क्यों करें ब्रह्मचर्य ?
इतनी सारी मेहनत सिर्फ़ एक आदत को हटाने के लिए?
जी नहीं,
ब्रह्मचर्य.. सिर्फ़ इसलिए नहीं करना है क्योंकि आपको हस्तमैथुन की आदत हटानी है,
सिर्फ़ इसलिए नहीं करना है क्योंकि आपको पोर्न की आदत हटानी है,
सिर्फ़ इसलिए नहीं करना है क्योंकि आपको नशे की आदत हटानी है।
ब्रह्मचर्य इसलिए करना है क्योंकि आप अपना जीवन उस तरह जी पाओ,
1. जैसे आप जीना चाहते हो,
2. जैसे आपको जीना चाहिए,
3. जैसे आप जी सकते हो,
4. परंतु इन बुरी आदतों के वश होकर जी नहीं पा रहे हो।
आपको ब्रह्मचर्य का पालन इसलिए करना है,
जिससे आप अपनी सारी क्षमताओं का संपूर्ण उपयोग करके अपना, अपनों का और समाज का जीवन सार्थक कर पाओ और अपने इस अमूल्य मनुष्य जीवन का संपूर्ण लाभ उठा पाओ।
ब्रह्मचर्य की साधना जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। क्योंकि ब्रह्मचर्य की साधना ही एक पुरुष का संपूर्ण चरित्र बनाती है। ब्रह्मचर्य की उच्चतम स्तर की सफलता से वो आत्मा और परमात्मा का योग करके जीवन के सर्वोच्च ध्येय की प्राप्ति कर लेता है।
परंतु चलो मान लो कि यदि उच्चतम स्तर तक नहीं भी कर पाया तो भी जिस स्तर तक पहुँचेगा उस स्तर का उच्च चरित्र वो जीवन भर के लिए बना ही देगा।
इसीलिए वैदिक संस्कृति में शिक्षण का प्रथम चरण ब्रह्मचर्य होता था। जिसके कारण एकदम चरित्रवान युवा गुरुकुल से निकलते थे और समाज में उच्च स्तर का अनुशासन और नीतिपरायणता बनी रहती थी।
जब कि आज की शिक्षण प्रणाली का ध्येय विद्यार्थी के जीवन और समाज में अनुशासन और नीतिपरायणता लाना न होकर मात्र अर्थ की प्राप्ति बन गया है। और वो भी सही से किसी को नहीं दिला पा रही है।
ख़ैर, अभी ये तो समझ लिया की ब्रह्मचर्य का पालन क्यों करना है...
अब आइए जानते हैं ब्रह्मचर्य पालन न करने के दुष्प्रभाव, अर्थात्... वीर्य नाश के 6 असर :
A. शारीरिक असर:
आयु का नाश, स्वास्थ्य का नाश, बल का नाश।
दीर्घायुः त्रयः उपस्तम्भाः।
आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति। —चरक संहिता
अर्थात् – दीर्घायु के तीन उपस्तम्भ हैं : आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य।
समस्त आयुर्वेद शास्त्र इस बात को लेकर अटल है कि, मनुष्य की आयु शरीर में संचित प्राण शक्ति से बढ़ती है। उसकी प्राण शक्ति वीर्य की वृद्धि से बढ़ती है। और वीर्य की वृद्धि सात्त्विक आहार निन्द्रा से होती है।
राजसिक-तामसिक आहार निन्द्रा पाने वाले व्यक्ति का वीर्यपात जाने अनजाने में होता ही रहता है, फिर वो कितना भी रोकने का प्रयास कर ले।
राजसिक वृत्तियाँ : अधिक मात्रा में आहार लेना, अत्यधिक गर्म, तीखा, नमकीन, उत्तेजक, तला हुआ आहार लेना और देर रात तक जगना आदि हैं।
तामसिक वृत्तियाँ : बासी, ठंडा भोजन, प्याज़, लहसुन, मांस, धूम्रपान, मदिरा आदि का सेवन करना और ज़रूरत से ज़्यादा सोते रहना आदि हैं।
जब तक आप इन राजसिक व तामसिक वृत्तियों में प्रवृत्त रहेंगे तब तक वीर्य का नाश होगा ही। और यदि आप अभी भी नहीं समझे कि हस्तमैथुन आदि कुचेष्टाओं से शरीर से वीर्य निकल जाने पर शरीर की क्या हालत होती है? तो आइए एक और उदाहरण से समझते है।
आपने गन्ने के डंडे को देखा है? वह कितना मज़बूत और ताक़तवर होता है? इतना की उसके प्रहार से किसी की हड्डियाँ भी तोड़ी जा सकती हैं।
अब उसी गन्ने के डंडे का मंथन कर दो। अर्थात् उसको निचोड़ कर उसमे से सारा रस निकाल दो।
अब जो गन्ने के कुलचे बचे, उससे किसी पर प्रहार करने का प्रयास करो।
हड्डियाँ क्या? एक मटका भी नहीं टूटेगा उससे। यही हाल होता है हमारे शरीर का; जब हम हस्तमैथुन आदि से उसका मंथन करके उसके समस्त कोषों में से वीर्य को निचोड़कर निकाल देते हैं।
जिस प्रकार गन्ने में रस है उसी प्रकार शरीर में वीर्य होता है। वो निकल जाने पर पुरुष एक चलता फिरता मृतदेह बनकर रह जाता है।
हमारे शरीर में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ वीर्य विद्यमान नहीं है। जब वीर्य निकलता है तो हर जगह से ऊर्जा और शक्ति निकल जाती है।
ऐसा मत समझिए की वीर्य नाश से सिर्फ़ आँख की रोशनी जाएगी, या शरीर के किसी एक दो अंग पर असर पड़ेगा। वीर्यनाश से पूरे शरीर के प्रत्येक अंग पर असर पड़ता है। क्यूँकि वीर्य शरीर के एक एक कोष में होता है। तभी इसका एक-एक शुक्राणु (स्पर्म) पूरा का पूरा मनुष्य बनाता है, न कि मात्र कुछ अंग।
इसीलिए चाहे कितना बड़ा मर्द क्यों न हो, वीर्य स्खलित होने के पश्चात वो निर्बल हो ही जाता है। उसके पश्चात योग छोड़ो वो भोग भी नहीं कर सकता।
क्योंकि भोग के लिए भी शरीर में शक्ति और अंगों में बल चाहिए होता है। और जब कोई हस्तमैथुन की आदत लगा देता है तो उसके जननांग की संवेदनशीलता पर भारी असर पड़ता है।
फिर जब विवाह के पश्चात सच में पुत्र प्राप्ति के लिए सहवास करना होता है तो स्त्री का जननांग भी उसे उत्तेजित नहीं कर पाता है। क्योंकि लंबे समय तक हाथ से मसले जाने से या तो वह असंवेदनशील (Desensitised) हो जाता है या तो अतिसंवेदनशील (Hyper Sensitive) हो जाता है।
जिसके परिणाम स्वरूप फिर वो स्तंभन दोष (Erectile Dysfunction) से पीड़ित होने लगता है। जिससे फिर चाहने पर भी वो भोग नहीं कर सकता।
