Cleaning in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | सफ़ाई

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सफ़ाई

उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा, दिमाग़ जैसे कनखियों माध्यम से सामने वालों के हाथों पर टिका है। अधिकतर सभी मज़बूत काठीवाले सांवले मूँछों वाले हैं। उस बड़े चबूतरे को तीनों और से घेरे बैठे हैं। किसी के हाथ में लाठी है, किसी के हाथ में बरछा, किसी के हाथ में चाकू है। कोई कोई तो घास काटने वाली खुरपी या फावड़ा तक लिए बैठा है। बस एक बात सब में कॉमन है -सबकी आखों में बाज जैसी चमक है। सबके हाथ अपने हथियारों पर कसे हुए हैं कब जाड़ेजा साहब का हुक्म हो और वे अपने शिकारों पर टूट पड़ें। वैसे भी फ़ैक्टरी का मौसम छ; महीने से शांत चल रहा है।  सभी के सितारे आपसे में हिल मिलकर ऐसे मुस्करा रहे हैं कि न आपस में न हाथापाई हो रही है, न गाली गलौज।सब उत्साहित हैं शायद उनके दिमाग़ को कुछ सनसनी मिल जाये।

एक लम्बी कुर्सी पर राजसी अंदाज़ में अधलेटे जाड़ेजा कुटिल मुस्कान मुस्कराते हुए पूछा, "कहिये, अब क्या विचार है ?"डॉ अविनेश मिश्रा, गुजरात नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, इस अचानक सामने आई बेढब स्थिति हकबकाए हुए हैं। जवाब क्या दें ?

जाड़ेजा ने थोड़ी देर पहले मोबाइल से फ़ैक्टरी के अंदर बने केबिन में बैठे वॉचमेन को आदेश दिया था, "फ़ैक्टरी के गेट पर ताला मार दो और मज़दूरों को ख़बर भिजवा दो कि पंद्रह बीस मिनट में वे फैक्टरी पहुँच जाएँ, पूरी तैयारी से। "

वाकई बीस मिनट बाद फ़ैक्टरी का दरवाज़ा खुला। एक अतिरिक्त उत्साह से मज़दूरों की भीड़ शोर मचाती अंदर घुसती चली आई। कुछ उनमें से अपनी पारम्परिक पोशाक कड़ियों, पायजामा व पगड़ी पहने हुए थे। वे आज्ञाकारी बच्चों की तरह की तरह चबूतरे को घेरकर बैठ गए थे। चौकीदार ने अहाते की दीवार के दोनों ओर लगी सोडियम लाइट जला दीं थीं। उस पीली रोशनी में उनके चेहरे व हथियार लिपटकर रहस्यमय व डरावने लगने लगे थे। वे जिस तरह से मुस्तैदी से वहां बैठे थे उससे डॉ अविनेश मिश्रा समझ गए थे कि ये लोग फ़ैक्टरी में काम करने के अतिरिक्त ऐसी सेवाएं देने में भी सिद्धहस्त हैं। उन्होंने सुन रक्खा था कि वड़ोदरा ज़िले के नन्देश्वरी के इस औद्योगिक क्षेत्र की फ़ैक्ट्रीज़ में अधिकतर आस पास के गाँवों के जुझारु आदिवासी ही काम करते हैं।

"हाँ, तो डॉक्टर साहब क्या सोचा है ?"जाड़ेजा ने यह कहते हुए बड़ी अदा से मेज़ पर रक्खी शेर के मुंह वाली एश ट्रे में सिगरेट की रख झाड़ी। उनका सांवला भरा चेहरा विलेननुमा छटा बिखेर रहा था। होठों के ऊपर की काली मूंछों का एक एक बाल रौब मारता सा लग रहा था।

डॉक्टर क्या सोचेंगे उनके दोनों कनिष्ठ  वैज्ञानिक अधिकारी बोर्ड के दो सुपरवाइज़र्स की उन्हें खा जाने वाली निगाहें सोच रहीं थीं .डॉ मिश्रा चेहरे पर छलकते पसीने को चश्मा उतारकर रुमाल से धीरे धीरे पोंछते हुए समय को सरकाना चाहतें हैं। उन्हें अब समझ में आने लगा है कि इन भूतपूर्व राजवंशों के कुमारों को अब तक क्यों` दरबार ` कहा जाता है। लम्बे चौड़े सांवले जाड़ेजा के तने चेहरे पर लंबी नुकीली नाक पर, दृढ़ता से भींचे होठों पर आज भी पुराना सामंती दम्भ सनसना रहा है। सामने सजा हुआ है हथियार लिए उनका दरबार। मिश्रा जी की आवाज़ पहले जैसी दमदार नहीं रही है फिर भी वे कहतें हैं, "जो सोचना था, वह सोच लिया, रिपोर्ट अब नहीं बदलेगी। "

