नमस्कार दोस्तों! ये मेरी पहली कहानी है। अगर इसमें कोई गलती हो तो कमेंट करके बता देना। I think आपको पसंद आएगा। तो चलो कहानी शुरू करते है।
ये कहानी है वर्तामन समय की
कॉलेज की बिल्डिंग लगभग खाली हो चुकी थी। क्लासेस खत्म हो गई थीं, लेकिन आरव और तृषा लाइब्रेरी में एक पुरानी फाइल ढूँढने के लिए रुके थे — एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में जो कॉलेज की “भूलभुलैया जैसी” पुरानी बिल्डिंग से जुड़ा था।
( यही हमारे मुख्य पात्र है आरव और तृषा
आरव सेन: 21 वर्षीय इतिहास का छात्र, शांत लेकिन जिज्ञासु
तृषा मेहरा: उसकी सबसे अच्छी दोस्त, जर्नलिज़्म की छात्रा, तेज़ और साहसी)
लाइब्रेरी की अंतिम कतार में, धूल भरे एक कोने में उन्हें एक अजीब सी लाल फाइल मिली। फाइल के ऊपर कोई नाम नहीं था, बस एक शब्द लिखा था —“छाया पथ”
आरव ने जैसे ही फाइल खोली, एक ठंडी हवा का झोंका लाइब्रेरी के दरवाज़े से भीतर आया, जबकि बाहर गर्मी थी। एक साथ दोनों ने देखा — लाइब्रेरी का दरवाज़ा धीरे-धीरे अपने आप बंद हो गया।
तृषा ने कहा, “ये... ये हवा कहाँ से आई?”आरव धीरे से बोला, “मुझे लगता है... हमने कुछ ऐसा छेड़ दिया है, जो नहीं छेड़ना चाहिए था।”
और तभी — लाइब्रेरी की सारी लाइटें एक झटके में गुल हो गईं।
लाइटें बुझ चुकी थीं। आरव ने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन की।उनका चारों ओर सिर्फ़ काले साए दिखाई दे रहे थे — फाइल्स, कुर्सियाँ, लंबी किताबों की कतारें... और कुछ अजीब सी हरकत।
तृषा ने घबराई हुई आवाज़ में कहा,“हम निकलते क्यों नहीं? मुझे कुछ सही नहीं लग रहा।”आरव ने जवाब दिया, “एक मिनट... ये देखो!”
लाल फाइल अब खुल चुकी थी। अंदर कुछ पुराने स्केच थे — एक भूलभुलैया जैसी नक़्शा, नीचे लिखा था:“छाया पथ – प्रवेश निषेध”(Chhaya Path – Entry Forbidden)
जैसे ही उन्होंने वह नक़्शा उठाया, लाइब्रेरी के एक कोने से कांच टूटने की ज़ोरदार आवाज़ आई।श्श्श्रर्ररर्र…!!
दोनों चौंककर उस ओर भागे।कॉर्नर की एक पुरानी खिड़की टूटी पड़ी थी — पर कोई आसपास नहीं था।मगर खिड़की के पास ज़मीन पर मिट्टी में किसी के गंदे, गीले पैरों के निशान थे...और वो लाइब्रेरी के अंदर की ओर जा रहे थे।
तृषा बुदबुदाई —“ये पैर... अंदर आए हैं... बाहर नहीं गए।”
आरव और तृषा नेनक़्शे को देखा — उसमेंलाइब्रेरी से एक पुरानाछुपा हुआ गलियारा दिखाया गया था, जोकभी पश्चिमी विंग से जुड़ाकरता था — एक हिस्साजो अब वर्षों सेबंद है।
तृषा बोली, “वेस्ट विंग तो सालोंसे सील है ना?किसी को जाने नहींदेते वहाँ।”आरव ने कहा, “लेकिनये नक़्शा... कुछ और कहताहै।”
उन्होंने लाइब्रेरी की पिछली दीवारके पास एक पुरानीबुकशेल्फ़ हटाई — उसके पीछे एकपतली सी दरार थी,जैसे कोई गुप्त दरवाज़ा।
जैसे ही आरव नेदरार को धक्का दिया— दरवाज़ा चर्र्रर्रररर की आवाज़ करताहुआ खुल गया।एक लंबा, अंधकारमय गलियारा... अंदर से एकठंडी, सीली हुई गंधआई — जैसे किसी नेसदियों से वहाँ सांसली ही न हो।
जैसे ही दोनों अंदरगए —गेट अपने आप बंद हो गया।धप्प!
तृषा की साँसें तेज़होने लगीं।“आरव... वो देखो... दीवारपर?”
दीवार पर कोई कुछउकेर गया था —"जोअंदर आया... वो कभी बाहर नहीं गया..."
