तारा की उड़ान: एक माँ की जुबानी सफलता का सफर
(एक शाम, नेहा अपनी पुरानी दोस्त रीना के साथ कॉफी पी रही थी। रीना ने तारा की हालिया आर्ट एग्जिबिशन के बारे में पूछा।)
"अरे रीना, तूने तारा की एग्जिबिशन देखी? कमाल था ना! कौन सोच सकता था कि मेरी ये छोटी-सी, कभी इतनी उलझी हुई बच्ची आज इतनी बड़ी कलाकार बनेगी?" नेहा की आँखों में गर्व था और चेहरे पर एक अजीब-सी चमक। उसने अपनी कॉफी का कप मेज पर रखा और एक लंबी साँस ली। "चल, आज तुझे शुरू से बताती हूँ, वो पूरा किस्सा... वो दिन, जब मुझे लगा था कि मेरी दुनिया ही खत्म हो गई है।"
वो दिन जब चिंता ने घेर लिया
रीना, याद है वो दिन जब मैं तुझे फ़ोन करती थी और बस रोती रहती थी? तारा तब आठ साल की थी। क्लास 2 में थी। और उसकी टीचर की शिकायतें... ओहो! "नेहा जी, तारा का ध्यान बिल्कुल नहीं लगता।" "नेहा जी, ये कुछ भी भूल जाती है।" "नेहा जी, ये एक जगह शांति से नहीं बैठती।" और सबसे बड़ी बात, "नेहा जी, ये बहुत ज़्यादा बोलती है, और दूसरों की बात काटती है।" मैं क्या बताऊँ, रीना, मेरे लिए तो ये सब एक पहेली बन गया था। घर पर तो मेरी बच्ची एकदम सामान्य थी, बातूनी और चुलबुली। लेकिन स्कूल में पता नहीं क्या हो जाता था।
मैंने सोचा, चलो बचपन है, हो जाएगा ठीक। पर जब बात उसकी पढ़ाई पर आने लगी, दोस्तों के साथ उसकी बॉन्डिंग पर असर पड़ने लगा, तब मुझे सच में डर लगा। मैंने उसे डांटा भी, समझाया भी... पर कोई फायदा नहीं। मुझे लगता था, कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा? कहीं मैं एक माँ के तौर पर कम पड़ रही हूँ?
एक दिन, मैं इतनी परेशान हो गई कि मैंने अपनी बहन से बात की, जिसने मुझे डॉ. अंजलि शर्मा के बारे में बताया। वो बाल मनोवैज्ञानिक थीं। मेरी उम्मीद की एक किरण जगी।
डॉ. अंजलि से मुलाकात: एक नई राह
याद है तुझे, जब मैं डॉ. अंजलि के क्लिनिक गई थी, तो कितनी घबराई हुई थी? मुझे लगा, पता नहीं वो क्या कहेंगी। मैं बस अपनी सारी चिंताएं उनके सामने उड़ेलती रही। तारा के लक्षण बताती गई: कैसे वो क्लास में लगातार अपनी पेंसिल घुमाती रहती है, कैसे होमवर्क पूरा नहीं कर पाती, कैसे कुछ भी पूछो तो बीच में ही बोल पड़ती है। डॉ. अंजलि ने बस शांति से सुना, अपनी डायरी में कुछ नोट करती रहीं। उनकी आवाज़ में इतनी ठंडक थी कि मुझे थोड़ा सुकून मिला।
जब मैंने उनसे पूछा, "डॉक्टर, तारा कितने साल की है?" तो उन्होंने कहा, "आठ साल की, नेहा जी। और ये सब पिछले एक साल से ज़्यादा हो रहा है।"
फिर उन्होंने वो शब्द कहे, जो मैंने कभी सुने नहीं थे, "नेहा जी, जो लक्षण आप बता रही हैं—असावधानता, अतिसक्रियता और आवेगशीलता—ये ADHD (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) के खास संकेत हो सकते हैं।"
मेरे तो होश उड़ गए! ADHD? ये क्या बला है? मैंने सोचा, कहीं कोई बड़ी बीमारी तो नहीं? "क्या ये मस्तिष्क की समस्या है, डॉक्टर?" मैंने डरते-डरते पूछा।
"हाँ, एक तरह से," उन्होंने समझाया। "ये मस्तिष्क के विकास से संबंधित एक स्थिति है, जहाँ बच्चों को ध्यान केंद्रित करने, आवेगों को नियंत्रित करने और शांत रहने में मुश्किल होती है। ये अक्सर परिवारों में होता है, यानी आनुवंशिक भी हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिमाग के कुछ हिस्सों, जैसे ललाट पालि (frontal lobe) में जो काम होता है, वो थोड़ा धीमा पड़ जाता है, जिससे ध्यान और नियंत्रण बनाने में दिक्कत आती है।"
मैं तो रोने ही वाली थी। "तो क्या इसका कोई इलाज नहीं है, डॉक्टर?"
उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया, "बिल्कुल है, नेहा जी। ये मैनेज किया जा सकता है। हम दवाओं और व्यवहारिक थेरेपी दोनों पर विचार करेंगे। पर पहले, हमें तारा का पूरा टेस्ट करना होगा।"
उनकी बातें सुनकर थोड़ी हिम्मत आई। मुझे लगा, चलो कम से कम एक रास्ता तो दिख रहा है।
ADHD का निदान और स्कूल का नया पहेली
कुछ दिनों बाद, तारा का पूरा मूल्यांकन हुआ। डॉ. अंजलि ने कन्फर्म किया कि तारा को ADHD का संयुक्त प्रकार है। यानी, उसमें असावधानता और अतिसक्रियता-आवेगशीलता दोनों के लक्षण थे। दवाओं का कोर्स शुरू हुआ, बहुत कम खुराक से, और साथ ही तारा की व्यवहारिक थेरेपी भी शुरू हुई। मुझे सिखाया गया कि कैसे तारा के साथ डील करना है, कैसे उसे पॉजिटिव तरीके से गाइड करना है।
शुरुआत में, ये सब बहुत मुश्किल था, रीना। दवाएँ लेने में तारा को दिक्कत होती थी, और थेरेपी में भी उसे अजीब लगता था। स्कूल में भी उसकी मुश्किलें जारी थीं। उसकी क्लास टीचर, श्रीमती वर्मा, अक्सर फ़ोन करती थीं। "डॉक्टर, तारा में कुछ सुधार तो है, पर एक अजीब बात है। वह कक्षा में बिल्कुल नहीं बोलती, जबकि आप कह रही हैं कि घर पर वो बातूनी है। जब मैं उससे कोई सवाल पूछती हूँ, तो बस सिर हिलाती है या फुसफुसाती है। क्या ये भी ADHD का हिस्सा है?"
डॉ. अंजलि ने मुझसे कहा, "नेहा जी, ये ADHD से सीधा जुड़ा नहीं हो सकता, पर ये किसी और समस्या का संकेत हो सकता है। ये सामाजिक चिंता (social anxiety) या चयनात्मक मूकता (selective mutism) भी हो सकती है। क्या स्कूल में कोई उसे परेशान करता है?"
