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वृक्षारोपण: एक नई शुरुआत
गुजरात के एक छोटे से गाँव, हरितपुर, में रहने वाले किशोर, आरव, को प्रकृति से गहरा लगाव था। वह अक्सर गाँव के पास बहने वाली नदी के किनारे बैठकर पक्षियों की चहचहाहट सुनता और पेड़ों की छांव में किताबें पढ़ता। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, उसने देखा कि गाँव के आसपास के पेड़ धीरे-धीरे कटते जा रहे थे। हरियाली कम हो रही थी, और गर्मियों में तापमान असहनीय हो गया था। आरव को यह देखकर बहुत दुख होता था, लेकिन वह अकेला क्या कर सकता था?
एक दिन, स्कूल में उनके शिक्षक, श्रीमान जोशी, ने पर्यावरण संरक्षण पर एक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि वृक्षारोपण न केवल पर्यावरण को बचाने का एक तरीका है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उपहार भी है। आरव ने उस दिन ठान लिया कि वह अपने गाँव को फिर से हरा-भरा बनाएगा।
आरव ने सबसे पहले अपने दोस्तों को इस अभियान में शामिल करने का फैसला किया। उसने अपने दोस्तों, मीरा, करण और सिया, को बुलाया और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया। सभी ने उत्साहपूर्वक उसका समर्थन किया। उन्होंने तय किया कि वे गाँव के खाली पड़े मैदान में वृक्षारोपण करेंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें पौधों और उपकरणों की आवश्यकता थी।
आरव ने गाँव के सरपंच से मदद मांगी। सरपंच ने उनकी योजना की सराहना की और उन्हें पौधे और उपकरण उपलब्ध कराने का वादा किया। इसके अलावा, उन्होंने गाँव के अन्य लोगों को भी इस अभियान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। धीरे-धीरे, गाँव के लोग इस अभियान का हिस्सा बनने लगे।
वृक्षारोपण का दिन आ गया। सुबह-सुबह, गाँव के लोग मैदान में इकट्ठा हुए। हर कोई उत्साहित था। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने मिलकर पौधे लगाए। आरव और उसके दोस्तों ने पौधों की देखभाल के लिए जिम्मेदारियां बांटीं। उन्होंने तय किया कि हर दिन कोई न कोई पौधों को पानी देगा और उनकी देखभाल करेगा।
कुछ महीनों बाद, उनके प्रयास रंग लाने लगे। छोटे-छोटे पौधे अब पेड़ बनने लगे थे। गाँव का वातावरण बदलने लगा था। पक्षी फिर से लौटने लगे, और गर्मियों में भी ठंडी हवा महसूस होने लगी। गाँव के लोग आरव और उसके दोस्तों की तारीफ करते नहीं थकते थे।
आरव ने महसूस किया कि यह सिर्फ शुरुआत थी। उसने तय किया कि वह हर साल गाँव में वृक्षारोपण अभियान चलाएगा। उसने स्कूल में एक "हरित क्लब" भी शुरू किया, जिसमें बच्चे पर्यावरण संरक्षण के बारे में सीखते और दूसरों को जागरूक करते।
आरव का यह छोटा सा प्रयास एक बड़ी प्रेरणा बन गया। आसपास के गाँवों ने भी हरितपुर से प्रेरणा लेकर वृक्षारोपण अभियान शुरू किए। आरव को गर्व था कि उसने अपने गाँव को न केवल हरा-भरा बनाया, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि अगर हम ठान लें, तो छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। वृक्षारोपण न केवल पर्यावरण को बचाने का एक तरीका है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी भी है। आखिरकार, पेड़ ही तो हमारे जीवन का आधार हैं।
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वृक्षारोपण: एक नई शुरुआत
गुजरात के एक छोटे से गाँव, हरितपुर, में रहने वाले किशोर, आरव, को प्रकृति से गहरा लगाव था। वह अक्सर गाँव के पास बहने वाली नदी के किनारे बैठकर पक्षियों की चहचहाहट सुनता और पेड़ों की छांव में किताबें पढ़ता। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, उसने देखा कि गाँव के आसपास के पेड़ धीरे-धीरे कटते जा रहे थे। हरियाली कम हो रही थी, और गर्मियों में तापमान असहनीय हो गया था। आरव को यह देखकर बहुत दुख होता था, लेकिन वह अकेला क्या कर सकता था?
एक दिन, स्कूल में उनके शिक्षक, श्रीमान जोशी, ने पर्यावरण संरक्षण पर एक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि वृक्षारोपण न केवल पर्यावरण को बचाने का एक तरीका है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उपहार भी है। आरव ने उस दिन ठान लिया कि वह अपने गाँव को फिर से हरा-भरा बनाएगा।
आरव ने सबसे पहले अपने दोस्तों को इस अभियान में शामिल करने का फैसला किया। उसने अपने दोस्तों, मीरा, करण और सिया, को बुलाया और उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया। सभी ने उत्साहपूर्वक उसका समर्थन किया। उन्होंने तय किया कि वे गाँव के खाली पड़े मैदान में वृक्षारोपण करेंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें पौधों और उपकरणों की आवश्यकता थी।
आरव ने गाँव के सरपंच से मदद मांगी। सरपंच ने उनकी योजना की सराहना की और उन्हें पौधे और उपकरण उपलब्ध कराने का वादा किया। इसके अलावा, उन्होंने गाँव के अन्य लोगों को भी इस अभियान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। धीरे-धीरे, गाँव के लोग इस अभियान का हिस्सा बनने लगे।
वृक्षारोपण का दिन आ गया। सुबह-सुबह, गाँव के लोग मैदान में इकट्ठा हुए। हर कोई उत्साहित था। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने मिलकर पौधे लगाए। आरव और उसके दोस्तों ने पौधों की देखभाल के लिए जिम्मेदारियां बांटीं। उन्होंने तय किया कि हर दिन कोई न कोई पौधों को पानी देगा और उनकी देखभाल करेगा।
कुछ महीनों बाद, उनके प्रयास रंग लाने लगे। छोटे-छोटे पौधे अब पेड़ बनने लगे थे। गाँव का वातावरण बदलने लगा था। पक्षी फिर से लौटने लगे, और गर्मियों में भी ठंडी हवा महसूस होने लगी। गाँव के लोग आरव और उसके दोस्तों की तारीफ करते नहीं थकते थे।
आरव ने महसूस किया कि यह सिर्फ शुरुआत थी। उसने तय किया कि वह हर साल गाँव में वृक्षारोपण अभियान चलाएगा। उसने स्कूल में एक "हरित क्लब" भी शुरू किया, जिसमें बच्चे पर्यावरण संरक्षण के बारे में सीखते और दूसरों को जागरूक करते।
आरव का यह छोटा सा प्रयास एक बड़ी प्रेरणा बन गया। आसपास के गाँवों ने भी हरितपुर से प्रेरणा लेकर वृक्षारोपण अभियान शुरू किए। आरव को गर्व था कि उसने अपने गाँव को न केवल हरा-भरा बनाया, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि अगर हम ठान लें, तो छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। वृक्षारोपण न केवल पर्यावरण को बचाने का एक तरीका है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी भी है। आखिरकार, पेड़ ही तो हमारे जीवन का आधार है।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी