वो सुबह अलग थी। आसमान में अजीब सी चीखें गूंज रही थीं। मोबाइल नेटवर्क गायब था, टीवी पर "सिग्नल लॉस्ट" लिखा था, और बाहर गली में जो सन्नाटा था, वह किसी तूफान से पहले की शांति नहीं, तबाही के बाद की चुप्पी थी।
मैंने खिड़की से झांक कर देखा — और पहली बार वो "शुतुरमुर्ग जैसे दिखने वाला राक्षसी पक्षी" दिखा। उसकी ऊंचाई करीब सात फीट रही होगी, आंखों से नीली आग निकल रही थी, और चोंच में लहू टपक रहा था।
वो इंसानों को मार नहीं रहा था, नोच-नोच कर खा रहा था। चीखें गूंज रही थीं, और मैं उस वक़्त अपनी बाइक से मीरा के पास भागा। मैं जानता था — इस दुनिया में अगर कोई है जो मुझे चाहिए, तो वो मीरा है।
लेकिन मेरी बाइक जैसे ही फ्लाईओवर पर पहुंची, उसी पक्षी ने सामने आकर अपनी चोंच बाइक में घुसा दी। बाइक हवा में उछली और नदी में गिर गई। मैं तैरकर बाहर निकला, लेकिन मीरा बहुत दूर थी।
मैंने तीन दिन जंगलों में छिप कर गुजारे। हर तरफ वही पक्षी, और इंसानी शरीर। फोन काम नहीं कर रहा था। सड़कों पर खून और जले हुए घरों के अलावा कुछ नहीं था। पर मुझे भरोसा था — मीरा ज़िंदा होगी। क्योंकि मेरा प्यार अभी अधूरा है।
चौथे दिन, मुझे उसकी झलक मिली — एक टूटी हुई बस में, एक मरे हुए आदमी के मोबाइल कैमरे में रिकॉर्ड हुई मीरा की वीडियो, जिसमें वो भाग रही थी। जगह पहचानी — नर्मदा कॉलोनी। मैं भागा।
और तब, एक टूटी इमारत में, फटे कपड़ों में, भूखी-प्यासी लेकिन ज़िंदा मीरा मेरे गले लगी — और वो एक पल, जैसे पूरी दुनिया की तबाही हमारे लिए रुक गई हो।
अब हम अकेले थे। सच में अकेले। कोई कॉल, कोई दोस्त, कोई मोहल्ला, कोई सरकार नहीं बची थी।
सिर्फ मैं... और मेरी मीरा।
हमने शुरुआत की एक जीप से, फिर एक स्कूल बस, फिर एक BMW। जो गाड़ी पसंद आई, उसी में सवारी। पेट्रोल फ्री था, ट्रैफिक ज़ीरो।
हर दिन एक नया घर चुनते थे। कभी किसी बंगले में, कभी किसी होटल के प्रेसिडेंशियल सुइट में, कभी ट्रेन के एसी कोच में।
मीरा हँसती थी — "अब तो मैं हर रोज़ नई दुल्हन हूँ, हर रात नया घर है!"
और मैं कहता — "और हर सुबह तुझसे फिर से प्यार हो जाता है।"
पर वो पक्षी अभी मरे नहीं थे। कभी-कभी रात को उनके पंखों की आवाज़ आती थी। एक बार तो एक फ्लैट में घुस आया, लेकिन तब... मैंने अंदर की शैतानी आवाज़ को बाहर आने दिया।
"मुझे एक बार बाहर आने दे…"
और फिर — चोंच टूटी, आंखें फोड़ी, दांत खींचे।
मीरा ने डरते हुए देखा, फिर बोली — "ये तू था?"
मैंने कहा — "नहीं। ये वो था जो तूने बचा रखा था। जो सिर्फ तुझे बचाने के लिए जिंदा था।"
उस रात मीरा मेरी छाती से लगकर देर तक रोती रही।
हमें अब कोई डर नहीं रहा।
हर हफ्ते हम एक नया शहर जाते — उज्जैन के मंदिरों में पूजा करते, बनारस के घाट पर आरती करते, गोवा के समुद्र किनारे नाचते, और शिमला की बर्फ में लड़ते।
मीरा हर रोज़ नई ड्रेस पहनती — लाखों की कीमतों वाली।
मैं हर रोज़ उसे नई चीज़ें सिखाता — शूटिंग, बाइक स्टंट, ड्रम बजाना।
हमने हर फिल्म देखी, हर किताब पढ़ी, हर जगह घूमा।
और हां — हमने शादी फिर से की, गवाह कोई नहीं था, पर मीरा की आंखों में जो "हाँ" थी, वो पूरी दुनिया से बड़ी थी।
एक बार मीरा ने पूछा —
"अगर हम ही बचे हैं, तो आगे क्या?"
मैंने मुस्कुरा कर कहा —
"तो हम ही नए आदम और हव्वा हैं। इस दुनिया को फिर से बनाना है, लेकिन प्यार से। बिना झूठ, लालच, धर्म के नाम पर जहर, और बिना उस राक्षसी पक्षी के डर के।"
मीरा बोली —
"तो फिर एक वादा करो — जब तक ज़िंदा हैं, हर दिन को आखिरी दिन जैसा जिएंगे।"
मैंने उसकी मांग में खून से सिंदूर भर दिया — क्योंकि अब सुहागन सिर्फ वो नहीं थी, दुनिया भी उसी की थी।
अब हमें सालों हो गए हैं।
हम बूढ़े नहीं हुए — क्योंकि जब चिंता नहीं हो, समाज नहीं हो, और सिर्फ प्यार हो... तो उम्र भी थम जाती है।
हम आज भी हर रात अलग जगह सोते हैं। आज मीरा चाहती है कि हम "ताजमहल" में रहें।
मैं कहता हूं — "वो मोहब्बत की कब्र है, चलो वहां जी कर दिखाएं।"
कभी-कभी हमें लगता है — क्या बाकी सब वाकई मर गए?
या फिर ये दुनिया बस हम दो के लिए बनाई गई थी?
शायद राक्षसी पक्षियों का आना, बाकी सबका मिटना, सिर्फ इसलिए हुआ ताकि एक कहानी बचे — हमारी, तुम्हारी, मीरा और मेरी।