नेतृत्व, सफलता और दूसरों के लिए प्रेरणा बनना
“कभी-कभी ज़िंदगी तुम्हें वहाँ पहुँचा देती है, जहाँ तुमने सोचा भी नहीं होता – अगर तुमने सिर्फ कोशिश करना नहीं छोड़ा हो।”
नई शुरुआत, नई जिम्मेदारियाँ
कई असफलताओं, रिजेक्शनों और संघर्षों के बाद, रोहन की मेहनत रंग लाई।
उसे एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिली। और इस बार,
वो सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि एक अनुभवी योद्धा की तरह गया था।
पहले दिन से उसने हर काम को गंभीरता से लिया —
कभी देरी नहीं, कभी समझौता नहीं।
उसकी सोच थी – “मुझे खुद से बेहतर साबित करना है, दूसरों से नहीं।”
कुछ ही महीनों में, उसकी मेहनत ने उसे सबकी नज़रों में ला दिया।
एक दिन, उसे ऑफिस में बुलाकर कहा गया:
“रोहन, तुम्हारी काबिलियत ने हमें प्रभावित किया है।
अब तुम डिपार्टमेंट हेड बनोगे। क्या तुम तैयार हो?”
रोहन मुस्कराया —
यह उसकी कोशिशों का सम्मान था।
लीडर बनने की सीख
नई जिम्मेदारी आसान नहीं थी।
अब वह सिर्फ अपना नहीं,
एक पूरी टीम का भविष्य सँभाल रहा था।
कई लोग उसके अधीन काम कर रहे थे —
कुछ अनुभवी, कुछ नए, कुछ हताश, और कुछ असमर्थ।
लेकिन रोहन ने सबको एक ही बात कही:
“हम सब में हुनर है, फर्क सिर्फ भरोसे का है।
चलो साथ मिलकर अपने डर को हराते हैं।”
धीरे-धीरे उसकी टीम एक परिवार बन गई।
लोग खुलने लगे,
उनकी परफॉर्मेंस सुधरने लगी।
एक बड़ी चुनौती और सबसे बड़ी जीत
एक दिन कंपनी को एक महत्वपूर्ण क्लाइंट से बड़ा प्रोजेक्ट मिला -
समय बहुत कम था और संसाधन सीमित।
टीम तनाव में थी।
कुछ ने हार मानने की बात भी की।
तब रोहन ने टीम को बुलाकर कहा:
“हम हारने के लिए पैदा नहीं हुए हैं।
हम इस प्रोजेक्ट को नहीं, खुद को साबित करने वाले हैं।
अगर हम एकजुट रहे, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं।”
उसके शब्दों ने जैसे टीम में नई जान फूँक दी।
रात-दिन मेहनत हुई,
और अंततः प्रोजेक्ट न केवल समय पर पूरा हुआ,
बल्कि कंपनी को इतिहास का सबसे बड़ा मुनाफा हुआ।
अब सिर्फ अपने लिए नहीं…
सफलता के बाद भी, रोहन के भीतर घमंड नहीं आया।
अब उसकी सोच यह थी —
“मुझे आगे बढ़ना है,
लेकिन अब दूसरों को साथ लेकर चलना है।”
उसने एक “युवा नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम” शुरू किया —
जहाँ वह बेरोज़गार युवाओं को कौशल, मनोबल और मार्गदर्शन देता।
हर रविवार वह उन युवाओं को सिखाता था:
“सपनों के लिए मेहनत करो,
लेकिन रास्ते में दूसरों का हाथ थामना मत भूलो।”
आख़िरी मोड़ – एक आत्मचिंतन
एक शाम, रोहन अपनी ऑफिस की बालकनी में खड़ा था।
सामने शहर की लाइटें चमक रही थीं।
उसे अपने पुराने दिन याद आए —
वो रिजेक्शन, वो अकेलापन, वो संघर्ष, वो ठोकरें।
उसने गहरी साँस ली और खुद से कहा:
“अगर उस दिन मैंने हार मान ली होती…
तो आज यहाँ खड़ा न होता।
मेरी सबसे बड़ी जीत है —
मैंने कोशिश करना कभी नहीं छोड़ा।”
सीख / निष्कर्ष
“कोशिश – अंधेरे से ज़िंदगी के उजाले तक”
का यह तीसरा भाग हमें सिखाता है कि…
लीडर बनना सिर्फ पद नहीं,ज़िम्मेदारी और सेवा का नाम है।सफलता अकेले आगे बढ़ने में नहीं,दूसरों को साथ लेकर चलने में है।जो व्यक्ति संघर्ष से नहीं डरता,वही एक दिन प्रेरणा की मिसाल बनता है।
अंतिम शब्द:
“जिन्होंने अंधेरे में चुपचाप मेहनत की है,
वही उजाले में चमकते हैं —
और दूसरों को रोशनी दिखाने का रास्ता बनाते हैं।”
“आप ‘अग्निपथ’ अमेज़न से खरीद सकते हैं, जहाँ आपको और भी कई प्रेरणादायक कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी जो दिल को छू जाती हैं और आत्मबल जगाती हैं।”