जिस प्रकार समुद्र से स्वच्छ हवा का न आना या पहाड़ों से मलयानिल के झोंकों का न उठना सम्भव नहीं, उसी प्रकार विचारों में संघर्ष का न होना भी सम्भव नहीं है। प्रायद्वीप में दुर्भावना, भ्रष्टाचार व तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष शुरू हो गया था। पेरिस में आयोजित सम्मेलन के शिष्टमण्डल का सदस्य सालिसिटी-कार्सिका का एक नागरिक-पाउली का शत्रु था। इस कारण वह बोनापार्ट का मित्र बन गया; क्योंकि वे दोनों समान रूप से पाउली के विरुद्ध थे। अजासियो का जैकोबिन क्लब विभाजित हो गया है और प्रायद्वीप के ईमानदार समझे जाने वाले व्यक्ति पाउली को धोखेबाज़ कहा जा रहा है।
शक्ति या सत्ता सबके हाथों में रहती है या किसी के हाथों में भी नहीं। पेरिस में शक्तिशाली अथवा सत्ताधारी के विरुद्ध लोगों का इकट्ठा हो जाना स्वाभाविक होता है तथा राजा ने विद्रोह दमन सम्बन्धित आदेश पारित कर दिया है। अतः इस सम्बन्ध में सन्देह उत्पन्न होने लगा कि भावी शासक कौन होगा? केवल पहाड़ी ही नहीं, बल्कि कार्सिका के सभी नागरिक युद्ध में भाग लेते हैं, परन्तु पेरिस के राजा द्वारा पारित आदेश कुछ विषमताओं के कारण कार्यान्वित होने से पहले ही खण्डित हो जाता है। इस साहसी व्यक्ति के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है? वह अपना सब कुछ दांव पर लगा चुका है। वह प्रायद्वीप का शासक बनने का तीसरा प्रयास करता है।
बोनापार्ट का भाई जोसेफ़, लूसियन तथा चाचा फ़ैश- सभी मिल-जुलकर कार्य कर रहे थे, परन्तु बिखरी हुई सेनाओं को एकत्रित करने वाला पहला व्यक्ति नेपोलियन ही था। उसे अपने सहायक एक कुशल सैन्य अधिकारी का विश्वास प्राप्त था। इसी कारण क्लब उसके पक्ष में आ गया। फ्रांस के विरुद्ध बगावत या पाउली पर भावी युद्ध का लगाया गया आरोप एक सुनियोजित षड्यन्त्र नहीं, तो और क्या था? हम जानते हैं कि बीस वर्षों तक ब्रिटिश शिष्टाचार को देखने के बाद वह इससे बहुत प्रभावित था, परन्तु अपना देश इंग्लैण्ड को बेचने का विचार उसके मन में नहीं था। जब लूसियन को मार्सिलिस जाना था, तो सैन्य अधिकारी के कानों में कोई गुप्त रहस्य डाल दिये जाने की सम्भावना अवश्य थी। सालिसेटी ने उक्त सम्मेलन में इस बात को पूरे ज़ोर से रखा। कार्सिका जैसा प्रायद्वीप षड्यन्त्र का अखाड़ा बन गया। दो या तीन परिवारों द्वारा जन-जीवन को नियन्त्रित किये जाने के कारण पारिवारिक जीवन पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में विलीन हो गया।
उक्त सम्मेलन कई वर्षों तक कार्सिका में अपने प्रतिनिधि भेजता रहा। पाउली की अनुमति या सलाह के बिना ही अधिकारी पद पर नियुक्त तथा पद से निष्कासित किये जाते रहे। फ्रांस की सेना में कप्तान पद पर रहे बोनापार्ट ने अब इस प्रायद्वीप में सैन्य अधिकारी का पद पुनः प्राप्त कर लिया है। पिछले अनुभव व सैनिकों के प्यार के कारण वह पुनः सैन्य प्रशासन को स्वेच्छानुसार चलाने में समर्थ हो गया है। सर्वोच्च अधिकारी के रूप में उसकी नियुक्ति की पुष्टि मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गयी है। इस प्रकार उसका भाग्य उसके अनुकूल होने लगा है।
इसी बीच पेरिस से पाउली की गिरफ़्तारी का एक भयावह आदेश आता है, परन्तु स्वयं उसके विरोधियों ने इस आदेश का उल्लंघन किया; क्योंकि वे जानते थे कि प्रायद्वीप के निवासियों का हृदय अपने साहसी नायक के प्रेम से भरा हुआ है और वे उसका समर्थन करते हैं। अतः विरोधी उक्त आदेश की अवहेलना कर देते थे।
