रात के ढाई बज रहे थे, और सड़क पर अंधेरा छाया हुआ था। हवा में सर्दी थी, लेकिन मारिया की आँखों में एक अजीब सी निडरता थी। एक तरफ, उसे डर भी लग रहा था, क्योंकि वह अकेली थी और यह सुनसान जगह थी, लेकिन दूसरी तरफ वह आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उसकी आँखों में कोई संकोच नहीं था, बस एक बेबाकी थी, जैसे किसी भी मुश्किल का सामना करने के लिए वह तैयार हो।
इतना ही नहीं, कुछ दूर से एक काले रंग की ऑडी तेजी से आती हुई दिखी। मारिया का ध्यान उस कार पर गया, और वह रुक गई। कार ने उसके पास आकर अचानक ब्रेक लगाया, और शीशा नीचे हो गया। सामने मीर का मुस्कुराता चेहरा दिखाई दिया। उसकी आँखों में कुछ खास था, एक तरह की शांति और भरोसा, जैसा वह किसी अजनबी से मिलने के बाद भी न किसी डर में था, न किसी असमंजस में।
"क्या मैं आपको छोड़ सकता हूँ?" मीर ने, अपने चेहरे पर एक दयालु मुस्कान के साथ, जेंटलमैन की तरह पूछा। उसकी आवाज़ में एक सहजता थी, जैसे वह किसी को किसी मदद की पेशकश कर रहा हो, ना कि कोई उम्मीद रख रहा हो।
मारिया ने थोड़ी देर सोचा, फिर हल्के से सिर झुकाकर कहा, "जी... वो..." लेकिन उसने कुछ और कहा नहीं, क्योंकि मन में कई सवाल थे। फिर मीर ने उसे घबराया हुआ देखा और हंसते हुए कहा, "आप इतना क्या सोच रही हैं? मैं एक शरीफ इंसान हूं... और आपके साथ कुछ ऐसा-वैसा नहीं करने वाला। अगर आप चाहें, तो मेरा आईडी की फोटो क्लिक करके अपने रिश्तेदार या जान-पहचाने वालों को भेज सकती हैं।"
मारिया को इस बात पर एक हल्की मुस्कान आई। उसकी घबराहट कहीं न कहीं कम हुई, और उसने आत्मविश्वास से कहा, "जी, इसकी जरूरत नहीं है।"
मीर ने फिर से मुस्कुराया और एक हल्के इशारे से कार के दरवाजे की ओर इशारा किया। "तो आइए फिर।"
मारिया ने एक पल के लिए मीर को देखा, फिर उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था, सिर्फ एक राहत थी। उसने सिर झुकाकर, पूरी तरह से विश्वास के साथ, कार की ओर कदम बढ़ाए। वह जानती थी कि उसकी जिंदगी में कुछ अनजाना सा घटने वाला है, लेकिन इस पल में उसे किसी से कोई डर नहीं था।
मीर ने दरवाजा खोला, और मारिया कार में बैठ गई। दोनों के बीच चुप्पी थी, लेकिन यह चुप्पी किसी भारी राज़ की तरह नहीं थी। वह सिर्फ एक सफर था, जो दोनों के लिए अनजाना था, और शायद यही कारण था कि दोनों अब एक दूसरे के साथ खड़े थे, बिना किसी डर या संकोच के।
पहली झिजक के बाद, मीर ने चुप्पी तोड़ी और पूछा, "आप कहां रहती हैं?" उसकी आवाज़ में हल्की जिज्ञासा थी, जैसे वह उसकी दुनिया में एक कदम और बढ़ने का इरादा रखता हो।
मारिया ने उसे अपनी सांवली आँखों से देखा। वो सवाल तो साधारण सा था, लेकिन उसकी आँखों में उस सवाल का जवाब था, जो मीर शायद समझना चाहता था। मीर ने अपनी तरफ से और भी सहजता से कहा, "मैं आपको कहां ड्रॉप करूँ? आपके घर का एड्रेस..."
