Tere ishq mi ho jau fana - 25 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 25

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 25

बरसात की वो शाम

अगली सुबह, कॉलेज में समीरा काफी समय से अनमोल का इंतज़ार कर रही थी। घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थीं, और क्लास शुरू होने का भी समय हो चला था। लेकिन अनमोल अभी तक नहीं आया था। उसकी गैरमौजूदगी ने समीरा के दिल में चिंता की एक हल्की सी लहर दौड़ा दी।

"यार, तू यहाँ क्या कर रही है?" रिया ने समीरा को कॉलेज गेट के पास खड़े देखकर पूछा।

समीरा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "पता नहीं, अनमोल अभी तक नहीं आया। कल बारिश में भीगने की वजह से कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं हो गई? मैंने उसे फोन भी किया था, लेकिन उसने उठाया नहीं।"

रिया ने हल्की मुस्कान के साथ छेड़ते हुए कहा, "अरे यार! तू तो उसकी बहुत फिक्र कर रही है। लगता है, तुम दोनों कल देर तक बारिश में भीगते रहे हो। और क्या-क्या हुआ? हमें भी कुछ बता!"

समीरा ने सिर हिलाते हुए कहा, "तू जैसा सोच रही है, वैसा कुछ भी नहीं है। वो एक अच्छा लड़का है। कल हमने काफी बातें कीं, और उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं।"

रिया ने आँखें घुमाईं और मुस्कराते हुए कहा, "हम्म... अच्छा! तो अब उसके साथ बातें भी अच्छी लगने लगीं?"

समीरा ने झेंपते हुए कहा, "अरे, ऐसा कुछ नहीं है! बस, कल का दिन बहुत अलग था। बारिश में भीगना, ठंडी हवा का झोंका, और उसकी बातें... सबकुछ एक खूबसूरत याद बन गया है।"

अनमोल की गुमशुदगी

समीरा अभी भी अनमोल को लेकर चिंता कर रही थी। उसका मन किसी अनहोनी की आशंका से घिरा हुआ था। रिया ने भी महसूस किया कि अनमोल का अब तक नहीं आना अजीब था। तभी दोनों सहेलियों ने अनमोल के दोस्त मनीष को आते देखा।

"अरे मनीष, यार ये अनमोल कहाँ है? हमेशा तो वक्त पर आ जाता है, आज अभी तक नहीं आया!" रिया ने चिंतित स्वर में पूछा।

मनीष के चेहरे पर भी उलझन के भाव थे। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "हां, पता नहीं। मैंने उसे फोन किया लेकिन वो उठा नहीं रहा है। वैसे ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। बड़ी अजीब बात है। वो शहर में अकेले रहता है, यहाँ सिर्फ पढ़ाई के लिए आया था।"

रिया और समीरा की चिंता और बढ़ गई। समीरा ने कहा, "हमें कुछ करना चाहिए। हो सकता है उसे कोई परेशानी हो।"

"हां, चलो उसके घर चलते हैं," मनीष ने सुझाव दिया।

अनमोल के घर की ओर

तीनों बिना देर किए अनमोल के घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर उनकी बातचीत बस अनमोल को लेकर ही थी। समीरा का मन बेचैन था, वह कई तरह की आशंकाओं से घिरी हुई थी।

जब वे अनमोल के घर पहुंचे, तो दरवाजा बंद मिला। मनीष ने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने कई बार दरवाजा पीटा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

"कहीं वो घर के अंदर बेहोश तो नहीं पड़ा?" रिया ने आशंका जताई।

"हमें कुछ करना होगा। पड़ोसियों से पूछते हैं," मनीष ने कहा।

पड़ोसियों से बातचीत

पास के एक कमरे में रहने वाले बुजुर्ग अंकल बाहर आए और बोले, "बेटा, अनमोल तो बहुत सीधा लड़का है। मैंने उसे कल शाम को देखा था, लेकिन आज सुबह से कोई हलचल नहीं सुनी।"

"क्या आपको कुछ अजीब लगा?" समीरा ने पूछा।

"अजीब तो नहीं, लेकिन कल रात मैंने दरवाजे पर किसी को ज़ोर से दस्तक देते सुना था। उसके बाद हल्की सी आवाजें आईं, फिर सब शांत हो गया।"

यह सुनकर तीनों और भी घबरा गए।

तीनों ने मिलकर पुलिस रिपोर्ट कर दी और खुद फिर से कालेज चले गए  | माथूर हाउस में, 

फोन पर बातचीत – एक अनकहा एहसास

कमरे में हल्की पीली रोशनी फैली हुई थी। समीरा अपनी पढ़ाई में पूरी तरह डूबी हुई थी। उसकी आँखें किताब पर टिकी थीं, लेकिन उसका दिमाग कभी-कभी खिड़की से बाहर बह रही ठंडी हवा की ओर चला जाता। वह अकेली थी, मगर कमरे की खामोशी उसे कभी-कभी अजीब सी लगती। तभी अचानक उसका फोन बज उठा। अनजान नंबर देखकर वह थोड़ी असमंजस में पड़ गई। कुछ पल सोचा, फिर कॉल रिसीव कर ली।

समीरा: (सवालिया लहजे में) हेलो, कौन है?

दूसरी तरफ से हल्की सी हंसी सुनाई दी। यह हंसी जानी-पहचानी सी लगी, मगर वह यकीन नहीं कर पाई।

दानिश: (मस्ती भरे अंदाज में) अभी तक तुमने मुझे पहचाना नहीं?

समीरा की भौंहें हल्की सी तन गईं। वह इस तरह की बातचीत के लिए तैयार नहीं थी।

समीरा: देखो, मैं इस वक्त पढ़ रही हूँ, इसलिए जल्दी कहो, कौन हो?

दानिश कुछ पल चुप रहा, फिर एक ऐसा वाक्य बोला जिसने समीरा के दिल की धड़कन बढ़ा दी।

दानिश: वही, जिसके साथ कल सुबह तुम बाइक पर घूमी थी।

समीरा का शरीर एक पल के लिए ठिठक गया। किताब उसके हाथ में काँपने लगी। उसे लगा जैसे उसकी साँसें थम गई हों। वह इस नाम और इस आवाज़ को जानने लगी थी, मगर अब तक उसने उसे एक अनजान एहसास की तरह ही रखा था।

समीरा: (हकलाते हुए) त… तुम?

दानिश: हाँ, वही… दानिश सानियाल।

समीरा को थोड़ी हैरानी हुई। उसने अब तक उसका नाम भी नहीं जाना था। यह सोचकर उसे खुद पर हंसी भी आई।

समीरा: अच्छा, तो तुम्हारा नाम दानिश है?

दानिश: (हंसते हुए) और तुम्हें अब तक मेरा नाम भी नहीं मालूम था? दुख हुआ सुनकर!

समीरा हल्की मुस्कान दबाने की कोशिश करने लगी।

समीरा: नाम से क्या फर्क पड़ता है? वैसे भी… मैं किसी अजनबी से ज्यादा बात नहीं करती।

दानिश ने जैसे उसकी इस बात को पकड़ लिया हो।

दानिश: अजनबी? तो फिर सुबह जब तुम मेरे साथ थी, तब मैं अजनबी नहीं था?

समीरा कुछ कहने ही वाली थी, मगर उसके पास कोई जवाब नहीं था। दानिश ने जो कहा, वह सच था। उसने खुद ही अपनी मर्जी से उसके साथ बाइक राइड की थी। हवा में बहते हुए उन लम्हों में उसे अजनबीपन महसूस नहीं हुआ था। मगर अब, जब वह अकेले अपने कमरे में थी, तो सब कुछ अलग सा लगने लगा।

कमरे में एक पल के लिए खामोशी छा गई। समीरा ने धीरे-धीरे सांस ली और खुद को सामान्य करने की कोशिश की।

समीरा: (संयमित स्वर में) तुमने फोन क्यों किया?

दानिश: तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए।

समीरा के दिल की धड़कन एक बार फिर तेज हो गई। यह जवाब वह उम्मीद नहीं कर रही थी। उसने खिड़की की तरफ देखा, ठंडी हवा अंदर आ रही थी। उसके बाल चेहरे पर आ गए, जिन्हें उसने धीरे से हटाया।

समीरा: (धीमी आवाज़ में) मुझे पढ़ाई करनी है, मैं रख रही हूँ।

दानिश: ठीक है, लेकिन सोने से पहले एक बार मेरी आवाज़ याद कर लेना… ताकि अगली बार पहचानने में देर न लगे।

समीरा ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया। मगर उसकी आँखों में हल्की चमक थी और होंठों पर अनजाने में एक मुस्कान आ गई थी।