तभी उन्हें पीछे से कुछसुनाई दिया —“ठक…ठक… ठक…”
जैसे कोई नंगे पैर उनके पीछे धीरे-धीरे चल रहा हो।
आरव ने धीरे सेपलट कर देखा —और सिर्फ़ एक लंबी परछाई दिखी — इंसानी आकार की, मगरसिर पूरा धुँधला... औरशरीर से धुंआ निकलरहा था।
गलियारा जैसे जिंदा हो— हर दीवार से धीमी-धीमीसरसराहट, दबी-दबी फुसफुसाहटेंआ रही थीं।तृषा ने काँपती आवाज़में कहा,“ये जगह... ज़िंदा है, आरव।”आरव अब भी हाथमें नक्शा लिए आगे बढ़रहा था, लेकिन उसकीसाँसें भी तेज़ होचुकी थीं।
अचानक...दीवारों पर लगे टाइल्स गिरने लगे।एक दीवार से झरती मिट्टीमें से कुछ पुरानेनामनिकले — जैसे किसी नेज़िंदा लोगों के नाम दीवारमें गड़ दिए हों।उनमें एक नाम साफ़-साफ़ दिखा:
"आरवसेन"
दोनों चौंक गए।“ये... ये नाम तोअभी...?” तृषा फुसफुसाई।आरव ने धीरे सेजवाब दिया, “यहाँ मेरे आनेसे पहले ये नामकैसे लिखा गया?”
तभी वो परछाई फिरप्रकट हुई।इस बार पास आकरएक अस्पष्ट, गूंजती हुई आवाज़ में बोली:
“जिसेआवाज़दी जाती है… वो लौटकर आता है… लेकिन वैसा नहीं, जैसा गया था।”
तृषा चीख उठी, “हमेंयहाँ से निकलना होगा!”उन्होंने मुड़कर भागना चाहा — लेकिन गलियारा अब लंबा और लंबा होता जा रहाथा।जैसे कोई भ्रम, कोई जाल, उन्हें बाहर निकलने नहींदे रहा।
और फिर अचानक, गलियारेके अंत में एकपुराना दरवाज़ा दिखा —जिस पर किसी नेलाल स्याही में लिखा था:“छायापथ का अंतिम द्वार – केवल एक ही लौट सकता है।”
गलियारा अब साँस लेरहा था — सच में।उसके भीतर की हवाधड़क रही थी, जैसेकोई अदृश्य दिल धक-धककर रहा हो।
आरव और तृषा दरवाज़े के सामने खड़ेथे।दरवाज़े पर लिखा था:"केवलएक ही लौट सकता है।"और उसके नीचे, अजीबसी भाषा में कुछशब्द उभर रहे थे,जैसे दीवार खुद उन्हें लिखरही हो।
तृषा बोली, “हम दोनों वापसजाएँगे। कुछ न कुछरास्ता होगा।”आरव ने दरवाज़े कोछूते हुए कहा,“शायद दरवाज़ा फैसला करता है किकौन ‘लायक’ है...”
और तभी —दरवाज़ा अपने आप धीरे-धीरे खुलने लगा।
अंदर एक धुंध भराकमरा था। फर्श परगोल घेरा बना था— एक प्राचीन रिचुअल सर्कल।उसके केंद्र में एक व्यक्ति बैठा था — आँखें बंद, चेहरा आरवजैसा ही… लेकिन उम्रदराज़,और… मरा हुआ सा।
तृषा ने काँपते हुएपूछा,“आरव... ये... ये तुम हो?”आरव भी सहम गया।“मैं... ये कैसे होसकता है?”
उस मृत आरव कीआँखें अचानक खुल गईं —और उसने फुसफुसाकर कहा:“जोअंधेरेको समझे बिना आया... वह खुद अंधेरा बन गया।”
तभी छाया प्राणी दो भागों मेंबँट गया —एक तृषा के सामनेगया, और दूसरा आरवकी ओर।
फिर एक आवाज़ गूंजी—"अबचुनावहोगा...प्रकाशया परछाई..."
दरवाज़ा फिर से बंदहोने लगा।
आरव और तृषा केसामने दो परछाइयाँ — अबअर्ध-मानव रूप मेंबदल चुकी थीं।इनमें से एक आरवकी तरह दिख रहीथी, लेकिन उसकी आँखें कालीथीं — जैसे रोशनी कभीउसमें थी ही नहीं।दूसरी तृषा के पासआई — और धीमे सेउसकी तरफ़ झुकी।
उसने कहा,"किसीएक को छाया पथ में रहना होगा... वरना दोनों खो जाएँगे।”
तृषा ने आरव कीतरफ देखा —"मैं नहीं जाऊँगी, औरतुम्हें भी नहीं जानेदूँगी।"आरव ने धीरे सेकहा,"तृषा… अगर मैं रहजाऊँ, तो तुम बाहरजा सकोगी। इस पथ कोकोई न कोई बंदकरना होगा... हमेशा के लिए।"
वो मृत आरव फिर से बोलपड़ा —"जिसनेरास्ताचुना,वह रास्ता बन जाएगा..."
अचानक ज़मीन कांपी —दीवारें खून की तरहलाल हो उठीं।परछाइयाँ चीखने लगीं, जैसे समय कासंतुलन बिगड़ रहा हो।
तृषा ने आरव काहाथ पकड़ा —“हम दोनों साथ जाएंगे याफिर कोई नहीं जाएगा।”
लेकिन आरव ने उसकाहाथ धीरे से छोड़ा…और रिचुअल सर्कल में कदम रख दिया।
तभी एक तेज़ सफ़ेदरोशनी फूटी —परछाइयाँ आरव के शरीरमें समा गईं…दरवाज़ा खुला — बस एक बार के लिए।
तृषा, आँसू भरी आँखोंसे बाहर की ओरदौड़ी।
दरवाज़ा धप्प! आवाज़ के साथ बंदहुआ।और उस पर एकनया नाम लिखा गया:
“आरवसेन –छाया पथ का रक्षक”