और यदि आपको मॉडर्न विज्ञान से इनके प्रमाण चाहिए तो वो भी दे देते है।
1. हस्तमैथुन करने से टेस्टोस्टेरोन का स्तर 48-59% तक कम हो जाता है –PUBMED, 2003 & 2018
2. वीर्य स्खलन से शरीर में टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के लिए आवश्यक जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम और विटामिन सी और अन्य विटामिनों की कमी हो जाती है। —PUBMED 2018, WILEY 2013
3. हस्तमैथुन से शरीर में प्रोलैक्टिन और एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ जाता है। —PUBMED, 2019
4. प्रोलैक्टिन एक हार्मोन है। जो आपको हमेशा थका हुआ और आलसी महसूस कराता है, आपकी प्रजनन शक्ति को घटाता है और आलस्य बढ़ाकर पेट के आसपास की चर्बी बढ़ाता है —PUBMED, 2020, Dr. Andrew Huberman 2021
5. उच्च प्रोलैक्टिन स्तर स्तंभन दोष (Erectile Dysfunction) और बांझपन (Infertility) बढ़ाता है —PATIENT, 2017
6. हस्तमैथुन एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ाकर टेस्टोस्टेरोन को कम करता है, शरीर में मोटापा बढ़ाता है, और आपको अधिक स्त्रैण (Feminine), असंयमी और भावनात्मक बनाता है —PUBMED 2020, HEALTHLINE 2019
7. हस्तमैथुन हड्डियों और मांसपेशियों (Muscles) का घनत्व (Density) कम करता है —PUBMED, 2021
B. मानसिक असर
इस बात को अच्छे से समझ लीजिए कि, आपके जीवन में उत्साह, आत्मविश्वास, एकाग्रता, मोटिवेशन और जीवन में आगे बढ़ने की तीव्र इच्छा आदि न होना यह सब सामान्य बात नहीं है। यह सब आपके दशकों के वीर्यनाश का परिणाम है।
उत्साह (Excitement, Energy) का विनाश : पोर्न और हस्तमैथुन की आदत आपकी विचारसरणी ऐसी बना देती है कि फिर आपका स्वभाव जीवन के हर क्षेत्र में बिना मेहनत किए सब कुछ पाने का हो जाता है।
आप जीवन के हर क्षेत्र में सिर्फ़ दिन में सपने देखने वाले, कल्पनाएँ करने वाले और हवाबाज़ी करने वाले इंसान बन जाते हो और आपमें कोई काम करने का प्राकृतिक उत्साह नहीं रहता है। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
आत्मविश्वास (Confidence) और साहस का विनाश : एक समय था जब पुरुष अपने हाथों से शेर और हाथी तक से लड़ लेते थे। और 16 वर्ष की आयु में युद्ध में हज़ारों लोगों को परास्त करते थे। और आज समय है जब 30-35 वर्ष के अधेड़ युवा को किसी लड़की का रिप्लाई न आने पर पैनिक अटैक आने लगते हैं। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
स्मरणशक्ति (Memory) का विनाश : सदियों से भारत में समस्त वैदिक ज्ञान को सिर्फ़ मनुष्यों के मस्तिष्कों में संग्रह किया जाता था। हज़ारों लाखों श्लोकों को विद्यार्थी ऐसे कंठस्थ करके आगे की पीढ़ी को भी कंठस्त करवाया करते थे।
आज आप गीता के कुछ श्लोक भी ढंग से याद नहीं रख सकते। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
बुद्धि (Intelligence) का विनाश : (2014 में अमेरिका की JAMA Psychiatry में एक रिसर्च दी थी। जिसमें यह सिद्ध किया गया था की पोर्न व हस्तमैथुन करने वालों का मस्तिष्क (Brain) समय के साथ छोटा होने (Shrinks your brain) लगता है। जिससे व्यक्ति में कुछ ही वर्षों में छोटी छोटी बातों में अनिश्चितता, निर्णय शक्ति में निर्बलता और सामाजिक मूर्खता का प्रमाण बढ़ने लगता है।
उन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह असर कोकेन और गाँजा आदि नशीले ड्रग्स के जितना नुकसानदायक सिद्ध हुआ है। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
एकाग्रता (Focus) का विनाश : आज के समय में हम युवाओं के पास इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के कारण उस स्तर की सुविधाएँ और ज्ञान के स्रोत हैं जो संपूर्ण इतिहास में कभी किसी के पास नहीं थे।
अपने हाथ की उँगलियों के नीचे समस्त जगत का ज्ञान एक गूगल सर्च पर मिल जाता है। जितना ज्ञान कुछ वर्षों पहले लोग दशकों के परिश्रम और गहन अध्ययन के पश्चात भी प्राप्त नहीं कर पाते थे उतना ज्ञान आज आप कुछ ही मिनटों में एक गूगल सर्च करके पा सकते हो, वह भी निःशुल्क रूप से। परंतु फिर भी 98% लोग इसका कोई फ़ायदा नहीं उठा पाते क्योंकि उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए जो एकाग्रता चाहिए होती है वही आप में नहीं रही है।
जिससे हाथ में सोने का कटोरा लेकर भी आप उसमें भीख ही माँग रहे हैं। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
प्रेरणा (Motivation) का विनाश : अपना स्वयं का Gym है फिर भी व्यायाम करने का मन नहीं होता। पुस्तकों से भरे AC वाले कक्ष है फिर भी पढ़ाई करने का मन नहीं होता। पिताजी का बना बनाया व्यवसाय है फिर भी काम करने का मन नहीं होता। उच्च स्तर के कंप्यूटर, टेबलेट, फ़ास्ट wifi और इंटरनेट की दुनिया में कमाई के अनगिनत अवसर भी है, परंतु मेहनत करने का मन नहीं होता।
इतिहास के सबसे सुविधामय समय में होने के पश्चात भी आप में मोटिवेशन नहीं है। जीवन में पौरुष दिखाने और सफलता प्राप्त करने के लिए कोई अंदरूनी इच्छा नहीं है। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
संकल्प शक्ति का विनाश : ‘कल से सुबह प्रतिदिन उठकर नहा धोकर 10 मिनट व्यायाम करूँगा’ ‘कल से रोज़ कम से कम 4 माला का हरिनाम जप करूँगा’ ‘कल से फिर से कभी भी प्याज़ लहसुन का खाना नहीं खाऊँगा’
