In Sanatan Dharma, Karma, Birth, Body, Past & Future in Hindi Astrology by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | सनातन धर्म में कर्म जन्म काया के अतीत भविष्य

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सनातन धर्म में कर्म जन्म काया के अतीत भविष्य

सनातन धर्म के मूल सिद्धांतो में धर्म क़ो जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण मानते हुए मान दंड एवं नियमों क़ो ख्याखित करते हुए स्पष्ट किया गया है जिसके अनुसार ---

(अ )-धर्म -
नैतिकता एवं कर्तव्य के रूप में जीवन कि अनिवार्यता के लिए बताया गया है!
(आ ) -कर्म --
कर्म एवं परिणाम क़ो ही सनातन में जन्म जीवन का आधार बताया गया है!
(इ )-संसार - 
जन्म और मृत्यु का चक्र जो काल समय के साथ कर्म एवं परिणाम के आधार पर सत्य और निरंतर चलता रहता है!
(ई )-मोक्ष -- 
जन्म जीवन एवं काल समय कि निरंतरता से सदकर्मों के परिणाम स्वरूप काया माया के अंनत चक्र से मुक्ति!
(उ )-ब्रह्म -- 
सर्वव्यापी ब्रह्माण्ड का नियंता नियत्रक दृष्टि एवं ब्रह्माण्ड एवं सृष्टि के कण कण का सत्य सत्यार्थ!
 
सनातन में गौ, गीता, गंगा,गायत्री, एवं प्रणावमन क़ो ही धर्म कि धुरी के रूप में स्वीकार किया गया है!
(ऊ )-यज्ञ --
दान एवं बलिदान 
(अं)-दान - 
तपस्या है
1-ब्रह्म सत्य है!
 2-आत्मा अजर अमर है! 
3-आत्मा का अंतिम लक्ष मोक्ष है!
योग से मोक्ष है के विभेद 
(क )-समाधि!
(ख़) -सम्प्रज्ञात समाधि! 
(ग )-असंप्रतिज्ञाती समाधि!

भगवान शिव के छः प्रकार बताए गए है 
1- साष्ट्रि (ऐर्श्वर)
2-सलोक्य(लोक प्राप्ति सारूप) 3-(ब्रह्म स्वरूप )
4-सम्य -(ब्रह्म जैसी समानता )

5-लीनाता या समुज्य (बीह्मलीन भक्ति सागर में समाधिस्त होकर ब्रह्म में लीन हो जाना )
भक्ति समाधि 3प्रकार कि है 
1-भक्ति समाधि 
2- योग समाधि 
3- ज्ञान समाधि 

धर्म आचरण में 
धर्म प्रचार करना, धर्म कार्य करनाआवश्यक है, जिसमे व्रत, सेवा,दान, यज्ञ,प्रांश्चित दीक्षा आदि है!
संध्या वंदन करना अपने कर्तव्य दायित्वों का निर्वहन करना तीर्थ करना पुण्य कर्म धर्म ग्रंथो का पाठ करना सामूहिक उत्सव संस्कार ही समय समाज का दर्पण है

सनातन धर्म एवं उसके सिद्धांतो कि प्रसंगिगता प्रमाणिकता जन्म जीवन काया कर्म के परिपेक्ष में बहुत संक्षिप्त में प्रस्तुत करने का एक अल्प प्रयास है वास्तव में सनातन के आत्मा अजर अमर है और कर्मानुसार कया ग्रहण करता रहता है आदि और अनंत ब्रह्माण्ड में कर्म फल क़ो भोगता रहता है ज़बकि उसके हर जन्म जीवन का उद्देश्य आत्मा का अंतिम सत्य मोक्ष ही होता है जिसके पाने कि छटपटांहट में जन्म पर जन्म लेता जाता है

निश्चित रूप से जन्म जीवन एवं अतीत कि काया कर्म एवं भविष्य के काया कर्म के निर्धारण का सनातन शस्त्र भी होना चाहिए क्योंकि मनुष्य बहुत जिज्ञासु प्रवृति का प्राणी होता है उसे अपने अतीत वर्तमान क़ो जानने और जन्म जीवन के साथ उसे समेट लेने कि प्रबल इच्छा होती है यही कारण है कि सनातन धर्म ज्योतिष ग्रंथो में मनुष्य कि इस जिज्ञासा क़ो उचित सम्मान देते हुए अनेक ग्रंथो कि रचना कि गयी है जिसमे एक दुर्लभ ग्रन्थ है (कर्मदीपाक ) एक ऐसा ग्रन्थ जिसके द्वारा किसी भी प्राणी के अतीत के जन्मो जन्मों क़ो जाना एवं पहचाना बहुत साधारण बात है!

