Ishq Wali Baarish in Hindi Love Stories by Asiya Aslam books and stories PDF | इश्क़ वाली बारिश

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इश्क़ वाली बारिश

बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर धीमे-धीमे दस्तक दे रही थीं। कैंटीन के कोने की टेबल पर बैठी अनन्या चाय के कप को दोनों हथेलियों से थामे बाहर देख रही थी। बाहर का मौसम भी शायद उसके मन की तरह भीगा-बिखरा सा था।

"हर बारिश में तू उसे ही क्यों ढूंढती है?" उसकी सहेली सिमी ने पूछा।

अनन्या ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “क्योंकि पहली बार वो भी तो इसी मौसम में मिला था…”

दो साल पहले की बात है।

कॉलेज का लाइब्रेरी कॉर्नर।
किताबों के बीच उसकी नज़रें एक उपन्यास ढूंढ रही थीं—‘Love in the Rain’। और तभी वही आवाज़—

“Excuse me, क्या ये बुक आप ले रही हैं?”

अनन्या ने पलट कर देखा। नीली शर्ट, बिखरे बाल और चेहरे पर एक शांत मुस्कान।
“हाँ, पर आप पहले ले सकते हैं।”

“नहीं, आप पढ़िए। वैसे भी... बारिश में पढ़ने का असली मज़ा तो पहली बार लेने वालों को ही आता है।”

बस, यहीं से शुरुआत हुई थी—अनन्या और आरव की।

लाइब्रेरी की मुलाकातें अब रोज़ की आदत बन गईं। दोनों को किताबें पसंद थीं, चुप रहकर साथ बैठना पसंद था। वो एक-दूसरे की उपस्थिति में खुद को मुकम्मल महसूस करते थे।

एक शाम, तेज़ बारिश हो रही थी।

अनन्या बिना छतरी के पुराने बरगद के नीचे खड़ी थी।
आरव दौड़ता हुआ आया, छाता लिए।
“तुम पागल हो क्या? इतनी भीग क्यों रही हो?”

“क्योंकि तुमसे मिलना था…” अनन्या की आँखें चमक रही थीं।

आरव कुछ देर उसे देखता रहा, फिर मुस्कुराया, “मुझे लगता था कि किताबों वाली मोहब्बत झूठी होती है। लेकिन तुम्हें देखकर विश्वास हुआ—सच्चा प्यार होता है।”

उसने पहली बार उसका हाथ पकड़ा।
अनन्या बोली, “कभी-कभी बारिश सिर्फ भीगने के लिए नहीं होती… वो इश्क़ की जुबान होती है।”

वो दिन उनके इज़हार का दिन था।

इसके बाद हर मुलाकात खास बन गई। चाय की दुकान, लाइब्रेरी की मेज़, कैंपस की दीवारें—हर जगह उनकी ख़ामोशियों में मोहब्बत की आवाज़ थी।

लेकिन वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।

“अनन्या,” एक दिन आरव ने कहा, “मुझे लंदन की यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिल गई है।”

अनन्या ने गहरी साँस ली।
“तो अब जाना ही होगा…”

“मैं नहीं चाहता कि हम दूर हों।”

“जाओ आरव। सपनों को उड़ान देने से मत रोको। मेरा सपना तो यहीं है—तुम्हारा इंतज़ार करना।”

और फिर… अलविदा कहने का दिन आया।

बरगद के नीचे वही मौसम था। बारिश की बूँदें और भीगी पत्तियाँ।
आरव ने जाते-जाते कहा, “वादा करो… इस बरगद के नीचे फिर मिलोगी।”

अनन्या ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया।

वक़्त बीतता गया…

अनन्या अब अकेली थी, पर मजबूत। हर बारिश में वह उसी बरगद के नीचे आती, हाथ में वही किताब लेकर—‘Love in the Rain’।
हर बार किसी आशा के साथ… हर बार किसी टूटे सपने के साथ।

दो साल बाद—

आज भी वही बरगद, वही मौसम… लेकिन आज दिल कुछ बेचैन था।
अनन्या खड़ी थी, आँखें बंद किए, बारिश को महसूस करते हुए।

“अब भी भीग जाती हो?” किसी ने पीछे से कहा।

उसने आँखें खोलीं—आरव खड़ा था।

छाता उसके सिर पर किया और बोला, “मैं आया हूँ… हमेशा के लिए।”

अनन्या के होंठ कांप रहे थे, “तुम लौट आए?”

“हाँ। क्योंकि हर सपना पूरा करने के बाद इंसान वहीं लौटता है, जहाँ उसका दिल छूट गया था। और मेरा दिल… तुम्हारे पास था।”

अनन्या की आँखें भर आईं।
दोनों बरगद के नीचे खड़े थे।
बारिश ज़ोरों से गिर रही थी।

और उनकी मोहब्बत फिर से भीग रही थी।