मारिया की आँखें चुप हो गईं, और वो थोड़ी झिझकते हुए बोली, "ओह... जी, आगे एक बस स्टॉप है, बस वही उतार दे, आगे मैं चली जाऊंगी।" उसने बिना किसी वजह के एड्रेस छुपा लिया था, शायद इसलिए क्योंकि उसे मीर के साथ ज्यादा नहीं बढ़ना था।
मीर ने हंसी का हल्का सा तड़का अपने लहजे में डाला और बोला, "मैं आपके घर पर कॉफी या चाय पिने नहीं आऊँगा... आप मुझे बता सकती हैं, आपके घर का पता?" उसकी बातों में मजाक और तंज दोनों था, लेकिन उसकी नज़रें पूरी तरह से सच्चाई को खोज रही थीं।
मारिया झिझकते हुए बोली, "जी... ऐसी बात नहीं..."
मीर ने एक पल रुक कर कहा, "तो?"
मारिया ने धीमे से जवाब दिया, "दरअसल, गलियां थोड़ी संकरी हैं, तो वहां कार नहीं जाएगी।" शर्मिंदगी के साथ उसने आँखें झुका लीं।
"ऐसी बात है," मीर ने मुस्कुराते हुए कहा, जैसे अब उसे सब कुछ समझ में आ गया हो।
बस स्टॉप आ गया, और मारिया ने शुक्रिया कहा। लेकिन मीर ने गाड़ी से उतरने में देर नहीं की। वह उसके साथ नीचे उतर आया और उसे चुपचाप देखता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
मारिया होले-होले आगे बढ़ने लगी, जैसे वह अपने रास्ते पर अकेली चल रही हो, लेकिन मीर उसकी परछाई की तरह साथ था। वह रुकी, और फिर मीर से कहा, "जी, आप जाएं, मेरा घर आ गया है।"
मीर की आवाज़ में सलीका था, मगर लहजा अपने आप में एक एहसास था।
"रात बहुत हो चुकी है, कम से कम आपको दरवाज़े तक छोड़ दूँ?"
मारिया ने एक पल उसे देखा, फिर धीमे से कहा, “जी... आप समझ नहीं रहे… अगर हमें किसी ने साथ देख लिया तो यहां बातें बनने लगेंगी।”
मीर हल्के से मुस्कुराया, मगर उसकी आंखों में कुछ और था—वो एहसास जो लफ्ज़ों से नहीं, सिर्फ निगाहों से बयान होता है।
“आई अंडरस्टैंड” उसने बस इतना कहा।
मारिया ने सिर झुकाया, पलटी और अपने मकान की ओर बढ़ने लगी। मगर मीर वहीं खड़ा रहा, उसकी नज़रों में कुछ था... शायद उम्मीद, शायद जिद, शायद पहली बार किसी को महसूस करने का जज़्बा।
उसने अपने सर के ऊपर हाथ रखा, गहरी सांस ली और अपने दिल से बोला—
"अगर मेरी पहली नज़र की मोहब्बत सच्ची है, शिद्दत वाली है… तो ये पलटेगी।"
उसकी नज़रें बस एक चीज़ ढूंढ़ रही थीं—एक बार... बस एक बार वो मुड़े।
मारिया दरवाज़े के अंदर घुसने ही वाली थी, तभी उसका दिल जैसे चुपचाप चीख पड़ा... “थैंक यू तो कहा ही नहीं…”
वो एक पल को ठिठकी… और फिर हल्के से पलटी।
उसकी आंखों में शुक्रिया था, लबों पर एक मासूम सी मुस्कान… और हाथ से हल्के से इशारा कर के उसने “बाय” कहा… और फिर जल्दी से अंदर चली गई।
मीर की आंखें चमक उठीं। जैसे वो पल उसका इनाम हो।
उसने अपने हाथ की मुठ्ठी बनाकर हवा में जोर से बोला—
"यस्स!!"
