Mother separated from the branch in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | डाली से बिछड़ी मां

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डाली से बिछड़ी मां

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानीअंधेरे घुप घर में सन्नाटा भाऐं-भाएं कर रहा था। डाली से बिछड़ी मां बेहोश पड़ी थी। वह मौत के बेहद क़रीब पहुंच चुकी थीं। फोन में से शमशान घाट में भोंकते हुए कुत्तों जैसी ध्वनि पैदा हो रही थी। वह हड़बड़ा गई, उन्होंने जल्दी से अपने को समेटा, हिम्मत पैदा की। वह किस समय बेहोश हुई थी, यह तो बिजली वाले ही जानते थे, क्योंकि बिजली के जाते ही वह अपने घर में भटक गईं थी। फोन ही उनका संकट मोचन था जिसे ढूंढने में वह गिर पड़ी थी और चोटिल हो गई थी।उन्होंने सवेरे से कुछ नहीं खाया था। पांच रुपए के  चने फेरी वाले से खरीदे थे जो उनसे चबाए नहीं गए थे। हालांकि उनके पास धन की कमी न थी। पति की मृत्यु के बाद उन्हें बीस हजार रुपए महीना पेंशन मिलती थी। वह बेटे के कहने पर उसके घर में रहने चली गई थी। अब उन्हें भनक लगी, बेटा उनके घर को बेचने की फिराक़ में हैं। उन्हें याद आया, उनके भाई ने भी बाप के साथ ऐसा ही सलूक किया था। वह मीठी- चुपड़ी बातें करके उन्हें अपने घर ले आया था। उनका घर बिकवाने के बाद उन्हें अपने घर से निकलने पर मजबूर कर दिया फिर वह दरबदर फिरते रहे थे। मां को लगा, बेघर होने के बाद उनका भी अपने पिता जैसा हश्र होगा। अतः अलसुबह वह बिना किसी को बताए बेटे के घर से निकल पड़ी और अपने घर में चली आई थीं, जो बरसों से बंद कबाड़ से पटा पड़ा था। यह घर उनका आखिरी सहारा था। रिश्तेदारों ने उनसे किनारा कर लिया है। बेचारी को बहू के ज़हर से बुझे तीर झेलना पड़ते थे। बेटा कहता, 'तुम तो जब तक रूही का चीर हरण न कर लो तुम्हारा खाना ही नहीं पचता। उनके गुम जाने से, रूही समाज को दिखाने के लिए ग़म मना रही थीं पर मन ही मन ख़ुश थी, 'बवाल कटा।' बेटा भी  प्रसन्न था, 'घर बेचने की बाधा स्वयं दूर हो गई थी।फोन की घंटी से उन्हें समय का अंदाजा हो गया था, रात के ग्यारह बजे होंगे। वह समझ गई थी, फोन उनके छोटे बेटे का था। क्योंकि इस समय वह अबू धाबी से उन्हें फोन करता है। वह कमरा बंद करके उससे अपना दुखड़ा रोती रहती और उसे बताती, किस तरह बहू उन्हें प्रताड़ित करती है। बेटा चटख़ारे लेकर सुनता था और आग में घी डालता ताकि उनका बड़ी बहू की तरफ झुकाव न हो जाए। घुप अंधेरे में फर्श पर पड़ी भूखी-प्यासी मां अतीत की यादों में खो गई...। उन्हें याद आया, जब मां बाप के घर को छोड़कर मैं इस घर में ब्याह कर आई थी,  मैंने अपने भाग्य को सराहा था। रस्म के लिए मेरे मायके वाले मुझे लेने आए थे तो मैं किसी गाइड की तरह उन्हें अपना घर दिखा रही थी। मैंने उन्हें इस घर की ख़ास बातें बताईं थी-आसमान साफ हो, तो यहां से नैनीताल की पहाड़ियां दिखती हैं; और पतझड़ के मौसम की अनोखी छटा का तो कहना ही क्या! रंग-बिरंगे पत्तों से लदे, पेड़ों के झुरमुट, बाहर के लाॅन में दिखाई देते हैं। एक और ख़ास बात है इस घर में, सवेरे जाड़े की धूप अगले लाॅन में आती है और गर्मी में पिछला सहन ठंडा रहता है।सच कहूं तो यह घर मेरे जीवन की यादों का संग्रहालय ही बन गया था। सबसे प्यारा और सबसे आरामदायक घर जिसने मेरी तमाम ऊर्जा को मेरे जीवन में जगह देने में कोताही नहीं बरती। यह बात और थी कि मैंने इस घर की साज- संभाल में अपनी जान फूंक दी थी। मन से सजाया- संवारा था। कमरे की हर दीवार पर मेरे हाथों की चित्रकारी  थी, हर बल्ब और फानूस की रोशनी मेरी आंखों ने पसंद की थी। मेरी कुर्सी, मेरी मेज़ और मेरे पलंग, यह सब मिलकर जन्नत का एहसास देते थे। मैंने इस आशियाने पर बहुत प्यार लुटाया था और बदले में इसने भी मुझे बहुत कुछ दिया था। जहां रहते हुए मैंने नाम, पैसा और शोहरत  सब कुछ कमाया। साजिद अली की दुर्घटना में मृत्यु के बाद सारा बोझ अपने कंधों पर लेकर मेरा हर अंग ख़ामोशी में जकड़ सा गया था। मैं जीवन भर ख़ामोश रहती...। दिन भर चहकते, मेरे अगल-बगल मंडराते बेटे, ज़रूरत पड़ने पर मुझ में बाप को पा लेते और मैं तो हर सास के स्पंदन में उनके साथ ही होती। इतना सब कुछ पाने के बावजूद अचानक ऐसा क्या हुआ कि मैंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। शायद मां होकर भी मैं अपने बेटों की साजिश को समझ नहीं सकी। इस घर के लिए मेरी असीम चाहत, मेरे लिए अपने दिलों दिमाग से रेत की तरफ फिसलती चली गई। दोनों भाइयों ने मिलकर मुझे पट्टी पढ़ाई कि अकेले घर में कैसे रहोगी, बेहतर है बड़े बेटे के साथ रहने लगो। वहां आपको सभी सुख सुविधाओं के साथ अच्छा रहन-सहन भी मिलेगा। सीधी-साधी मां बेटो की फरेबी बातों में आ गई और उसने बड़े बेटे के घर जाने का मन बना लिया। कबाड़ सामान घर में छोड़कर, अच्छे सामान से भरा ट्रक जा चुका था। बेटे को सामान से भरे ट्रक के साथ निकलने की जल्दी थी। वह अपनी गाड़ी में बैठकर, चल दिया और मैं कार की पिछली सीट पर बैठी, वहीं से कुछ पलों तक ख़ाली घर को ताकती रही। खिसियाते हुए घर में क़दम रखा तो उसी खामोशी ने मुझे झिंझोड़ दिया जिसे अपने पुश्तैनी घर को छोड़ते हुए मैंने अपने भीतर कैद की थी। उन पलों को महसूस करने लगी जब अपने उस लाडले घर को छोड़कर मैं बेटे के घर में आयी थी। उसी घर को, जिसमें मैंने अपने जीवन के सबसे अच्छे पचास साल व्यतीत किए थे। बेटे की सुविधा के लिए इस घर को छोड़ा था। अब बेटे ने अपनी सुविधा के लिए मुझे छोड़ दिया। में छोटी हो गई थी और बच्चों का क़द बड़ा हो चला था। बच्चों ने मुझसे मुक्ति पाली। मेरा अस्तित्व उनके लिए इस मकान की तरह ही फौलादी था, भाव शून्य। उन्हें मेरे अस्थि पंजर ढीले होते दिखे होंगे। अपने बच्चों के लिए मैं भी एक मकान से ज़्यादा कुछ नहीं हूं। मैंने भी इस सच को स्वीकार कर लिया कि नए ज़माने में घर बोलते हैं इंसान नहीं। सवेरे की पहली किरण फूटते ही मुझे लगा, घर ठहाके लगा रहा है, 'मैंने तुझे क्या कुछ नहीं दिया, और तू इतराती हुई मुझे कबाड़खाना बनाकर चली गई।' तू मां की सीख भी भूल गई, एक बार तेरे और साजिद के बीच में अनबन हो गई थी। तू गुस्से में मायके चली गई थी। उस समय  मां ने कहा था, 'नूरी, हमारे खानदान की रिवायत है, बेटी की डोली मायके से और जनाज़ा ससुराल से उठता है...।'दूध की बल्टियां लेकर सवेरे पड़ोसी दूध लेने निकले तो खुला दरवाज़ा देख कर विस्मित हो गए। उन्होंने कमेंट किया, 'क्या ज़माना आ गया, चोरों ने कबाड़ खाने को भी नहीं बक्शा?' उनमें से किसी ने फोन किया, 'साबिर भाई, आपके घर का दरवाज़ा खुला हुआ है ...।' उसने फोन करने वाले को हिदायत दी, 'सभी से कह दीजिए, पुलिस के आने से पहले कोई अंदर ना जाए। पुलिस फिंगरप्रिंट्स की मदद से चोर तक पहुंच जाएगी।'लगभग घंटे भर के बाद एक चमचमाती गाड़ी दरवाज़े पर रुकी जिसमें बैठा साबिर और रूही अपने बेटे से अटखेलियां कर रहे थे।पुलिस के आने के बाद रूही बेटे को लेकर घर में चली गई और साबिर बाहर खड़े लोगों से बतियाने लगा। तभी पोते को ज़मीन पर अकड़ी पड़ी दादी दिखी। उसने तोतली ज़ुबान में मां से पूछा, 'दादी जमीन पर क्यों लेटी हैं?'एस.डी.एम. साब की मां के अपने ही घर में इस तरह मरने की ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी। भीड़ जमा हो गई थी। पुलिस बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए सील कर रही थी। लोग उन पर लानत भेज रहे थे। भीड़ में से किसी ने उनकी पत्नी की ओर इशारा करके कहा, 'एक दिन यह औरत भी इसी तरह अपने घर में लावारिस मरी पड़ी होगी, और इसका पोता अपनी मां से यही प्रश्न पूछेगा क्योंकि इतिहास दोहराता है।348 ए, फाईक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बायपास, बरेली243006, मोबाइल नंबर : 9027982074, ईमेल wajidhusain963@gmail.com