मुझे इस दुर्लभ ग्रन्थ के विषय में पता चला कि मर्ज़ापुर के दक्षिणाआंचल के घनघोर जंगलो में महात्मा जी के पास कर्म दीपाक अद्भुत एवं अनुपलब्ध ग्रन्थ उपलब्ध है मैंने महात्मा के कुल परिवार का पता किया और उनके गाँव जिसे महात्मा जी ने वाल्यकाल मे ही छोड़ दिया था से कर्मदीपाक ज्योतिष ग्रन्थ स्वयम के अध्ययन हेतु लाने का अनुरोध किया महात्मा जी के कुल परिवार के नवयुवकों ने मुझे महात्मा जी से पुस्तक मांगकर दो महीने के लिए दिया जिसके हर शब्द क़ो उसके अर्थ के साथ पढ़ने जानने समझने कि कोशिश करने लगा और समझा भी और अजर अमर आत्मा कि कर्मानुसार मोक्ष जन्म जीवन चक क़ो समझने कि कोशिश करने लगा जो सफल हुआ सनातन के इस सिद्धांत कि कसौटी सर्व प्रथम स्वंय के ही जन्म जीवन चक्र के अतीत क़ो जानने कि कामयाब कोशिश किया मुझे मेरे पिछले कई जन्मों के जन्म काया का ज्ञात हुआ जिसको मैंने अपने वर्तमान जीवन के सापेक्ष समानता एक रुपता क़ो जानने समझने कि कोशिश किया पता चला कि जलीय मछली से लेकर वणिक परिवार के मेरे पिछले जन्मों का प्रभाव इस जन्म कि काया कर्म में बहुत स्पष्ट परिलाक्षित हैं तब मुझे सनातन धर्म के आत्मा अजर अमर एवं कर्मर्जित जन्म जीवन मोक्ष अभिलाषा में काल चक्र कि
भीषण एवं कष्ट दायी आदि अंनत यात्रा क़े सनातन धर्म सिद्धांत पर आस्था दृढ एवं विश्वास और मजबूत हुआ!

प्रश्न यह हैं कि यदि वर्तमान जीवन से अतीत के जन्म जीवन एवं काया कर्म क़ो स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है तो वर्तमान कि काया कर्म से भविष्य के जन्म जीवन क़ो जानना सम्भव है क्या?
उत्तर बहुत स्पष्ट है हाँ इस सन्दर्भ में भी बहुत गंभीर वैज्ञानिक एवं भारतीय शास्त्रों का अध्ययन मैंने किया जिसमे मैंने पाया दुनियां के सभी धर्म पैरा लाइफ में विश्वास रखते है लेकिन किसी प्राणी क़े वर्तमान से उसके भविष्य के जन्म क़ो परिभाषित करने में सक्षम नहीं है यह क्षमता मात्र सनातन धर्म ग्रंथो एवं पद्धतियों सिद्धांतो द्वारा ही जाना जा सकता है

