Rakht Tantra - 1 in Hindi Thriller by Indra N Chattopadhyay books and stories PDF | रक्त तंत्र - 1

Featured Books
  • ঝরাপাতা - 1

    ///ঝরাপাতাপর্ব - ১সন্ধ্যা নামার ঠিক আগের এই সময়টা খুব প্রিয়...

  • Ms Dhoni

    রাঁচির ছোট্ট শহর। স্টেশন রোডের পাশে এক সরকারি কোয়ার্টারে থা...

  • মহাভারতের কাহিনি – পর্ব 118

    মহাভারতের কাহিনি – পর্ব-১১৮ যুদ্ধের নবম দিনে ভীষ্মের পরাক্রম...

  • তিন নামের চিঠি..

    স্নেহা, অর্জুন আর অভিরূপ — ওরা তিনজন।কলেজের এক ক্লাসে প্রথম...

  • জঙ্গলের প্রহরী - 3

    জঙ্গলের প্রহরী / ৩পর্ব - ৩জঙ্গলের হাতার বাইরে কাঁটাতারের বেড...

Categories
Share

रक्त तंत्र - 1

अध्याय 1: “खून का पाठ”

मुंबई की भीड़ फिर अपने शोर में लौट चुकी थी। पर अर्जुन मेहरा की दुनिया अब भी उसी अजीब सी चुप में उलझी हुई थी, जो उसने पिछली रात महसूस की थी। उसका कमरा एक लेखक की कल्पना से ज़्यादा, एक साज़िश की प्रयोगशाला बन चुका था – दीवारों पर टंगे नोट्स, फटे हुए काग़ज़, और बीच में धुआँ उड़ाता कॉफी का प्याला।

अर्जुन अपनी डायरी में सिर झुकाए लिख रहा था – "मगरमच्छ ने बंदर को नहीं मारा… बंदर ने मगरमच्छ को मरवाया।"

उसने कल रात ‘बंदर और मगरमच्छ’ वाली पंचतंत्र की कहानी को बार-बार पढ़ा था, लेकिन हर बार कहानी एक नया रंग ले रही थी। जैसे उसमें से कोई फुसफुसा रहा हो – "सच यही है, बाकी सब झूठ।"

“कहानी में अगर कोई ज़िंदा नहीं बचा… तो क्या ये भी पंचतंत्र है या तंत्र?” अर्जुन बड़बड़ाया।

वो खुद को एक लेखक मानता था – मगर अब उसके लिखे शब्द ही जैसे उसके खिलाफ़ गवाही दे रहे थे।

दो हफ़्ते पहले, जुहू के एक पुराने बंगले में एक बच्चा मरा मिला था। सिर्फ़ मरा नहीं, बल्कि किसी पागल दरिंदे ने उसके शरीर को इस तरह नोचा था जैसे वो कोई संदेश देना चाहता हो। और सबसे अजीब बात? उसके पास पड़ी थी एक किताब – पंचतंत्र। वही ‘बंदर और मगरमच्छ’ वाला पन्ना खुला था, जिस पर अब खून के छींटे थे।

अर्जुन ने उस केस को तब तक नज़रअंदाज़ किया था। लेकिन कल जब दूसरी लाश मिली, एक महिला की, जिसकी आंखें खुली थीं – डर से जमी हुईं। और उसके पास ‘सिंह और सियार’ की कहानी खुली पड़ी थी… तब अर्जुन को समझ में आ गया – ये महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं।

वो रात, जब सब सो रहे थे, अर्जुन ने नींद से इनकार कर दिया। एक के बाद एक पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ता गया। हर कहानी अब उसे मासूम नहीं, भयानक लगने लगी थी।

“अगर कोई इन कहानियों को हथियार बना रहा है… तो क्या वो मेरा लिखा पढ़ चुका है?” उसने खुद से पूछा।

इतने में लैपटॉप पर ईमेल का नोटिफिकेशन चमका। अर्जुन ने क्लिक किया – भेजने वाला कोई नहीं, बस एक नाम: “तू कहानियाँ लिखता है, मैं सच बनाता हूँ।”

नीचे अटैचमेंट था – एक नई कहानी: “कौवा और मटका”
और एक तारीख – 5 जून।

अर्जुन का गला सूख गया। उसने ज़ोर से खिड़की खोली, पर बाहर से भी वही घुटन अंदर घुस आई।

“कौन है तू?” वो चीखा। “क्या चाहता है मुझसे?”

कोई जवाब नहीं आया। बस स्क्रीन पर कहानी के शब्द झिलमिलाते रहे।

“अब ये मेरा खेल नहीं है… ये उसका है। और मैं सिर्फ़ मोहरा हूं,” अर्जुन ने खुद से कहा।

उसे समझ में आ गया था – अगली लाश तय है। 5 जून अभी दो दिन दूर था, लेकिन खेल शुरू हो चुका था। और इस बार कहानी में मटका नहीं टूटेगा, इंसान टूटेगा।

उसने खुद से एक वादा किया –
“अगर ये कहानी है… तो इसका आखिरी पन्ना मैं लिखूंगा। मौत नहीं।”

अर्जुन अब लेखक नहीं रहा। अब वो उस पागल के निशाने पर आख़िरी उम्मीद था।
किसी को बचाने की, या शायद खुद को ख़त्म होने से रोकने की।