टाम ज़िंदा है। (6)
बात और प्याज़ को जितना भी है बड़ा लो, छील लो। छिलते रहो, बात करते जाओ। कुछ भी नहीं हो सकता। सोचो, जिंदगी को यारों, जिओ... काटो नहीं। चार दीवारी कमरा होता है, मैं जानता हूँ... जेल भी मे यही होता है। सब्जेक्ट एक ही है... जीते कैसे हो तुम पर है।
ऐसे ही एक दिन मे पुलिस वर्दी मे पूरा स्कूल कहा कहा जाता था, उसने खगाल लिया था... तफतीश पूरी कहा हुई थी... केस बदले सच मे आपने बेटे की बली.... नहीं नहीं --- कहने और करने मे अंतर होता है... आज उसका मन दुखा था... भवानी सिंह ने कहा था ---" कयो ज़िन्दगी झमेले मे डाल रहे हो, साहब। " त्रिपाठी सोच कर बोला... " कोई तो इस गर्म तेल मे हाथ डाले गा... भावनी सिंह। " भावनी सिंह ने थोड़ा ऐसे कहा ----" जंगल की आग किस किस को जला दें, ये वो आग है त्रिपाठी जी जिस का मुकदर ही जलना है... जैसे सिगरेट का जलना...
आप के मन का जलना.... अंदर ही अंदर जलते रहो, कोई पुलिस वाला साहनुभूति भी शायद ही करे। " भवानी सिंह ने टूटके बोझल दिमाग़ से कहा था। त्रिपाठी को वो समझना चाहता था, कि ईमानदारी और जमीर आज के जमाने मे सिर्फ इसकी क़ीमत बीड़ी फुकने से जयादा कुछ नहीं है। भवानी ने कहा ----" देश की सेवा करने का शौक था त्रिपाठी, तो शादी नहीं करना था, एक चीज खोनी पड़ती है... जज्बातों की बाते खोखली होती है... छोड़ दो ये जज्बात, भावुकता ---- किसी काम के नहीं है। "
" हल्के मे जज्बातो को हल्के मे लेने का मतलब आपने बेटे को खत्म करना होगा। "--- सोच कर जैसे काप गया था, त्रिपाठी।
" कौन सुने गा फिर --- ललचार लोगों की बात " चुप था त्रिपाठी की यही बात सुन भवानी सिंह A. S. I.... " हम फिर पुलिस लाइन मे कयो आये... अगर कुछ देश का ढंग से करना ही नहीं था... " इस बात पे भी चुप था।
फिर सोच के बोला भवानी " अगर चिंता मन का गम खत्म हो गया हो, तो सामने बार मे चले। " जानबूझ के बोला था।
दूसरा दिन भी बीतने ही वाला था।
मिसिंग लड़का... नाम तेजा त्रिपाठी था। उम्र 12 वर्ष, और ढूढ़ने वाले और बताने वाले को 5,00,000 /-
पिचर भी अख़बार मे आज रात छप जायेगी। त्रिपाठी को कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। कुछ बाते तो भवानी सिंह की ही अच्छी लगी थी उसे।
फिर अचानक उसे याद आया। तभी वो कमरे की छत पर था।
डायरी निकाली।
पंनो को फरोला.... छटपटा किया।
दो नंबर थे। एक नंबर पर लाल बॉलपेन से निशान लगा हुआ था।
फोन लगा.... लम्मी घंटी।
फिर लम्मी घंटी....
मोबाईल उठा....
हेलो -----
हेलो ----------- कौन साहब !
मैं......
हरिया दूर देश शे बोल रही हूँ। "
तभी दुखी होकर त्रिपाठी ने नंबर काट दिया।
रात भर वो खूब जागा...... सोचता रहा सब अगली पिछली... सब उसकी बाते।
दो दिन निकल चुके थे।
सुरीली आवाज से फोन गुजा.... हेलो मोपड। "
घर मे बे आराम त्रिपाठी एक दम से उठा।
फोन उठ चूका था।
" थोड़ी हेकड़ी सही हो गयी हो तो बोलू... "
हेलो आप कौन... "
"मै सुरीली मधुर आवाज वाली ज्योति हूँ जी। "
त्रिपाठी एक दम चूकना हो चूका था।
" आप कैसे मुझे जानती है... मेरी हेकड़ी कब देखी आपने " त्रिपाठी ने प्रश्न रखा।
"देखो मिस्टर ---- न मैंने कोई गलत काम किये है न करुँगी। आपने अमर को कयो भेजा था... वो हसन था... हम अंधे नहीं है... शेयर मार्किट के बारे वो बम्ब बनाने वाला कया कर सकता है।" फिर वो चुप हो गयी।
बता दू.... आप का बच्चा तेजा त्रिपाठी ट्युशन मे कमजोर है, उसे आप आपने घर पर देख सकते है, प्ल्ज़ देखे,आप इधर मुँह उठा कर मत चले आना। " तभी फोन रख दिया गया।
तभी.................
दरवाजा शोभा ने खोला... आपना लाल देख कर चिपक गयी सीने से लगा... खूब रोयी। चिलायी ....
त्रिपाठी की आखें भर आयी।
प्यार पता चलता है तब, ज़ब कोई दूर थोड़ा दूर चला जाता है। प्यार कया है कोई नापने की मशीन नहीं बरखुरदार......
(चलदा ) ------------------------ नीरज शर्मा ।