प्रतिदिन ऐसे अलग अलग संकल्प लेते हो परंतु फिर कल आने पर फिर से वैसे के वैसे ही बन के रह जाते हो जैसे पहले थे। कभी अपने छोटे से छोटे संकल्प पर भी दृढ़ रूप से डटे नहीं रह सकते। यह भी आपके दशकों के वीर्यनाश का ही परिणाम है।
डिप्रेशन को निमंत्रण : पूरे विश्व में बढ़ते हुए युवाओं के डिप्रेशन और आत्महत्या के किस्से भी इसी बात की संपूर्ण पुष्टि करते है जिसको देखकर आज विज्ञान समझ रहा है कि,
1. शरीर में टेस्टोस्टेरोन की कमी होने से डिप्रेशन और आत्मघाती विचार (Suicidal Thoughts) बढ़ते है। —NCBI 1989 Research
2. शरीर में टेस्टोस्टेरोन की बढ़ोतरी व्यक्ति में आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाती है। —NCBI 2020 Research
3. हस्तमैथुन से शरीर में जिंक और मैग्नीशियम की कमी हो जाती है और इनकी कमी व्यक्ति में डिप्रेशन और एंजाइटी बढ़ाती है। —NCBI 2013
4. उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर आपके आत्मविश्वास और ध्यान शक्ति बढ़ाता है, और कार्यदक्षता (Productivity) बढ़ाता है। —PUBMED 1990
5. सिर्फ़ सात दिनों के वीर्य रक्षण से शरीर में टेस्टोस्टेरोन 147% तक बढ़ता है जोकि आत्मविश्वास (Confidence) की अत्यंत ही अधिक वृद्धि करता है। इसीलिए टेस्टोस्टेरोन को पुरुषों का Success Hormone कहा जाता है। —PUBMED 2020, PUBMED 2003
6. टेस्टोस्टेरोन की वृद्धि व्यक्ति में उत्साह (Energy) और मोटिवेशन की वृद्धि करता है। और तनाव (Depression) घटाकर मानसिक स्वास्थ्य में त्वरित सुधार लाता है। —PUBMED, 2001
C. व्यावहारिक-सामाजिक असर
कभी एक सांड को देखा है? बड़ा सा, अत्यंत ही शक्तिशाली और यदि कोई परेशान करे तो तुरंत ही आक्रमण करके उसको ज़मीन पर रगड़ दे। उन्हीं का उपयोग होता है जाली कट्टू और बुलफ़ाइट जैसी साहसी लड़ाइयों में। और उन्हीं का उपयोग होता है गायों से स्वस्थ बछड़ों का जन्म करवाने के लिए।
सांड कभी अपना दमन सहन नहीं करता।
उससे यदि काम करवाना है तो भी उसके स्वभाव के अनुसार करवाना होगा। उसके स्वभाव और भावना के विरुद्ध आप उससे काम भी नहीं करवा सकते।
कभी एक बैल को देखा है?
सांड से छोटा, सांड से पतला, सांड से काफ़ी कम ताकतवर और सांड से काफ़ी अधिक पालतू। उनका उपयोग होता है अधिकतर खेत जोतने के लिए और भारवहन के लिए।
उनका उपयोग कभी गायों को गर्भवती करने के लिए नहीं किया जाता। यदि ख़रीदने भी जाओ तो बैल के सामने सांड का मूल्य काफ़ी अधिक होता है।
वैसे ही, अश्वों (घोड़ों) में भी दो प्रकार के अश्व होते है।
एक होता है बीजाश्व (Stallion) और दूसरा बधिया (Gelding) अश्व।
बिजाश्व बधिया अश्व से क़द में बड़े, ताकतवर और आक्रामक अश्व होते हैं। उन्हें नियंत्रित करना अत्यंत ही कठिन होता है। अत: मात्र बड़े-बड़े घुड़सवार और योद्धा ही इन्हें पालते हैं।
तदुपरांत मादा अश्वों को गर्भवती के लिए भी बिजाश्व का ही उपयोग होता है।
परंतु क्यों?
सांड और बैल, बीजाश्व और बधिया अश्व, दोनों ही यदि एक ही योनि के हैं। एक ही (पुरुष) लिंग के हैं। तो दोनों में इतना भेद क्यों?
क्यों एक नौकर की तरह और एक राजा की तरह रहता है? दोनों में आख़िर भेद क्या है?
भेद है! दोनों भले ही एक ही योनि के हों, दोनों भले ही एक ही माता पिता से जन्म लिए हों, और दोनों भले ही एक (पुरुष) लिंग के हों। परंतु एक की रगों में वो चीज़ दौड़ रही है, जो दूसरे की रगों में नहीं दौड़ रही।
वो है, वीर्य ।
जी हाँ! बछड़ा जन्म लेता है उसके पश्चात यदि उसे प्राकृतिक रूप से बढ़ने दिया जाता है तो वो बड़ा होकर विशाल, ताकतवर सांड बनता है।
परंतु यदि उसके अंडकोषों (Testicles) को काटकर उसका बंध्याकरण (Castration) कर दिया जाता है, तो उसके शरीर में वीर्य बनना बंद हो जाता है और वो वीर्यहीन, कम ताक़त वाला, सरलता से नियंत्रण में रखा जा सके ऐसा पालतू बैल बन जाता है।
वैसे ही,
अश्व के जन्म के कुछ समय बाद भी यदि उसे प्राकृतिक रूप से बड़ा होने दिया जाता है तो वो ताकतवर बीजाश्व बनता है। जिसको नियंत्रण करना बड़े साहस का काम होता है।
परंतु क्योंकि अधिकतर लोग यह नहीं कर पाते, इसलिए उसका भी बंध्याकरण करके उसे बधिया अश्व बना दिया जाता है। जिससे वो सरलता से पालतू बन जाता है और उसको नियंत्रण करना आसान हो जाता है।
वैसे ही,
आपने देखा होगा गली में कुत्तों का भी बंध्याकरण कर दिया जाता है। जिससे वे डरपोक बन जाए और उनमें किसी को काटने की ताक़त ही न रहे।
परंतु इन सभी की तरह प्रजा का बंध्याकरण तो किया नहीं जा सकता, इसीलिए जब प्रजा में अधिक साहसी और बहादुर युवान बढ़ने लगे तो पोर्न, गंदी फ़िल्में, और ऐड्वर्टाइज़ के रूप में अभद्र चलचित्र हर गली मुहल्ले के कोने-कोने और हर किसी के हाथ सरलता से उपलब्ध कर दिया जाता है। जिससे युवा अपना वीर्य नाश करके अपने आप को वीर्यहीन, डरपोक, साहसहीन व पालतू हो जाए और उन्हें जो कुछ भी बोलें वो चुपचाप बिना किसी प्रश्न या विद्रोह के करते रहें। जिससे प्रजा कभी किसी भी भ्रष्टाचार या अधर्म का विरोध न करें और शासक अपना शासन चिंतामुक्त होकर करते रहें।