मैंने तारा से पूछा, स्कूल में दोस्तों से बात करती है क्या? वो बोली, "नहीं, मम्मा। मुझे डर लगता है कि मैं कुछ गलत बोल दूंगी और सब हँसेंगे।"
डॉ. अंजलि ने समझाया, "नेहा जी, ये आत्मविश्वास की कमी है। कुछ बच्चों को दूसरों के सामने बोलने में बहुत डर लगता है। उन्हें लगता है कि उनका मज़ाक उड़ाया जाएगा। हमें तारा को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसकी आवाज़ मायने रखती है।"
थेरेपी सत्रों में, डॉ. अंजलि ने तारा के साथ बहुत गहराई से काम किया। उन्होंने तारा को समझाया कि गलती करना ठीक है, और कोई उसका मज़ाक नहीं उड़ाएगा। उन्होंने मुझे और श्रीमती वर्मा को भी सलाह दी कि हम तारा की छोटी-छोटी बातों की भी प्रशंसा करें, उसे बोलने के लिए ज़बरदस्ती न करें, बल्कि उसे सुरक्षित महसूस कराएं। हमने उसकी हर छोटी कोशिश को सराहा—चाहे वह एक सवाल का जवाब देना हो या क्लास में अपना हाथ उठाना हो।
कला की शक्ति: जब 'कमजोरी' बनी ताकत
मुझे याद है, एक थेरेपी सत्र में डॉ. अंजलि ने तारा से पूछा था, "तारा, तुम्हें कला पसंद है, है ना?" तारा की आँखें चमक उठी थीं। वो घंटों तक ड्राइंग कर सकती थी, रंगों से खेल सकती थी। वो एक ऐसी बच्ची थी जो कागज और रंगों में खो जाती थी, जहाँ उसका ध्यान कभी नहीं भटकता था।
"तो क्यों न हम इसे अपनी शक्ति बनाएं?" डॉ. अंजलि ने सुझाव दिया।
मैंने तारा को एक ड्राइंग क्लास में दाखिला दिलाया। और रीना, तू मानेगी नहीं, वहाँ तारा को एक नई दुनिया मिल गई। उसकी अतिसक्रियता और वो विचारों का बेतरतीब प्रवाह, जो क्लास में एक बाधा थी, यहाँ उसकी रचनात्मकता का स्रोत बन गया। उसके चित्र जीवंत, ऊर्जावान और अद्वितीय थे। वो अपने विचारों को रंगों और आकृतियों में व्यक्त करने में सक्षम थी, बिना किसी शब्द के।
श्रीमती वर्मा ने भी स्कूल में अपनी रणनीति बदली। उन्होंने तारा को उन गतिविधियों में शामिल किया जहाँ उसे बोलने के बजाय, अपनी कला के माध्यम से व्यक्त करना था। एक स्कूल मेले में, तारा ने अपने बनाए हुए चित्र प्रदर्शित किए। लोगों ने उसकी प्रतिभा की खूब सराहना की। उसकी तारीफ हुई, उसे पहचान मिली। और इस पहचान ने तारा के आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा दिया।
धीरे-धीरे, तारा ने कक्षा में भी बोलना शुरू किया। पहले एक शब्द, फिर एक वाक्य, फिर छोटे-छोटे संवाद। उसे एहसास हुआ कि उसकी आवाज़ को भी सुना जा रहा है, और उसकी कला के कारण उसे स्वीकार किया जा रहा है। ये ऐसा था जैसे उसका दम घुट रहा हो और अब उसे साँस लेने की जगह मिल गई हो। उसकी खामोशी टूटने लगी।
किशोरावस्था की चुनौतियाँ और जीत
तारा की किशोरावस्था भी चुनौतियों से भरी रही, रीना। ADHD के लक्षण पूरी तरह से गायब नहीं हुए, लेकिन वो उनसे निपटना सीख गई थी। उसने अपनी ऊर्जा को सही दिशा दी—कला और खेल में। बास्केटबॉल के मैदान पर उसकी अतिसक्रियता एक फायदा बन गई, और वो एक शानदार खिलाड़ी साबित हुई। वो कोर्ट पर सबसे तेज़ और सबसे ऊर्जावान खिलाड़ी थी।
