Books and Us column in Hindi Book Reviews by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | पुस्तकें और हम कॉलम

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पुस्तकें और हम कॉलम

स्तम्भ : पुस्तकों की दुनिया से 

देखने का नजरिया बदलती किताबें

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यह स्तम्भ इसलिए लिखता हूं की अच्छे लेखक और अच्छी किताबें सभी तक और दूर तक पहुंचे. प्रारम्भ से ही यह रहा की हम लेखक और किताब को महत्व देंगे न की अन्य बातों को इसीलिए मेरे स्तम्भ में लेखक का नाम नंबर होता है जिससे आप सीधे बात करके किताब खरीद सकें. और किताब पसंद है तो लेखक से बात कर सकें. 

  इस बार की किताबों में कथा साहित्य, यात्रा वृतांत और काव्य संग्रह हैँ.

(1.) लावन्यदेवी,राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली :- बेहतरीन लेखिका , समाज सेविका और अच्छी इंसान कुसुम खेमानी की बारीक़ बातों को समझने और संवेदनाओं को उभारने की क्षमता बेजोड़ है. वह उन कोनो, जगहों से अपनी बात कहती हैँ जिसे हम अक्सर नजरअंदाज करते हैँ.उपन्यास मारवाड़ी परिवार और संस्कृति के साथ साथ एक स्त्री की यात्रा को बताता है. ऐसी यात्रा जहाँ वह कोई विशेष ध्यान नहीं पाती न ही कोई खास गुण उसमें है पर फिर भी वह किस रोमांचक, सहज और नए दृष्टिकोण से पूरे परिवार को ही नहीं बल्कि व्यापार को भी संभालती है,यह कथा की धुरी है. एक मुश्किल से निकलती है तो दूसरी मुश्किल. असहयोग भी मिलता है पर वह विरोध को छोड़ सकारात्मक रुख अपनाती है और तिनके जैसे भी सहयोग ले अपनी मेहनत, लगन और सबसे बढ़कर आशावादी दृष्टिकोण से आगे बढ़ती जाती है. कुसुम जी के पात्र रोते या अपनी लाचारी की नुमाइश नहीं करते बल्कि उसे एक नई चुनौती मान उसी में से राह निकाल लेते हैँ. यह बहुत बड़ी खूबी है. भाषा,लेखिका का विटी अंदाज, सहज घटनाक्रम आपको बांधे रखता है. पठनीय कृति है. सुनने में आया है की जल्द दो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जा रही हैँ.

(कुसुम खेमानी, 9903508796)

 

(2.)आँखों की हिचकियाँ :- काव्य,पुष्पिता अवस्थी,नीदरलैंड्स , डायमंड बुक्स, दिल्ली,

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 आंसुओं का इतना नया शब्द प्रयोग मैंने पहली बार सुना, पढ़ा. यह कविता इनसे भारतीय भाषा परिषद,कोलकत्ता,और अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय,भोपाल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मैंने रूबरू सुनी है.

पंक्तियाँ देखें,' मेरे बारे में तुम/ इतना सोचते हो/ उससे कहीं अधिक मैं/ अपने में जीती हूं/ तुम्हारा तुम"

यह प्रेम कविता की गहराई है जहां मैं ,तुम हो जाता है और तुम , मैं बन जाता है।

कुछ और बानगी, "तुम मेरे मन की ऋतु हो/ मुझ में ही खुलती हो/ मिलते हो, झगड़ते हो और/ समा जाते हो/ इसीलिए तुम मेरा प्रेम भी हो/

 और पीड़ा भी (मेरी तरह) ।

" एक लड़की के भीतर जब /उगता और उमकता है प्रेम/ नवांकुर बीज की तरह/ वह कविता की देह छूती है/ अधरों पर गीतों के बोल रखती है (एक लड़की के भीतर) यह एक बेहतरीन प्रेम कविता है।बेहद नाजुक ढंग से आज के लहूलुहान समय में पुष्पिता जी प्रेम की कोमलता और नैसर्गिकता को फिर से हमारे हृदय में उगाती हैं। दअरसल अच्छे शब्द,अच्छी सोच से और अच्छी सोच अच्छे व्यक्तित्व से निखरती है।लड़की के बिंब से वह सम्पूर्ण मानवता की बात करती हैं।कितना अच्छा हो यदि सभी के होठों पर गीत होते!!

