Tere ishq mi ho jau fana - 21 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 21

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 21

गुलाब के साए में , 

बारिश की फुहारें अब भी तेज़ थीं, लेकिन समीरा ने खुद को किसी तरह संभाला। उसके दिल की धड़कनें बेतहाशा तेज़ हो रही थीं। उसने बिना कुछ कहे अपना बैग संभाला और दुकान से बाहर निकलने लगी।

" रुको," दानिश की आवाज़ फिर आई।

वह ठिठक गई, मगर खुद को ज़बरदस्ती आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगी।

"बारिश बहुत तेज़ हो रही है," दानिश ने आगे कहा। "मैं तुम्हें कॉलेज छोड़ सकता हूँ।"

समीरा ने मुड़कर उसे देखा। उसकी बाइक दुकान के बाहर खड़ी थी, सीट पर हल्की बूँदें जमी हुई थीं। वह झिझकी, मगर फिर खुद को सख्त करते हुए बोली, "मैं खुद चली जाऊँगी।"

दानिश ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका लिया। "ऐसे भीगते हुए?"

समीरा ने अपने कपड़ों की ओर देखा—उसका दुपट्टा पहले ही बारिश में भीगकर भारी हो चुका था। रास्ते पर मुश्किल से कोई ऑटो या कैब दिख रही थी। उसने एक नजर फिर दानिश की बाइक पर डाली और गहरी सांस ली।

"ठीक है," उसने आखिरकार कहा, "लेकिन कोई गलतफहमी मत पालना। ये सिर्फ लिफ्ट है।"

दानिश हँस पड़ा। "बिलकुल। सिर्फ लिफ्ट।"

समीरा ने उसकी बाइक की पिछली सीट पर धीरे से बैठते हुए खुद को जितना हो सकता था, उससे दूर रखने की कोशिश की।

"तुम इतनी दूरी क्यों बना रही हो?" दानिश ने शरारत से पूछा।

"क्योंकि मैं चाहती हूँ," समीरा ने नज़रे चुराते हुए जवाब दिया।

दानिश ने कोई और मज़ाक नहीं किया। उसने बाइक स्टार्ट की, और तेज़ी से सड़क पर बढ़ा दी। बारिश के चलते हवा में ठंडक घुल चुकी थी, मगर समीरा के अंदर किसी और ही आग ने घर कर लिया था।

बाइक की गति तेज़ होते ही समीरा का संतुलन बिगड़ने लगा। उसका हाथ अनायास ही दानिश के कंधे पर जा टिका।

"अरे, संभलकर!" दानिश ने हल्के से कहा।

समीरा ने झट से अपना हाथ पीछे खींचा, मगर जब बाइक ने अचानक स्पीड ब्रेकर पार किया, तो वह खुद को संभाल नहीं पाई और मजबूरन उसकी पीठ पर अपना हाथ टिका दिया।

"अब इतनी भी दूरी अच्छी नहीं होती," दानिश ने हल्के मज़ाकिया लहज़े में कहा।

समीरा का चेहरा लाल हो गया, मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया।

बारिश अब कुछ हल्की पड़ने लगी थी। सड़क पर पानी की हल्की-हल्की बूँदें चमक रही थीं। हवा में गीली मिट्टी और गुलाबों की मिली-जुली खुशबू थी।

"तुम्हें बारिश पसंद है?" दानिश ने अचानक पूछा।

समीरा कुछ पलों के लिए चुप रही, फिर धीरे से बोली, "हाँ। बचपन से।"

"तो फिर भाग क्यों रही थी?"

"हर बार भीगना अच्छा नहीं होता," समीरा ने कहा।

"हर बार नहीं," दानिश ने उसकी बात दोहराई, "लेकिन कभी-कभी, जब बारिश अपने साथ कुछ नया लेकर आती है, तो भीग जाना चाहिए।"

समीरा ने उसके शब्दों को महसूस किया, मगर कुछ नहीं कहा।

बाइक अब कॉलेज के पास पहुँच रही थी। समीरा ने राहत की सांस ली, मगर साथ ही उसे एक अजीब-सा खालीपन भी महसूस हुआ।

"बस यहीं रोक दो," उसने कहा।

दानिश ने धीरे से बाइक रोकी। समीरा उतरी, अपने बालों से बारिश की बूंदें झटकने लगी।

"शुक्रिया," उसने संक्षेप में कहा।

"कोई बात नहीं," दानिश ने मुस्कुराकर कहा, "पर याद रखना, ये सिर्फ लिफ्ट नहीं थी।"

समीरा ने चौंककर उसकी ओर देखा।

"क्या मतलब?"

