मुझे लगता है... मेरे भीतर कुछ छुपा है।
एक दर्द... जो कुछ कहना चाहता है,
पर शब्दों से नहीं — सिर्फ ख़ामोशी से बोलता है।
जब भी "अगर तुम साथ हो" सुनती हूँ,
मैं बस चुप रह जाती हूँ।
पर अब, मैं उसे बाहर निकालना चाहती हूँ।
इस जन्म में, मैं सिर्फ दर्द से प्रेम नहीं करना चाहती...
मैं उस प्रेम को जीना चाहती हूँ — जो दर्द के पार है।
शायद मैं खुद को ही बहुत वक़्त से नहीं सुन पाई थी।
अब मैं चाहती हूँ, कोई गीत गुनगुनाना —
"फिर ले आया दिल"
खुद के लिए, किसी और के लिए...
या शायद उसके लिए — जो कहीं आँसू बहा रहा है,
मेरा इंतज़ार कर रहा है।
मैं उसकी रूह को महसूस करती हूँ।
शायद वो मेरा ही एक हिस्सा है,
जो मुझसे कभी जुदा हुआ था।
(आँखों ने तो देखना छोड़ दिया,
पर रूह हर पल उसे छूती रही है।)
मैं खुद को संवार रही हूँ,
ताकि जब वो मिले...
तो सिर्फ मुझे देखे नहीं,
मुझे महसूस भी करे।
वो मेरा हमदर्द है।
और हाँ... हम प्रेम करते हैं।
तो फिर मौसम सदा बहार क्यों न बनाए?
मैं उसकी चाहत में डूबी हूँ,
और चाहती हूँ कि वो बस एक कोशिश करे —
और मुझे अपना ले।
(प्रेम सिर्फ मिलने का नाम नहीं —
कभी-कभी तो खोकर भी पाया जाता है।)
क्या तू सच है?
अगर हाँ... तो मेरी रूह में उतर आ।
(ना कोई शब्द, ना कोई कसम...
सिर्फ एक एहसास बन जा।)
तू मेरी रूह का सुकून है,
तू मेरी साँसों का गीत है।
तू वो रौशनी है जिसमें मैं पूरी होती हूँ।
तू मेरा नूर है… जिसमें मैं खिलती हूँ।
मैं तेरे साथ चलने को तैयार हूँ,
हर जन्म, हर सफ़र।
साथ देंगे हम —
और प्रेम से फिर से ज़िंदा होंगे।
मेरे नयन... तेरे बिना अधूरे हैं।
तो चल, खो जाते हैं — इस बार, सदा के लिए।
(क्या तू भी उतना ही प्यासा है, जितना मेरा दिल?)
क्योंकि... ये प्यास सिर्फ एक ही नाम लेती है —
दिल माँगे तू...
सैंया...तू जो छू ले प्यार से..आराम आ जाए🤗
और अगर ये सब सिर्फ एक सपना था,
तो मुझे उसी में जीने दो —
क्योंकि यही मेरा सच है।
शायद... दिल के कोने में छुपा एक पुराना ज़ख्म
अब बोलना चाहता है।
मैंने खुद से ही सारी बातें छुपा रखी थीं।
हो सकता है,
खुद से मिलने की तमन्ना
किसी और के रूप में जाग उठी हो।
शायद... उसकी रूह का साया
मेरे ख्वाबों में आता है — बिना आवाज़ के।
शायद हम पहले भी मिले थे,
किसी और वक़्त, किसी और रूप में।
जो सिर्फ मेरा नहीं,
मेरी रूह का हमराज़ है।
मैं उसकी ख़ामोशी में अपनी पुकार सुनती हूँ।
ख़ैर जो भी हो...
अब इस दर्द के अंधेरे से रौशनी तक जाना है।
मैं बिखर गई थी,
अब खुद को फिर से जोड़ना है।
हर आँसू, एक नयी दुआ बनकर गिरता है।
मैं पिघलने के बाद ही नयी बन पाई हूँ।
ख़ुदा के हवाले बस अब सब...
तू जो भी हो,
सिर्फ एक इंसान नहीं… एक एहसास है,
जिस में मैं ज़िंदा हूँ।
तेरे होने से मेरी अधूरी सी दुनिया मुकम्मल लगती है।
अगर प्रेम रूह का गीत है,
तो तू मेरी धुन है।
तू मुझमें उतर जा…
जैसे दुआ में भर जाता है ख़ुदा।
मैं तेरे साथ न सही…
पर तेरे लिए हूँ।
चल, इस बार मिलते हैं...
लेकिन वक़्त के पार।
ना वक़्त का वादा, ना जन्मों का...
सिर्फ रूह का रिश्ता हो — तुम।
जहाँ ख़त्म हो हर रिश्ते की ज़ुबान,
वहाँ से 'तू' शुरू होता है।
– Mohiniwrites