           "अगर चूम सको तो__ / चूमो/ मेरी हथेली / जिसमें बसी है____ प्रणयोमुखी स्पर्श _शक्ति

चूमो मेरी मुट्ठी/ जिसमें सुरक्षित है___

मेरा तुम्हारा समय "। (देहात्म का आव्हान)

क्या बढ़िया बात कहती हैं वह जहां स्त्री पुरुष अलहदा ,विरोध में नहीं बल्कि पूरक हैं।एक दूसरे के साथ हैं। यह भाव, अनुभूति की काव्य धारा हमारे अंदर बेहद आत्मीय और अपनी प्रीत के साथ होने के अहसास को जगाती है।

बेहतरीन और उम्दा कवयित्री हैँ पुष्पिता अवस्थी. आपके संग्रह में नए बिम्ब,प्रतीक और उससे बढ़कर कई सामान्य शब्दों के अनूठे प्रयोग और उनके अर्थ हमारे मन मस्तिष्क को एक संपूर्णता प्रदान करते हैं.मन और दिल की जरूरत है अच्छी कविताएं इसे कोई रोटी, कोई सुविधा,कोई लग्जरी पूरी नहीं कर सकती. वह अच्छा साहित्य,कविताएं,उम्दा लेखन ही हमें देता है।

 

(3) बहुजन, उपन्यास, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली :- दलित साहित्य जगत, हालांकि मैं ऐसे विभाजन के पक्ष में नहीं हूं, में शरण कुमार लिम्बाले अपनी आत्मकथा अक्करमाशी के हिंदी अनुवाद से चर्चा में आए. जिसमें बेबाकी और बिना किसी के प्रति कड़वाहट के आपने दलितों में भी अति पिछडी महार, वाल्मीकि आदि जातियों की जीवंत स्तिथि रखी है. ईमानदारी से कुबूल किया है की, "हाँ, मेरे पास पिता का नाम नहीं है." 

अभी उनके साथ एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्टी, अक्टूबर चौबीस,में गोवा विश्वविद्यालय में था. बातचीत हुई अनफिलटर्ड,सहज इंसान लगे जो अपनी लोकप्रियता और डिमांड से बहुत खुश है.परन्तु थोड़ा सा ध्यान देना होगा की आपको देखकर युवा, विशेषकर पाठक वर्ग प्रेरणा लेता और सीखता है.

बहुजन उपन्यास देश की वर्तमान दशा और दिशा पर बहुत तीखी और व्यंग्यात्मक आख्यान है. सभी वर्ग दलित,सवर्ण, बाबा,छोटे मोटे राजनैतिक कार्यकर्ता, गुंडे और भारत नगर जैसी एक बस्ती के माध्यम से शरण कुमार वह जादू रच देते हैँ की आपके दिमाग़ की खिड़कियां खुल जाती हैँ.कई संवाद जैसी वाक्य सीधे मर्म पर चोट करते हैँ.

" झोपड़पट्टी के बच्चे अगर पढ़ने लगे तो हमें गुंडे कैसे और कहां से मिलेंगे? "

" लोग इकट्ठे ना आए इसलिए हर एक जाति में दीवाने खड़ी की जानी चाहिए. " लोकल नेता अगलगे ने कबूतर खाना साफ किया,बंटी ने कबूतरों का पानी बदल दिया और कलशेट्टी कबूतरों के सम्मुख दाने डाल रहा था. " 

    बड़ी बारीकी से शोध कर तथ्य जुटाकर यह उपन्यास रचा गया है. किस तरह कब्जे के हिसाब से मंदिर, मस्जिद रातो रात उग आते हैँ, इसका बहुत रोचक विवरण है.रोमांस, देह की भूख के कुछ दृश्य हैँ जो भाषा का तीखापन और यथार्थ चित्रण से अच्छे बन पड़े हैँ क्योंकि मुख्य धारा से लम्बे समय से दूर रहे वर्ग के अच्छे लेखक ने लिखें हैँ. उपन्यास में लेखक की पीड़ा, छटपटाहट,बेबसी बराबर झलकती है की सब कुछ आँखों के सामने हो रहा पर फिर भी कोई सही और गलत नहीं कर रहा. सभी अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैँ. यह प्रश्न उठता है फिर से की हम कहाँ जा रहे? और इसका अंत क्या होगा? लेकिन इन्हीं प्रश्नों से प्रेमचंद, राही मासूम रजा, आधा गांव, चंद्रकांता, कथा सत्तीसर,चित्रा मुदगल, जगदम्बा बाबू गाँव आ रहे हैँ,दो चार होते रहे हैँ.पर हल नहीं मिला. शायद हल है भी नहीं बल्कि यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें सभी को मात्र इतना योगदान देना है की कड़वाहट कम करनी है और प्यार बाँटना है.