"मतलब, कि कुछ लम्हें सिर्फ लिफ्ट नहीं होते, वे एहसास भी होते हैं," दानिश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा और फिर बाइक स्टार्ट कर दी।

समीरा ने उसे जाते हुए देखा। उसके दिल की धड़कनें अभी भी तेज़ थीं।

शायद, यह सिर्फ बारिश नहीं थी… शायद, यह सिर्फ एक लिफ्ट नहीं थी… शायद, कुछ बदलने वाला था।

कॉलेज की घंटी बज चुकी थी, मगर समीरा अभी भी खाली क्लासरूम में बैठी थी। खिड़की के शीशों पर बारिश की बूंदें अब भी गिर रही थीं, मगर बाहर की हलचल धीमी हो चली थी। पूरे कॉलेज में सन्नाटा पसरा था, और सिर्फ कुछ दूर से किसी प्रोफेसर की आवाज़ गूँज रही थी।

समीरा ने अपनी हथेलियाँ मेज़ पर टिका दीं और गहरी सांस ली। लेकिन सांस के साथ ही दानिश की मुस्कुराहट उसके ज़ेहन में उभर आई—वही हल्की-सी मुस्कान, जो उसने बाइक पर कही थी:

"कुछ लम्हें सिर्फ लिफ्ट नहीं होते, वे एहसास भी होते हैं।"

समीरा ने झटके से अपनी आंखें बंद कर लीं, जैसे उस एहसास को अपने भीतर पनपने से रोकना चाहती हो। "नहीं! यह बस एक संयोग था," उसने खुद से कहा।

लेकिन क्या वाकई?

बारिश में वह पहले भी कई बार भीगी थी, लेकिन आज जो महसूस हुआ, वह नया था। दानिश के साथ बिताए मिनटों ने उसके भीतर अजीब-सी हलचल मचा दी थी।

उसने अपने भीगे दुपट्टे को ठीक किया और कोशिश की कि खुद को किसी और चीज़ में उलझाए। लेकिन दिमाग़ था कि बार-बार पीछे लौट रहा था—दानिश की शरारती बातें, उसकी गहरी निगाहें, और वो एहसास जब उसने अनायास ही उसके कंधे को थाम लिया था।

"तुम इतनी दूरी क्यों बना रही हो?"

दानिश की आवाज़ उसके कानों में गूँजी, और समीरा को खुद पर गुस्सा आने लगा।

"नहीं, समीरा! तुम इस बारे में और नहीं सोचोगी," उसने खुद को सख्ती से कहा।

उसने बैग खोला और किताबें निकाल लीं, जैसे पढ़ाई में ध्यान लगाकर इन सब भावनाओं को दबा सके। लेकिन आँखें पन्नों पर थीं और दिमाग़ कहीं और।

कभी-कभी इंसान अपने दिल को समझाने की कितनी भी कोशिश कर ले, मगर कुछ अहसास ऐसे होते हैं, जो तर्कों से नहीं, सिर्फ जज़्बातों से चलते हैं। और यही हो रहा था समीरा के साथ।

तुम यहां अकेले क्या कर रही हो?"

समीरा चौंक गई। यह आवाज़—

उसने जल्दी से नजर उठाई।

दरवाज़े पर वही खड़ा था—दानिश। भीगे बाल, हल्के नम कपड़े, और वही मुस्कान, जो उसकी बेचैनी को और बढ़ा रही थी।

"मैं... मैं बस कुछ पढ़ रही थी," समीरा ने हड़बड़ाकर कहा।

"अच्छा? किताब उलटी क्यों है?"

समीरा ने घबरा कर किताब देखी। सच में, वह उलटी थी! उसने झट से सीधी कर ली, मगर दानिश की हँसी उसे सुनाई दी।

"तुम्हें हँसी क्यों आ रही है?" उसने थोड़ा गुस्से में कहा।

"क्योंकि तुम खुद से झूठ बोलने की कोशिश कर रही हो, लेकिन सफल नहीं हो रही।"

समीरा ने उसकी बात अनसुनी कर दी और किताब में देखने लगी।

"तो क्या सोचा तुमने?"

"किस बारे में?"

"बारिश के बारे में, लिफ्ट के बारे में... और शायद, मेरे बारे में?"

समीरा ने जल्दी से किताब बंद कर दी और खड़ी हो गई।

"देखो, मैं इन सब चीज़ों पर ध्यान नहीं देना चाहती। यह सब मेरे लिए मायने नहीं रखता।"

"सच में?"

"हाँ।"

"तो फिर तुम अभी भी इस बारे में सोच क्यों रही हो?"

समीरा के पास कोई जवाब नहीं था। वह उसकी आँखों में देख रही थी, मगर कुछ कह नहीं पाई।

"पता है, समीरा," दानिश ने आगे कहा, "कुछ अहसासों से भागा नहीं जा सकता। जितना भागोगी, वे उतने ही तुम्हारे करीब आएंगे।"

समीरा ने नजरें चुरा लीं।

"तुम क्या चाहते हो, दानिश?" उसने धीरे से पूछा।

"कुछ नहीं। बस यह कि तुम खुद से झूठ मत बोलो।"

वह कुछ और कह पाता, इससे पहले ही घंटी बज उठी।

"तुम्हारी क्लास का टाइम हो गया। चलो, अब बहाने बनाने की ज़रूरत नहीं," उसने मुस्कुराकर कहा।

समीरा ने धीरे से सिर हिलाया और बैग उठाकर बाहर निकल गई।

मगर उसके कदम भारी थे।