इसीलिए, पहले के समय में जब भी कोई देश अन्य किसी प्रदेश पर आक्रमण करता था तो सबसे पहले वहाँ के सशक्त जवानों को मार देते थे और बच्चों, बूढ़ों और स्त्रियों को छोड़ देते थे। क्योंकि उन्हें पता है कि एक साहसी पुरुष भी परिस्थितियों को संपूर्ण रूप से पलटने की पूरी की पूरी शक्ति रखता है। तदुपरांत, जब दुश्मन की सेना अधिक ताकतवर और बड़ी होती थी तो राजा लोग नर्तकियों और वैश्याओं को रात में दुश्मन की सेनाओं के बीच में भेज देते थे। फिर दूसरे दिन वही सेना जब वीर्यहीन और पौरुषहीन हो जाती थी तो उस बड़ी सी सेना को छोटी सी सेना भी सरलता से हरा देती थी।
जब देश के क्रांतिकारी युवा अधर्मी राजा की प्रवृत्तियों का विद्रोह करना शुरू करते थे तब भी वे अधर्मी राजा उन्हीं युवाओं के आसपास वैश्यालय खुलवा देते थे। जहाँ वे युवा नर्तकियों को देख उत्तेजना से अपना वीर्य विनाश कर देते थे। जिससे फिर उनमें विद्रोह के लिए न शारीरिक बल रहता था न ही मानसिक। जिसके बाद उन्हें जो बोलो वो करने लगते थे।
आज वही वैश्यालय हर किसी के हाथ में उँगलियों के इशारे पर उपलब्ध करवाए गए हैं। जिससे समाज के सारे पुरुष अपना वीर्य व्यय करके पौरुषहीन हो जाएं और अधर्मी सरकार और धनवान कॉर्पोरेट वाले जो भी बोले वो बिना किसी प्रश्न या विद्रोह के चुपचाप पालतू पशु की भाँति करते रहे।
क्योंकि जब पुरुष वीर्यहीन हो जाता है तो उसकी संकल्पशक्ति, न्याय परायणता, धर्म आदि सब लोप होने लगता है। जिससे अत्यंत ही सरलता से उसे अन्यायी, अधर्मी और भ्रष्टाचारी बनाया जा सकता है। और ऐसे अन्यायी, अधर्मी और भ्रष्टाचारी लोगों को बड़े लोग सरलता से धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा आदि के प्रलोभन से अपनी उँगलियों पर नचा सकते हैं।
परंतु, वीर्यवान लोग अधर्मी शासकों के लिए हमेशा संकट के समान होते हैं। क्योंकि वे स्वतंत्र होते हैं।
ऐसे वीर्यवान युवा सरकार के दिये प्रलोभनों पर नहीं जीते और धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा तो दूर की बात है, वे साम, दाम, दंड, भेद किसी से भी अपने मूल्यों, नीतिपरायणता और धर्म का त्याग नहीं करते है।
अतः ऐसे वीर्यवान लोगों के होते हुए भ्रष्टाचार, अन्याय और अधर्म नहीं किया जा सकता।
इसीलिए इस बात को समझिए कि, जितनी भी बार आप अपना वीर्य नाश करते हैं उतनी बार आप न ही मात्र अपने आप की परंतु अपने संपूर्ण समाज की अधोगति करते है।
क्योंकि आज के समय में पुरुषों को नहीं परंतु उनकी पौरुष शक्ति का हनन करके ही युद्ध जीते जा सकते हैं। इसीलिए चीन आदि देश के जितने भी टिकटॉक आदि मोबाइल ऐप हैं, उनमें वे अपने देश में मात्र अच्छी और शैक्षणिक वीडियो को प्रचलित करते है। जब कि चीन के बाहर अभद्र, अर्धनग्न, मूर्खतापूर्ण वीडियो को ही प्रचलित किया जाता है।
जिससे अपने देश के युवा प्रेरणात्मक चीज़ों को जीवन में उतारकर आगे बढ़ें और अन्य देश के युवा मूर्खतापूर्ण अभद्र चीज़ों में समय बिगाड़कर अपना पतन करें।
क्योंकि वे जानते हैं कि,
भारत जैसे देश में जहां 40 करोड़ युवा हैं।
उसमें से यदि सिर्फ़ 1 करोड़ युवा भी अपनी शक्ति का सही उपयोग कर लेंगे तो पूरी दुनिया पर अत्यंत ही सरलता से भारत राज कर लेगा।
इसीलिए वहाँ के युवाओं को अश्लीलता में डुबा दिया जाए, जिससे वे अपना समस्त शौर्य प्रतिदिन नाली में बहाते रहें। और कभी इस जाल से बाहर न निकल पाएँ।
समाज की हर स्त्री में मात्र भोग ही देखें, जिससे परिवार भी टूटते है और समाज भी।
ऐसे वीर्यहीन पुरुषों के कारण ही फेमिनिज्म का जन्म होता है। क्योंकि जब स्त्रियों के जीवन में सही वीर्यवान साहसी पुरुष नहीं होता जो अपनी ज़िम्मेदारियों का पालन करें, स्त्री का ख़्याल रखे, उनका भरण पोषण करें और उनकी रक्षा करें। तभी उन्हें पुरुषों के काम करने पड़ते हैं। और अपने जीवन के लिए कमाई करनी पड़ती है। और यदि आपको नहीं पता तो यह भी बता दें कि पिछले 50 वर्षों में औसत पुरुष के वीर्य में Sperm Count 47.6% से भी कम हो गई है। इसीलिए आजकल हम देख रहे है कि हर दूसरे दंपत्ति को संतान प्राप्ति करने के लिए मेडिकल सहाय की आवश्यकता पड़ने लगी है।
न्यूयॉर्क के पब्लिक हेल्थ प्रोफेसर शाना स्वान के 2017 के रिसर्च के अनुसार 2045 तक विश्व के अधिकतर पुरुषों का Sperm count शून्य हो जाएगा। और प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्ति मानो असंभव ही हो जाएगी।
सभी को IVF आदि मेडिकल सहाय मात्र से ही संतान प्राप्ति करनी होगी। और यह सभी तो फिर भी कुछ मुख्य-मुख्य सामाजिक असर ही हैं। वीर्यनाश के यदि सभी सामाजिक असर के बारे में बताने जाएँ तो इतने सारे हैं कि एक अलग से पूरी पुस्तक भर जाए।
अतः ऐसा विचार जरा भी न रखें कि आपका वीर्यनाश सिर्फ़ आप ही के लिए हानिकारक है।
समाज आप जैसे युवाओं से ही बना है। जब-जब एक युवा अपने आपको वीर्यनाश आदि की आदतों से निर्बल बनाता है तब तब वो अपने समाज को भी निर्बल बना रहा होता है।
तो अपने नहीं तो अपने समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व जानकर अपने वीर्य की रक्षा करके एक वीर्यवान पुरुष बनें।
और यदि आप उन लोगों में से हो जिनको न ही अपनी पड़ी है और न ही अपने समाज की, तो उनके लिए आइए समझते है कि इन कृत्यों का आपके परिवार पर कितना असर पड़ता है।
D. पारिवारिक असर
पहली बात, जब आप पोर्न, हस्तमैथुन आदि आदतों में लग जाते हो तो सबसे गहरा असर आपके विवाह पर पड़ता है। आप विवाह के लायक़ संयमी व्यक्ति बन ही नहीं पाते हो।
क्योंकि वर्षों तक हर रात को एक अलग स्त्री को अपने मोबाइल में देखकर अपने आपको उत्तेजित करने की आदत आपको जीवनभर के लिए अपनी पत्नी मात्र के साथ संतोष से रहना नहीं सिखाती है।
फिर विवाह आपके लिए बस संभोग सुख पाने का रास्ता और पत्नी बस संभोग का एक साधन मात्र बनकर रह जाती है। विवाह को आप फिर एक पवित्र बंधन और भगवद्प्राप्ति के मार्ग के रूप में कभी देख ही नहीं पाते हो।
अरे! भगवद्प्राप्ति तो दूर की बात है। पोर्न के बाद आप अपनी पत्नी के साथ संभोग सुख भी नहीं ले पाते हैं।
प्रतिदिन पोर्न में नयी नयी नग्न और उत्तेजक स्त्रियों को देख हस्तमैथुन से अप्राकृतिक और काल्पनिक संभोग की आदत लगाने के बाद एक सामान्य स्त्री से आपको लगाव की भावना आ ही नहीं पाती है।
फिर आपको अपनी ही पत्नी के साथ संभोग के लिए पोर्न आदि की कल्पना से उत्तेजित होना पड़ता है।
और चलो लगाव भावना आ भी गई, तो भी क्योंकि आपने अपनी हथेली की कठोर त्वचा से जीवनभर मैथुन किया है तो दुनिया की किसी भी स्त्री की योनि या तो आपके लिए संवेदनशील नहीं लगेगी या तो फिर असह्य रूप से अति संवेदनशील लगने लगेगी।
इन्ही आदतों के कारण आज अधिकतर युवा स्तंभन आदि दोषों (Erectile Dysfunction) से पीड़ित हैं। क्योंकि एक बार आदत लगने के बाद वे बिना पोर्न के अपने आपको उत्तेजित भी नहीं कर पाते हैं। और हमेशा के लिए इस पोर्न के ज़हरीले कुचक्र में फँस जाते है।
दूसरी बात, चलो मान लेते है की आपके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ, और आप अपने विवाह में पत्नी से संभोग सुख ले भी पा रहे हो।
तो भी क्योंकि आप इन संभोग की इच्छाओं के दास हो गए हो इसलिए यदि आपकी पत्नी संस्कारी नहीं है तो आपकी इस इच्छाओं का फ़ायदा उठाकर वो आपका जीवन बर्बाद कर देगी।
और यदि आपकी पत्नी संस्कारी हुई, तो आपकी इस असंयमी कामेच्छाओं के कारण आप उसका जीवन और आपके संबंध बर्बाद कर दोगे।
और यदि आपका विवाह अभी तक नहीं हुआ है, तब तो ख़ास आपको ध्यान रखना आवश्यक है। क्योंकि असंयमी लोग बड़ी सरलता से सुंदरता के जाल में फँस जाते हैं और स्त्री में सुंदरता के पार कुछ देख ही नहीं सकते।
जब सिर्फ़ सुंदरता को ध्यान में रखकर कोई विवाह रचा लेता है, बिना यह देखे कि,
1. स्त्री का चरित्र कैसा है?
2. गुण कैसे हैं?
3. उसकी आदतें कैसी हैं?
4. उसकी इच्छाएँ कैसी हैं?
5. उसका अपने स्वयं के परिवार के प्रति व्यवहार कैसा है?
तो ऐसे में वह पुरुष शुरुआत में कुछ दिन तो अवश्य खुश रहता है, परन्तु उसके बाद जीवनभर के लिए पछतावा करता है।
विवाह का निर्णय आपके जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों में से एक है।आपके जीवन के लगभग लगभग सभी क्षेत्रों में उसका असर होगा। अतः जो लोग कामेच्छाओं के वशीभूत होकर यह निर्णय ले लेते हैं, यह जानते हुए भी कि सुंदरता के जाल में वो फँस रहे हैं, ऐसे लोग जीवन की प्रत्येक स्थिति में मुश्किलों को ही प्राप्त होते हैं।
तीसरी बात,
चलो! यह भी मान लेते हैं कि, आपको पूर्व सत्कर्मों के फलस्वरूप ऐसी सुंदर पत्नी मिली जो कि संस्कारी भी है और संपूर्ण रूप से आपको समर्पित होकर आपकी कामेच्छाओं की पूर्ति भी करती है।
तो भी क्योंकि आपने वर्षों तक पोर्न देखकर प्रतिदिन अलग अलग स्त्रियों को देखकर अपने आप को उत्तेजित करने की आदत लगाई है इसके कारण आप अपनी उस सुंदर पत्नी से भी कुछ ही समय में ऊब जाओगे।
और फिर अन्य स्त्रियों के साथ विवाहेतर संबंध बनाना चाहोगे। फिर भले ही आपको अपनी पत्नी से बहुत लगाव हो। फिर भी अपनी आदत के वश होकर आप अपने आपको संयम में नहीं रख पाओगे और इससे न ही केवल आप अपना, परंतु उस लड़की का और दोनों के परिवारजनों का संपूर्ण जीवन नर्क के समान कर दोगे।
याद रखें! आपकी कुछ पलों की कामेच्छा (lust) आपके सम्पूर्ण जीवन को बर्बाद करने के लिए पर्याप्त है।
चौथी बात,
पत्नी के साथ के संबंध का विनाश तो सिर्फ़ शुरुआत है। जो लोग इस पोर्न आदि की आदत में ज़्यादा घुसते जाते हैं, वे फिर किसी भी स्त्री को एक सामान्य दृष्टि से नहीं देख पाते हैं।
उनकी मानसिक दशा इस हद तक सड़ जाती है कि, उनकी अपनी माँ समान भाभी, बहन और अन्य संबंधों में भी बस संभोग वृत्ति ही दिखती हैं। फिर वे चाहकर भी मन को नियंत्रण में नहीं कर पाते और फिर उन संबंधों की पवित्रता को फिर से कभी अनुभव नहीं कर पाते हैं। यहाँ तक कि वो अपने भगवान तक के संबंध की पवित्रता खो बैठते हैं।
और कुछ बार तो इंद्रियाँ इतनी संयम से बाहर निकल जाती है कि वे आवेग में आकर संबंधी में ही कोई ऐसा कृत्य कर बैठते हैं कि फिर जीवन भर के लिए अपनी मान, मर्यादा और संबंध सब कुछ खो बैठते हैं।
पाँचवीं सबसे भयानक हालात तो तब होती हैं, जब आपको पता भी नहीं चलता कि इस नीच कृत्य को करते-करते कब आपकी हवस संबंधों को तो छोड़ो, योनि तक की मर्यादाओं को लांघ कर समलैंगिक और काफ़ी बार तो पशु आदि तक भी पहुँच जाती है।
जी हाँ!
पढ़ने-सुनने में यदि आपको घिन्न आ रही है, और लगता है कि नहीं! नहीं! मुझसे यह तो नहीं हो सकता!
