आज कल मानसिक तनाव और मानसिक बीमारी सामान्यतः हैं और इसका कारण है भौतिक सुखों का प्रदर्शन आसानी से उपलब्ध होना और इसके विपरीत इंसानों का इंसानों के साथ प्राकृतिक व्यवहार का कम होना । याद कीजिए कुछ सालों पहले जा हम रहते थे वह के आस पास के लोगों की दिनचर्या से हम नियमित रूप से जुड़े थे उसमें मानसिक उन्मत्ता के कोई कारक नहीं थे । पर अब हम चारों तरफ से इन कारकों से जुड़े हैं। इसका सबसे बड़ा स्त्रोत हमारा मोबाइल या डिजिटल उपकरण ही है । हमारे जीवन के छोटे से छोटे क्षणों से संबंधित कोई न कोई सामग्री मिल ही जाती है ये सामग्री तीन तरह की हो सकती है एक ऐसी जहां आपकी स्थिति को बढ़ा चढ़ा के कोई गंभीर रूप दिखाया जाए । दूसरा जिसमें इसे बहुत ही नगण्य रूप में दिखाया जाए और अनदेखा करने की सिख दी जाए । तीसरा जिसमें इस स्थिति से निकलने का साइंटिफिक तरीका बताया गया हो कि अपनी मानसिक ताकत को कैसे दुरुस्त किया जाए । पर असल में होता ये हैं कि अधिकतर हम पहले और दूसरे में ही अटक जाते है। जबकि मानसिक विकास तभी होगा जब हम अपनी स्थिति को स्वयं देखे परखे समझे ।
कमजोर मानसिक स्थिति !
ऐसे तो यह युग प्रगति का है पर जैसा की मैने कहा कि हमारी हर स्थिति के लिए हमें तीन प्रकार की सामग्री मिल जाती है पहले प्रकार की सामग्री से हमारा अंतरमन जरूरत से ज्यादा भावुक उद्वेग से भर जाता है अब हमें हर चीज में कमी ज्यादा दिखाई देगी । हर खुशी या गम या उपलब्धि जब तक हमारे उन स्तर तक नहीं पहुंचती जो हमने मोबाइल में देख कर महसूस किया है वो हमें छोटे और कम ही लगते है। यही कारण है कि अब लोग गिफ्ट का लेन देन महंगे रेस्टोरेंट में खाना सप्राइज पार्टी इन सब को ही सफल प्यार या ख्याल रखना मान चुके है अगर पेरेंट हमसे प्यार करते है तो वो हमारी जरूरत पूरी करने वाले हो जो जरूरत पूरी न कर पाए वो पेरेंट्स अपने बच्चों से प्यार नहीं करते ऐसी भावना डेवलप होते जाती है पेरेंट्स में भी और बच्चों में भी । जबकि अच्छे पेरेंट कैसे होने चाहिए कैसे डिफाइन करेंगे । ऐसे ही अगर आपके पास दोस्तो की फौज नहीं है तो आप इंटरेस्टिंग पर्सन नहीं हो ..आप सोशल पर्सन नहीं हो । ये एग्जांपल सेट कैसे होने लग गया क्यू हम इतने दिमागी बीमार हो गए । दूसरी तरफ कुछ ऐसी सामग्री है जिसे देख कर सोच यही हो जाती है इस दुनिया सब झूठा है अगर कुछ हासिल नहीं हो पा रहा है तो उसपर ध्यान ही मत दो कंफर्ट के हिसाब से लोग चेंज करते जाओ क्योंकि जिंदगी एक ही जीनी है तो एथिक्स और लॉयल्टी रखने से क्या ? ये विचार या ये पैटर्न कितने मानसिक रोग पैदा कर रही है हमें पता ही नहीं है कही किसी को मानसिक तनाव हैं , कोई मानसिक शिथिलता या शून्यता में है।
ऐसी स्थिति आती कब है?
ये स्थिति अधिकतर तब ही आती है जब हम अपने काम से ज्यादा ,उम्मीद से बंधे होते है । उम्मीद मानव जीवन के विकास में ईंधन के जैसे है पर इसकी अति मानव जीवन को खराब ओर निराशाजनक बना सकती है । फिर भले ही ये उम्मीद किसी संबंध या संबंधी से हो , स्वयं के काम से हो , या कामकाजी लोगों से हो उम्मीदें मानव को बंधने का काम करती है इसलिए एक सीमित मात्रा का निर्भरता ही उम्मीद पर रहे । अगर ये उम्मीद किसी संबंध या किसी व्यक्ति से हैं तो ये ओर घातक सिद्ध होता है । किसी व्यक्ति से लगाव उसपर निर्भरता हमें गहरे मानसिक तनाव , मानसिक रोगी में तब्दील कर सकती है कई बार तो लोग आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते है । इस तनाव से निकलना उतना ही कठिन है जितना सोते हुए को पढ़ाना और भी दोहराने को कहना । क्योंकि तब आपका मन दिमाग सब उस उम्मीद के गिरफ्त में होता है जो पूरी नहीं हुई । उस व्यक्ति की अनुपस्थिति आपको आपके सारी असफलता आपकी कमियों को गिनने लगती है इसी कमियों जो शायद हो भी न लेकिन हम उस स्थिति में चले जाते है जहां हम खुद को भी स्वीकार नहीं कर पाते तो खुद की कोई भी बात कमी ही महसूस होने लगती है।
इस स्थिति से निकला कैसे जाए ?
इन स्थितियों से निकलने के लिए सबसे आसान तरीका अध्यात्म ही है जो सही तरीके से आपको निकाल पाता है । कहते हैं जहर जहर को काटता है उसी तरह नाउम्मीदी निराशा इस भाव से थोड़ी स्थिर की जा सकती है कि जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करना बिना किसी संबंध के । बात समझने में थोड़ी कठिन है पर कारगर है । सबसे पहला काम यही है जो भी इंसान या उसका व्यवहार आपको तकलीफ दे रहा है उसे निश्चित करे l अगर आपने सही तरीके से ये निश्चित कर लिया है तो दूसरा कदम है उस कारण को बिना किसी संबंध महसूस किए उसे वैसा का वैसा अपनाना । तीसरा कदम यही के अपने आप को किसी ऊपरी शक्ति यानि कोई गुरु कोई भगवान या कोई महात्मा की कृपा दृष्टि हो ऐसा महसूस कराओ । ये सोच दिमाग को थोड़ा आराम देगी । जब तक आप सही न हो जाओ ये तीन स्टेप बार बार दुहराओ। जब ये शांति महसूस होने लगे तब मन से कहो मुझे काम करना है जो जो चीजे या छोटे छोटे काम जो आपको थोड़ा अच्छा फील कराते है ऐसे कोई तीन काम हर दिन तुम्हे करना है अगर ये आपकी कोई चाइल्डिस हॉबी हो तो बहुत अच्छा । इसकी शुरुआत आप स्वयं के खान पान , शारीरिक देख भाल से शुरू कर सकते है । और अपना संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है के आप रोज स्वयं से कहे के मैं अपने मानसिक शांति का ख्याल रखूंगा और अब किसी के कंट्रोल में इसे नहीं आने दूंगा । समय समय पर डिटैचमेंट का प्रयास करते रहे ।