16 digit world in Hindi Science-Fiction by Akshay Jani books and stories PDF | दुनिया 16 डिजिट

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दुनिया 16 डिजिट

अध्याय 1: पहचान की राख

रात की कालिमा में एक तेज़ चीख हवा को चीरती है। कहीं दूर मंदिर की घंटियों और अज़ान के स्वर अब गोलियों और जलती हुई लकड़ियों की आवाज़ों में दब गए हैं। वो रात, जिसमें 'घर' शब्द का अर्थ राख में बदल गया। और वहीं खड़ी थी — आर्या। सोलह साल की एक मासूम लड़की, जिसके चेहरे पर माँ की ममता, पिता का गर्व, और भाई की शरारत अब केवल स्मृति बन चुकी थी।
आर्या का परिवार एक मध्यमवर्गीय, पढ़ा-लिखा और शांतिप्रिय था। वे एक ऐसे गाँव में रहते थे जहाँ कई विचारधाराओं के लोग साथ रहते थे — कम से कम ऊपर से। आर्या की माँ एक स्कूल टीचर थीं और पिता एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो हमेशा शांति और भाईचारे की बातें करते थे।
लेकिन उस दिन कुछ और ही लिखा था किस्मत में। किसी अफवाह ने आग पकड़ ली। कहा गया कि कुछ लोगों ने उनके समुदाय को निशाना बना लिया। देखते ही देखते, गाँव का हर घर एक पहचान की दीवार में कैद हो गया। भीड़ आई, नारे लगे, और सिर्फ़ एक अलग विचार या नाम के नाम पर निर्दोषों को मार दिया गया।
आर्या ने अपनी माँ को जलते हुए देखा, पिता को पत्थरों से कुचले जाते हुए और छोटे भाई को गली में घसीटते हुए। वो चीखी, भागी, छुपी — और बच गई। लेकिन उस रात, उसके भीतर की आर्या कहीं मर गई।
जब सुबह हुई, तो उसकी आँखों में आँसू नहीं थे। केवल सवाल थे:
"मेरा क्या कसूर था?"
"पापा ने तो सबकी मदद की थी, उन्हें क्यों मारा गया?"
"माँ ने सबको पढ़ाया था, उन्हें क्यों जलाया गया?"
अब वह किसी भी नाम पर विश्वास नहीं कर सकती थी। 

पहचान? वह तो केवल बाँटती है — ये उसने महसूस किया। 

समाज? वो तो सिर्फ़ मरने के लिए पहचान बनाती है।

सीमाएँ? वही जो लोगों को बाहरी बना देती हैं।

उसने अपने सारे कागज़, फोटो, पहचान पत्र — सब कुछ फाड़ कर नदी में बहा दिया। अब वो बस एक इंसान थी — ना किसी विचारधारा की, ना पहचान की, ना क्षेत्र की।
सड़कें उसे पहचानने से इंकार कर रही थीं। हर जगह से उसे भगाया गया। सिर्फ़ इसलिए कि वो किसी समुदाय की नहीं लगती थी।
अब आर्या को समझ आने लगा था कि ये आग सिर्फ़ उसके घर की नहीं थी। ये आग पूरी इंसानियत को खा रही है। और इस आग को बुझाने के लिए पानी से ज़्यादा ज़रूरी है — सोच का बदलाव।
इसलिए उसने फैसला किया: "अब मैं केवल जीने के लिए नहीं, बदलने के लिए जिऊँगी। मैं दुनिया को पहचान से मुक्त करूँगी। नाम, जाति, धर्म — सब मिटा दूँगी... और एक नई पहचान लाऊँगी।"

अध्यय 2: हर कोने में दर्द

आर्या ने अपनी पहचान मिटा दी थी, लेकिन समाज की दीवारें अभी भी खड़ी थीं। वो अब एक गाँव से दूसरे गाँव, एक दिशा से दूसरी दिशा भटक रही थी — कभी किसी ट्रक के पीछे, कभी किसी ट्रेन के डिब्बे में छुपकर। हर जगह वह एक ही तस्वीर देखती — भेदभाव, हिंसा और टूटे हुए परिवार।

एक ओर एक बूढ़ा व्यक्ति था, जिसे इसलिए पीटा गया क्योंकि वह “बाहर से आया हुआ” माना गया। दूसरी ओर एक महिला थी जिसे सार्वजनिक स्थल पर अपमानित किया गया, क्योंकि वह “उनकी तरह” नहीं दिखती थी। कहीं एक बच्चे को स्कूल में अलग बैठाया गया, क्योंकि उसका नाम अजीब था।