उसने अपनी याददाश्त की समस्या के लिए संगठन कौशल विकसित किए—छोटे नोटपैड हमेशा उसके साथ रहते थे, फ़ोन में रिमाइंडर लगे होते थे, और हर काम के लिए प्लानर्स का उपयोग करना उसने सीखा। आवेगशीलता पर नियंत्रण पाने के लिए उसने गहरी साँस लेने और बोलने या कोई भी काम करने से पहले सोचने का अभ्यास किया। ये सब आसान नहीं था, कई बार वो टूटती भी थी, पर उसने हार नहीं मानी।
सबसे महत्वपूर्ण, तारा ने अपनी स्थिति को छिपाने की कोशिश नहीं की। वो अपने दोस्तों और परिवार के साथ खुली थी। उसने उन्हें बताया कि उसे ADHD है, और उसे कभी-कभी चीज़ें मैनेज करने में थोड़ी मुश्किल होती है। इस खुलेपन ने उसे बहुत समर्थन दिया। उसके दोस्त उसे समझते थे और ज़रूरत पड़ने पर मदद भी करते थे। उसने अपनी कला के माध्यम से ADHD के साथ अपने अनुभवों को व्यक्त करना शुरू किया, जिससे कई अन्य बच्चों और उनके माता-पिता को प्रेरणा मिली। उसकी कला सिर्फ़ सुंदर नहीं थी, उसमें एक कहानी थी, संघर्ष और जीत की कहानी।
सफलता की उड़ान: जब कला बनी आवाज़
आज... आज मेरी तारा एक सफल ग्राफिक डिजाइनर और इलस्ट्रेटर है। उसकी कलाकृतियाँ दुनिया भर में सराही जाती हैं। उसकी असावधानता, जिसे कभी कमी माना जाता था, अब उसकी 'आउट-ऑफ-द-बॉक्स' सोच बन गई थी—वो चीज़ों को ऐसे देखती है जैसे कोई और नहीं देख पाता। उसकी अतिसक्रियता उसकी असीमित ऊर्जा का स्रोत थी, जिससे वो घंटों काम कर पाती है। और उसकी आवेगशीलता उसे नए, जोखिम भरे लेकिन सफल विचार आज़माने की हिम्मत देती थी। वो कभी भी डरती नहीं थी, कुछ नया करने से।
पिछले हफ्ते उसकी आर्ट गैलरी में अपनी प्रदर्शनी का उद्घाटन था। हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। जब उसने माइक उठाया, तो मैं और डॉ. अंजलि पहली पंक्ति में बैठे थे, और हमारी आँखें नम थीं।
"जब मैं छोटी थी," उसने कहा, "तो मुझे लगता था कि मैं टूटी हुई हूँ। मेरा दिमाग मेरे नियंत्रण में नहीं था। मुझे लगता था कि मैं कभी भी किसी चीज़ में अच्छी नहीं हो सकती।"
उसने मुस्कुराते हुए हमारी तरफ देखा। "लेकिन मुझे ऐसे लोग मिले जिन्होंने मुझे सिखाया कि मेरी 'कमजोरियाँ' वास्तव में मेरी सबसे बड़ी ताकत हो सकती हैं। ADHD ने मुझे दुनिया को एक अलग नज़रिए से देखना सिखाया। इसने मुझे कला के माध्यम से खुद को व्यक्त करने की अदम्य इच्छा दी।"
"और जहाँ तक स्कूल में चुप रहने की बात थी..." तारा ने शरारती अंदाज़ में कहा, "आज मैं अपने काम से बोलती हूँ। मेरी कला मेरी आवाज़ है, और यह इतनी तेज़ है कि इसे कोई दबा नहीं सकता।"
तालियों की गड़गड़ाहट और तेज़ हो गई। रीना, तारा की कहानी सिर्फ़ ADHD से जूझने की कहानी नहीं है; ये आत्म-स्वीकृति, दृढ़ता और अपनी अनूठी शक्तियों को खोजने की कहानी है। उसने साबित कर दिया था कि एक "कमज़ोरी" जिसे कभी बीमारी माना जाता था, सही मार्गदर्शन और समर्थन से एक असाधारण प्रतिभा में बदल सकती है। मेरी तारा की उड़ान सिर्फ़ उसकी नहीं थी, बल्कि उन सभी की थी जो मानते थे कि हर दिमाग खास होता है। और मैं, एक माँ के तौर पर, उसकी इस उड़ान को देखकर सबसे ज़्यादा खुश हूँ।
(नेहा ने अपनी कॉफी का कप उठाया और एक विजयी मुस्कान के साथ रीना की ओर देखा।)