अगली शाम...
मारिया स्टूडियो से जल्दी निकल गई थी।
उसका मन अब मीर से दूर भागना चाहता था,
मगर दिल... दिल बार-बार उसी के ख्याल में भटक जाता था।
जब वो स्टूडियो से बाहर निकली तो देखा, सामने एक छोटी सी गाड़ी खड़ी थी।
ड्राइवर ने उसके पास आकर कहा —
"मैडम, किसी ने आपके लिए ये भेजी है। प्लीज़ बैठिए।"
मारिया हिचकिचाई, मगर न जाने क्यों कदम खुद-ब-खुद गाड़ी की तरफ बढ़े।
ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और शहर से थोड़ा दूर एक जगह ले गया...
जहाँ हल्की रौशनी थी, एक छोटा सा गार्डन,
और सामने एक बड़ी सी स्क्रीन लगी थी —
"OPEN AIR PRIVATE CINEMA" टाइप का सीन था।
मारिया ने हैरानी से इधर-उधर देखा,
अचानक स्क्रीन पर एक विडियो चालू हुआ...
विडियो में —
मीर का हाथ था, जिसमें एक छोटा सा पर्चा था।
उस पर लिखा था:
"अगर मेरी बातें तुम्हें थका देती हैं,
तो मेरा खामोश साथ भी मंज़ूर कर लो।"
फिर दूसरा पर्चा —
"अगर मेरी मौजूदगी तुम्हें उलझाती है,
तो मेरा दूर से देखना भी क़ुबूल कर लो।"
और फिर... आख़िर में —
मीर खुद सामने आ गया —
स्क्रीन नहीं... हकीकत में!
काले बिजनेस सूट में, हाथ में एक सफेद गुलाब लिए।
धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा —
"तुमसे माँगने को कुछ नहीं बचा, मारिया।
बस...
थोड़ी सी जगह अपने दिल में दे दो।
जितना भी मिलेगा, उसी में जी लूँगा।"
मारिया सन्न खड़ी थी...
आँखें भीगने को थीं, मगर उसने ज़बरदस्ती पलकों को मजबूती से रोके रखा।
मीर उसके बिल्कुल करीब आया —
फूल उसकी ओर बढ़ाते हुए फुसफुसाया —
"कम से कम इतना तो कर सकती हो...
मुझे अपनी दुनिया में एक मुसाफिर बना लो... हमेशा के लिए।"
मारिया ने कांपते हाथों से फूल लिया।
उसके होंठों पर एक धीमी सी मुस्कुराहट आई,
जो उसकी आँखों से बहते एक मोती सी चमक में बदल गई।
उसने बहुत धीमे से कहा —
"मुसाफिर नहीं... हमसफर बनोगे?"
मीर की आँखों में अजीब सी चमक आ गई।
उसने सिर झुका कर एक छोटा सा "हमेशा" बुदबुदाया।
चाँदनी रात में, उन दोनों के बीच, कोई और गवाही देने वाला न था —
सिवाय हवाओं के, जो उनकी मोहब्बत के सुर में सरगम बजा रही थीं।
अगले दिन...
सुबह की हल्की धूप स्टूडियो बी के बड़े शीशों से छनकर आ रही थी।
पूरा सेट तैयार था —
मारिया का पहला म्यूज़िक वीडियो शूट होना था।
डायरेक्टर, लाइटमैन, कैमरा क्रू सब हलचल में थे।
मारिया को स्टाइलिस्ट ने तैयार किया था —
सफ़ेद फूलों जैसा सॉफ्ट सा लहंगा, हल्का सा मेकअप, बाल खुले...
उसका चेहरा एक जादुई मासूमियत में ढूबा हुआ था।
मीर भी वहीं था, स्टूडियो के एक कोने में खड़ा,
बिलकुल खामोशी से उसे निहारता हुआ —
ना डायरेक्टर बनकर, ना वोकल कोच बनकर...
बस एक दीवाना बनकर।
सेट पर शॉट का सीन कुछ यूँ था:
मारिया को बगीचे जैसी जगह पर चलते हुए, मुस्कुराते हुए,
गुनगुनाते हुए दिखाना था —
जैसे किसी को याद कर रही हो।
कैमरा रोल हुआ।
मारिया ने जैसे ही लिप्सिंग शुरू की:
"तेरा चेहरा जब नज़र आए...
तेरे कदमों में ये दिल आए..."
उसकी हर एक अदा, हर एक मुस्कान में एक सच्चा जादू था —
ना बनावट, ना दिखावा।
उसकी आँखें खुद से ही कहानी कह रही थीं।
मीर का दिल उसी पल एक बार फिर हार गया था।
उसकी नजरें हर उस मुस्कान पर टिक जातीं
जो सिर्फ उसे देखनी थी,
और हर उस पल पर ठहर जातीं जब मारिया हल्के से अपने घुंघराले बाल पीछे करती।
कैमरा कट हुआ।
मारिया थोड़ा थक गई थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी।
मीर ने पानी का ग्लास लिया, और चुपचाप उसके पास आकर बढ़ाया।
मारिया ने एक नजर ऊपर देखा —
उनकी आँखें मिलीं...