और फिर उसके दिल ने धीरे से एक बात कही—
"अगर निगाहें रुक जाएं किसी पर… तो समझो, दिल ने इबादत चुन ली है।"
उस रात मीर की दुनिया थम गई थी… लेकिन ये ठहराव बोझ नहीं था, ये तो जैसे किसी मीठे एहसास में डूब जाने का नाम था।
वो अपनी ऑडी में बैठा, हाथ स्टेयरिंग पर और आंखें सामने की उस गली पर टिकी थीं—जहां से मारिया अभी-अभी ओझल हुई थी।
दिल एक अजीब सी शांति में डूबा था, मगर साथ ही बेचैनी की लहर भी उठ रही थी… वो लहर जो इश्क की पहली हलचल होती है।
उसने कार स्टार्ट की, मगर चलाने की जल्दी नहीं थी।
गली से निकल कर वो सीधे समंदर के किनारे जा रुका।
नारंगी लाइट्स, रात की ठंडी हवा, और लहरों का शोर... सबकुछ उसके अंदर के शोर से कम लग रहा था।
उसने एक धीमा गाना चलाया...
गाना जो शायद उसके दिल की बात कह रहा था—
"तेरे होने से ही मेरे होने का मतलब मिला..."
उसकी ऑडी की खिड़कियाँ आधी खुली थीं, बाहर से आती ठंडी हवा उसके बालों से खेल रही थी, मगर उसकी आँखें स्थिर थीं, कहीं दूर… बहुत दूर… जैसे किसी और वक़्त में पहुँच गई हों।
उसके ज़हन में एक के बाद एक पल चलने लगे — जैसे कोई स्लाइड शो हो रहा हो, दिल के पर्दे पर।
वही पहली मुलाक़ात...
अँधेरे कमरे में उसकी बाहों में गिरती मारिया… उसका घबराया हुआ चेहरा…
"क-कौन है?" की वो काँपती आवाज़…
मीर ने उस पल में उसे महसूस किया था — पहली बार, किसी को यूं बिना देखे जान लेने का एहसास।
वो नहीं चाहता था कि वो उससे डरे, मगर फिर... उसी डर ने एक रिश्ता बो दिया था।
फिर स्टेज पर वो पल...
"बहकता है… महकता है… आज मेरा मन…"
जब मारिया ने गाना गाया था, मीर जैसे जम गया था।
हॉल की भीड़ में सब कुछ धुंधला था, बस उसकी आवाज़, उसकी मौजूदगी, उसकी थिरकती पलकों की मासूमियत... सब कुछ शोर से अलग, सुकून से भरा।
फिर वो लम्हा जब दो गुंडे उसके पास आए...
और मीर का खून खौल उठा था।
उसने सोचा नहीं था — बस हरकत कर दी थी।
और जब मारिया ने थरथराते लहजे में "थैंक यू" कहा था…
मीर के अंदर कुछ पिघलने लगा था।
उस आवाज़ में एक मासूम सी ताक़त थी — जैसे वो खुद को संभाल रही हो, पर फिर भी टूटने से डरती हो।
कार के अंदर वो लंबी ड्राइव...
"गलियाँ थोड़ी संकरी हैं…"
उसका झिझकते हुए सच छुपाना…
और मीर का उसे सहज करना…
हर शब्द, हर मुस्कान… मीर के दिल में जैसे एक नर्म सा चेहरा उकेर रहे थे।
और आखिरी पल…
जब उसने बस स्टॉप पर मीर को अलविदा कहा था…
"पलट… पलट…"
मीर आज भी उस एक झलक को दोबारा जी रहा था — वो नज़रें, वो इशारा…
और फिर गेट के उस पार खो जाना…
मीर ने अपनी आँखें बंद कीं, सिर सीट पर टिकाया और हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई।
दिल ने धीरे से कहा —
"वो मुझे नहीं पहचानती… मगर मेरी हर पहचान अब उसी के नाम की है।"
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