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रात के ठीक बारह बजे थे। नासिक के पास एक छोटे से गाँव, त्रिंबक, में भयंकर आंधी चल रही थी। बिजली कड़क रही थी और हवाएं जैसे किसी प्राचीन रहस्य को बाहर लाने पर तुली थीं। गांव का हर आदमी अपने घर में दुबका बैठा था, सिवाय एक के—वेदांत के।
वेदांत एक युवा इतिहासकार था जो भारत के रहस्यमयी स्थानों पर शोध करता था। इस बार वह त्रिंबक आया था, एक पुरानी कथा के पीछे—"यमलोक का दरवाज़ा"। कहा जाता है कि त्रिंबक पर्वत के नीचे एक गुफा है, जो हर हज़ारवें साल में सिर्फ एक रात के लिए खुलती है। लोग कहते हैं, वह गुफा यमलोक का द्वार है—मृत्युलोक से परे जाने का रास्ता।
गांव के बुजुर्गों ने वेदांत को चेतावनी दी थी, "बेटा, ये कोई आम गुफा नहीं है। जो गया, वह लौटा नहीं।" लेकिन शोध और जिज्ञासा की आग उसे खींच लायी थी उस रात उस गुफा की ओर।
आंधी में भीगता, काँपता वेदांत जब उस गुफा के पास पहुँचा, तो उसे पत्थरों के बीच एक हल्की सी सुनहरी रेखा दिखाई दी। जैसे ही उसने पास जाकर हाथ रखा, दरवाज़ा अपने आप खुल गया। ठंडी हवा का एक झोंका उसके चेहरे से टकराया, मानो यमराज स्वयं उसका स्वागत कर रहे हों।
वेदांत ने टॉर्च जलायी और अंदर घुस गया।
गुफा बहुत गहरी थी। दीवारों पर अजीब चित्र बने थे—आधी मानव, आधी जानवर आकृतियाँ, जिनकी आँखें जैसे वेदांत को देख रही हों। कुछ दूर चलने के बाद, उसे एक विशाल कक्ष मिला। उस कक्ष के बीचोंबीच एक द्वार था—काले पत्थर का बना हुआ, उस पर लिखा था: "मृत्यु एक प्रारंभ है, अंत नहीं।"
वेदांत ने दरवाज़ा खोला और भीतर चला गया।
अंदर अंधेरा नहीं था, बल्कि एक अजीब रोशनी थी—नीली, चांदी जैसी। सामने एक सिंहासन था, जिस पर एक भव्य, गम्भीर चेहरा बैठा था—काले वस्त्र, चमकती आंखें और सिर पर मुकुट। वह यमराज थे।
"स्वागत है, वेदांत," उनकी गूंजती आवाज़ आई, "तू पहले जीवित मानव है जिसने अपना भय त्याग कर इस द्वार को पार किया है।"
वेदांत काँप गया, फिर भी बोला, "मैं सत्य जानना चाहता हूँ। क्या ये सचमुच यमलोक है?"
यमराज मुस्कुराए, "यह वही है, जो मृत्यु के बाद आत्माओं का न्याय करता है। पर तू जीवित है, इसलिए तेरे लिए समय सीमित है।"
यमराज ने अपनी गदा ज़मीन पर मारी, और अचानक वेदांत के चारों ओर दृश्य बदलने लगे।
उसने देखा—एक आत्मा, जिसने जीवन में चोरी की थी, अब कर्मों का फल भोग रही थी। एक महिला, जिसने अनाथों की सेवा की थी, स्वर्णलोक में आनंद ले रही थी। वेदांत हर दृश्य को देखता गया, समझता गया कि मृत्यु के बाद न्याय होता है, पर वह केवल सच्चे कर्मों पर आधारित होता है, ना कि जात-पात, धर्म या अमीरी-गरीबी पर।
फिर यमराज बोले, "अब तेरे सामने दो रास्ते हैं—या तो यहीं रुक जा, और इस ज्ञान का हिस्सा बन जा, या वापस लौट जा और मानव जाति को सत्य बताना।"
वेदांत सोच में पड़ गया। एक ओर अमर ज्ञान, दूसरी ओर वह दुनिया जो इस सत्य से अनजान है। आखिर उसने कहा, "मैं वापस जाऊँगा। मैं लोगों को बताऊँगा कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि कर्मों का परिणाम है।"
यमराज ने सिर हिलाया और कहा, "तो जा। पर याद रख—तू जो कहेगा, लोग मानेंगे नहीं। फिर भी, सत्य की मशाल जलाये रखना।"
अगली सुबह, वेदांत गुफा के बाहर अचेत पड़ा मिला। गांववालों ने उसे होश में लाया, और जब उसने कहानी सुनाई, तो किसी ने हँसी उड़ाई, किसी ने डरकर भगा दिया। पर वेदांत रुका नहीं।
उसने किताबें लिखीं, व्याख्यान दिए, और धीरे-धीरे उसका संदेश फैलने लगा—कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, बल्कि अपने कर्मों को सुधारना चाहिए।