एक लंबी पलकों के झपकने जितनी मुलाकात, मगर दिल की धड़कनों को तेज़ कर देने वाली।
मीर ने धीमे से फुसफुसाया —
"आज तुम्हे गाते देख,
ऐसा लगा जैसे खुदा ने मेरे हिस्से का नूर तुम्हारे चेहरे पर उतार दिया है।"
मारिया की गालों पर एक मीठी सी लाली फैल गई।
वो नजरें झुकाकर पानी पीने लगी —
लेकिन दिल उसका शोर मचा रहा था।
शूट फिर से शुरू हुआ।
अब की बार गाना था:
"तुम ही हो, तुम ही हो,
ज़िंदगी अब तुम ही हो..."
मारिया जब ये लिप्सिंग कर रही थी,
मीर को लगा मानो ये लाइनें उसे ही समर्पित हो रही हैं।
हर सुर, हर शब्द सीधा उसके दिल को चीर कर जाता।
दिन खत्म हुआ।
सबने शूट की तारीफ़ की।
डायरेक्टर ने कहा, "ये लड़की स्क्रीन पर कमाल लगती है। बस... इसमें एक जादू है।"
मीर ने सिर्फ हल्के से मुस्कुरा कर सिर हिलाया।
वो जानता था —
वो जादू क्या है... कौन है।
वो जादू थी — "मारिया"
और वो जादूगर... खुद उसके दिल के तख्त पर बैठा था।
शाम ढल चुकी थी।
स्टूडियो के सभी लोग जा चुके थे, बस हल्की-हल्की रोशनी और स्टेज के कोनों में कुछ बुझती सी परछाइयाँ रह गई थीं।
मारिया अपनी स्क्रिप्ट समेट रही थी कि तभी उसे एहसास हुआ — कोई उसके पीछे खड़ा है।
वो पलटी —
मीर था।
हाथ में एक छोटा-सा गिफ्ट बॉक्स, और चेहरे पर वो मुस्कान जो सीधे दिल को छू जाती थी।
मारिया चौंकी, फिर झेंपते हुए बोली,
"अब क्या है?"
मीर कुछ नहीं बोला।
बस धीरे से आगे बढ़ा,
इतने करीब कि मारिया को उसकी साँसे अपनी पलकों पर महसूस होने लगीं।
उसने हल्के से बॉक्स उसकी हथेली पर रख दिया।
"खोलो,"
मीर की आवाज़ में एक मीठा-सा दबाव था।
मारिया ने धीमे-धीमे बॉक्स खोला —
अंदर एक बेहद नाजुक, सोने की पतली-सी चेन थी,
जिसमें एक छोटा-सा 'M' का पेंडेंट टिका था,
और उसके ठीक नीचे छोटा-सा उभरा हुआ गुलाब।
इतना नर्म और प्यारा कि जैसे एक ख्वाब को गढ़ दिया हो।
मारिया की उंगलियाँ उस चेन को छूते ही कांप गईं।
चेहरा शर्म से गुलाब बन गया।
उसकी लंबी पलकों ने पल भर को आँखों को ढाँप लिया।
वो कुछ कह भी न सकी, बस मुस्कान के पीछे खुद को छुपाने लगी।
मीर ने धीमे से उसके हाथों से चेन लिया,
और बहुत ही एहतियात से,
जैसे कोई इबादत कर रहा हो,
उसके गले में पहनाने को झुका।
"इजाज़त है?"
उसने पूछा, उसकी आवाज़ अब भी बस एक फुसफुसाहट थी।
मारिया ने बिना आँखें उठाए, हल्की सी हाँ में सिर हिलाया।
उसके दिल की धड़कनें जैसे कानों में सुनाई देने लगीं।
मीर ने चेन उसके नाज़ुक गले में पहनाई —
उसके हाथों की हल्की सी छुअन से
मारिया की रूह तक काँप गई थी।
गालों का रंग और गहरा गुलाबी हो गया था।
चेन पहनाते हुए मीर उसके कान के पास झुककर फुसफुसाया —
"अब ये 'M' सिर्फ तुम्हारा नहीं... मेरा भी है।"
मारिया की आँखें भर आईं...
शर्म, खुशी, और अजीब सी बेसाख्ता मोहब्बत से।
उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढाँप लिया, जैसे पूरे जहान से खुद को छुपाना चाहती हो।
मीर बस मुस्कुराया,
उसका दिल उस पल के लिए धड़क रहा था —
बस उस एक झलक के लिए...
जहाँ उसने अपनी मोहब्बत को अपनी धड़कनों में समेट लिया था।