रणविजय घुटनों के बल बैठा था। सिर झुका हुआ, आंखों से बहते आंसू ज़मीन को भिगो रहे थे। उसके सामने शिवा खड़ा था, मासूमियत से रणविजय के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला,
“आप इतने बड़े होकर रो रहे हो? आप तो माफिया हो न? मैंने मूवी में देखा है माफिया बहुत खतरनाक होते हैं, लेकिन आप तो ख़तरनाक नहीं हो। आप तो बहुत अच्छे हो। प्लीज़ मत रोइए।”
रणविजय कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप उसकी बात सुनता रहा।
शिवा ने फिर मासूमियत से पूछा, “आपको किसी ने hurt किया है क्या? जो आप ऐसे रो रहे हो?”
रणविजय की आंखें नम थीं, पर आवाज़ में दर्द छुपा था,
“मैंने किसी को hurt किया है… वो मेरी ज़िंदगी है… उसे hurt करके मैं कैसे खुश रहूं…”
शिवा ने ध्यान से उसकी बात सुनी और बोला, “ओह… मतलब ये प्यार की बात है?”
रणविजय की आंखों से फिर आंसू बह निकले,
“हां… उसे hurt हुआ है मेरी वजह से… और दिल दुखा है मेरा भी… क्योंकि वही तो मेरा दिल है…”
शिवा मासूमियत से मुस्कुराया,
“तो आप उन्हें सॉरी बोल दो न। दीदी हमेशा कहती हैं, अपनी गलती मान लेने से कोई छोटा नहीं हो जाता। आप दिल से माफ़ी मांगो, वो माफ़ कर देंगी आपको।”
शिवा ने फिर कहा, “देखो आप कितना रो रहे हो, कितने परेशान हो… और उन्हें तो ये सब पता भी नहीं है। आप डेंजरस नहीं हो… आप तो बहुत अच्छे हो।”
यह कहते-कहते शिवा भी घुटनों के बल बैठ गया और रणविजय को गले से लगा लिया।
तभी कमरे का दरवाज़ा खुला।
मेघ जैसी नर्म चाल में मीरा अंदर आई। सामने का दृश्य देखकर उसके कदम वही रुक गए।
शिवा रणविजय को गले लगा रहा था। मीरा के मन में जैसे कोई तूफान थम सा गया।
कुछ पल के लिए उसे शांति का अनुभव हुआ… शायद यही तो वो बहुत समय से चाह रही थी।
लेकिन तभी उसे रणविजय के खून से सने हाथ याद आए।
उसका ध्यान टूटा, और वह दौड़कर शिवा के पास पहुंची।
“शिवा उठ!” मीरा की आवाज़ तेज थी।
शिवा रणविजय की गोद से उठ खड़ा हुआ।
रणविजय ने मुंह फेर लिया, वो नहीं चाहता था कि मीरा उसके आंसू देखे।
पर मन में कहीं ये भी चाह रहा था कि काश… मीरा बस एक बार उसे देख ले… गले लगा ले…
वो रोना चाहता था… पर सिर्फ मीरा की बाहों में।
मीरा ने शिवा का हाथ पकड़ा और उसे बाहर ले जाने लगी।
“पर दीदी…” शिवा कुछ कहना चाहता था, लेकिन मीरा के गुस्से से लाल चेहरे को देख वह चुप हो गया।
मीरा, शिवा को लेकर कमरे से बाहर आ गई। जैसे ही वो सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी, उसे किसी की सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी।
वो आवाज़ रणविजय की थी।
मीरा के कदम वही रुक गए।
उसका दिल धड़कने लगा।
उसके हाथ से शिवा का हाथ छूट गया।
शिवा हैरान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मीरा को क्या हो रहा है।
मीरा का चेहरा कुछ ऐसा था जैसे किसी ने उसके दिल के हजार टुकड़े कर दिए हों।
रणविजय उठकर खिड़की के पास गया। आसमान की ओर देखते हुए बोला,
“माँ… एक बार आ जाओ… मैं बहुत अकेला हूँ माँ…
मेरा अतीत मेरे भविष्य को बर्बाद कर गया माँ…
मैं जानवर बन गया हूँ माँ… ऐसा जानवर जिससे कोई प्यार नहीं करता…
तुम्हारा बेटा जानवर बन गया है माँ…”
मीरा वही खड़ी-खड़ी ये सब सुन रही थी।
उसके गालों पर गर्माहट महसूस हुई।
हाथ से छु कर देखा… गाल आंसुओं से भीगे हुए थे।
वो खुद को रोक नहीं पाई… दौड़ती हुई अपने कमरे में चली गई।
शिवा को कुछ समझ नहीं आया।
अभी तो मीरा बहुत गुस्से में थी… अब रोने लगी?
वो सीधा दौड़कर गार्डन में गया, जहां मिस रोज़ी और जॉन बैठे थे।
“मिस रोज़ी, क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?”
“हाँ बेटा, पूछो,” मिस रोज़ी ने कहा।
“रणविजय सर और दीदी की किसी बात पर लड़ाई हुई है क्या? देखिए, आप मुझसे झूठ मत बोलिए, मुझे सब पता है। और शायद जो मैं सोच रहा हूँ, वही सच है। इसलिए आप मुझे सब कुछ सच-सच बता दीजिए।”
मिस रोज़ी ने जॉन की तरफ देखा।
जॉन ने सिर हिलाया, जैसे कह रहा हो — अब समय है सब बताने का।
मिस रोज़ी ने शिवा को सब कुछ बता दिया।
मीरा और रणविजय के बीच की हर सच्चाई।
अब शिवा सब समझ गया था।
वो समझ गया कि रणविजय बुरा इंसान नहीं है… उसका काम बुरा है।
पर दिल… वो तो साफ है।
शिवा की आंखों में चमक आ गई।
“हमें दोनों को फिर से साथ लाने के लिए कुछ करना चाहिए। हम ऐसे हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते… जब हमें पता है कि दोनों एक-दूसरे से दूर रहकर कितने दुखी हैं…”
मिस रोज़ी और जॉन मुस्कुरा दिए।
मिस रोज़ी ने फिर एक बार जॉन की तरफ देखा और इस बार कुछ रहस्यमयी मुस्कान दी।
जॉन ने शिवा को पास बुलाया, और उसके कान
में कुछ कहा।
शिवा पहले तो हैरान हुआ… आंखें फैल गईं उसकी…
फिर धीरे-धीरे मुस्कुरा उठा।