हर कोना जैसे एक जैसी चीख से गूंज रहा था।

आर्या अब केवल देख नहीं रही थी, वो सुन भी रही थी — वो चीखें जो शायद दुनिया को सुनाई नहीं देतीं:

एक बच्चा, जो कह रहा था: "मैं खेल में शामिल नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा नाम अलग है।"

एक स्त्री, जो कह रही थी: "मैं डरती हूँ अपने पहनावे से, क्योंकि वो मेरे साथ जुड़ी पहचान को उजागर करता है।"

एक बुजुर्ग, जो कह रहे थे: "पहले हम सिर्फ़ इंसान थे, अब हमें नाम और क्षेत्र से तोला जाता है।"

इन सबने आर्या के भीतर एक ज्वाला जला दी। यह दुनिया टुकड़ों में बंटी हुई थी — नामों, पहचान, धारणाओं और सीमाओं के नाम पर। लोगों को जन्म से ही कोई ठप्पा दे दिया जाता था, और उसी पहचान की सजा उन्हें उम्रभर मिलती थी।

एक दिन एक छोटे गाँव में आर्या को एक लाइब्रेरी मिली, जहां कुछ पुरानी किताबें और एक टूटा कंप्यूटर था। वहाँ रहते हुए उसने एक शब्द पढ़ा — "सिंथेसिस" — जिसका अर्थ था, विभिन्न तत्वों को मिलाकर एक नई संपूर्ण रचना बनाना।

आर्या ने निर्णय लिया: अब वह केवल भागेगी नहीं, कुछ रचेगी। वह ऐसी व्यवस्था बनाएगी जिसमें इंसान को उसकी सोच, कर्म और संवेदना से पहचाना जाए — ना कि उसके नाम या पुराने पहचान से।
और यही थी उस महान योजना की शुरुआत, जिसे दुनिया एक दिन पूरी तरह बदलने वाली थी।

अध्याय 3: विचार का जन्म

छोटे से पहाड़ी गाँव की शांति में आर्या एक कमरे में बैठी थी। उसके सामने कंप्यूटर की झिलमिलाती स्क्रीन और उसके भीतर अनगिनत सवाल। हर दिन उसका दिल एक ही प्रश्न से घिरा रहता:

"दुनिया में नाम, जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर होने वाले दंगे आखिर कैसे रुकें? ऐसा क्या हो सकता है जिससे हर भेदभाव का अंत हो जाए? क्या कोई ऐसी पहचान संभव है जिसमें इंसान सिर्फ इंसान दिखे?"

वो दिन-रात किताबों, लेखों और ऑनलाइन थ्योरीज़ को खंगालती रही। और फिर एक दिन उसे एक विचार कौंधा—संख्या (Number)।

वो सोचने लगी: "क्या कोई ऐसा सिस्टम हो सकता है जहाँ व्यक्ति की पहचान सिर्फ एक नंबर हो? एक ऐसा नंबर जिसमें कोई धर्म, जाति, क्षेत्र या लिंग छुपा न हो। क्या ऐसा संभव है कि यदि सभी की पहचान मात्र एक कोड हो, तो हम बिना भेदभाव के जी सकें?"

उत्तर उसके भीतर से ही आया: हाँ।

एक नंबर न किसी भाषा से जुड़ा है, न संस्कृति से, न लिंग से और न ही इतिहास से। यह केवल एक तटस्थ पहचान है।

अब सवाल था, कितने अंकों का हो ये कोड?

आर्या ने सोचा — 10 अंकों से भारत की जनसंख्या जैसी बड़ी आबादी को कवर किया जा सकता है, लेकिन यदि ये सिस्टम पूरी दुनिया और आने वाली सदियों तक उपयोगी रहना है, तो इसे और विस्तृत होना होगा।

तभी उसने 16 अंकों की कल्पना की।


16 अंकों की संख्या यानी 10,000 ट्रिलियन यूनिक संभावनाएँ — ये संख्या आने वाले लाखों वर्षों तक इंसान की बढ़ती जनसंख्या को भी समाहित कर सकती है।

