार/शनिवार को सुंदर काण्ड की तरह पाठन कर लाभ ले सकते हैं। ऐसा मेरा मानना है।
प्रस्तुत पुस्तिका लेखन से पूर्व निश्चित रूप से लेखक ने अपने मन को नियंत्रित और खुद को हनुमान जी के हवाले करने के साथ गंभीर चिंतन, विस्तृत अध्ययन किया होगा। इसके लिए मेरे विचार से हनुमान जी की किसी न किसी रूप में प्रेरणा भी इस पुस्तिका के पार्श्व में रही होगी।
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि शाही जी वैसे भी धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, जिससे उन्हें इस पुस्तिका के सृजन हेतु प्रेरणा मिली हो सकती है। स्वास्थ्यगत दुश्वारियों को धता बताते हुए अपनी दैनिंदनी के साथ अपनी साहित्यिक यात्रा को जारी रखते हुए इस पुस्तिका के लेखन ने उनकी लेखनी को नव आयाम दे दिया है। यह उनकी सफलता से ज्यादा उनके निस्वार्थ समर्पण के फलस्वरूप माँ शारदे के अनूठे वरदान जैसा कहना अतिश्योक्ति न होगा।
यूं तो पुस्तिका की एक एक पंक्ति, चौपाई, दोहे अपने आप में उत्कृष्ट हैं। फिर भी अपनी अल्प बुद्धि से कुछ कहने का दुस्साहस कर रहा हूँ।
प्रथम चरण में अपनी चौपाई में आपने बड़े ही सहज भाव से पवनसुत से अनुनय विनय करते हुए लिखा है -
हे दुखभंजन हे जगबंदन।
हे कपिचंदन मारुतिनंदन।।
हे रणबीरा हे मतिधीरा।
हरहुँनाथ जन जन की पीरा।।
द्वितीय चरण में भगवान राम,भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जन्म के उल्लास का चित्रण करते हुए लेखक लिखता है -
बड़े भाग दशरथ के आँगन।
आयहुँ चारि चारि कुल चंदन।।
परिवारी जन आयुष दीन्हा।
राज कोष न्योछावर कीन्हा।।
तृतीय चरण में वनवासी राम से हनुमान जी के प्रथम मिलन को रेखांकित करते हुए लेखक स्वयं भी विह्वल सा लग रहा है -
हनुमति अतिविह्वल भयऊँ, रघुपति भाव विभोर।
अँकवारी भरि भरि नयन, करिहिं हियहिं अँन्जोर।।
चतुर्थ और अंतिम चरण में लेखक भावुक आग्रह पूर्वक दोहे के माध्यम निवेदन करते हुए लिखता है -
भय विपत्ति बाधा हरहिं, राम नाम सत्संग।
करिहिं मनोरथ पूर्ण सब, महावीर बजरंग।।
पुस्तिका का प्रत्येक शब्द, लाइन मोहक चुंबकीय आकर्षण लिए प्रतीत होता है। पाठक मात्र एक घंटे में पुस्तिका का पाठ कर लाभ ले सकते हैं। अपने साथ आसानी से लेकर कहीं भी आ जा सकते हैं और अपनी सुविधा, स्वेच्छानुसार पाठन कर लाभ ले सकते हैं।
और अंत में हनुमान जी की दो आरती के साथ सुंदर काण्ड के नवोन्मेषी स्वरूप वाली पुस्तिका को पूर्णता देने का सुंदरतम प्रयास किया है।
मैं पुस्तिका की आमजन में स्वीकार्यता के प्रति पूर्ण आश्वस्त होने के साथ विजय जी के स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ। हनुमान जी महाराज की कृपा उनके साथ सदैव बनी रही। इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ....
समीक्षक:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश