जब मैंने लिखना शुरू किया, तब मुझे लगता था कि लोग मेरे शब्दों को पढ़ेंगे और तारीफ करेंगे। मैं कल्पना करता था कि हर टिप्पणी में प्रशंसा होगी, हर प्रतिक्रिया में अपनापन होगा। लेकिन धीरे-धीरे समझ में आया कि लिखना केवल वाहवाही पाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक संवाद की शुरुआत है—और हर संवाद में केवल सहमति नहीं होती।
मेरा एक प्रिय मित्र हैं , जो बहुत अच्छा लिखता है—दिल से, सच्चाई से। पर उसने लिखना छोड़ दिया। वजह सिर्फ़ इतनी थी कि उसे वो प्रतिक्रिया नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी। कुछ ने कुछ कहा ही नहीं, और जो बोले, उनमें कड़वाहट थी। शायद उसने सोचा कि उसके शब्द बेअसर हैं, कि उसकी आवाज़ कहीं नहीं पहुँच रही। पर सच्चाई यह है कि उसकी आवाज़ बहुत कीमती है—जैसे हर सच्चे लेखक की होती है।
मैंने यह लेख उन लेखक भाइयों के लिए लिखा है जिन्होंने लिखना छोड़ दिया हैं।
पहली बार जब किसी ने मेरी रचना पर आलोचना की, तो भीतर कुछ चुभा। लगा जैसे मेरी भावनाओं को ठुकरा दिया गया हो। पर फिर उसी रात, मैंने वह टिप्पणी फिर से पढ़ी—धीरे-धीरे, ध्यान से। और तब समझ आया कि उस आलोचना में एक संकेत था, एक मौका था, खुद को बेहतर बनाने का।
हम अक्सर तारीफ को सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। कोई कह दे, "बहुत अच्छा लिखा है," तो हम पूरे दिन उसी में डूबे रहते हैं। लेकिन जब कोई कहता है, "यह बात जमी नहीं ," तो हम असहज हो जाते हैं। जबकि सच यह है कि दोनों ही प्रतिक्रियाएँ ज़रूरी होती हैं। तारीफ हमें उड़ान देती है, और आलोचना हमें ज़मीन दिखाती है।
लेखन एक भावनात्मक प्रक्रिया है। हम जब लिखते हैं, तो सिर्फ़ शब्द नहीं रखते, अपना दिल रख देते हैं। इसलिए जब कोई उसे पढ़कर कुछ कहता है, तो वह सिर्फ़ टिप्पणी नहीं होती—वह हमारे आत्मिक प्रयास का मूल्यांकन होता है। अगर वह टिप्पणी ईमानदारी और सम्मान से की जाए, तो वह लेखक के लिए एक उपहार बन जाती है।
अब मुझे यह समझ में आ गया है कि प्रतिक्रिया केवल 'वाह!' या 'कमेंट' भर नहीं होती। यह एक लेखक के लिए दिशा होती है। और सबसे ज़रूरी बात यह है कि प्रतिक्रिया होनी चाहिए—चाहे जैसी भी हो। एक सच्चा लेखक जानता है कि हर प्रतिक्रिया उसके लेखन को परिपक्व बनाती है।
आज जब मैं किसी की रचना पढ़ता हूँ, तो कोशिश करता हूँ कि सच कहूँ—अगर कुछ अच्छा लगा तो बताऊँ, और अगर कुछ कमज़ोर लगा तो भी ईमानदारी से, पर सम्मानपूर्वक कहूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि एक लेखक को झूठी तारीफ़ से ज़्यादा ज़रूरत सच्ची प्रतिक्रिया की होती है।
"उम्मीद करता हूं कि आपको मेरा यह लेख पसंद आया होगा। यदि यह लेख उन लोगों के दिलों में, जिन्होंने लिखना छोड़ दिया है, दोबारा लिखने की थोड़ी भी उम्मीद जगा पाया हो, तो मैं इसे अपनी सफलता मानूंगा। अब आपसे विदा लेना चाहूंगा। मिलते हैं अगली कहानी में।"
यदि आप भी मेरी तरह लेखन और पठन के प्रति रुचि रखते हैं, तो इंस्टाग्राम(username- rohanbeniwal2477) पर मेरे साथ जुड़ने के लिए आपका स्वागत है।
लेखन केवल स्वयं से बात करना नहीं है। यह दूसरों तक पहुँचना है। और जब तक सामने से कोई उत्तर नहीं आता—चाहे वह सराहना हो या सुझाव—तब तक यह संवाद अधूरा रहता है।
इसलिए मैं पाठकों से कहना चाहता हूँ: अगर आप किसी की रचना पढ़ते हैं, तो कुछ कहिए ज़रूर—एक छोटा-सा "धन्यवाद" या एक सच्चा सुझाव। क्योंकि आपके शब्द किसी लेखक के अगले लेख की नींव बन सकते हैं।
और लेखकों से कहना चाहता हूँ: प्रतिक्रिया से डरो मत। हर टिप्पणी, चाहे वह तारीफ़ हो या आलोचना, तुम्हारे भीतर एक नई समझ जगा सकती है।