Real Superstar Dharmendra VS Super Star Rajesh Khanna in Hindi Anything by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | रियल सुपरस्टार धर्मेंद्र V S सुपर स्टार राजेश खन्ना

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रियल सुपरस्टार धर्मेंद्र V S सुपर स्टार राजेश खन्ना

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फिल्म प्रोड्यूसर एंड डायरेक्टर एसोसिएशन द्वारा टेलेंट कांटेस्ट में धर्मेंद्र चुने गए वर्ष उन्नीस साठ में। फिल्म आई "दिल भी तेरा हम भी तेरे", अर्जुन हिंगोरानी की। कोई खास नहीं चली पर धर्मेंद्र मुंबई आ गए थे।

उसके शोला और शबनम, 1961, शादी, अनपढ़, 1963 और फिर आई मिलन की बेला सुपरहिट रही और धर्मेंद्र एक स्टार बन गए। अभिनय का स्वाभाविक अंदाज और निर्देशकों द्वारा जब जो जरूरत पड़ी वह सीखते गए। कभी घुड़सवारी, सूट पहनना, शहरी तौर तरीके तो कभी नृत्य, जो आया नहीं। फिर आई फूल और पत्थर, उसमें मीना कुमारी जैसी बड़ी अदाकारा के संग शाका के एंटी हीरो रोल में धर्मेंद्र। पहली एक्शन हीरो के रूप में हिट फिल्म की खुशी उन्होंने महसूस की। उसी एसोसिएशन के परिणाम पर काफी निर्देशकों की निगाह थी लेकिन धर्मेंद्र खुद बताते हैं कि, " दो साल तक कोई खास काम नहीं था और मैं वापस जाने की सोच रहा था।"वह दौर था राजकपूर, देव आनन्द, दिलीप कुमार, गुरुदत्त, राजेंद्र कुमार, देव मुखर्जी, शम्मी कपूर, शशि कपूर का।(शुरू से ही नेपोटिज्म रहा है फिल्म इंडस्ट्री में।) मनोज कुमार, धर्मेंद्र से एक वर्ष के अंतर पर आए थे, हरियाली और रास्ता, साजन आदि फिल्मों से जगह बना चुके थे l और शहीद का निर्माण और निर्देशन कर रहे थे।

हालांकि दोनों के पास अभिनय प्रशिक्षण और स्टेज, नाटक कुछ भी अनुभव नहीं था। लेकिन इस जाट की किस्मत में कुछ और लिखा था। अपनी अच्छी फिजिक और गांव के भोलेपन के साथ सहज, नो डिमांडिग हीरो की दरकार थी। वह धर्मेंद्र पूरी करते थे।मुझे लगता है जिस टेलेंट हंट से धरम सिंह देओल, असली नाम, फगवाड़ा से, को चुना गया था तो उसमें इनसे कुछ तो करवाया होगा। अभिनय, संवाद, डांस कुछ तो किया होगा उन्होंने तभी चुने गए!! फोटो भेजकर तो बुलावा आ गया था पर टेस्ट क्या हुआ? यह कम लोग ही जानते हैं।शायद धर्मेंद्र पाजी कभी इस बारे में बताएं।

मीनाकुमारी की सिफारिश और कुछ धरम सिंह की ईमानदार और मासूम छवि ने कई निर्माता, निर्देशकों को धर्मेंद्र की तरफ आकर्षित किया। उन्हीं में थे विमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी, दुलाल गुहा, शक्ति सामंत, असित सेन, बासु चटर्जी आदि।

सभी बंगाली? तो क्या उस वक्त इंडस्ट्री पर बंगाली लोगों का राज था? ऐसा ही लगता है।शशधर मुखर्जी, देविका रानी, अशोक कुमार गांगुली, बॉम्बे टॉकीज आदि की सफलता को देखकर "आपनो मानुष" मुंबई आ गया था। हमारी कई क्लासिक हिंदी फिल्में चाहे वह दिल अपना प्रीत पराई, हरियाली और रास्ता हो या अभी की गुंडे, अधिकतर बंगाली फिल्मों से प्रेरित। बाकी दक्षिण भारत की फिल्मों के रीमेक, कुछ बच जाए तो वह हॉलीवुड और कोरियन फिल्मों की अवैध कॉपी। लगता है मुंबई फिल्म इंडस्ट्री अच्छे लेखकों, अच्छे विचारों को जगह नहीं देती बल्कि जी हुजूरी और नकल को महत्व देती है।