तो ऐसे भ्रम में न रहिए। यह रिसर्च तक हो चुकी है कि सतत वीर्य का नाश करने से शरीर में जो Hormonal Imbalance होता है, उससे व्यक्ति की लैंगिक वृत्तियाँ भी बदलने लगती है।
जिसकी शुरुआत आक्रामक (Hard Core Tendencies) वृत्तियों से होकर, समलैंगिकता (Homosexuality) से, फिर पशु संभोग (Bestiality & Zoophilia) तक भी पहुँच जाती हैं।
और यह तो शुरुआत है। इस मानसिक विचित्रता और विकार का कोई अंत नहीं होता है। इसके आगे किस हद तक बातें पहुँच जाती है वो हम बता भी नहीं सकते, और बताना भी नहीं चाहते। जितना कम इन विचित्रताओं के बारे में जानो उतना ही अच्छा है।
यह तो बात हुई की वीर्यनाश की वृत्तियाँ किस हद तक इस भौतिक जगत में आपको असर करती हैं। परंतु ऐसा भी नहीं है कि इस भौतिक जगत में और इस जन्म तक ही आपको यह असर करेगा।
वीर्यनाश की वृत्तियाँ आप पर आध्यात्मिक रूप से भी इस हद तक अस करती हैं कि इसके असर आप जन्म जन्मांतर तक लेकर घूमते हैं।
कैसे ?
आइए देखते हैं।
E. आध्यात्मिक असर
यदि आपने हमारा B.O.S.S पुस्तक पढ़ा है, तो उसके प्रथम अध्याय 'आत्मा का मूलज्ञान' में ही आपने यह पढ़ा होगा कि,
इस जन्म के हमारे कृत्यों से हमारी आदतें बनती हैं। आदतों से वृत्तियाँ बनती हैं। और उन्हीं वृत्तियों से हम अपना सूक्ष्म शरीर बनाते है। जिससे हमे हमारा अगला जन्म किस योनि में मिलेगा यह निश्चित होता है।
अतः जब आप अपने जीवन में संभोग वृत्ति को बढ़ाते हो, तो भगवान आप पर दया करके एक ऐसा शरीर देते हैं जिसमें आप निश्चिंत होकर प्रतिदिन अधिक से अधिक मादाओं के साथ संभोग कर पाओ।
जैसे की कबूतर या सूअर आदि का। क्योंकि इन योनियों में आप प्रतिदिन सरलता से 30-40 बार अलग-अलग मादाओं के साथ संभोग कर पाओगे।
तो यदि आपका जन्मांतर ध्येय ऐसी किसी पशु, पक्षी या कीट योनि में जाना ही है तो आपको ब्रह्मचर्य की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आपको भरपूर अभिनंदन हमारी ओर से, आप सही मार्ग पर चल रहे हो।
परंतु यदि आपको आध्यात्मिक उन्नति चाहिए है, आप मानवों या देवों आदि में उच्च योनि में जाना चाहते हो। या फिर आपको इस जन्म-मृत्यु व जरा-व्याधि के चक्र से ही मुक्त होना है तो फिर आपको ब्रह्मचर्य का तप स्वीकार करना ही होगा।
क्योंकि,
आपके वीर्य की दिशा ही आपके आध्यात्मिक पथ की गति निश्चित करती है। जिसके अनुसार व्यक्ति के मुख्यतः तीन प्रकार बताए गए है,
1. ऊर्ध्वरता :
जो व्यक्ति अपने वीर्य की रक्षा करता है, उसका वीर्य रीढ़ की नसों से होकर ऊर्ध्व दिशा में मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होता है। वह वीर्य फिर अमृतावस्था को प्राप्त होकर व्यक्ति के ब्रह्मरन्ध्र और मस्तिष्क की नाड़ियों को पोषित करता है। ऐसे व्यक्ति को ऊर्ध्वरेता कहते है और इनकी आध्यात्मिक गति भी ऊर्ध्व दिशा में, अर्थात् भगवद् धाम या कम से कम स्वर्ग को होती है।
2. मध्यरेता :
जो व्यक्ति अपने वीर्य का उपयोग संतान प्राप्ति हेतु मात्र विवाह संस्कार के अन्तर्गत अपनी पत्नी के गर्भ में दान करता है उसे मध्यरेता कहते है। ऐसे व्यक्ति यदि अपने गृहस्थ धर्म के आचरण में युक्त रहे तो उन्हें भी ऊर्ध्व रेता के समान भगवद् धाम या स्वर्ग की प्राप्ति होती है। और यदि सभी कर्म न भी कर पाएँ तो भी सिर्फ़ अपने इस विवाहित ब्रह्मचर्य के पालन मात्र से भी कम से कम मनुष्यों में उच्च कोटि के समृद्ध परिवार में जन्म प्राप्त होता है।
3. अधोरेता :
जो व्यक्ति अपने वीर्य की रक्षा न करे, न ही उसका उपयोग गृहस्थ धर्म में संतान प्राप्ति के लिए करे, अपितु उसको निकालकर उसका व्यय व नाश करता है उसे अधोरेता कहते है। और ऐसे व्यक्तियों को निश्चित ही पाताल व नरक आदि निम्न लोक या फिर प्राणी, पक्षी, कीट आदि निम्न योनियों में जन्म मिलता है।
यो विप्रः पुंसि संसर्ग स्वदारेषु रतिं मुखे।
कुर्याद् यदिह पापात्मा तद्रेतः क्लीबतामगात्।।
यमलोकमुपागम्य तत्र वासः सदा भवेत्।
तस्यैव निष्कृतिर्नास्ति पुनः संस्करणं विना।। — मार्कण्डेयस्मृति, देवलस्मृति 1733
“वह पुरुष जो अपने वीर्य को अपनी पत्नी की योनि के अतिरिक्त कहीं भी और प्रवाहित करता है उसे चोरी व ब्रह्म-हत्या का पाप लगता है और यमलोक की यातना के पश्चात निम्न योनियों में जन्म प्राप्त करता है।”
अतः यह निरंतर ध्यान रखें कि आपका वीर्य ही आपके प्राण हैं। जिस भी दिशा में आपका वीर्य जाएगा उसी दिशा में आपके प्राण जाएँगे। अतः अपने वीर्य की गति उसी दिशा में करें जिस दिशा में आप अपने प्राण की गति चाहते हैं और यदि इतना जानने के बाद भी अपने आपको रोक नहीं पा रहे हो और यह सोच रहे हो कि, “मैं तो जो कर रहा हूँ अकेले में कर रहा हूँ, किसे जान पड़ेगा कि मैंने क्या किया? कब किया?”
