धीरेन्द्र और सागर बहुत गहरे मित्र थे दोनों साथ साथ रहते घूमते फिरते और काम करते दोनों ही बहुत पढ़े लिखें तों नहीं थे लेकिन दोनों का दिमाग़ वर्तमान युग के कम्प्यूटर से भी अधिक तेज था धीरेन्द्र और सागर के लिए उनको जानने वालो के बीच कहावत मशहूर थी सैतानो का दिमाग़ पाया है दोनों ने!दोनों कद काठी से मजबूत एवं सुन्दर सुकांत किसी राजवंड़े या रमींदार परिवार से प्रतीत होते थेअपनी सुन्दर काया व्यक्तित्व का दुरूपयोग दोनों लोंगो को ठगने बेवकूफ बनाने या थाने ब्लाक तहसील कि दलाली करते जिसके कारण उनके पास पैसे कि कोई समस्या नहीं रहती दोनों मौज मस्ती करते कभी दिल्ली कभी मुंबई,कोलकता, चेन्नई बेंगलोर काठमांडू घूमते और ज़ब नाजायज कमाया पैसा खर्च हो जाता तब फिर गांव दल सिंगर लौट आते फिर पैसा इकठ्ठा करतेधीरेन्द्र और सागर के माता पिता परिजन आए कि शिकायतों और उनकी अनाप सहनाप कार्यों एवं जीवन शैली से परेशान रहते कभी डांटते फटकरते कभी मिन्नते करते कि गलत कार्यो को छोड़ कर मेहनत कर पैसा कमाए लेकिन दोनों पर कोई असर फर्क प्रभाव पड़ना तों दूर दोनो कि शरारते और बढ़ जातीज़ब कोई धीरेन्द्र और सागर को देखता बोल उठता आ गए राहु केतु जरूर कुछ शरारत करेंगे इतनें के बावजूद लोग दोनों कि दाँत काटी रोटी जैसी दोस्ती कि तारीफ करना नहीं भूलते!धीरेन्द्र और सागर ज़ब कोई भी काम आता पहले हम करने लगते और अक्सर शुरुआत धीरेन्द्र को ही करनी पड़ती!एक दिन दोनों घूमते घूमते एक चाय कि दुकान पर पहुंचे चाय वाले से बोले कि गरमा गरम चाय बनाओ और पिलाओ चाय वाले भोला बोले अबही चाय बनाय के भट्टी से उतारे है गरमा गरम है पी कर देखो धीरेन्द्र और सागर नें एक साथ बोलना शुरू किया बोले काहे चाचा हमन के बेवकूफ बनावत हम लोग रोजे दस पांच लोगन के बेवकूफ बनावल जात ह तू हमनो के बनावल चाहत ह बात बात में विवाद बढ़ गया भोला चाय वाला बोला नाही मानत हव लोगन त हमार एको शर्त बा अगर हमार चाय ठंठा बा त एक घुट में पी के देखाव पांच सौ रुपया हम इनाम देब इतना सुनते ही धीरेन्द्र में चाय पहले पिने कि होड़ मच गयी जैसा दोनों दोस्तों कि दोस्ती कि परम्परा थी कि अंत में धीरेन्द्र को ही किसी काम कि शुरुआत करनी पड़ती चाय के साथ भी ऐसा ही हुआ भोला नें एक कप चाय धीरेन्द्र को दी धीरेन्द्र नें ज्यो उसे होठो से लगा कर चुस्की में चाय पीना चाहा भोला बोल उठा एक घूंट कि शर्त है मरता क्या न करता धीरेन्द्र नें एक घूंट में चाय पी लिया फिर सागर को भोला नें चाय दिया धीरेन्द्र नें उसे एक घूंट में पिने से मना किया और भोला चाय वाले से माफ़ी मांगी सागर धीरे धीरे चाय पिया दोनों चाय का पैसा भोला को देने लगे भोला नें लेने से इंकार करते हुए धीरेन्द्र से शर्त हारने के लिए पांच सौ रुपए दिए!धिरेन्द्र और सागर दिन भर अपने योजना के अनुसार कार्य करने के बाद घर वापस आए मध्य रात्रि को धीरेन्द्र का गला बैठ गया वह बोल नहीं पा रहा था और उसकी हालत तेजी से बिगड़ती जा रही थी आनन फानन धीरेन्द्र को नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ इलाज के दौरान दम तोड़ दिया!सागर नें मित्र धीरेन्द्र को बचाने के लिए जो कर सकता था किया लेकिन खौलते चाय नें धीरेन्द्र कि अतड़िया एवं गले को जला दिया था!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!