17 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में सूरज धुंध के पीछे छिपा था, जैसे वह भी ऑगस्तो पिनोशे के आतंक से डर रहा हो। शहर की सड़कें अब लाशों और खून के धब्बों से सनी थीं। हर गली में सैनिकों के भारी बूटों की गड़गड़ाहट गूँज रही थी, और हर घर में सन्नाटा पसरा था—एक ऐसा सन्नाटा जो चीखों से ज्यादा खतरनाक था। ऑगस्तो अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक काला टेलीफोन रखा था, जो हर कुछ मिनटों में बजता था। हर कॉल एक नई मौत की खबर लाता था, और हर खबर के साथ ऑगस्तो की आँखों में एक ठंडी चमक बढ़ती थी। वह सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ता और अपनी डायरी में लिखता—“खामोशी मेरा हथियार है।”
चिली अब ऑगस्तो के लोहे के शासन में जकड़ चुका था। DINA, उसकी गुप्त पुलिस, रात-दिन लोगों को गायब कर रही थी। सैंटियागो के एक छोटे-से गाँव में एक किसान अपने खेतों में काम कर रहा था। उसने कभी अयेंदे की रैलियों में हिस्सा लिया था। सूरज डूबते ही एक काला वैन उसके घर के सामने रुका। DINA के एजेंटों ने दरवाजा तोड़ा। किसान की पत्नी ने अपने बच्चों को सीने से लगाया, पर सैनिकों ने उसे धक्का दे दिया। किसान को घसीटते हुए वैन में ठूँसा गया। उसने चिल्लाकर कहा, “मैंने कुछ नहीं किया!” एक एजेंट ने उसका मुँह बंद किया और बोला, “तेरा होना ही गुनाह है।” अगले दिन उसका शरीर एक नदी के किनारे मिला—हाथ बँधे हुए, गले में रस्सी। गाँव वालों ने उसकी लाश देखी, पर किसी ने मुँह नहीं खोला। डर ने उनकी जुबान छीन ली थी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट का एक कश लिया और कहा, “अच्छा। अगला।”
नेशनल स्टेडियम अब चिली का सबसे भयानक दुःस्वप्न बन चुका था। वहाँ की दीवारें कैदियों के खून और आँसुओं से रंगी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, शिक्षक, यहाँ तक कि बच्चे भी। एक 16 साल का लड़का, जो अपने स्कूल में अयेंदे का झंडा लहराता था, को स्टेडियम में लाया गया। सैनिकों ने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट?” लड़के ने जवाब दिया, “मैं सिर्फ एक छात्र हूँ।” एक सैनिक ने उसकी छाती पर लात मारी। लड़का जमीन पर गिर गया, खून उसके मुँह से बहने लगा। सैनिकों ने हँसकर कहा, “यहाँ सब कम्युनिस्ट हैं।” उसे एक अंधेरे तहखाने में ले जाया गया, जहाँ बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। ऑगस्तो को यह बताया गया। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “बच्चों को भी सबक सिखाओ।”
ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था—वह चिली की आत्मा को कुचल रहा था। उसने हर उस चीज को निशाना बनाया जो स्वतंत्रता की बात करती थी। सैंटियागो के एक पुराने थिएटर में, जहाँ कभी नाटक और कविताएँ गूँजती थीं, सैनिकों ने आग लगा दी। थिएटर का मालिक, एक बूढ़ा नाटककार, अपनी स्क्रिप्ट्स बचाने की कोशिश कर रहा था। सैनिकों ने उसे आग की लपटों के सामने खड़ा किया। उसने रोते हुए कहा, “यह मेरा सपना है!” एक सैनिक ने उसका गला पकड़ा और बोला, “सपने अब सिर्फ जनरल के हैं।” नाटककार को थिएटर के साथ जलने दिया गया। आग की लपटें रात के आसमान को लाल कर रही थीं। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने कहा, “आग साफ करती है। और जलाओ।”
दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर लाल स्याही से शहरों को चिह्नित किया गया था। “हर शहर मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन जनता का डर?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें आग उगल रही थीं। “डर ही मेरा हथियार है,” उसने जवाब दिया। उसने DINA को और ताकत दी, और आदेश दिया कि हर गाँव, हर मोहल्ले में उसका आतंक फैलाया जाए।
शाम को ऑगस्तो ने रेडियो पर एक और भाषण दिया। उसकी आवाज ठंडी थी, पर हर शब्द में जहर भरा था। “चिली मेरे नियमों से चलेगा। जो मेरे खिलाफ है, वह जीवित नहीं रहेगा।” उसकी आवाज सुनकर लोग अपने घरों में काँप गए। एक बूढ़ी औरत, जो अपने बेटे को DINA के हाथों खो चुकी थी, रेडियो बंद करके रोने लगी। उसने अपनी पोती से कहा, “यह देश मर गया।” लेकिन पोती ने चुपके से जवाब दिया, “नहीं, नाना। हम लड़ेंगे।” उसकी आवाज हल्की थी, पर उसमें एक चिंगारी थी। ऑगस्तो को यह नहीं पता था, लेकिन चिली की खामोशी में विद्रोह की चिंगारियाँ सुलग रही थीं।
रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम्हें नींद कैसे आती है?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह थीं। “नींद कमजोरों के लिए है,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“17 सितंबर 1973। खामोशी मेरा जहर है। चिली मेरी कठपुतली है।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। ऑगस्तो का आतंक अब हर दिल में समा चुका था, लेकिन कहीं गहरे में, विद्रोह की एक छोटी-सी चिंगारी सुलग रही थी।
