भाग 5
निम्न विचार जे कृष्णमूर्ति द्वारा दिए गये हैं ।
हमारे चारों ओर संसार मे दुख और अशांति है ।
सब ओर दुख अशांति असंतोष है, कहीं आनंद नहीं है ।
हम असत्य मे जीते हें, सत्य की उपेक्षा करते हैं।
मानसिक पृलाप की कल्पनाऐं कर उनमें जीना चाहते हैं ।
सत्य की सरलता से बचते हैं । काल्पनिक क्षणिक रंगीनियां लिऐ क्षणिक सुखो के पीछे भागते हैं । सचाई, सरलता मे ही असली सुख है, हमारे दिमाग को नही सुहाता ।
काल्पनिक असत्य सुखों की दोड़ ही दुख का कारण है ।
जिसे हम सुख समझते हैं वह नकली चोला ओढे महाभयानक दुख है ।
संसार मे अजर अमर कुछ नहीं
सब परिवर्तनशील है
आदमी मरना नहीं चाहिए चाहता । वह जानता है कि वह मरणधर्मा है । पृकृति की हर वस्तु नष्ट होती है ।
किंतु आदमी भौतिक संसाधनों को अपने सुख के लिऐ संचय करता है । वह समाज मे नाम शोहरत संपत्ति इकट्ठा करता है । किंतु उसे भय रहता है इन संसाधनों के खो जाने का ।
अतः वह तरह तरह के कांसेप्ट्स जैसे आत्मा, परमात्मा आदि की कल्पना करता है और खुद को भी अजर अमर कर लेने की चाह लिऐ इन कांसेप्ट्स से जोड़ लेता है । किंतु अंत अवश्यंभावी है, मृत्यु अवश्यंभावी है । अजर अमर आदमी का कल्पित हजारों वर्षों का बहुपृचारित, भीड़ भैड़चाल समर्थित विचार मात्र है ।
भय
आदमी सुख की तलाश मे सुख देने वाले संसाधन इकट्ठे करता है । वह वास्तव मे जैसा है उसे अपने आप को देखना नहीं चाहता । वह खुद से बोअर होता है । अकेलेपन की आहट से ही वह उसका सामना करने के बजाय तत्काल बच निकलने के संसाधनों को तलाश ता है । मनोरंजन, क्लब, नशा, सेक्स, नाच गान, कथालोक वार्ता, धर्म सभाओं मे खुद को खो जाने का पृयास करता है किंतु अकैलापन पीछा नही छोड़ता । वह और जोर से आक्रमण करता है ।
हम खुद का हम जैसे भी हैं सामना क्यों नही करते बिना किसी कल्पना के बिना किसी सिद्धांत के बिना किसी ग्रंथ को पढ़े, बिना गुरु के बिना भाषणों के, सिरफ सत्य केवल सत्य । आदमी को भय अग्यात से नहीं ग्यात से है । अग्यात का उसने सामना नहीँ किया, ग्यात उसके संसाधन हैं जिनसे बिछुड़ने का भय है । भय के साथ रहो, उसका ऐक ऐक मूवमेंट का सूक्ष्मता से आद्योपांत अवलोकन करें ।
सत्य कार्य करता है न कि आपका पृयास
आप अपने दुर्गुणो से बाहर निकलना चाहते है । आप भांति भांति के पृयास करते हैं किंतु ये पृयास असलियत पर पर्दा भर डालते हें । समय आने पर अनेक कोशिशों के बाद भी वे छिपे हुऐ दुर्गुण और अधिक शक्ति से.आप पर पृहार करते हैं ।
क्रोध व क्रोधी अलग नही, ऐक ही हैं व जब क्रोधी क्रोध से निजात पाने का पृयास करता है तो यह पृयास क्रोध की ही क्रिया है, क्रोध खुद को बदलने का प्रयास करता है ? जो कि हास्यास्पद है । यही सत्य मन के सभी विकारों यथा काम, क्रोध, सैक्स, लोभ, हिंसा आदि पर लागू होता है । आपके पृयास नहीं वरन् सत्य ही वास्तव मे क्रिया करता है । सत्य आपको मुक्त करता है न कि आपके पृयास ।
हमारे अनेकों महात्मा भयानक शाप करते व क्रोध की मूर्ति थे। क्रोध समस्त दुर्गुणों का राजा हे, शाप देना अमानवीयता की निशानी है । महात्मा वह जो करूणा व क्षमा से भरा हो ।
यथार्थ ध्यान मे परमशान्ति परम आनंद है
यथार्थ ध्यान क्या है ?
यथार्थ ध्यान प्रचलित ध्यान मे से कोई नहीं, कुछ नहीं ।
न ऐकाग्रता, न शरीर के किसी बिदु पर ध्यान, न जप, न तप कुछ नही । तप भारी मनोभ्रम, स्वभ्रम है । अपने आप पर जबरन तंत्र मंत्र ऐकाग्रता लादकर स्वभ्रम, स्वसम्मोहन उत्पन्न करना तप कहलाता है । यह स्वयं के साथ हिंसा है ।
ध्यान अपनी समझ, स्व की समझ, मन की समझ, कैसे
मन के ऐक ऐक विचार का आद्योपांत निष्पक्ष निरीक्षण ।
हर भावना अच्छी या बुरी हो बिना निंदा प्रशंसा के निरीक्षण ।
इससे क्या होगा।
मन धीरे धीरे रिक्त हो जाऐगा । असीम शांति, अपार आनंद के उतरने की संभावना बनेगी ।
लोग कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर, किंतु इतनी सामान्य बात आपके दिमाग मे नही आती कि जिस दिमाग मे शैतान हो वह खाली कैसे, आप ने कभी खाली दिमाग का अनुभव किया ही नहीं ।आप जिसे खाली दिमाग कह रहे हैं वह. उलजलूल. फिजूल फितरतो सै भरा मस्तिष्क है ।
रिक्त दिमाग होगा
तब ऐक फूल को देखकर आपको अपार आनंद की अनुभूति हो सकती है ।
आप के अंदर अपार शांति की अनुभूति हो सकती है ।
धीरज पूर्वक मन का निरीक्षण करते रहिये ।
प्रियवर,
जब यथार्थ ध्यान का अनुभव होगा
तब परम शांति महसूस करोगे
सत्य की असीमता के दर्शन होंगे
तब न चाहिये होगी कोई कपोल कल्पना, मानव निर्मित
और मनुष्य के झुंडों द्वारा सहस्रों वर्षों से पृचारित,
न जप न तप न कहानियां, न कथालोक
सत्य और सिर्फ सत्य
किसी भूतकाल का परीलोक नही
यथार्थ यहीं और अभी वर्तमान, यही ध्यान औरअवधान
भूतकाल भस्म.है; अस्तित्व हीन
सिर्फ मनुष्य के दिमाग की कल्पना
और वैसा ही है, भविष्य
सत्य और सत्य वर्तमान
अभी और यहीं
समस्त दिव्यता अभी विराजित
ध्यान होने पर,
तुम खो जाओगे किसी चिड़िया या पक्षी को देखकर
आनंद के हिलोरे सुनोगे पक्षियो के कलरव मे
सरिता नदी न रहकर आनंद का दरिया होगी
पहाड़, जंगल वृक्ष असीम शांति के स्रोत होंगे ।
जगत की हर वस्तु मंदिर होगी ;
परमात्मा होगी ।
लेखक
बृजमोहन शर्मा 791 सुदामानगर, इंदौर
9424051923 फोन व व्हाट्सएप site
Yoga Aerobics Param Anand