उपन्यास में कुछ भाषागत त्रुटियाँ हैँ जिससे दो दृश्य जुड़ जाते हैँ जबकि वह अलग अलग काल के हैँ. इसके अलावा अनुच्छेद समाप्ति पर नया घटनाक्रम है तो वह गैप देकर और कुछ चिन्ह के माध्यम से 

(8308307878,शरण कुमार लिम्बाले )

 

(4.)संदिग्ध,कथा संग्रह, शिवना प्रकाशन, सीहोर,:- एंटी हीरो या खल पात्रों को लेकर कथा लिखने के कई खतरे हैँ.क्योंकि पूरा कथा का विधान बदलता है दूसरे अन्य पात्र प्रभावित होते हैँ, तीसरे लेखक के अनुभव और साख भी दांव पर लगते हैँ. क्योंकि जो लिखा जा रहा उसका गहन अनुभव और तजुर्बा होना चाहिए. तेजेंद्र शर्मा की यात्रा के नई सदी के दौर का मैं गवाह हूं. अपने अनुभव इक्क्ठे करते हैँ, खूब घूमते हैँ और किसी भी वाद विवाद से दूर रहते एक खुशमिजाज व्यक्ति हैँ.राजेंद्र यादव जी के बहुत नजदीक रहे. इसमें ड्यूटी फ्री शॉप और इनके एयरलाइन की नौकरी का भी हाथ रहा.

प्रवासी हिंदी जगत में जिन चंद लोगों ने जगह बनाई है उनमे तेजेंद्र शर्मा प्रमुखता से शामिल हैँ. संदिग्ध कहानी ऐसे व्यक्ति के छल, प्रपंच को बताती है जो अपनी बेगम से पीछा छुड़ाना चाहता है.वह एयरपोर्ट पर यात्रियों की जांच विभाग से संबंधित है तो वह आतंकियों की सूची में अपनी बेगम और दो बच्चों की मां का नाम डाल देता है। एक खल पात्र जो पूरी तरह अपना स्वार्थ देखता है और रंगरलियां मनाता है।एक नई जमीन की कहानी जहां लेखक नेगेटिव मानसिकता की पड़ताल करता है। अंतिम संस्कार का खेल एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। किस तरह छोटी छोटी बातों को हम लेट इट गो करते हैं पर वही बड़ी जरूरी होती हैं अन्य छोटे दिल के व्यक्ति के लिए।

कुछ कहानियां कोविड के समय लिखी गई है,वह सामान्य हैं। रंग बदलेगी जिंदगी असद और आमना की कहानी है जहां बड़ी बारीकी से यह बात छनकर आती है कि जिसे आधिपत्य या ड्राइविंग अधिकार मिलता है वह उसका दुरुपयोग करता ही है,चाहे वह स्त्री ही क्यों न हो। मुस्लिम परिवेश के घर परिवार पर लिखी कहानी असरदार है जो पुरुष की बेबसी बयां करती है।

      हिंदी जगत में ऐसे कम ही लेखक हुए हैं जो नेगेटिव या कहें मानवीय कमियों को लेकर यथार्थ के धरातल पर कहानियां बुनते हैं। दिलचस्प बात है लेखक कहीं भी उपदेश या ज्ञान नहीं देता। पाठक सोचने पर मजबूर होता है,मानो खुद ही सामने पात्र है।शिवना नया प्रकाशन है एक लेखक का पर उम्दा ढंग से पुस्तक प्रकाशित की है।

 

(5) गुलाबजान और अन्य कहानियां,डॉ.प्रभाकर शुक्ल, 9454054960, शतरंग प्रकाशन,लखनऊ,8787093085

-------------------------------------------- किस्सागोई,थोड़ी कल्पना और बहुत सारे यथार्थ के साथ यह कहानियां और उनके पात्र अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करते हैं। प्रभाकर शुक्ल की बोली,बानी में ठेठ देसी लहजा और अपनापन झलकता है वही कहानियों में भी नजर आता है। एक सामान्य ,तटस्थ व्यक्ति किस तरह तवायफ स्त्री की संवेदनाओं से जुड़ता है यह गुलाबजान ,लंबी कहानी,का सार है। इसे पढ़ते हुए मुझे कई बार रेणु जी की मारे गए गुलफाम की याद आई।पर इसका शिल्प और संदर्भ बिल्कुल हटकर लिया गया है। कुछ दृश्य संवादों के माध्यम से उभरते हैं।तो कुछ जगह पृष्ठभूमि का जीवंत चित्रण कहानी से पाठकों को बांधकर रखता है। एक बेजोड़,सम्पूर्ण कहानी है जो आपका तवायफों के प्रति नजरिया बदल देगी।