18 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में हवा ठंडी थी, पर उसमें मौत की गंध घुली थी। शहर अब एक विशाल कब्रगाह बन चुका था, जहाँ हर गली में खून के धब्बे और हर घर में डर की साये मंडरा रहे थे। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में खड़ा था, एक बड़े शीशे के सामने। उसकी वर्दी पर सितारे चमक रहे थे, और उसकी आँखों में एक ऐसी ठंडक थी जो बर्फ को भी शर्मसार कर दे। वह अपने प्रतिबिंब को देख रहा था—एक तानाशाह, जिसने चिली को अपने लोहे के पंजों में जकड़ लिया था। उसकी होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे कोई शिकारी अपनी जीत की ट्रॉफी को निहार रहा हो। बाहर सड़कों पर टैंकों की गड़गड़ाहट और सैनिकों की बूटों की आवाज अब रोजमर्रा की बात हो गई थी।
DINA, ऑगस्तो की गुप्त पुलिस, अब चिली की धड़कन बन चुकी थी। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह निकलते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक पुराने मोहल्ले में एक बुजुर्ग दंपति अपने घर में छिपा था। पति ने कभी अयेंदे की रैलियों में हिस्सा लिया था। रात के 2 बजे उनके दरवाजे पर तेज दस्तक हुई। पत्नी ने डरते हुए दरवाजा खोला। काले कपड़ों में चार लोग अंदर घुसे। “वह कहाँ है?” एक सैनिक ने गुर्राते हुए पूछा। पत्नी ने रोते हुए कहा, “वह बीमार है, उसे छोड़ दो।” सैनिकों ने बूढ़े को बिस्तर से घसीटा। उसकी कमजोर चीखें हवा में गूँजीं, पर कुछ ही पलों में सन्नाटा छा गया। अगले दिन उसका शरीर एक नाले में मिला—हाथ बँधे, चेहरा कुचला हुआ। पत्नी ने उसकी लाश देखी, पर उसकी आँखों में आँसू नहीं बचे थे। डर ने उसकी आत्मा छीन ली थी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “कमजोर मरते हैं। अगला।”
नेशनल स्टेडियम अब नरक का दूसरा नाम था। वहाँ की दीवारें खून और पसीने से सनी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, शिक्षक, यहाँ तक कि महिलाएँ और बच्चे। एक युवा माँ को अपने दो बच्चों के साथ स्टेडियम में लाया गया। उसका जुर्म? उसने अपने पड़ोस में अयेंदे के लिए खाना बाँटा था। सैनिकों ने उससे पूछा, “कम्युनिस्ट?” उसने जवाब दिया, “मैं सिर्फ एक माँ हूँ।” एक सैनिक ने उसका चेहरा थप्पड़ों से लाल कर दिया। उसके बच्चे रो रहे थे, पर सैनिकों ने उन्हें अलग कर दिया। माँ को एक तहखाने में ले जाया गया, जहाँ उसे बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। बच्चों को एक कोने में बंद कर दिया गया, जहाँ वे रात भर अपनी माँ को पुकारते रहे। ऑगस्तो को यह बताया गया। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “बच्चों को भी सजा दो। वे भूलेंगे नहीं।”
ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था—वह चिली की हर साँस को काबू करना चाहता था। उसने स्कूलों में नए नियम लागू किए। शिक्षकों को आदेश दिया गया कि वे सिर्फ वही पढ़ाएँ जो ऑगस्तो की सत्ता को मजबूत करे। एक स्कूल में, एक शिक्षक ने बच्चों को “स्वतंत्रता” शब्द की व्याख्या करने की कोशिश की। अगले दिन वह गायब था। उसका परिवार उसे ढूँढता रहा, पर सैनिकों ने सिर्फ इतना कहा, “वह अब देश का हिस्सा नहीं है।” स्कूल की दीवारों पर ऑगस्तो का पोस्टर चिपका दिया गया, जिस पर लिखा था—“जनरल पिनोशे: चिली का रक्षक।” बच्चे उस पोस्टर को देखकर काँपते थे, पर चुप रहते थे।
दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर लाल स्याही से और शहरों को चिह्नित किया गया था। “हर कोना मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन दुनिया की नजर?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें आग उगल रही थीं। “दुनिया मेरे सामने झुकेगी,” उसने जवाब दिया। उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर गाँव में उसका डर फैलाया जाए।
शाम को ऑगस्तो ने रेडियो पर एक और भाषण दिया। उसकी आवाज ठंडी थी, पर हर शब्द में जहर भरा था। “चिली अब एक है। जो मेरे साथ नहीं, वह मरेगा।” उसकी आवाज सुनकर लोग अपने घरों में काँप गए। एक बूढ़ा किसान, जिसने अपने बेटे को DINA के हाथों खोया था, रेडियो बंद करके फुसफुसाया, “यह शैतान है।” उसकी पत्नी ने उसका हाथ पकड़ा और चुप कराया। डर ने उनकी आवाज छीन ली थी, लेकिन उनके दिल में एक चिंगारी सुलग रही थी। ऑगस्तो को यह नहीं पता था, पर चिली की खामोशी में विद्रोह की हल्की-हल्की लपटें उठ रही थीं।
रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी बेटी इनेस ने डरते हुए पूछा, “पापा, लोग आपको शैतान क्यों कहते हैं?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह थीं। “क्योंकि वे मेरी ताकत से जलते हैं,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“18 सितंबर 1973। चिली मेरी कब्रगाह है। मैं इसका मालिक हूँ।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। ऑगस्तो का आतंक अब हर दिल में बस चुका था।