3: आग की वापसी ।।।18 मार्च 2025 की सुबह रफाह पर एक भ्रामक शांति के साथ शुरू हुई। जनवरी में शुरू हुआ युद्धविराम, जो अमेरिका, मिस्र, और कतर द्वारा मध्यस्थता किया गया था, गाजा में एक नाजुक उम्मीद लेकर आया था। आमिना, 28, अपने विस्थापन शिविर के तंबू-स्कूल के सामने खड़ी थी, जहां चालीस बच्चे, छह से बारह साल के, चटाइयों पर बैठे थे। उनके चेहरे भूख से पीले थे, लेकिनびに आँखें जिज्ञासा और डर से भरी थीं। तंबू की दीवारें बच्चों के चित्रों—जैतून के पेड़, समुद्र, और उड़ते पक्षी—से सजी थीं। “आज हम लचीलेपन के बारे में सीखेंगे,” आमिना ने कहा, उसकी आवाज़ भूख के बावजूद दृढ़ थी। “जैतून का पेड़ कठिन मिट्टी में भी उगता है, और हम भी वैसे ही हैं।” युद्धविराम ने कुछ राहत दी थी—30 ट्रक सहायता रोज़ आ रहे थे, जो युद्ध-पूर्व के 500 की तुलना में नगण्य थे—लेकिन यह बच्चों के सपनों को जीवित रखने के लिए काफी था।रेड क्रॉस फील्ड अस्पताल में, जो मिस्र की सीमा के पास तंबुओं का एक समूह था, डॉ. सामी, 42, सौर लैंप की मंद रोशनी में काम कर रहे थे। गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनवरी तक 47,035 मौतें दर्ज की थीं, और युद्धविराम ने कुछ समय के लिए मौतों को धीमा किया था। सामी ने एक सात साल के लड़के, अहमद, की जाँच की, जिसका कुपोषित शरीर हड्डियों का ढांचा था। “हमारे पास एंटीबायोटिक्स नहीं हैं,” उन्होंने नर्स आयशा को बताया, उनके हाथ एक शrapnel घाव को सिलते हुए काँप रहे थे। अस्पताल गाजा का आखिरी चिकित्सा केंद्र था, लेकिन 47% दवाएँ अनुपलब्ध थीं। संयुक्त राष्ट्र ने 1,33,000 लोगों के लिए भुखमरी की चेतावनी दी थी, और सामी इसे हर मरीज में देख रहे थे—सिवार, एक बच्ची जिसे उन्होंने 2023 में बचाया था, अब मुश्किल से चल पाती थी।शिविर में, फातिमा, 60, अपने तंबू के बाहर बैठी थी, 1948 की नकबा चाबी को पकड़े हुए। उसकी कहानियाँ—जाफा से भागना, बमों के बीच छिपना—आमिना और यूसुफ को बाँधे रखती थीं। यूसुफ, 16, बेचैन था, उसका गुस्सा उमर की 2023 में हुई मौत से भड़का हुआ था। “वे हमें भूखा मारते हैं,” उसने रेत को ठोकर मारते हुए कहा। आमिना ने उसे अपनी कक्षा में खींचा। “शिक्षा हमारा हथियार है,” उसने कहा, उसकी आँखें याचना कर रही थीं। यूसुफ ने नज़रें फेर लीं, लेकिन उसकी मुट्ठियाँ ढीली पड़ गईं।सीमा के पार, मीरा, 35, एक इजरायली-अमेरिकी स्वयंसेवी, मागेन डेविड एडम के तेल अवीव स्टेशन पर थी। 2023 में हमास के हमले—1,200 मौतें, 251 बंधक—ने उसे इजरायल खींचा था, लेकिन गाजा में 70% नागरिक मौतें (महिलाएँ और बच्चे) उसे परेशान करती थीं। उसने रेड क्रॉस के एक मिशन में शामिल होने का फैसला किया। “मैं मदद करना चाहती हूँ,” उसने कहा, लेकिन गाजा की खबरों ने उसे हिला दिया। “यह युद्ध हमें खा रहा है,” उसने एक सहकर्मी से कहा, जिसने जवाब दिया, “हमास नागरिकों में छिपता है।” मीरा चुप रही, उसका मन भारी था।सुबह 10:13 बजे, युद्धविराम टूट गया। इजरायली हवाई हमले, अमेरिकी समर्थन के साथ, रफाह पर टूट पड़े, हमास के ठिकानों को निशाना बनाते हुए, लेकिन नागरिक क्षेत्रों को नष्ट करते हुए। गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाद में बताया कि कुछ दिनों में 400 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 263 महिलाएँ और बच्चे थे। आमिना का तंबू-स्कूल हिल गया, उसकी पूर्वी दीवार ढह गई। “नीचे झुको!” उसने चिल्लाया, बच्चों को चटाइयों के नीचे खींचते हुए। एक मिसाइल पास गिरी, मलबे में लैला, एक नौ साल की छात्रा, फँस गई। “मेरे साथ रहो,” आमिना ने फुसफुसाया, उसकी टांग से खून बह रहा था। आमिना ने उसे मलबे से निकाला, उसकी चीखें हवा में गूँज रही थीं।सामी का अस्पताल युद्धक्षेत्र बन गया। घायल लोग आते रहे—बच्चों में शrapnel के घाव, बुजुर्ग मलबे में दबे। “ट्रायज!” सामी ने चिल्लाया, एक किशोर की टूटी बाँह पर काम करते हुए। रेड क्रॉस ने उस महीने आठ चिकित्सकों की मौत की सूचना दी। बिना एनेस्थेसिया के ऑपरेशन करते हुए, सामी की आवाज़ टूट रही थी। “हम उन्हें खो रहे हैं,” उन्होंने फुसफुसाया, उनके हाथ खून से सने थे। नूर, एक कुपोषित बच्ची, अपनी माँ के साथ कोने में थी। सामी ने उसे स्थिर किया, लेकिन दो अन्य मरे, उनके नाम उनकी सूची में जुड़ गए।यूसुफ शिविर में था जब हमला हुआ, सहायता के लिए रास्ता साफ कर रहा था। विस्फोट ने उसे ज़मीन पर पटक दिया। “आमिना!” वह चिल्लाया, मलबे में दौड़ता हुआ। उसने अपनी बहन को लैला को ले जाते देखा और उसकी मदद की। वे सामी के अस्पताल पहुँचे, जहाँ यूसुफ ने लैला का हाथ पकड़ा। “वह ठीक होगी,” सामी ने कहा, लेकिन उनकी आँखें खाली थीं। फातिमा अस्पताल पहुँची, अपनी चाबी को पकड़े हुए। “हम बच जाते हैं,” उसने कहा, अपनी बेटी और बेटे को गले लगाते हुए। उसने 1948 की कहानी सुनाई, जब उसका परिवार जाफा के बागों में छिपा था। “हम अभी भी यहाँ हैं।”मीरा ने रेडियो पर हमले की खबर सुनी: “हमास के ठिकाने नष्ट।” लेकिन X पर पोस्ट—नागरिकों की मौतें—उसके मन को भारी कर रही थीं। उसने रेड क्रॉस काफिले में शामिल होकर दवाएँ पहुँचाईं। “वे दवाओं के बिना मर रहे हैं,” खालिद ने कहा। मीरा ने अपराधबोध महसूस किया, ड्रोन की आवाज़ उसके कानों में गूँज रही थी।आमिना ने अपने स्कूल को तिरपाल के नीचे फिर से शुरू किया। “हम पढ़ते रहेंगे,” उसने कहा, बच्चों को कविताएँ सिखाते हुए। यूसुफ ने अपनी कक्षा में शामिल होकर लिखना शुरू किया। “मैं नहीं लड़ना चाहता,” उसने आमिना से कहा। लेकिन अहमद ने फिर से कोशिश की: “हमास को तुम जैसे लड़कों की ज़रूरत है।” यूसुफ ने मना कर दिया, आमिना की बात याद करते हुए: “निर्माण करो, नष्ट मत करो।”सामी ने रात भर काम किया, बिना सिवन के सर्जरी की। सिवार की माँ, अमल, कमज़ोर थी। “वह मेरी ज़िंदगी है,” उसने कहा। सामी ने उसे एक प्रोटीन बार दिया, खुद भूखा रहा। शिविर में, पड़ोसियों ने रोटी बाँटी, महिलाओं ने कपड़े सिले। फातिमा ने बच्चों को कहानियाँ सुनाईं, उनकी चाबी चमक रही थी। “हमने अंधेरे में बीज बोए,” उसने कहा। युद्धविराम टूट गया, हमास और इजरायल की शर्तें टकरा रही थीं। गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने 47,435 मौतें दर्ज कीं। आमिना, सामी, यूसुफ, फातिमा, और मीरा ने हार नहीं मानी, उनके छोटे विद्रोह—एक कक्षा, एक सर्जरी, एक कविता—गाजा की आत्मा को जीवित रखते थे।---
लेखक सुहेल अंसारी सनम
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