धीरे-धीरे आश्रम मुझे अपना सा लगने लगा था।
इतने सालों से जो सुकून में अपने घर में ना पा सका वो ख़ुशी वो अपनापन यहा मिल गया था और इन सब की वजह कहीं ना कहीं वृष्टि है l
वृष्टि,, मेरी खोई हुई ख़ुशी बनकर मेरी जिंदगी में आई,लेकिन वृष्टि के दादू को शायद मेरा उसके यूं करीब आना पसंद नहीं आया था l
एक अजीब सी बैचेनी उनके चेहरे पर मुझे महसूस होती थी | आख़िर एक दीन उनहोने मुझे शाम के खाने पर आमंत्रित किया l मन में थोड़ी सी उलझन थी शाम में ,मैं वहाँ गया आश्रम के ठीक पीछे एक पुराना लेकिन शानदार बंगला था वही रुके थे वृष्टि के दादाजी।
(CONVERSATION STARTS BETWEEN THEM)
वृष्टि के दादाजी:- आइये अगस्त्य स्वागत है
अगस्त्य :- आमंत्रण के लिए धन्यवाद सर,आश्रम से निकलते ही मैं आपसे मिलने वाला था l
वृष्टि के दादाजी :- कोई बात नहीं अभी भी आप आश्रम से निकलके ही आये हैं वैसे भी आश्रम बुरी जगह नहीं है,
तोह,आप क्या करते हैं ?
अगस्त्य :- सर, मैं एक लेखक हुं फ़िल्मों के लिए कहानियाँ लिखता हूँ l
ऐसे ही हम बात करते करते खाना खाने की टेबल तक पोहछेl
(खाना खाने के बाद,.............)
तुम्हें बता दूं अगस्त्य ,ये जो सामने आश्रम दिख रहा है,
दरसल ये हमारे दादा ने बनवाया था हमारी दादी के कहने पर ये वो जगह है जहां इंसान सिर्फ अपनी बुरी आदतें मिटाने नहीं आता,बल्की मानसिक रूप से परेशान हुए लोग जब अपने आप में जकड़ कर बैठ जाते हैं, यहां इस आश्रम में आकर वे अपने आप को पाते हैं l अपने अंतरमन से जुड़ जाते हैं l
फिर गंभीर रूप से मेरी तरफ देखते हुए बोले,,,,
अगस्त्य वृष्टि को जो बिमारी है वो उसे खानदान से विरासत में मिली हैl
उस वक्त ये बात शायद में इतने सही से नहीं समझ पाया,,
आप ये क्या कह रहे हैं दादाजी,अपने माँ-बाप को खोने का गम किसे नहीं होता, वो बसsss परेशान है और अकेली भीl
ऐसे,वक्त में उसको आपकी जरुरत है आपने उसे उल्टा आश्रम भेज दिया,,,
मैंने देखा है उसे जब बंद कमरे में से बहार निकली थी वो कैसे खुला आसमान देख रही थी वो सुकून ,मैंने देखा है उसकी आँखों में,
देखो,अगस्त्य मेरी बात को समझो ,,,
वृष्टि के बाप के साथ मेरी एक और औलाद थी मेरी बेटी विनीता ,,,,, उसकी 19 साल की आयु से हि हमें विनीता में ये बीमारी दिखाई देने लग गई थी l
लेकिन हमने उसे नज़र अंदाज़ करके उसे विदेश भेज दिया पढाई के लिए सोचा यहां से थोड़ी बाहर जाएगी संभल जायेगी,लेकिन एक दिन हमे कॉल आयी की विनीता का बरताव काफ़ी अजीब हो गया है,और हॉस्टल में उसने खुद ख़ुशी कर ली l
दादाजी पुरानी यादों से फिर होश में आये और बोले,,,
वृष्टि मेरी बच्ची मुझे नहीं लगा था ऐसा कुछ दोबारा होगा लेकिन,जब उसके मम्मी डैडी गुजरे उस चीज का सदमा, तबसे मुझे वृष्टि की फिक्र होने लग गई है तुम्हें नहीं पता अगस्त्य वृष्टि,,,,
आगे वो कुछ कहते उसे पहले वृष्टि वहा आगयी थी l
क्या बता रहे आप हमें बताइये ,,,,
उसके चेहरे में फिर से वो चमक आ गई थीl जिसे देख मेरा दिल भारी हो गया दादाजी ने बात संभाली कुछ नहीं बेटे आओ उसे आपके शौक बता रहे हैं वृष्टि Guitar बजाती है, घुड़सवारी करती है,
हैना अगस्त्य,,,
वो मेरी तरफ देखते हुए बोले मैने भी हा में गरदन हिलायी...
अब ये बातें सुनके वृष्टि का चेहरा शांत हो गया था l