धर्मेंद्र की कुछ फिल्में अच्छी आईं पूर्णिमा, काजल, आकाशदीप, विमल रॉय की बंदिनी अच्छी चलीं और धर्मेंद्र के काम की तारीफ हुई।

फिर सत्यकाम, जीवन मृत्यु, धर्मवीर जिसमें धर्मेंद्र का अभिनय आज भी दिल को छू जाता है। धर्मेंद्र एक बड़े स्टार कहें नंबर दो बन चुके थे। अपनी ही तरह की फिल्में, बेलौस, बिंदास एक्टिंग और जो दिल में वही जुबान पर, कोई छल कपट नहीं। बेहतरीन निर्देशकों से सच्चे मन से सीखा हर गुण और अभिनय धर्मेंद्र को निखारता गया।

 

सफलता अकेले नहीं आती साथ कुछ लाती है

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उससे अक्सर हमारी खुशी और तरक्की को ब्रेक ही लगता है और लगा, बड़ा जबरदस्त।

यह सफर बढ़ ही रहा था कि उन्नीस सौ अड़सठ में इंपा का एक और टेलेंट हंट विजेता आ गया जतिन। मुंबई पाली हिल, रईसों के इलाके का जो स्टेज भी करता था और अपनी इंपाला कार, उस वक्त की बड़ी महंगी कार मानो आज की स्कॉर्पियो, में बैठकर स्ट्रगल करता था। वह फर्स्ट आ गया। उसे इत्तफाक, यश चोपड़ा, राज और फिर शक्ति सामंत की आराधना, रमेश सिप्पी की सफर मिली।तीन हिट, एक सुपर हिट और जतिन राजेश खन्ना के नाम से सुपरस्टारडम की तरफ बढ़े, वर्ष था उन्नीस सौ सत्तर। फिर उसके बाद तो लाइन लगा दी सुपर हिट फिल्मों की काका ने दाग, डोली, रोटी, दुश्मन, कटी पतंग, सच्चा झूठा, आनंद, बावर्ची, हाथी मेरे साथी आदि।लगातार पंद्रह फिल्में सुपरहिट, हिट और हिट। पचास वर्षों के बाद भी आज तक यह रिकॉर्ड बरकरार है।

राजेश खन्ना की छवि रोमांटिक हीरो और ऐसे आम इंसान की थी जो मीठी मुस्कान और प्यार भरे चेहरे से हमारे आसपास का ही लगता है। अभिनय के सभी गुर सीखे हुए राजेश ने अपना खुद का भी खास स्टाइल ही नहीं बनाया बल्कि कपड़े पहनने की उनकी शैली खूब प्रसिद्ध हुई।

अपने धर्मेंद्र प्रतिज्ञा, मेरा गांव मेरा देश, समाधि, ( सुपरहिट फिल्में डाकू और अकेले हीरो की लड़ाई पर केंद्रित और शोले से वर्षों पूर्व आईं), आंखे, शराफत, सीता और गीता, कब, क्यों और कहां, चुपके चुपके, राजा जानी, यादों की बारात, कहानी किस्मत की आदि फिल्मों से राजेश खन्ना के सुपरस्टारडम के सामने टिके रहे।जहां सत्तर के दशक के अधिकांश हीरो पीछे रह गए थे।अमिताभ बच्चन का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। धर्मेंद्र जमे रहे।

राजेश खन्ना अस्सी के दशक में गायब हुए और अमिताभ जो चुपके चुपके और शोले में धर्मेंद्र के साइड हीरो थे, (जी हां, दोनो फिल्मों धर्मेंद्र की ही थीं), वह जंजीर, दीवार, हेराफेरी, खून पसीना से सुपरस्टार बन गए। पर धर्मेंद्र नंबर दो पर टिके रहे l