अन्य कहानियां महापात्र,संगिनी,जिया वापस आ जाओ, पलटन अपने शिल्प और कथ्य की मजबूती से आकर्षित करती हैं।चार दशकों से अधिक से डॉक्टरी कर रहे प्रभाकर शुक्ल एक समर्थ कथाकार के रूप में उभरकर सामने आते हैं। जहां कुछ लोग फार्मूले पर चलकर बनावटी कहानियां लिख रहे वहीं प्रभाकर शुक्ल की कथाओं में अनुभवों और गल्प का बेहतरीन सम्मिश्रण है।

डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान ही बनारस में पत्रकारिता से जुड़े थे।कुछ फीचर्स लिखते थे तो जेबखर्च निकल जाता था। मुझे लगता है वह अनुभव और दृष्टि उनकी रचनाओं को खास बनाती है। एक सशक्त रचनाकार जो तमाम वादों से अलग मानवीयता की बात करता है। सबसे बड़ी बात कई कहानियों में मुस्लिम परिवेश और पात्र हैं जिनके साथ रचनाकार का रवैया कोई विशेष नहीं बल्कि सभी पात्रों जैसा ही है। यह खूबी इन्हें एक बेहतर इंसान बनाती है।क्योंकि अनेक "युवा" लेखक (जो पचास, साठ की वय के हैं)मुस्लिम पात्र आते ही चौकन्ने और विशेष रूप से एक तरफ झुक जाते हैं,यह चीज विभाजन पैदा करती है और पाठकों के मन में जुजुगसा, कोफ्त की वही घिसी पिटी लीक। यह कहानियां इन बंधनों से मुक्त है। यकीनन आपको एक खूबसूरत दुनिया में ले जाती हैं।

 

(6 )दस्तक, अलका गुप्ता,इंक पब्लिकेशन,प्रयागराज :_ युवा लेखिका अलका गुप्ता का यह तीसरा काव्य संकलन है। इसमें सत्तर कविताओं में विविध विषय हैं। नए बिंब हैं जैसे कुर्सी,मुखौटे, तस्वीरें टाइम मशीन हैं। कुछ विषय परिवार,स्त्री,प्रेम, खुशी,अवसाद,सपने और आकांक्षाएं हैं लेकिन उन पर लिखने में कुछ नया सोचा गया और मेहनत की गई। 

"कुछ मुखोटों का लगा रहना ही अच्छा है/ छुपी रहे इसमें सच्चाई तभी सुरक्षा है"(मुखौटे)।

आधुनिक कर्मठ पत्नी की तो एकदम तस्वीर बना दी है,"हो एक सफलतम नारी कार्य क्षेत्र में परंतु तुम्हारा /कभी-कभी मेरे लिए मासूम बना अच्छा लगता है"। अलका आज की स्त्री की सशक्त आवाज बनती हैं जब वह कहती हैं,"जिस महक को लेकर आई इस दर /वही खुशबू महसूस करूं पिया फिर/

फिर वही लम्हे जीना चाहती हूं/ हां !अब अपने लिए जीना चाहती हूं" ।

यह जिम्मेदार स्त्री है जो परिवार,नौकरी और अपने अरमानों को साथ लेकर चल रही है।स्त्री विमर्श के ढोंग से आजाद और समझदार नारी। कुछ कविताएं सामान्य है वह संग्रह को थोड़ा कमजोर करती हैं।

 एक संभावनाशील लेखन आगे और पल्लवित हो इसके लिए उन कोनो,गलियारों और कच्ची पगडंडियों पर जाना होगा जहां स्त्री जाने से डरती है उस डर को निकालना होगा। उस पर लिखना होगा।

(अलका गुप्ता: 8920425146,दिल्ली)

 

7. बोधि प्रकाशन का नया प्रयोग !!(9660520078)