तो इतना जान लीजिए कि शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के समस्त कर्मों के मुख्य 12 साक्षी होते है जो सतत उसके कृत्यों पर नज़र रखे हुए हैं।
सूर्योऽग्निः खं मेरुद्देवः सोमः संध्याहनि दिशः।
कं कुः स्वयं धर्म इति ह्येते दैह्यस्य साक्षिणः॥ — श्रीमद्भागवत महापुराण 6.1.42
“सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, देवता, चंद्रमा, शाम, दिन, रात, दिशाएं, जल, भूमि और अंत में स्वयं परमात्मा सभी जीव की गतिविधियों के साक्षी हैं।”
तो अब से जब भी आप पोर्न, हस्तमैथुन तथा नशा आदि कृत्य करने जा रहे हो इस श्लोक को याद कीजिए और जानिए कि आप अकेले नहीं हो, आपके आसपास 12 लोग खड़े हैं और आप ही को देख रहे हैं कि आप इस क्षण में क्या कर रहे हो। इन्हीं 12 लोगों के साक्ष्य से ही यमराज आपके कृत्यों की पुष्टि करते हैं और आपको आपके किए का प्रतिफल देते हैं।
और इनके उपरांत उच्च लोकों में बैठे आपके पूर्वज भी आपको धिक्कारतें हैं क्योंकि आपके कृत्य न ही केवल उनकी आने वाली पीढ़ी पर असर करता है अपितु आपके पूर्वजों की आध्यात्मिक गति पर भी असर करते है। आप की भगवद् प्राप्ति आपके पूर्वजों को भी उनके कर्म फलों से मुक्ति दिलाकर उन्हें भगवद्प्राप्ति की ओर ले जाती है।
ऊपर से आपके नित्य गुरु व आपके हृदय में बैठे परमात्मा भी आपको इन कृत्यों को करते देख आपके प्रति निराशा अनुभव करते हैं। और आप दीक्षित शिष्य हैं तब तो आपके इन कर्मों का फल आपके गुरु को भी भुगतना पड़ेगा।
तो अपने लिए नहीं तो कम से कम अपने पूर्वजों, गुरु और परमात्मा के प्रति आपकी ज़िम्मेदारी जानकर इन कृत्यों से दूर रहें।
अब यदि आप नास्तिक हो और इन आध्यात्मिक नुकसान की आपको कोई चिंता नहीं है तो अभी बात करते हैं उस नुकसान की जिसकी सबको चिंता रहती है।
F. आर्थिक असर
वैदिक संस्कृति में लड़के के जीवन के प्रथम पच्चीस वर्ष ब्रह्मचारी के रूप में विद्या अर्जन के लिए रखे जाते हैं, जोकि आजकल नहीं रखे जाते हैं। और उसका परिणाम हम देख पा रहे हैं।
बड़े-बड़े कॉलेज और विद्यालयों में से भी ऐसे युवा निकल रहे हैं जो न करियर में सफल हो रहे हैं, न समाज में, न संबंध में और न ही अध्यात्म में। ऐसा क्यों? क्योंकि मॉडर्न शिक्षण पद्धति एक सबसे मूलभूत सिद्धांत को अनदेखा कर रही है। जो ये है कि, ‘स्त्रियाँ सबसे बड़ा विकर्षण (Distraction) हैं।’
इसीलिए सनातन संस्कृति में परस्त्री और परपुरुष को कभी घुलने मिलने नहीं दिया जाता था। कितना भी सक्षम पुरुष क्यों न हो, एक बार पुरुष किसी स्त्री के विचारों में खो जाता है तो उसकी सारी क्षमताएँ, ध्यान शक्ति और संकल्प शक्ति का नाश हो जाता है। आपके आसपास ही जाने कितने सारे प्रतिभाशाली दिमाग वाले युवाओं ने अपना विद्यार्थी जीवन लड़की बाज़ी में व्यर्थ गवाँ दिया है। यह आप जानते ही होंगे। और आज के समय में जब स्कूलों से लेकर ऑफिस आदि हर जगह स्त्रियाँ और पुरुषों को घुल मिलकर रखा जाता है ऐसे में जो संयमी होता है वही जीतता है। और जो असंयमी होता है वो स्त्रियों के विचारों, संकल्पों, चिंतन और उनको प्राप्त करने के व्यर्थ प्रयासों में ही अपनी युवावस्था और कितने सारे अवसर गवाँ देता है।
तो यदि आप जीवन में अपनी वास्तविक महत्तम क्षमता तक पहुँचना चाहते हैं तो आपका सबसे पहला संकल्प होना चाहिए अखंड ब्रह्मचर्य।
ब्रह्मचर्य बिना अपनी महत्तम क्षमता को प्राप्त करना असंभव है। इसीलिए न ही मात्र सनातन संस्कृति में परंतु समस्त पुरातन अध्यात्म आधारित धर्म संप्रदाय का प्रथम चरण ब्रह्मचर्य ही होता था। उसके बिना मार्ग की शुरुआत ही नहीं होती थी।
यदि आप विद्यार्थी नहीं भी हो, किसी कॉर्पोरेट कंपनी में नौकरी कर रहे हो, या फिर अपना व्यवसाय ही क्यों न चलाते हो, इन सभी स्थितियों में आपका संयम आपके करियर का सबसे महत्त्वपूर्ण निश्चय होगा।
आप स्वयं रिसर्च करोगे तो आपको पता चलेगा कि, दुनिया भर में कॉर्पोरेट में किस हद तक छल कपट से निर्दोष युवाओं का जीवन बर्बाद कर दिया जाता है। वो लोग यह कर पा रहे हैं यह दिखाता है कि लोगों में संयम नहीं है।
जो लोग ऊपर बैठे हैं वे जानते है कि, एक पुरुष की सबसे बड़ी कमजोरी होती है स्त्री। इसीलिए स्त्रियों की मधुर वाणी और प्रलोभन का उपयोग करके सामान्य पुरुषों से कई काम निकलवाए जाते हैं। उनसे अपने व्यक्तिगत जीवन और ज़रूरतों का त्याग करवाकर अधिक और अधिक काम करवाया जाता है, और उन कामों में फंसाया जाता है जो करना उनका काम है भी नहीं।
जब एक असंस्कारी स्त्री देखती है कि, सामने वाला पुरुष उसकी सुंदरता को देखकर मोहित हो गया है, तो ऐसे में वो बस मीठी-मीठी बातें बोलकर और परोक्ष रूप से प्रलोभन देकर उससे अपने काम करवा लेती है और काफ़ी बार तो उसके पैसों और संपत्ति का भी उपयोग कर लेती है। और बदले में ऐसे असंयमी पुरुष को कुछ भी नहीं मिलता।
यह तो फिर भी काफ़ी हद्द तक सह्य बातें है। सबसे असह्य बात तो यह है कि, वर्तमान में लाखों निर्दोष युवा पुरुषों का जीवन इन्हीं कारणों से फर्जी बलात्कार और दुर्व्यवहार के मामलों में बर्बाद हुआ है। और उनका सबसे बड़ा दोष बस यही था कि वे उन स्त्रियों की लुभावनी बातों में आ गए और समय पर जब मर्यादाएँ बनानी चाहिए थी तब नहीं बनाई।
हालाँकि शोषण तो स्त्रियों का भी करते हैं दुष्ट पुरुष। परंतु सबसे बड़ी समस्या यहाँ यह है कि स्त्री के लगाएँ आरोपों को आँख बंद करके प्राथमिक रूप से सुना जाता है। जबकि पुरुष के आरोप को गंभीर रूप से कोई नहीं लेता। ऊपर से बिना किसी प्रमाण के उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है।
और वर्षों सजा काटने के बाद भी यदि किसी कारणों से वे निर्दोष प्रामाणित हो भी जाते हैं तो भी उन्हें हमेशा के लिए उसी दृष्टि से देखा जाता है।
और सबसे बुरी परिस्थिति तब होती है कि, कामेच्छाओं के वेग में आकर आप सच में कोई ऐसा कृत्य कर देते हो जोकि आप कभी करना नहीं चाहते थे; परंतु परिस्थितियों, आसपास के उत्तेजक वातावरण और आपके असंयम की वजह से कर बैठे। तब तो आप कभी स्वयं को क्षमा नहीं कर पाओगे।
अतः याद रखें! आपकी कुछ पलों की कामेच्छा (lust) आपके करियर, संबंध, परिवार, आध्यात्मिक साधना और संपूर्ण जीवन को बर्बाद करने के लिए पर्याप्त है।
अभी वीर्यनाश के हानिकारक असरों को तो अच्छे से जान लिया। परंतु क्या मात्र हानि से बचने के लिए ही ब्रह्मचर्य करना है या फिर वीर्यरक्षा करने से कोई लाभ भी होता है? क्या होता है आख़िर वीर्य रक्षा से?