राजेश खन्ना जहां लुढ़कते गए क्योंकि चमचों, लड़कियों और लापरवाही ने इस अच्छे एक्टर को बर्बाद किया। वहीं सिनेमा का दौर रोमांटिक हीरो से एक्शन और एंग्रीयंगमैन का हो गया। धर्मेंद्र, एक्शन हीरो में भी फिट थे तो अमिताभ उदय हुए पर वह भी चलते रहे नब्बे के दशक तक।

 

धर्मेंद्र, वास्तविक सुपर स्टार

------------------------------------यह दोनो सुपर स्टार हो या दिलीप कुमार इतनी जबरदस्त और सफल इनिंग छ दशकों की कोई नहीं खेल पाया। वह भी रोमांटिक, सामाजिक हीरो और उसी के साथ जबरदस्त एक्शन हीरो भी। यह खूबी अकेले धर्मेंद्र में रही।

राजेश खन्ना जहां एक्शन में अजीब से लगते तो वहीं अमिताभ रोमांटिक हीरो थे ही नहीं। करते तो चुपके चुपके जैसे लगते, बकवास। धर्मेंद्र ही रहे फिल्मों के एक मात्र रियल हीरो जो चुपके चुपके, सत्यकाम, बंदिनी, अनुपमा भी करते तो आंखे, मेरा गांव मेरा देश, गजब, कातिलों के कातिल, गुलामी, बंटवारा, हुकूमत, ऐलान ए जंग आदि।

यहां यह तीन बातें और उल्लेखनीय हैं जो इस देसी परिवार वाले, ठेठ ग्रामीण शख्स को और ज्यादा लोकप्रिय, वास्तविक सुपरस्टार बनाती हैं। पहली अपने बेटे सनी देओल को अच्छे से स्थापित करना।अनेक हिट और सुपरहिट देने वाले पुत्र सनी के गर्वित पिता। दूसरे दिल से जिसे चाहा, हेमा मालिनी, ड्रीम गर्ल, जिसके राजकपूर, देव आनन्द तक दीवाने थे पर गरम धरम को देख पीछे हट गए।उसके साथ डंके की चोट पर शादी की और पहली पत्नी और चारों बच्चों को भी देखा संभाला।यह कार्य भी दोनों सुपरस्टार नहीं कर पाए।वह ढके छुपे अफेयर ही करते रहे और बदनाम हुए।

तीसरा यह एक तथ्य है, कि धर्मेंद्र को राजेश खन्ना, अमिताभ की तरह कभी भी टॉप के निर्देशक नहीं मिले।मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा, यश चोपड़ा, शक्ति सामंत, जे ओमप्रकाश हो या लेखक में सलीम जावेद, कादर खान यह धर्मेन्द्र की फिल्मों में नहीं थे।जबकि इन्होंने ही अमिताभ, राजेश का करियर और बुलंदियों तक पहुंचाया। इनके बिना और कहे टीम बी के साथ ही खुशी खुशी काम करके अपनी मेहनत, प्रतिभा और लगन से छ दशक तक दर्शकों का खूब मनोरंजन किया इस जाट ने जो अपने को कभी जाट नहीं कहता बल्कि सभी कोमो का कहता है, हमेशा विनम्रता से सभी के दिलों में राज करते रहने की ही बात कहता है।

आज भी शेरो शायरी करके अपनी छाप छोड़ रहे धर्मेंद्र हम सभी के दिलों में बसे हैं वह शतायु हो। और तकनीक ने नए तथ्य रखें हैं कि फिल्मों की संख्या और उसके आधार पर सफलता अनुपात में धर्मेंद्र पूरी इंडस्ट्री के अकेले हीरो हैं जिनकी सफल फिल्में सभी से अधिक हैं।

आइए, धर्मेंद्र जी की फिल्म का यह गीत सुनें, "मैंने जो चाहा मुझे मिल गया/ हो गई हर तमन्ना तमन्ना जवान "।

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(डॉ.संदीप अवस्थी, फिल्म लेखक, आलोचक और देश विदेश से पुरस्कृत मोटिवेशनल स्पीकर, आठ किताबें

संपर्क: 7737407061, 8279272900)