Kurbaan Hua - Chapter 30 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 30

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Kurbaan Hua - Chapter 30

तेज़ कदमों से पुलिस स्टेशन में घुसते ही डीसी हर्षवर्धन ठकराल की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह लंबे समय के बाद इस थाने का दौरा कर रहे थे। उनके कदमों की आवाज़ जैसे ही थाने की दीवारों से टकराई, वैसे ही वहां मौजूद पुलिसकर्मियों की धड़कनें तेज़ हो गईं। कोई कुर्सी से उठकर सीधे खड़ा हो गया, तो कोई हड़बड़ाहट में ताश के पत्तों को झट से समेटने लगा।

थाने का हाल बेहाल था। किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि डीसी ठकराल आज अचानक यहां आ धमकेंगे। जो पुलिसकर्मी ड्यूटी पर होने चाहिए थे, वे आराम फरमा रहे थे। कोई पत्तों की बाज़ी में उलझा था, तो कोई रेडियो पर तेज़ गाने बजाकर थिरक रहा था। एक-दो पुलिसवाले तो वर्दी के साथ भी लापरवाह बैठे थे, कुर्सी पर पैर रखकर मज़े से हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे।

लेकिन जब दरवाज़े पर डीसी हर्षवर्धन ठकराल की सख्त और गंभीर छवि प्रकट हुई, तो पूरे थाने में एकदम सन्नाटा छा गया। ऐसा लगा जैसे बिजली गिर गई हो। जो पुलिसवाले हंस रहे थे, उनके चेहरों पर डर की लकीरें खिंच गईं। पत्ते खेलने वाले पुलिसकर्मियों के हाथ कांपने लगे। कोई चुपचाप अपने जूते पहनने लगा, तो कोई जल्दी से अपनी वर्दी ठीक करने लगा।

"तो यही हाल है पुलिस स्टेशन का?"

हर्षवर्धन ठकराल की गहरी आवाज़ पूरे कमरे में गूंज उठी। उनका रौबदार चेहरा और नुकीली निगाहें सीधे उन पुलिसकर्मियों की आत्मा में उतर रही थीं, जो अभी तक लापरवाह होकर अपने-अपने धंधों में व्यस्त थे।

"जब मैं यहां नहीं था, तब ना सिर्फ बदमाश बेखौफ हो गए, बल्कि तुम सब भी अपनी हदें भूल बैठे? क्या तुम्हें वर्दी पहनने की ज़रा भी इज़्ज़त नहीं रही?"

कोई कुछ नहीं बोला। सबके चेहरे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं। हर्षवर्धन ने एक नज़र पूरे थाने में दौड़ाई। टेबल पर बिखरे ताश के पत्ते, चाय के आधे भरे कप, रेडियो पर बजते फिल्मी गाने—सब उनके गुस्से को और बढ़ा रहे थे।

थोड़ी ही देर में एक इंस्पेक्टर हड़बड़ाते हुए आगे आया। वह घबराहट में सलाम ठोकता हुआ बोला, "साहब... वो... दरअसल..."

"चुप!"

हर्षवर्धन ने गुस्से में उसकी बात काट दी। उनका हाथ जोर से मेज़ पर पड़ा और पूरा थाना कांप उठा।

"तुम सबको पता भी है, ये थाना अपराधियों को पकड़ने के लिए है, ना कि जुआ खेलने और मज़े करने के लिए!"

कई पुलिसवालों ने सिर झुका लिया। किसी में भी हिम्मत नहीं थी कि उनकी आँखों में आँख डालकर देख सके। वे सब जानते थे कि डीसी ठकराल किसी भी हाल में अनुशासन से समझौता नहीं करते।

कुछ सेकंड तक सन्नाटा छाया रहा, फिर हर्षवर्धन ने अपनी बेल्ट कसते हुए कहा, "ठीक है, अब खेल खत्म। अब मैं वापस आ गया हूँ और ये थाना अब फिर से एक सख्त पुलिस स्टेशन बनेगा।"

उन्होंने इंस्पेक्टर की ओर इशारा किया, "ताश के पत्ते और हुक्का सब उठाओ और इन्हें बाहर फेंको। जो काम नहीं करना चाहते, वे अपनी वर्दी उतारकर अभी यहां से जा सकते हैं!"

इतना सुनते ही पुलिसकर्मियों में हलचल मच गई। कुछ की आँखों में डर और कुछ की आँखों में अपराधबोध था। कुछ ने तुरंत अपने कपड़े और बैज ठीक किए और एक अनुशासित पुलिसवाले की तरह खड़े हो गए।

"अब से इस थाने में न कोई आलसी रहेगा, न कोई भ्रष्ट। हर एक को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। जो नहीं निभा सकेगा, वो बाहर जाएगा!"

उनके शब्दों में इतनी सख्ती थी कि किसी की हिम्मत नहीं हुई विरोध करने की।फिर हर्षवर्धन ने गहरी सांस ली और अपनी जेब से एक नोटबुक निकाली। उन्होंने एक-एक पुलिसवाले का नाम लिखा और आदेश दिया, "कल से हर पुलिसकर्मी की ड्यूटी का हिसाब लिया जाएगा। जिसे जहां भेजा जाएगा, उसे वही काम करना होगा। और अगर कोई शिकायत मिली, तो उसका अंजाम बुरा होगा।"