"हा ---हा ---हा ----"जाड़ेजा वीभत्स हंसी हंस पड़ता है, "ये सामने बैठे मेरे शागिर्द देख रहें हैं। मेरे एक इशारे पर ये सब आप सब पर टूट पड़ेंगे .आप सबकी बोटी बोटी काटकर साफ़ कर देंगे जैसे आपने नन्देश्वरी की तरफ़ देखा ही नहीं था --हा ----हा ----हा। "

इस वीभत्स हंसी ने उनका रोयां रोयां हिलाकर रख दिया है। उन्हें दुबारा रुमाल से पसीना कायरता लगती है .वे कुर्सी पर पहलु बदल कर रह जातें हैं।

उनका कनिष्ठ वैज्ञानिक मनियार अधिकारी उन्हें व्यंग से देखता है -`बच्चू और कुर्सी पर पहलु बदलते रहो। `साथ ही वह विश्वविद्ध्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष को मन ही मन मोटी सी गाली देता है जिन्होंने कोर्स की किताबें रटाने के बजाय छात्रों की  `एन्वायरन्मेंट डिवीज़न `को नंदेश्वरी शोध के लिए भेज दिया था। क्या दुनिया नहीं जानती जहाँ फैक्ट्रियां होंगी, उद्द्योग बढ़ेंगे, देश प्रगति करेगा, लोग अपनी जेबें भरेंगे तो क्या इन फैक्ट्रियों के पाइप से गंगा बहेगी ? बहेगा तो प्रदूषित पानी ही।

उन शोधार्थियों ने आस पास के खेतों में घूम कर मिट्टी के, पानी के सेम्पल लिए थे .कुछ ने यहां से टमाटर, बैंगन, भिन्डी, प्याज ही तोड़ लिए थे। प्रयोगशाला में इन पर शोध करके रिपोर्ट तैयार की थी कि इस सब्ज़ियों में सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, पारा व निकिल धातु की अधिक मात्रा पाई गई है जो इंसानी शरीर के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विभागाध्यक्ष ने उन्हें फिर इस क्षेत्र से गेंहू, चावल, ज्वार, के सेम्पल पर शोध करवाया।नतीजा वही निकला।

मनियार कल्पना करने लगता है कि वनस्पति शास्त्र के विभाग के बोर्ड रूम में किस तरह इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई होगी। सबकी पहली चिंता तो ये होगी कि उस क्षेत्र में इतनी धातु से पानी व ज़मीन कितनी प्रदूषित हो चुकी होगी। उस मीटिंग में कई ने चिंता प्रगट की होगी, "कुछ रसायन तो ज़मीन में क्षार [ एल्कली ]की मात्रा बढ़ा रहे हैं। इससे उस ज़मीन की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही होगी। "तीसरी चिंता ये होगी, "कुछ वर्ष बाद आने वाली पीढ़ियों पर इस प्रदूषण का पड़ेगा कि अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। "

विभागाध्यक्ष कुर्सी से उठते हुए बोले होंगे , "आप तुरंत ही नन्देश्वरी क्षेत्र के रिपोर्ट बनाइये। मैं उसे राज्य के पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमेन के पास भेजता हूँ। "

किसी ने प्रतिवाद किया होगा, "सर ! शोध करके वड़ोदरा ज़िले के वडसर, डभोई की ऐसी रिपोर्ट तो हम वहां पहले भी भेज चुके हैं। फ़ैक्ट्री वाले ऐसी रिपोर्ट को पैसा खिलाकर दबवा देतें हैं और उनके मालिक फ़ैक्ट्री से रुपया कमाकर ऐश करते रहतें हैं। "

उन्होंने उत्तर दिया होगा, "हमारी ड्यूटी है यहाँ के शोध परिणामों से बोर्ड को अवगत करवाना .क्या कभी कोई ईमानदार चेयरमेन आएगा ही नहीं ?"

तो हाँ, बोर्ड के समर्पित अधिकारी डॉ अविनेश मिश्रा !ये रिपोर्ट पाते ही और भागो नन्देश्वरी। जैसे कि वहां की शाकभाजी, आनाज खाकर आपकी भावी पीढ़ी ही बीमार होने वालीं हैं। आप तो यहाँ से तीस किलोमीटर दूर रहते हो जहां पर न तो यहाँ से ज़मीन के पानी के संभावना है, न भाजी के टोकरे पहुँचने की। क्या ज़रुरत थी उस इलाके में जाकर सर्वे करने की ?नहीं जी, वे तो सर्वे करके पता लगाएंगे कि यहाँ चौदह फ़ैक्ट्री को लाइसेंस दिए थे लेकिन कुकुरमुत्ते की तरह एक सौ साठ फ़ैक्टरी कैसे हो गईं ?सरकारी कड़ा नियम ये था कि उसके प्रदूषित पानी को शुद्धिकरण प्लांट में डालकर उसे साफ़ कर पाईप से नहर में भेज उसका खम्बात की खाड़ी में निकास करना चाहिए।

तो चले चलिए डॉ .अविनेश मिश्रा जी नहर के किनारे किनारे। न अपने जूतों की परवाह कीजिये, न `ली `की अपनी जीन्स की जिसके पांयचे गीली मिट्टी व एल्गी से लिथड़े जा रहे थे। और अपनी रिपोर्ट में खुलासा कीजिये कि वड़ोदरा व भरुच ज़िले के आस पास के गाँवों के किसान इसी प्रदूषित पानी ले जाने वाली नहर से नालियां बनाकर अपने खेत सींच रहे हैं। मनियार मन ही मन बड़बड़ाये जा रहा था -और उस रिपोर्ट को दीजिये अपने चेयरमैन साहब को। चेयरमेन ने सभी फ़ैक्टरी मालिकों को चेतावनी दी तो बहुतों ने अपने शुद्धिकरण प्लांट ठीक करवा लिए लेकिन उन्नीस बीस फ़ैक्टरी के मालिक `सब चलता है `के हिसाब से चलते रहे। उन्हीं में से एक है श्री जी पिग्मेंट प्राइवेट लिमिटेड।

तो डॉ .अविनेश चेयरनमेन से फ़रमान पाकर भुगतिए हथियारबंद इन आदिवासियों के जाल को। ऑफ़िस से चलते समय भास्कर ने उनके कंधे पर हाथ मारकर ख़ासी नसीहत दी थी, "यार !ज़रा बड़ा ब्रीफ़केस लेकर जाना। सुना है जाड़ेजा किसी राजपूती रजवाड़े का प्रिंस है। फ़ैक्टरी से रुपया कमा रहा है वह अलग। "उनकी शराफ़ती रगें ऐसी बात सुनकर क्रोधित हो उठीं थीं, "मैं अपने लिए बेईमानी का रुपया कमाऊं व आने वाली पीढ़ियों को बीमार व अपाहिज कर दूँ ?"

"इतनी दूर की क्यों सोचते हो ? हम तो सोचतें हैं कि अपनी ही नस्ल सुधार लें-- ही ---ही ---ही। "कहता वह आगे बढ़ गया था।

अब वे नन्देश्वरी की फैक्ट्रियों के मकड़जाल में से एक फैक्टरी में कैद हुए सोच रहे थे वे क्यों मानें डॉ शैलेश जैसे लोगों की नसीहत ?वह घड़ी पर नज़र डालतें हैं -दस से ऊपर बज रहा है। माँ ने कम्पाउंड के चक्कर काटने शुरू कर दिए होंगे। पिता अंदर से आवाज़ लगाकर बोले होंगे, "तुम मुझे तो खाना लगा दो। तुम्हारा लाड़ला जब आएगा तब आता रहेगा। "माँ उन्हें खाना लगाकर गेट तक आकर सूनी सड़क पर देखने लगी होगी। अगर वह सोच पाती कि उसके बेटे की बोटी काटने को तैयार कुछ लोग उसे घेरे बैठे हैं तो क्या वह सांस ले पाती या पिता ऐसे खाना खा पाते ?

"हूँ ---."जाड़ेजा ने उनका चेहरे को घूरते हुए पूछा, "लगता है घर की याद आ रही है ? घर में पत्नी है ?"

"नहीं। अभी शादी नहीं हुई। माँ पिताजी हैं। "

"`हम लोग बाद में सुलह कर लेंगे। पहले अपनी माँ को ख़बर कर दो कि तुम ठीक हो कल घर पहुंचोगे।आई लव माई मदर टू मच, दैट् ` स व्हाई  आई रिस्पेक्ट फ़ीलिंग्स ऑफ़ ऑल मदर्स। "कहते हुए उन्होंने कंधे उचकाए, "तुम्हारी माँ का सैल नंबर क्या है ?"

वे उनका बताया नंबर डायल करने लगे। उधर से माँ की आवाज़ आई, "हैलो। "

वो बहुत कोशिश करके बैठी सी आवाज़ निकाल पाए, "मॉम ! "

जब तक जाडेजा का एक गुर्गा उनके पीछे खिसककर आ गया। उधर माँ की घबराई आवाज़ आ रही थी, "किसके मोबाइल से फ़ोन कर रहा है ? पता है क्या टाइम हो रहा है ?तू ने तो कहा था नन्देश्वरी से फ़ैक्टरी का इंस्पेक्शन करके छह; बजे तक घर लौट आऊंगा। "

"माँ !मैं नन्देश्वरी से ही बोल रहा हूँ। चेयरमैन ने कुछ और काम बता दिए हैं। "

"तू कब आएगा ?"

"अब तो कल ही आना होगा। "

"तू ने खाना खाया या नहीं ?"स्वर में वही आदिम चिंता है।

"क्या ---हाँ, हाँ, बस  खाना खाने वाले हैं। फ़ैक्टरी के मालिक बहुत अच्छे हैं। बहुत अच्छी तरह खातिर कर रहे हैं। "उनके होंठ कुछ कह रहे थे आँखें ज्वाला उगलती जाड़ेजा के चेहरे पर टिकी हुईं थीं। जाड़ेजा मुस्कराते हुए उनकी बेबसी का मज़ा लेते हुए उठे। ऐसा लगा कि कोई मज़बूत वृक्ष कड़क हो खड़ा गया है, "हा ----हा ---हा ----जब आपने अपनी माँ से हमारी इतनी तारीफ़ कर दी है तो हमें .आपकी ख़ातिर करनी पड़ेगी। हम खाना खाने जा रहे हैं, आप लोगों के लिए भी खाना भिजवाते हैं। तब तक आप ख़ूब सोचिये। हम एक घंटे में लौटकर आतें हैं। तब तक आप दूसरी रिपोर्ट तैयार कर लीजिये। वो कहते हैं न जिसका नमक खाया हो उसके साथ नमकहरामी नहीं करते--हा ---हा---हा."

वह चारों दिशाओं में फैले चल देतें हैं। जाते जाते भीड़ को हिदायत देतें हैं, "मेहमानों न बरोबर खयाल राखजो हा ----हा ---हा-। "

पीढ़ियों दर पीढ़ी चली आ रही सामंती प्रवृत्ति ने उनकी चाल में कितनी अकड़ आत्मविश्वास कूट कूट कर भर दिया है। अकड़ इतनी कि दुनियां का एक एक पत्ता अपनी मर्ज़ी से हिलाना चाहें। सारे सरकारी महकमे चाहे वह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हो, पुलिस विभाग हो या इनकमटैक्स विभाग। इनके एक इशारे पर इनकी जेब में समा जातें हैं ..डॉ अविनेश मिश्रा को तीखा गुस्सा फड़फड़ा देता है इस दरबार का दरबारनुमा घमंड चूर चूर करके रहेंगे। चबूतरे से उतरने पर सामने बैठी भीड़ काई की तरह फटती चली जाती है।

मनियार व अन्य जाड़ेजा के ओझल होते ही अपनी कुर्सियां ख़िसकाकर एक तरह से मिश्रा को घेर लेते हैं, "साब !क्यों ज़िद कर रहे हो ? बदल देने में हमारा क्या बिगड़ जाएगा ?हर फ़ैक्टरी के पाइप्स से कुछ न कुछ पॉल्यूटेड लिक्विड बहता ही है। यहां से सल्फ़्यूरिक एसिड बह रहा है तो ?"

" तुम लोगों की तरह सब कायर हो जाएँ तो पिछले महीने जो फ़ेक्टिरियों की तालाबन्दी हुई थी, वह क्या हो सकती थी ? यदि आप लोग इंस्पेक्शन ईमानदारी से नहीं कर सकते तो बोर्ड पर ही ताला लगवा  दीजिये। "

उनका एक जूनियर बोलता "उन फ़ैक्टरी पर अचनाक छापा मारकर उन्हें बंद कर दिया था। उन लोगों को ऐसे भयानक मामू लोगों के बीच कैद थोड़े किया था ?"

मनियार गिड़गिड़ाया है, "आप तो कुंवारे हैं लेकिन लेकिन मेरी तो एक बेटी भी है। उसने कम्पाउंड में बैठे रबारियों [आदिवासियों ] की तरफ़ इशारा किया, "यदि ये मुझे काट डालेंगे तो मेरी बीवी व बेटी का क्या होगा ?"

राकेश लकेरा भरे गले से कहता है, "मैं एम पी का रहने वाला हूँ, मेरे माता पिता तो मेरे मरने के बाद दुःख से पागल हो जाएंगे। "

मनियार फिर दवाब डालकर कहता है, "किसी किसी शहर में बोर्ड के एम्प्लोयीज़ सच ही गायब कर दिए जा रहे हैं। "

डॉ अविनेश मिश्रा अंदर की घबराहट को छिपाते हुए ऊपर से अकड़ दिखते कहते हैं, "हम लोगों को गायब करना इतना आसान नहीं है। "नज़र ऊपर आसमन में चमकते छिटके हुए तारों पर है जैसे अपनी बात पर विशवास न हो।दोनों सुपरवाइज़र्स में एक बुज़ुर्ग सुपरवाइज़र का सामना ऐसे फ़ैक्टरी मालिकों से हो चुका है अलबत्ता वे शांत हैं, चुप है।

लकेरा फिर कहता है, "क्या हम पांच लोगों के ईमानदार होने से क्या प्रदूषण रुक जाएगा ?"

"यदि पांच में से एक आदमी प्रदूषण रोकने की शपथ ले ले तो ज़रूर ये रुकेगा। हमारी आने वाली नस्लें एक स्वस्थ ज़िंदगी जी पाएंगी। जब आप में अपना काम करने की काबलियत नहीं थी तो इस विभाग में क्यों आये ?"डॉ अविनेश के ये तहे दिल के उदगार हैं।अंदर ही अन्दर वे भी चिंतित हैं-- कितना आसान है लैब में जानवरों को चीरकर उनके अंगों के विषय में पढ़ना या छात्रों को पढ़ाना वनस्पति इसके कि आपको प्रदूषित रहित दुनियाँ बनाने के चक्कर में किसी फ़ैक्टरी में कैद कर लिया जाए .आप महसूस करने लगें कि हथियारबंद खूँखार आदिवासियों के बीच फंस जाने का वह भय क्या होता है।

वे चारों इनको पिघलता न देखकर अपनी कुर्सियां खिसकाकर आपस में धीमे धीमे बात करने लगे। बीच बीच में इन्हें क्रोधित नज़रों से वे इन्हें घूर लेते हैं। ज़ाहिर है वे उस ऑर्डर को कोस रहे होंगे जिससे उन्हें इन डॉक्टर के `अंडर `इंस्पेक्शन के आदेश मिले थे। उन्हें कल्पना में अपने घरवालों केबिलखते हुए चेहरे दिखाई देने लगे जो उनके अचानक गायब हो जाने से परेशान हो जाएंगे।

" आप लोगों का  खाना ले आया हूँ। "खुरदुरे चेहरे वाला एक नौकर फ़ोल्डिंग टेबल खोलकर खाना लगाने लगता है। डॉ अविनेश मिश्रा इस फ़ैक्टरी के मालिक के घर का खाना खाएंगे या नहीं ? सबको संशय है क्योंकि जाड़ेजा जाते हुए उनको नमक और नमकहलाली की बात याद दिला गया है। मनियार व लकेरा आँखों ही आँखों में प्रश्न कर रहे हैं। मिश्रा सहज भाव से उठकर चबूतरे के एक कोने में खड़े हो जाते हैं। उस नौकर को आदेश देतें हैं, "ज़रा हाथ धुलाना। "नौकर जग के पानी से हाथ धुलाकर उन्हें हाथ पोंछने के लिए नेपकिन देता है। उन्हें देखकर फ़ुर्ती से उठकर हाथ धोने आ जातें हैं। सबके भूखे पेट ने आस पास के हथियारों की तरफ़ से आँखें बंद कर लीं हैं। खाना राजस्थानी व गुजराती व्यंजनों का मिला जुला रूप है जैसे कि दरबार लोगों की संस्कृति।

डॉ मिश्रा एक रोटी खाने के बाद यानि कि भूख थोड़ी शांत हो जाने के बाद बोलते हैं, `तुम लोग सोच रहे होंगे कि मैं जाड़ेजा का नामक खाकर उसकी नमकहलाली करूँगा .तुम सबका ये सोचना ग़लत है क्योंकि उसने हमें कैद किया है। खाना खिलाना उसका कर्तव्य है। ये ज़मीन, ये हवा उसे भी तो जीवन फिर क्यों वह इनसे नमकहरामी कर रहा है ?हम लोग समझा रहे हैं फिर भी नहीं मान रहा। "

उन चारों की इस समय डॉक्टर के न भावुक भाषण में रूचि है, न हथियारों की तेज़ी का डर। वे खाना खाने में जी जान  जुटे हुए हैं।

खाना खाने के कुछ समय बाद जाड़ेजा पैंट की जेब में हाथ डाले टहलते से चलते हुए आ गए हैं, "कहिये ऑफ़िसर खाना कैसा लगा ?"कहते हुए उनके होंठ दर्प से टेढ़े हो रहे हैं जैसे कह रहे हों कि ये तुम्हारा सौभाग्य है कि तुमने ये राजभोग खाये हैं।

"जीवा थर्मस में से कॉफ़ी निकलना। "वह अपनी लम्बी कुर्सी पर फिर धंस गए हैं। नौकर एक बड़े थर्मस में से कॉफ़ी प्यालों में डालकर, ट्रे में रखकर सबको दे देता है।

डॉ अविनेश उनके इस घनघोर आत्मविश्वास से कुढ़े जा रहे हैं। किस तरह आश्वस्त है कि शिकार को घेर वह मन मुताबिक़ रिपोर्ट लिखवा कर ही रहेंगे। खाने के झूठे बर्तन उठाता वह नौकर पूछता है, "साब जी !बीजू काईं ?[दूसरा कुछ और काम ?]"

"काईं नथी [कुछ नहीं ]."जाड़ेजा कुर्सी पर बैठे बैठे डॉ की तरफ़ थोड़ा झुक आतें हैं, "दूसरी रिपोर्ट लिख ली है या नहीं या लिखना बाकी है ?बस इतना ही तो लिखना है कि फ़ैक्टरी के पाइपों से` सल्फ़्यूरिक एसिड `निकलता तो है लेकिन इसके` प्योरिफ़िकेशन प्लांट `में एब्ज़ोर्ब करके शुद्ध कर लिया जाता है। यहां से कैम्बे [खम्बात की खाड़ी ]की तरफ़ जाने वाली नहर में शुद्ध पानी ही जाता है -दैट`स ऑल। "

खाना खाकर जैसे अविनेश जी का आत्मविश्वास लौट आया है, "मैंने बाहर जाते हुए पानी को दो बार टेस्ट किया है। आपकी  फ़ैक्टरी से सल्फ़्यूरिक एसिड ही बाहर निकलता है। आपका प्योरिफ़िकेशन प्लांट ठीक नहीं है। "

"बहुत हो चुका ऑफ़िसर !"जाडेजा हलके से गुर्राते हैं, "तुम्हारी बहुत खुशामद कर चुका हूँ। ये मामू [आदिवासी ]को देख रहे हो ?मेरे एक इशारे पर तुम पाँचों पर टूट पड़ेंगे। "

"ये धमकी आप पहले भी दे चुके हैं। हमरा विभाग कि हम आपकी फ़ैक्टरी के इंस्पेक्शन पर आएं हैं। मैंने माँ को फ़ोन पर बता दिया है की हम सब आपके यहां हैं। "

उनके तर्क से ऊंचा लंबा जाड़ेजा उठाकर गुस्से से चहलकदमी करने लगता है, "तुम जैसे दो कौड़ी के ऑफ़ीसर की रिपोर्ट की कौन परवाह करता है ? पर्यावरण मंत्रालय में मेरी जातवाला बैठा है। चीफ़ मिनिस्टर से मैंने अपनी नई यूनिट का उद्घाटन करवाया था। तुम रिपोर्ट नहीं बदलोगे तो तुम्हारा चेयरमैन रिपोर्ट बदलेगा। सुना है बोर्ड का कोई नया चेयरमैन आया है। मैं तुम्हारी ख़ुशामद क्यों करुं ?अभी उन्हीं से फ़ोन पर बात करता हूँ। "वे फोन की तरफ झपटते हैं लेकिन कुछ सोच रुक जातें हैं, "ओह !रात के बारह बजे फ़ोन करना ठीक नहीं है। कल सुबह बात करूंगा। "

फिर वे अपने मैनेजर की तरफ़ मुख़ातिब होते हैं, "पटेल !"

"जी सर !, "दूर कुर्सी पर बैठा अधसोया पटेल उनकी एक आवाज़ पर उनके पास हाथ बांधकर खड़ा हो जाता है--एकदम अटेंशन प्राइवेट एग्ज़ेक्युटिव।

"इन लोगों के लिए गैस्ट हाउस खोल दो। मामू लोगों से कह दो सब घर चले जाएँ सिर्फ़ पांच हथियार बंद मामू इधर रुकें। मैं भी अब घर जाता हूँ। " वे उन्हें घूरता हुआ घर की तरफ़ चल देता है। इस बार उसकी चाल में अलमस्त आत्मविश्वास नहीं है। गुस्से में वह जल्दी जल्दी कदम रखता हुआ जा रहा है।

सुबह अविनेश जी अपने साथियों के साथ नाश्ता कर रहे हैं। मेज़ के दूसरे कोने पर बैठा है मैनेजर भट्ट जो उनका ध्यान कम रख रहा है, चौकसी अधिक कर रहा है। तनाव में उसके चेहरे की रेखाएं अलबत्ता अकड़ी जा रहीं हैं। कभी उसने सरकारी अधिकारियों की कंपनी में नज़रबंदी देखी नहीं है ।

डॉ. मिश्रा अलबत्ता शांत हैं। उल्टा उसे बातों में लगाकर तनावमुक्त करना  चाहते हैं, "क्यों भट्ट साहब !रात वाले पटेल साहब नहीं दिखाई दे रहे ?"

"वे तो सुबह आपके चेयरमैन से मिलने निकल गए हैं। "

"वे चौंक जाते हैं, "इतनी सुबह ?"

वह मेनेजर जानबूझकर उन्हें डराना चाह रहा है, "सर ने आपके चेयरमैन के लिए अपना कोई कॉन्टेक्ट ढूंढ़ निकाला है.इसलिए पटेल सर को उनके पास भेजा है। सुना है उनके हाथ में कोई बड़ा ब्रीफ़केस भी था "

"लेकिन ब्रीफ़केस लेकर चेयरमैन से मिलकर क्या होगा ?"

"वही तो आपके बोर्ड के बिग बॉस हैं। पटेल उनसे आज ही फ़ैक्टरी के फ़ेवर में रिपोर्ट लिखवा लेंगे। हो सकता है आप सबकी चार्जशीट भी आज लिखा ली जाए।" भट्ट कंधे उचकाकर जाड़ेजा जैसी कुटिलता से मुस्कराने का प्रयास करता है।

ये सुनकर सबके चेहरे ऐसे उतर जातें हैं जैसे उनकी नौकरी अभी चली गई हो। अलबत्ता डॉ बहुत शांत हैं। वे अपनी माँ कोअपनी लाश पर रोता हुआ नहीं देखना चाहते थे।ये ख़तरा तो फिलहाल पूरी तरह टल ही गया है। उन्हें अधिक देर इंतज़ार नहीं करना पड़ता क्योंकि ग्यारह बजते ही फ़ैक्टरी के गेट पर पुलिस सायरन बजने लगता है। उसका दरवाज़ा चौकीदार को खोलना ही पड़ता है। गैस्ट हाऊस से वे पाँचों निकल आएं हैं।

कम्पाउंड में अपनी अपनी कार से उनके चेयरमैन, पुलिस कमिश्नर व जीप में से इन्स्पेक्टर व सिपाही उतर रहे हैं। कल से चल रहे तनावपूर्ण प्रकरण में पहली बार डॉ अविनेश मिश्रा जी के चेहरे पर भरपूर मुस्कराहट थिरकती है -तो उनके चेयरमैन वाकई पृथ्वी के पर्यावरण व दुनियां के प्रदूषित वातावरण को साफ़ करने वालों में से एक हैं। चेयरमैन आगे बढ़कर गर्मजोशी से अविनेश जी से हाथ मिलाते हैं, "मुझे आप पर बहुत गर्व है डॉ .मिश्रा !"