क्या होता है?
अरे! क्या नहीं होता है?
ब्रह्मचर्य के फ़ायदे...
1. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपका सामान्य जीवन शुरु होता है।
2. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आप अपनी संपूर्ण क्षमताओं को जान कर उनका उपयोग कर पाते हो।
3. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपको पता चलता है कि अब तक आप घोर अंधकार में जी रहे थे, और अब ब्रह्मचर्य के उजाले से जीवन की हर स्थिति में सब कुछ साफ़-साफ़ दिखाई देता है।
4. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही जीवन में रंग, संबंधों में प्रेम, छोटे छोटे पलों में ख़ुशियाँ और हर कार्य में सतत प्रेरणा व उत्साह दिखता है।
5. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपको पता चलता है कि यह सब शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक क्षमताएँ जो पहले अत्यंत ही अद्भुत लगती थी वो सब अधिकतर मनुष्यों के लिए एकदम सहज सामान्य हैं।
6. अतः ब्रह्मचर्य पालन करने के पश्चात ही आप असामान्य ध्येयों की प्राप्ति के लिए असामान्य पुरुषार्थ कर सकते हो और ब्रह्मचर्य के इस मज़बूत स्तंभ (Pillar) पर अपने समृद्ध जीवन की इमारत बना सकते हो।
7. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आप समझते हो की हर छोटा मोटा काम करने में मोटिवेशन की आवश्यकता नहीं होती है। आप बिना मोटिवेशन के भी अपने आपको अनुशासित (Discipline) कर सकते हो।
8. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपके चरित्र में गंभीरता आना शुरू होती है और आपके आसपास के लोग आपको गंभीरता से लेना शुरू करते है।
9. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपमें से सामाजिक व्याकुलता (Social Anxiety) निकलकर आत्मविश्वास (Confidence), साहस (Bravery) और निर्भयता (Fearlessness) आती है।
10. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपका वीर्य अमृतावस्था को प्राप्त होकर आपकी स्मरणशक्ति, सद्गुण और बुद्धिमत्ता बढ़ाता है। जिससे पहले के समय में ब्रह्मचारी छोटी सी उम्र में ही बड़े बड़े वेदों को कंठस्थ कर लेते थे।
11. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपकी आयु बढ़ती है। जब 2024 में 127 वर्ष के दुनिया के सबसे स्वस्थ दीर्घायु व्यक्ति स्वामी शिवानन्द जी को पूछा गया कि उनकी दीर्घायु का रहस्य क्या है तो उनके उत्तर में सिर्फ़ तीन शब्द थे। ब्रह्मचर्य, योग और सात्विक भोजन।
12. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आप की दीर्घायु स्वस्थ दीर्घायु बनती है। क्योंकि कर्मफल से लोग दीर्घायु तो हो जाते है परंतु ब्रह्मचर्य के अभाव के कारण वह दीर्घ आयु भी रोगी, निर्बल व अशक्त होकर बितानी पड़ती है।
13. जबकि ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपका यौवन लंबा चलता है, बुढ़ापा जल्दी नहीं आता, त्वचा में प्राकृतिक सुंदरता, हड्डियों में बल और मस्तिष्क में बुद्धिमत्ता बुढ़ापे में भी लंबे समय तक बनी रहती है।
14. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपका ध्यान आपके ध्येय, काम और पढ़ाई में सतत रूप से लंबे-लंबे समय तक लगना शुरू होता है। जो आपकी Productivity बढ़ाकर ध्येयप्राप्ति की ओर ले जाता है।
15. ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आपकी की गई कसरतों से न ही मात्र आपकी मांसपेशियों में परन्तु हड्डियों में भी बल बढ़ना शुरू होता है।
16. अंततः ब्रह्मचर्य पालन के पश्चात ही आप अपनी इंद्रियों पर और उसके कारण संपूर्ण जीवन पर नियन्त्रण पा सकते हो। क्योंकि जीवन पर नियंत्रण वही पा सकता है जो अपनी प्रबल कामेच्छाओं (Urges) को सहन करके इंद्रियों को अपनी इच्छा के अनुसार काम करवा सके।
17. सिर्फ़ सात दिनों के वीर्य रक्षण से शरीर में टेस्टोस्टेरोन 147% तक बढ़ता है जो की आत्मविश्वास (Confidence) की वृद्धि करता है। इसीलिए टेस्टोस्टेरोन को पुरुषों का Success Hormone कहा जाता है। — PUBMED 2020, PUBMED 2003
18. टेस्टोस्टेरोन में वृद्धि शारीरिक बल और मांसपेशियों में वृद्धि करता है, मोटापा (Fat) घटाता है, पाचन में वृद्धि करता है, वीर्य में शुक्राणु संख्या (Sperm Count) बढ़ाकर प्रजनन शक्ति (Libido) में वृद्धि करता है। — PUBMED 1990
19. टेस्टोस्टेरोन की वृद्धि उत्साह (Energy) और प्रेरणा (Motivation) की वृद्धि कर व्यक्ति में तनाव (Depression) घटाता है और उसके मानसिक स्वास्थ्य में त्वरित सुधार लाता है। —PUBMED, 2001
20. टेस्टोस्टेरोन शरीर में प्रोटीन संश्लेषण (Synthesis) को बढ़ाकर मांसपेशियों (Muscles) की वृद्धि करता है और उन्हें तेजी से ठीक होने में (Recovery) मदद करता है। —NCBI 2004, VWF 2021
अब यह तो हमने संक्षिप्त में कुछ मुख्य-मुख्य फ़ायदों के बारे में बात की। शास्त्र और मॉडर्न विज्ञान के ऐसे अनगिनत कथन है जिसमें जीवन के हर क्षेत्र में ब्रह्मचर्य के फ़ायदों के बारे में विस्तार से बताया है।
परंतु अब “क्यों करे ब्रह्मचर्य”, इसका तो पर्याप्त ज्ञान हो गया है।
अब जानते है कि... “कैसे करें ब्रह्मचर्य ?”
To be continued..