एल्डरग्लेन के पुराने जंगलों के बीचोंबीच एक प्राचीन पत्थर का कुआँ था। गांव वाले हमेशा चेतावनी देते थे कि सूर्यास्त के बाद उस कुएं के पास मत जाना। कहा जाता था कि वो कुआँ फुसफुसाता है… और सुनता भी है।
लीना, जो शहर की रहने वाली थी और गर्मियों में अपनी दादी के गाँव आई थी, इन बातों को मज़ाक समझती थी। जब गाँववालों ने उसे उस कुएं की कहानियाँ सुनाईं, तो वह हँस पड़ी, “फुसफुसाता कुआँ? अब कोई भूतिया नल भी होगा क्या?”
लेकिन दिल के किसी कोने में जिज्ञासा जाग उठी।
एक शाम, जब अंधेरा धीरे-धीरे जंगल पर छा रहा था, लीना टॉर्च लेकर उस पुराने रास्ते पर निकल पड़ी। जैसे-जैसे वो कुएं के पास पहुंची, हवा ठंडी होती गई, और जंगल की आवाज़ें जैसे मर सी गईं। कोई चिड़िया, कोई झींगुर तक नहीं।
वो कुआँ पुराना और जर्जर था, काई और बेलों से ढका हुआ। लीना ने झाँककर नीचे देखा — सिर्फ अंधकार। तभी उसे आवाज़ सुनाई दी।
“लीना…”
वो चौंकी। “क…कौन?” उसकी आवाज काँप रही थी।
“बचाओ… मुझे…” फिर से वही धीमी, थरथराती आवाज।
उसने टॉर्च की रोशनी अंदर डाली, लेकिन रोशनी गुम हो गई। उसने एक पत्थर उठाकर नीचे गिराया — न कोई आवाज़, न गूंज।
फिर एक साथ कई आवाजें उभर आईं।
“और पास आओ…”
“ठंड लग रही है…”
“भूख लगी है…”
वो डर के मारे पलटी, लेकिन उसके पैर जम चुके थे। कुएं से काले साये बाहर निकलने लगे, और उसके पैरों को जकड़ लिया। वो चिल्लाई, लेकिन साये उसे नीचे खींच लाए — अंधेरे में।
जब उसकी आँख खुली, वो कुएं के तल में थी — पर वो कुआँ नहीं था, एक अजीब सी गुफा थी। वहाँ सैकड़ों सफेद चेहरों वाले लोग खड़े थे, आँखें सूनी, और होंठों से दर्द भरी फुसफुसाहटें निकल रहीं थीं।
“हमसे जुड़ जाओ…” वो बोले।
लीना भागी, लेकिन रास्ता कहीं खत्म नहीं हो रहा था। हर ओर वही गुफा, वही मरे हुए लोग।
ऊपर, दिन बीत गए। उसकी दादी ने पुलिस को बताया, खोजबीन हुई — लेकिन कुएं में कुछ नहीं था। न गहराई, न कोई सुराग।
फिर, गाँव के और लोग भी सुनने लगे…
फुसफुसाहटें।
और धीरे-धीरे… कुआँ उन्हें भी बुलाने लगा।
भाग 2: वापसी का रास्ता
गाँव में अजीब घटनाएँ बढ़ने लगीं। लोग रातों को जागकर पसीने-पसीने हो उठते। कुछ को सपनों में कुआँ दिखता — वही पत्थरों से बना, फुसफुसाते सायों से भरा। कई लोगों ने दावा किया कि उन्होंने लीना को देखा, उसकी आँखें अब काली थीं, और उसकी आवाज़ बाकी सायों जैसी — धीमी, पर टपकती हुई।
दादी, सावित्री, जानती थी कि कुछ भयानक हुआ है। ये वही कुआँ था, जिससे उसकी माँ ने भी सालों पहले उसे दूर रहने को कहा था। लेकिन उसने कभी परवाह नहीं की थी। अब उसकी अपनी नातिन गायब हो गई थी।
सावित्री ने पुराने बक्से से एक जीर्ण-शीर्ण डायरी निकाली — उसकी माँ की। उस डायरी में कुएं के बारे में विस्तार से लिखा था:
> “कुएं के नीचे एक और दुनिया है। वो अंधेरा केवल साया नहीं — एक भूख है, जो आत्माओं को खींचती है। कोई अगर अपनी इच्छा से अंदर चला जाए, तो उसे बचाया नहीं जा सकता। पर अगर किसी मासूम को खींचा जाए — तो एक रास्ता बचता है…”
डायरी में एक अनोखी विधि का ज़िक्र था — एक पुराना मोहरबंद दीपक, जिसे कुएं के पास जलाकर उसकी असलियत दिखाई जा सकती थी। वो दीपक मंदिर की टूटी दीवारों के पीछे छुपाया गया था, ताकि कोई गलत हाथों में न पड़े।
सावित्री ने हिम्मत जुटाई। अगली शाम, मंदिर की ओर गई, दीपक निकाला, और कुएं के पास पहुँची। चारों ओर घना अंधेरा था, पर उसका दिल रोशनी से भरा हुआ था। उसने दीपक जल