बाकी चारों से हाथ मिलाकर भी कहते हैं, " वेल डन यू आल। "

वे चारों डॉ. की तरफ देखते हुए झेंप जाते हैं।

जाड़ेजा को घर से बुलवाया जाता है। उसकी शक्ल व लाल आँखों देखकर साफ़ लग रहा है वह रात देर तक जागकर शराब पीता रहा है। किसी तरह पेंट कमीज़ पहनकर चला आ रहा है।

पुलिस कमिश्नर अपने हाथ का कागज़ उसकी तरफ़ बढ़ाते हैं, "मिस्टर जाड़ेजा !आपके ख़िलाफ़ पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ये रिपोर्ट है। आपने ग़ैर कानूनी ढंग से इसके पांच एम्प्लॉयीज़ को यहाँ कैद करके रक्खा है और वाकई ये सच है। "

जाड़ेजा का काइँयापन अभी गया नहीं है, "सर ! किसी ने ग़लत रिपोर्ट कर दी होगी। इन लोगों को इंस्पेक्शन में रात हो गई थी इसलिए मैंने गेस्ट हाऊस खुलवाकर, खाना खिलवाकर मदद की है। यू नो, आई एम ऑल्वेज़ रैडी टु हैल्प एनीबडी  ."

चेयरमैन को अपनी मुस्कराहट ज़ब्त करना मुश्किल हो रहा था, "तभी आपने मेरी हेल्प करने के लिए ब्रीफ़केस भेजा था। "

"ओ शिट !"जाड़ेजा गुस्से में अपना एक पैर पटकते है .डॉ. मिश्रा को खूंखार नज़रों से देखते हुए उनके मुंह से राजकोट प्रिंस कॉलेज में सीखा जुमला निकल ही पड़ता है।

श्री. जी. पिग्मेंट प्रा. लि .पर तालाबंदी हो जाती है .पहले सिविल कोर्ट व बाद में हाई कोर्ट जाड़ेजा की अपील नामंज़ूर कर देता है। वर्षों से ज़मीन व पानी में प्रदूषण फैलाने वाली कंपनी की छान बीन ज़ारी है।

एक दिन वे सब ऑफ़िस में काम कर रहे हैं। एक पुलिस इंस्पेकटर डॉ . मिश्रा के कमरे में आता है, "डॉक्टर साहब !हमें आपकी मदद चाहिए। "

"किसलिए ?"

"फ़ैक्टरी में फिर एक बार जाकर उसके प्रदूषण फैलाने के प्रमाण जुटाने हैं। ."

"वह रिपोर्ट बनाकर मैं दे चुका हूँ। "

"कोर्ट के ऑर्डर्स हैं कि हम लोग उन तीन वैज्ञानिकों, जो वहां कैद किये गए थे, के साथ उस फ़ैक्टरी में जाकर फिर से प्रमाण जुटाएं व उनसे पूछें किसने क्या व्यवहार किया था । दोनों सुपरवाइज़र्स को साथ आने की ज़रुरत नहीं है। "

"ठीक है, मैं साथ जाने को तैयार हूँ। उन दोनों से बात कर लीजिये। "

अविनेश उसे मनियार व लकेरा से भी मिलवा देते हैं .

पुलिस के साथ जाने वाले दिन लकेरा एम .पी. छुट्टी लेकर भाग जाता है। मनियार सिक लीव ले लेता है। पुलिस जीप में सिर्फ़ आगे बैठे डॉ .अविनेश उस फ़ैक्टरी की तरफ बढ़े चले जा रहें हैं, बढ़े चले जा रहे हैं-`क्यों डॉ मिश्रा अब तो आप सच ही खुश हैं ?"

 

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