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बोधि प्रकाशन उन चुनिंदा प्रकाशनों में शामिल है जो पाठकों और हिंदी के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं। अच्छी, आकर्षक कवर,अच्छे कागज पर किताब आपको देते हैं वह भी डेढ़ सौ से दो सौ रुपए के अंदर। किताबों के खिलाफ बाजार हमेशा रहा है। क्योंकि व्यक्ति पढ़ने लगा तो विचारवान होगा।विचारों से वह आगे सोचेगा और फिर बाजारवाद का चक्रव्यूह समझ भी लेगा और दूसरों को आगाह भी करेगा। तो इसलिए किताबें पढ़ने का समय नहीं है,किताबें महंगी होती हैं जैसा दुष्प्रचार होता है। विदेशों में उसका हल निकला मिनी पुस्तकों के रूप में। जिसमें चुनिंदा अच्छी कविताएं, लघु कथाएं,ग़ज़लें, गीत,डायरी अंश ,लघु नाट्य होते हैं। पाठक उन्हें आसानी से जेब में भी रखकर ले जा सकता है।पॉकेट बुक्स की फॉर्म में साहित्य। और यह विधा पुस्तकों और भाषा के प्रति रूचि बढाने में सहायक हुई विदेश में।

यहां बोधि प्रकाशन के सीईओ मायामृग, मूल नाम संदीप,मेरे नाम राशि ने पहल की।बीस ऐसी लघु पुस्तिकाएं निकाली जिनमें सभी विधाएं हैं। उनमें से तीन के कुछ अंश यहां दे रहा हूं।

"सच तो यही है कि/ बाजों का पेड़ बनना/ उनकी संवेदनशीलता पर/ निर्भर होता है .(जीवन के जंगल में, रोहित रूसिया)

"अब कहां वह बात /जो थी/ शुरुआती कविताओं में/तब में किस दर्जा/जुड़ा हुआ था लोगों से /कटा हुआ था कवियों से. (यथासंभव, मनमीत) 

तीसरे कवि भी हम सबकी बात कहते हैं,"अति उदारता भी/ समझ ली जाएगी मूर्खता/ सरलता को माना जाएगा/ व्यक्तिगत कमजोरी /

सामाजिक सेवा को निठल्ले पन से जोड़ा जाए/ समझ जाए/ बाजार घर तक पहुंच चुका है.

  इन पुस्तिकाओं का मूल्य मात्र पांच रुपए है।और फोन करके घर बैठे भी अन्य किताबें मंगाई जा सकती हैं।

 

 

8. घर की औरतें और चांद, रेणु हुसैन का नया काव्य संग्रह है।इसमें वह कई नए प्रयोग करती हैं। चाहे प्रेम मुक्ति की ओर श्रृंखला की कविताएं हो,जिनमें वह प्रेम के अनछुए आयाम रखती है। कुछ शहरों को लेकर के लिखी गई कविताएं हो। इनमें वह उन शहरों की गहराई,तीव्रता और ऐतिहासिकता को नए ढंग से सामने लाती है। इसमें लखनऊ,उदयपुर, जोधपुर, दिल्ली से लेकर लंदन, इटली, सीरिया तक की यात्रा आप कर सकते हैं।वह एक समर्थ कवयित्री हैं। यह तीसरा संग्रह पाठकों और आलोचकों की दृष्टि में एक विशेष अर्थ रखता है। परिपक्व होना किसे कहते हैं यह इस संग्रह की अधिकांश कविताओं में झलकता है। जहां बिंब प्रतीक और भाषा मिलकर के ऐसा जादू रचते हैं की पढ़ने वाला उन शब्दों की पगडंडी लेकर उस जगह पहुंच जाता है जहां वह शब्द उसे पुकार रहे होते हैं। रेनू हुसैन के आगामी संग्रहका इंतजार रहेगा।

         

इस बार की किताबों की दुनिया लिखते हुए मन थोड़ा उदास रहा। क्योंकि पहलगाम में निर्दोष लोगों को चुन चुनकर मारा गया।फिर भारत ने समझ बुझकर कार्यवाही की। ब्लैकआउट, रोज युद्ध की खबरें यही सुर्खियां बन रही। पाकिस्तान गलती नहीं बल्कि जघन्य अपराध है जो अंग्रेज चंद भारतीयों की पद लोलुपता में कर गए। मुझे आश्चर्य होता है महात्मा गांधी इस दो राष्ट्र पर सहमत क्यों और कैसे हुए? जब असहयोग हुआ,लाठियां खाई गईं, जलियांवाला जैसे अनेक कांड हुए तो फिर देश के बंटवारे का फैसला लेने वाले गांधी,नेहरू,जिन्ना क्यों हुए? 

इस पर विचार किया जाना चाहिए। पुस्तकों का यह कॉलम आप सभी पसंद कर रहे इसके लिए बधाई।

 

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(डॉ.संदीप अवस्थी,जाने माने आलोचक,कुछ पुस्तकें और देश विदेश से पुरस्कृत हैं।

संपर्क :_ 7737407061,8279272900,राजस्थान भारत)