लघु उपन्यास यशस्विनी(देह से आत्मा तक) : अध्याय1 दंश और पीड़ा
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यशस्विनी 21वीं सदी में महिलाओं की बदलती भूमिकाविषय पर एक आलेख लेखन में व्यस्त है।अपने लैपटॉप पर हेडफोन से वॉइस टाइपिंग करने केसमय वह कई बार भावनाओं में डूबती- उतरती रही। उसने यह महसूस किया कि 21वीं सदी मेंमहिलाएं अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने को तैयार हैं और जीवन का ऐसा कौन सा क्षेत्रहै, जहां उन्होंने अपनी पहचान स्थापित नहीं की है, अपनी योग्यता सिद्ध नहीं की है,वहींमहिलाओं के विरुद्ध देश में ज्यादती की बढ़ती घटनाओं पर वह बार-बार व्यथित भी होतीरही।
वह शहरके कृष्ण प्रेमालय सामाजिक संस्थान की योग प्रशिक्षक है। अखबारों में भारतीय संस्कृति,योग से लेकर समसामयिक विषयों पर फ्रीलांसर जर्नलिस्ट का भी काम करती है।सार्वजनिक जीवन,घर-परिवारआदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका का बारीक विश्लेषण करते हुए वह इस रिपोर्टको अंतिम रूप देने ही जा रही थी कि उसे न्यूज़ पेग का एक मटेरियल मिल गया।इसे पढ़कर उसका मन वितृष्णासे भर उठा। खबर थी, चलती ट्रेन में एक युवा महिला से उसके पति के सामने ही सामूहिक…..
यशस्विनीघृणा और क्षोभ से भर उठी।वाह रे महिला सशक्तिकरण। नवरात्रि पर कन्याओं और नारियों कोपूजने वाले देश में शर्मसार करने वाली एक और घटना और वह भी देश के सबसे बड़े सार्वजनिकपरिवहन के साधन में। जब महिलाएं यहां सुरक्षित नहीं हैं तो और कहां होंगी? वॉइस टाइपिंगकरते-करते जैसे कुछ समय के लिए वह चेतना शून्य हो गई।…….बस मेरे इस आर्टिकल के साथबॉक्स में लगाए गए इस न्यूज़ पेग को पढ़कर लोग कुछ देर के लिए ही संवेदना प्रकट करेंगेऔर दूसरे ही दिन सब कुछ भूल जाएंगे। न्यूज़ पढ़ते-पढ़ते कुछ लोग इसके लिए भी उस महिलाको ही दोष देंगे जो एक बड़ी नारकीय यंत्रणा से गुजरी है और जैसे उस वाकये ने उसकी अंतरात्माको ही रौंद कर रख दिया होगा…..
यशस्विनीको कुछ नेताओं के अटपटे बयान भी याद आने लगे कि ….इस तरह रात को नहीं निकलना चाहिए…..कि सेफ साइड लेकर ही यात्रा करनी चाहिए ….. कि इस तरह छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए…...किमहिलाओं को पश्चिम की नकल पर जींस नहीं पहननी चाहिए…. . आदि-आदि….. उसने सोचा ये सेफसाइड क्या होता है? क्या महिलाएं घरों में कैद होकर रह जाएं... यही सेफ़साइड है?…. क्यारात को इतने समय के बाद घर से बाहर न निकलें, यह सेफ़ साइड है?….. और इस सेफ़साइड काकितनी महिलाएं पालन कर पाएंगी?….. आज भी हजारों लाखों महिलाएं मजदूरी करने घर से निकलतीहैं...... वनोपज एकत्र करने के लिए अकेले ही वनों में जाती हैं, क्योंकि ये उनकी आजीविकाहै….. हजारों- लाखों महिलाएं गांव की सुरक्षित आबादी से दूर खेतों में जाकर कृषि कार्यऔर कृषि मजदूर के रूप में कार्य करती हैं……. नगर निगम की स्वच्छता कर्मचारियों से लेकर... शहर के निर्माण कार्यों में मजदूरी….पेट्रोल पंप कर्मियों, अस्पतालों, बैंकों,रेलवे की रात्रिकालीन सेवाओं आदि अनेक जगहों पर महिलाएं रात-दिन कार्य कर रही हैं….वेकहाँ-कहाँ सेफ़ साइड लेकर चलें….
(2)
अचानक केबिन में आहट हुई और मनकी ने ट्रे में चायका कप लेकर भीतर प्रवेश किया। यशस्विनी प्रायः दोपहर बाद किसी समय मनकी के चाय लेकरआने पर उसे देखते ही तरोताजा महसूस करती है और उससे एक दो बातें कर लिया करती है लेकिनअभी वह इस चिंतन प्रक्रिया में ही तल्लीन थी कि बस उसने मनकी को चाय का कप रखकर वापसजाते हुए देखा।अब उसने चाय का कप उठा लिया और एक - दो घूंट लेने के बाद फिर आर्टिकलपर ध्यान केंद्रित किया
यशस्विनीआर्टिकल में प्रयुक्त किए गए डाटा को ध्यान से देखने लगी। जिन लोगों से उसने साक्षात्कारलिए हैं, उसकी सही जगह, वाक्यों की लंबाई आदि पर उसका ध्यान बार-बार जाता रहा।
विषयगंभीर था। कुछ देर के लिए टाइपिंग रोक कर चाय के घूँट नीचे उतारते हुए वह फिर सोचनेलगी….
यह तोहुई अपने घर से बाहर वाली स्थिति…. घर के भीतर भी क्या महिलाओं को समझौते नहीं करनेपड़ते? अगर महिला कामकाजी है तो दोनों जगह अर्थात ड्यूटी में और घर में उसे समान दक्षतासे कार्य करना होता है... अगर केवल घरेलू महिला है तो कुछ घरों में उसे बार-बार यहताने भी सुनने को मिलते हैं कि लोग घर और बाहर दोनों जगह काम कर रही हैं और एक तुमहो कि तुमसे केवल घर का काम नहीं सम्हलता…...।
यशस्विनी को कुछ वर्ष पूर्वदेश की राजधानी में हुई ऐसी ही एक जघन्य घटना की फिर से याद हो आई….. काम तो बालिगअपराधियों वाला... लेकिन कड़ी सजा से छूट मिल जाना केवल नाबालिग होने के आधार पर...वाहरे इंसाफ़……..........
यशस्विनी अभी रिपोर्ट कोअंतिम रूप देने ही वाली थी कि संस्थान के कंप्यूटर एक्सपर्ट रोहित ने कमरे में आनेकी अनुमति चाही।
-अरे रोहित जी! आप बाहरक्यों खड़े हैं?इधर आइए।आप मुझसे बिना पूछे भी भीतर आ सकते हैं।
- जी, राधे-राधे महोदया।
- राधे-राधे। आप किसी खासकार्य में व्यस्त तो नहीं हैं?
- नहीं, कोई खास काम तोनहीं है।संपादक जी का फोन आने पर रूटीन में अगले रविवारीय परिशिष्ट के लिए अपने लेखको अंतिम रूप दे रही थी पर अभी उसमें समय है। बताइए कैसे आना हुआ?
रोहित एक योग सत्र की तैयारी के संबंध में आए थे।अपनीबात रख कर और योजना पर चर्चा कर वे चले गए।यशस्विनी सोचने लगी कि रोहित के सामने तो महिला सशक्तिकरण की सारी दलीलें ध्वस्त हो जातीहैं…. कितने अलग हैं रोहित... कभी उन्होंने बेवजह मुझसे कोई बात नहीं की और उनकी नजरेंभी कितना सम्मान लिए हुए होती हैं, केवल मेरे प्रति ही नहीं,सभी महिलाओं के प्रति….न जाने यह बंदा किस मिट्टी का बना है? अगर सारे पुरुष उनके जैसी सोच वाले हो जाएं तोफिर समस्या ही कहां रहेगी?
यह सब सोचती हुई यशस्विनीने अपने आलेख की अंतिम पंक्ति लिखी और अखबार में प्रेषित करने के लिए अपने ईमेल मेंलॉग इन किया।
(क्रमशः)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय
( पूर्णतः काल्पनिक रचना।किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद,संस्था,स्थान, नीति, सिद्धांत,समूह, निर्णय, कालावधि, घटना,धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)