पुस्तक समीक्षा
सौरभ छंद सरोवर- काव्यमय जीवन दर्शन
*********
सुनीता सिंह सरोवर द्वारा रचित प्रस्तुत संग्रह 'धराधाम' इंटरनेशनल के प्रमुख सौहार्द शिरोमणि संत डा. सौरभ एवं उनकी धर्मपत्नी डा. रागिनी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित है। जिसमें विभिन्न छंदों में 51 रचनाएं हैं। किसी के व्यक्तित्व, कृतित्व पर छंदाधारित रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास साहसिक ही कहा जाएगा। जिसे सरोवर न दिखाया। जिसमें मार्गदर्शक/ संशोधक डा. महेश जैन 'ज्योति' की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
प्रस्तुत संग्रह को लेखन से पूर्व लेखिका ने सौहार्द शिरोमणि के जीवन के विविध आयाम, व्यक्तित्व, कृतित्व को जानने, समझने और तथ्यों की कसौटी पर परखने के लिए निश्चित ही काफी श्रम साधना की होगी। क्योंकि किसी वैश्विक स्तरीय पहचान रखने वाले किसी भी व्यक्तित्व पर कलम चलाने से पूर्व प्रमाणिक जानकारी के बिना कुछ भी लिखना अव्यवहारिक ही नहीं अन्याय जैसा होता है।
प्रस्तावना में सौहार्द शिरोमणि के चिंतन/विचार/आत्मज्ञान/अनुभव काफी कुछ कहते लगते हैं। आगे संत जी के जीवन अनुभवों उद्देश्यों -सद्गुण अपनाएँ, सद्गुण फैलाएँ, संत सौरभ के उद्देश्य, प्रकृति से छेड़छाड़ न हो के बारे में जानकारी दी गई है।
कवयित्री का उद्देश्य है कि प्रस्तुत संग्रह में मात्रा गणना से लेकर विभिन्न छंदों के विधान को भी लिखा जाए, ताकि भविष्य में यदि कोई वैधानिक सृजन करना चाहें तो उनके लिए भी सरल हो सके। यह सोच लेखिका की निस्वार्थ भावना का प्रेरक उदाहरण जैसा है।
आगे अन्यान्य शुभकामनाओं के बाद संग्रह की शुरुआत डा. सौरभ एवं एवं डा. रागिनी के चित्र के साथ मात्राभार की विस्तृत जानकारी दी गई है । दोहा छंद की उदाहरण सहित जानकारी, दुमदार दोहे के अलावा प्रत्येक रचना छंद, विधान, मापनी के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रत्येक रचना अपनी सार्थकता प्रमाणित करने में समर्थ है। यथा कुछेक रचनाओं की कुछ पंक्तियां जरुर उद्धृत करना चाहूँगा।
संत शिरोमणि जन्म के बारे में सुनीता दोहे में लिखतीं हैं-
गीता माँ की कोख से, सुंदर सौरभ पूत।
धन्य धरा का भाग्य है, जन्म लिए अवधूत।।
मृषा छंद में लेखिका सौरभ जी के छवि का बखान करते हुए कहती हैं -
धरती धवल सजी है छवि, शुचि सुषमा में नहाकर।
स्वागत में पथ जन तकते, शुभ सौरभ सा दिवाकर।।
अमृत ध्वनि छंद की ये पंक्तियां सौरभ- रागिनी के कृतित्व को समीचीन करती हैं -
पावन धरती है यही, गोरखपुर शुभ धाम।
सुरभित सौरभ रागिनी, करते सुंदर काम।।
मनहरण घनाक्षरी में सुनीता के शब्द भाव सामाजिकता को रेखांकित करते हैं -
जाति-पाति भूल सभी, चल मिल संग अभी,
नहीं भेद-भाव कोई, पर्व ये मनाइए।
प्रदीप छंद आधारित गीत में सौरभ जी के संदेश को उजागर करती पंक्तियाँ -
मजहब की बातों से हटकर, करें ईश आराधना।
सकल जगत में खुशियाँ बाँटे, सफल वही है साधना।।
एक अन्य रचना किरीट सवैया छंद में संत जी के विशाल व्यक्तित्व को उजागर करते हुए सुनीता लिखती हैं -
कर्म करें नित सुंदर सार्थक, धर्म सुमंगला सत्य सजावत।
नीयत निर्मल है परिभाषित, अंतस में शुभ दीप जलावत।।
संग्रह की अंतिम रचना आल्हा छंद में लिखते हुए लेखिका सौरभ जी के मनोभाव कुछ इस तरह प्रकट करती हैं -
मनुज जन्म है पुण्य कर्म का, रखना प्यारे इसका मान।
इस जीवन को सफल करें हम, आओ अंग करें हम दान।।
रचनाओं की इस श्रृंखला में प्रत्येक रचना सौरभ जी के जीवन दर्शन का बोध तो कराती ही है, साथ ही विविध छंदों की जानकारी उदाहरण सहित प्रतीत होती है।
अंतिम कुछ पृष्ठों पर डा.सौरभ/डा. रागिनी के देहदान के संकल्प, उनके विचारों, उद्देश्यों, सामाजिक कार्यों, धराधाम के विविध आयोजनों, वक्तव्यों के विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित सामग्री की छाया प्रतियों को स्थान दिया गया। इसी के मध्य शब्द साधिका सुनीता सिंह 'सरोवर' का परिचय संभवतः भूलवश यहाँ मुद्रित हो गया है। जिसे सबसे अंतिम पृष्ठों में होना चाहिए था।
मनोहारी दृश्यों के साथ मुखपृष्ठ पर बायीं ओर सौहार्द शिरोमणि का सदाबहार चित्र और दायीं ओर लेखिका का चित्र, जबकि अंतिम आवरण पृष्ठ पर लेखिका का परिचय दिया गया है।
अंत में एक विशाल व्यक्तित्व को केंद्र में रखकर नवोन्मेषी प्रयोग के साथ प्रस्तुत संग्रह की सफलता ग्राह्यता के प्रति आश्वस्त होना स्वाभाविक है। प्रस्तुत संग्रह की सार्थकता के साथ लेखिका 'सरोवर' के सुखद उज्जवल भविष्य की असीम शुभेच्छाओं के साथ........।
समीक्षक:
सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)