युवा बोनापार्ट को इससे हानि पहुंचती है; क्योंकि वह जनता की प्रतिक्रिया के प्रति सदा सचेत है। उसकी यह चेतना एक प्रेमी की नहीं, बल्कि एक चिकित्सक की चेतना है। वह अवसर पाना चाहता है तथा पाउली के पक्ष में होने की घोषणा करता है। वस्तुतः वह अपने को समन्वयवादियों का समर्थक बताकर चलना चाहता है, परन्तु इधर सम्मेलन बोनापार्ट के समर्थन पर अविश्वास करके उसे गिरफ़्तार करने का वारण्ट जारी करता है। इससे पाउली को यह सन्देह होने लगता है कि नेपोलियन दोगली चाल चल रहा है। पाउली द्वारा की गयी घोषणा इस प्रकार है: "बोनापार्ट के भाइयों द्वारा कपटपूर्ण आचरण का समर्थन किये जाने व अफ़वाह फैलाने में सहयोग दिये जाने से कार्सिका राष्ट्र के लिए उन पर अधिक विश्वास करना राष्ट्र की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा सकता है। जनता की भावना को देखते हुए तथा जनता में ग़लत प्रवृत्तियों के फैलने पर नियन्त्रण लगाने के लिए उनका त्याग दिया जाना आवश्यक है।"
परिवार के शत्रुओं ने बोनापार्ट के निवास पर धावा बोला और उसे लूट लिया। यदि इन्होंने आयोग के आदेश की उपेक्षा न की होती, तो उसके मित्रों के आवासों को भी छोड़ न दिया होता।
बोनापार्ट शायद इस प्रकार की घटनाओं को होने देना चाहता था। इससे वह फ्रांस की सरकार को बता देना चाहता था कि वह एक समर्थ क्रान्तिकारी है। अब वे उस पर विश्वास करने को तैयार थे। एक वर्ष पहले फ्रांस की सरकारी सेना के विरुद्ध कार्सिका के स्वयंसेवकों का नेतृत्व करने वाला, अब कार्सिका के स्वयंसेवकों के विरुद्ध गठित सेना का नायक बना दिया गया था। यह ठीक है कि अन्य लोगों ने उससे ऊंचे पद पाये थे, परन्तु उसे भी विशेष शक्तियां प्राप्त थीं। उसके पास समुद्रतट के प्रायद्वीप की रक्षा करने से सम्बन्धित आदेश जारी करने के पर्याप्त अधिकार थे। अतः पाउली के साथ अन्तिम युद्ध होना अनिवार्य था।
विशेष समर्थन प्राप्त पाउली एक सर्वश्रेष्ठ सैनिक था। उसे समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त था। यदि इस समय बोनापार्ट एक फ्रांसीसी के रूप में पाउली के सुदृढ़ आधार को तोड़ने का प्रयास करता, तो उसे पहले जैसी कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। प्रायद्वीप द्वारा इस आधार को तोड़ने का अन्तिम प्रयास किया गया, परन्तु वह एक बार फिर विफल रहा।
अब फ्रांस में कार्सिका तथा उसके लिए कोई स्थान नहीं रह गया था। एक विशेष आदेश के अन्तर्गत उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित करके निष्कासित कर दिया गया। पाउली पर किये गये नेपोलियन के उस आक्रमण के असफल हो जाने पर, अपने पुत्र पर गर्व करने वाली उसकी मां, उसके दो पुत्र, दो पुत्रियां तथा उनका भाई टूट-से जाते हैं। उनके लिए कुछ घण्टों के भीतर प्रायद्वीप को छोड़ना आवश्यक हो जाता है। चौबीस वर्ष पहले जिस जंगल में लितिज़िआ ने फ्रांस से शरण प्राप्त की थी, अब उसे अपनी सुरक्षा के लिए फ्रांस की ओर भागना पड़ रहा है। उसकी सारी सम्पत्ति अब उसके शत्रुओं के हाथ में थी। शरीर पर पहने हुए कपड़ों के अलावा उसके पास कुछ भी शेष नहीं बचा था।
तेईस वर्ष की उम्र का यह सैन्य अधिकारी अब टाउलन की ओर ले जाने वाले जलयान के डेक पर खड़ा है। वह अपने पूर्वपरिचित समुद्रतट को, समुद्र की प्रत्येक लहर को तथा समीपवर्ती स्थान को ध्यान से देखता है। इसी प्रायद्वीप को स्वतन्त्र कराने के लिए वह तीन बार प्रयास कर चुका है। कार्सिका के नागरिकों द्वारा उसको फ्रांसीसी मानकर निर्वासित कर दिया गया है। वह अत्यन्त क्षुब्ध है तथा प्रतिशोध की ज्वाला उसके हृदय में धधक रही है। फ्रांस की जीत उसकी स्थिति को मजबूत करेगी तथा आने वाले दिनों में वह कार्सिका पर अधिकार कर लेगा।
बोनापार्ट पश्चिम की ओर बढ़ता चला जाता है तथा फ्रांस के समुद्रतट के निकट आने पर यह साहसी युवा स्वतन्त्रता के विचार से झूम उठता है और अपने चारों ओर के परिवेश को अपना घर समझने लगता है। वस्तुतः निर्वासित मनुष्य की यही नियति है।