यह न कोई धर्म बताएगा, न जाति। न ही कोई नाम, जिससे पहचान की राजनीति जन्म ले।

यह सिर्फ एक कोड होगा — मानवता के लिए।

यह तकनीकी रूप से भी एक मजबूत और सुरक्षित डिजिटल पहचान बनेगा।

साथ ही  उसने कोड के निर्माण के लिए एक सुव्यवस्थित संरचना बनाई:

पहले चार अंक — जन्म वर्ष

अगले चार — जन्म स्थान का क्षेत्रीय कोड

अगले चार — ऑटो जनरेटेड सीक्वेंस नंबर

अंतिम चार — वेरिफिकेशन कोड

इस विचार से आर्या के भीतर उम्मीद की रोशनी जल उठी। उसने कोडिंग सीखना शुरू किया। दिन-रात वह डिजिटल सिक्योरिटी, डेटा एन्क्रिप्शन, और ग्लोबल नेटवर्किंग की बारीकियाँ समझने लगी।

अब वो एक योजना की ओर बढ़ रही थी — एक ऐसी पहचान प्रणाली, जो इंसान को इंसान की तरह देखे, सिर्फ 16 अंकों में।

अध्याय 4: क्रांति की रात

कई सालों की गुप्त मेहनत और कोडिंग के बाद, आर्या ने वह बना लिया जो अब तक सिर्फ़ एक विचार था — एक ऐसा यूनिवर्सल सिस्टम जो पूरी दुनिया की डिजिटल पहचान को पलभर में बदल सकता था।

उसने एक अत्याधुनिक AI आधारित वायरस बनाया, जो सभी देशों के नागरिक डेटा में प्रवेश करके उनके नाम, धर्म, जाति, क्षेत्रीय पहचान को हटाकर उन्हें सिर्फ़ एक 16 अंकों की यूनिक आइडेंटिटी से बदल देगा। उसने हर व्यक्ति को याद रखने लायक एक ऐसा कोड देने की योजना बनाई जो किसी के भी बारे में कोई पूर्वग्रह नहीं बनने देगा।

फिर आई वह रात — 31 दिसंबर की रात या कहे तो १ जनवरी की सुबह 3 से सुबह 5 के बीच जब दुनिया नए साल का स्वागत कर गहरी नींद में थी तब एक गुप्त और क्रांतिकारी काम को आर्या ने अंजाम दिया। आर्या ने वायरस को सक्रिय कर दिया। सैकड़ों सर्वरों पर एक ही कोड दौड़ने लगा — पहचान मिटाओ, नया कोड दो।

नए साल की सुबह दुनिया उठी तो अफरा-तफरी मच गई।

लोगों के पास उनके नाम नहीं थे, जातियाँ नहीं थीं, धर्म और क्षेत्रीय पहचान तक मिट चुकी थी। केवल 16 अंकों के कोड थे। सरकारी रिकॉर्ड, बैंक, स्कूल, वोटर लिस्ट, सोशल मीडिया — हर जगह केवल कोड।

पहले तो लोग घबरा गए। हर कोई अपनी पुरानी पहचान खोजने में लग गया। लोगों ने अपने दस्तावेज़, फोटो, सर्टिफिकेट ढूँढने शुरू किए। अख़बारों में चीखें थीं — “मेरा नाम वापस दो!”, “मैं कौन हूँ?”, “मेरा धर्म क्या हुआ?”

लेकिन कुछ ही हफ्तों में एक अजीब-सी शांति फैलने लगी।

अब लोगों को एहसास हुआ कि उनके पुराने नामों से जुड़े झगड़े, द्वेष, अपमान — सब ग़ायब हो गए हैं।

अब कोई किसी को नाम से जज नहीं करता था। कोई जाति पूछने वाला नहीं था।

अब लोग कहते थे:

“अरे वो 7653 9981 3211 0021 बहुत अच्छा शिक्षक है।”

“0081 2003 1023 4981 बहुत नेक इंसान हैं।”

“0099 1010 1010 2020 एक सच्चे नेता हैं।”

नाम नहीं, कर्म बोलने लगे थे।

लोगों ने देखा कि जब नाम, जाति, धर्म नहीं होते — तो बचती है सिर्फ़ मानवता। और वही तो आर्या चाहती थी। आर्या क्या दुनिया का हर व्यक्ति अन्दर से यही तो चाहता है, खुश ओर भेदभाव रहित समाज , दुनिया। 

अध्याय 5: नई दुनिया

कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया ने इस नई पहचान प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया। पहले डर, फिर जिज्ञासा, और फिर अपनापन।