सनक,सननंदन, सनातन,और सनतकुमार चारो ने नारायण श्री हरि के द्वारपालो क़ो श्राप दिया कि तीन जन्मों तक राक्षस कुल में जन्म लेंगे तदानुसार हिराणाक्ष हिरणय कश्यपु पहले जन्म सतयुग में रावण कुम्भकरण दूसरे जन्म त्रेता में दंतवक्र और शिशुपाल तीसरे जन्म द्वापर में राक्षस कुल में जन्म लिए लेकिन उन्हें तीनो राक्षसी जन्मों में सनक कुमारो के श्राप का स्मरण नहीं था अर्थात उन्हें अपने अतीत एवं वर्तमान दोनों का ज्ञान नहीं था
सनातन धर्म में वर्णित दस कर्मो में श्राद्ध कर्म बहुत महत्वपूर्ण कर्म है जो एक ऋण के रूप में कुल परिवार के पुरुखो क़े लिए चुकाना होता है यह विधान सनातन का बहुत महत्वपूर्ण है जो जन्म जीवन के कर्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वहन का नैतिक बोध करता है! सनातन धर्म में ज़ब कोई मनुष्य शरीर का त्याग कर देता है तो वर्णनानुसार श्राद्ध कि व्यवस्था दी गयी है चुंकि सनातन धर्म में जाती प्रथा कि व्यवस्था कभी नहीं थी कर्मनुसार वर्ण व्यवस्था थी जिसके अनुसार सभी वर्णों के लिए संस्कारिक व्यवस्थाएं दी गयी है जिसके अनुसार ब्राह्मण क़ो बारह दिनों में क्षत्रिय क़ो तेरह दिनों में और वैश्य एवं सूद्र क़ो सोलह दिनों में श्राद्ध करने कि व्यवस्था दी गयी है! इसी प्रकार सनातन धर्म में प्रत्येक वर्ण क़ो यज्ञयोपवित धारण करने कि व्यवस्था दी गयी है जिसके अनुसार ब्राह्मण क़ो सूत क्षत्रिय क़ो रेशम वैश्य क़ो मुज एवं सूद्र क़ो चमड़े का यज्ञयोपवित धारण करने का विधान दिया गया है!
(कांधे मुज जनेऊ साधे ) लगभग हर सनातन धर्मवलम्बी जानता है इसका अर्थ विल्कुल यह नहीं है कि हनुमान जी भी वर्ण विशेष में परिभाषित है वह तो स्वंय भगवान शिव के ग्यारहवे रुद्रांश है शिवांश भुत प्रेत भालू बानर नर आदि सभी है सनातन में हनुमान जी का चिरंजीवी अवतरण शिवांश के रूप में वर्णित है जो सत्य है बानर स्थिर न रहकर वन में विचरण करना उसका स्वभाव है अतः इस स्वाभाव के कारण वनो में उपलब्ध मुज जनेऊ धारण कर हनुमान जी ने ईश्वरीय सत्य अवधरणा के संस्कारिक मानवीय समाज के वर्ण व्यवस्था क़ो महिमा मंडित किया है!
सनातन धर्म में देव आचरण क़ो ही मानव समाज के लिए धर्म मर्यादा के सिद्धांत के रूप में संस्कार एवं आचरण के लिए प्रस्तुत किया गया हो चाहे भगवान राम कि मर्यादा और रामराज्य हो या भगवान श्री कृष्ण का निष्काम कर्मयोग या हनुमान जी द्वारा मुज जनेऊ धारण करना!

श्राद्ध कर्म के बाद एक और व्यवस्था दी गयी है मरने वाले के भवी जन्म क़ो जानने के लिए व्यवस्था यह है कि श्राद्ध कर्म के बाद स्वच्छ बालू क़ो चतुर्भुज या चंद्रकार बनाकर उसे ऐसा ढक दे कि उसमे चींटी तक प्रवेश न कर सके और वंहा एक दीपक जला दे और किसी स्वच्छ लोटे या गिलास में जल रख कर पूरी रात छोड़ दे और सुबह देखेंगे कि बालू पर कोई न कोई आकृति अवश्य दिखती है जैसे पैर के निशान रेंगने के निशान कुत्ते या शेर के पंजे के निशान जिसके आधार पर परिजन अपने मृत सदस्य के भावी जन्म जीवन के विषय में भिज्ञ होते है!
इस सत्यता क़ो भी मैंने अपने परिवार में देखा जाना है जो सत्य एवं वैज्ञानिक तर्क एवं दृष्टि से प्रामाणिक है!
इसका बहुत स्पष्ट अर्थ एवं प्रमाणिकता यह है कि किसी भी प्राणी के वर्तमान जीवन से उसके अतीत जीवन कर्म एवं भविष्य के जन्म जीवन क़ो जाना जा सकता है!!


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!