बच्चे बिना किसी पूर्वग्रह के साथ एक-दूसरे से खेलते थे। नौकरियाँ केवल योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। स्कूलों में बच्चे को जाति के आधार पर नहीं बाँटा जाता था। सोशल मीडिया पर किसी को नाम से नहीं ट्रोल किया जाता था।

यह एक नई दुनिया थी — एक 16 डिजिट की दुनिया।

आर्या ने अपने लिए दो कोड बनाए थे। एक — 0000 0000 0000 0001 — और दूसरा एक साधारण, यादृच्छिक कोड। उसने कभी पहले वाला कोड इस्तेमाल नहीं किया।

वह एक नए कोड के साथ एक गाँव में एक स्कूल टीचर बनकर बस गई। उसका नाम कोई नहीं जानता था, लेकिन सब कहते थे — “ये बहुत अच्छी टीचर है।”

उधर दुनिया में हर सरकार, हर संस्था, हर व्यक्ति उस पहले कोड को ढूँढने में लग गया — 0000 0000 0000 0001 को। क्यों कि उस एक कोड को छोड़ कर सारे कोड में 16 डिजिट थे केवल इस एक कोड में 15 शून्य थे जिससे सब को ये तो पता था कि इस पूरी नई प्रणाली को बनाने वाला ही 0000 0000 0000 0001 है। हर कोई उस व्यक्ति को धन्यवाद देना चाहता था जिसने दुनिया बदल दी। लेकिन वह कभी नहीं मिला।
आज दुनिया के 80% हिस्से में अब नाम, जाति, धर्म या राष्ट्र नहीं पूछे जाते। लोग एक कोड से पहचाने जाते हैं। 16 डिजिट से।

खोज के वर्षों बाद भी जब कोई उसका पता नहीं लगा पाया, तो वह कोड खुद एक दंतकथा बन गया। बच्चे 0001 नंबर को पवित्र मानने लगे। लोग रोज़ उस कोड के लिए प्रार्थना करते थे। कोड ‘0000 0000 0000 0001’ अब एक विचार है — एक क्रांति की मिसाल।

और आर्या?

वह रोज़ बच्चों को पढ़ाती थी, पेड़ों के नीचे बैठती थी, खेतों में चलती थी — और मुस्कुराती थी। वह जानती थी कि उसका कार्य पूर्ण हो चुका है। वह अब केवल एक साधारण इंसान थी, एक कोड — एक अच्छी टीचर।
एक दिन वो स्कूल में पढ़ा रहीं थी तभी कई देशों से कंप्यूटर के निष्णात की टीम उस स्कूल में आ पहुंची जहां आर्या पढ़ा रहीं थी। उन्होंने आ कर पूछना ओर जांच पड़ताल करना शुरू किया, उनके हिसाब से यह नई 16 डिजिट प्रणाली बनाने वाला यही कही था। बहुत मेहनत के बाद तकनीकी ओर कंप्यूटर विशेषज्ञों की इस टीम ने जहा से प्रोग्राम रन किया गया उसकी लोकेशन निकल ली थी, अब बस वह कंप्यूटर ढूंढना था, जिसके बाद पता चल जाना था कि 0000 0000 0000 0001 कौन है।
आर्या पहले से जानती थी कोई तो जरूर पहुंचेगा। इसलिए आर्या ने इस्तेमाल के बाद उस कंप्यूटर को ही नष्ट कर टुकड़ों को कई अलग अलग कबाड़ में भेज दिया था। 
बहुत छानबीन हुई, कोई सुराग न मिला, उन विशेषज्ञों की टीम ने आर्या से भी पूछताछ की, आर्या ने उनलोगों से आराम से बात की और बताया कि वह ऐसे किसी इंसान को नहीं मिली है नाही जानती है।
उनलोगों की टीम के जाने के बाद आर्या की एक विद्यार्थी ने आर्या को पूछा, टीचर ये 00001 कहा होंगे? बड़ी होकर मैं एकदिन उन्हें जरूर ढूंढ निकालूंगी…
आर्या ज़रा सा मुस्कुराई और बोली... 
“कभी-कभी, सबसे बड़ा परिवर्तन वह होता है, जिसमें परिवर्तन करने वाला कहीं दिखता नहीं — केवल उसका असर रह जाता है... मैं तो नहीं जानती 0001 कहां होंगे पर तुम ढूंढलो तो मेरा शुक्रिया कहना…”

क्या आप कभी  मिले हैं 0001 से?😊