Banjh in Hindi Women Focused by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | बांझ

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बांझ

अंगना में आया नन्हा मेहमान.....बधाई बाँटो रे ...

ढोल की थाप पर गीत गाते हुए बड़े ही हर्षोल्लास से महिलाओं का एक झुंड नाच रहा था। वहीं एक कोने में कुछ महिलाएं बतिया रही थी। एक महिला टोकरी लिए हुए यहाँ-वहाँ घूम घूमकर टोकरी से लड्डू निकालकर आयोजन में आई सभी महिलाओं को बांट रही थी।अवसर था टीकम उर्फ़ टीकू के यहाँ सुरजपूजन का! आँगन में मौजूद हर एक महिला के चेहरे ख़ुशी से खिलखिला रहे थे। टीकू की माँ तो खुशी से फूली नहीं समा रही थीं। ढोल की थाप पर थिरकते उनके कदमों से उनकी ख़ुशी का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।श्यामू की पत्नी राधा ने जब आँगन में प्रवेश किया तो उसके द्वारा रखें गए पहले कदम पर ही महिलाओं में काना-फुसी होने लगी। टीकू की माँ मंगला को तो जैसे सांप सूंघ गया। ढोल की थाप तो अपनी ही लय में बजती रही लेकिन मंगला के थिरकते कदम अचानक ठहर गए। मुँह बिचकाकर वह राधा की ओर अपने कदम बढ़ा देती है। वह राधा के नजदीक पहुँचकर उसे खरीखोटी सुनाने ही वाली थी कि तभी टीकू की मंझली बुआ रमा ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें महिला के झुंड में खींच लिया और उनका परिचय अपने ससुराल पक्ष से आए आंगतुको से करवाने लगीं।राधा भी टीकू के बेटे के जन्म की खुशियां मनाने के उद्देश्य से आई थी। उसका रोम-रोम नवजात शिशु के लिए मंगलकामनाएँ व लम्बी आयु की दुहाई दे रहा था। लेकिन मंगला का दिल राधा को बद्दुआ दे रहा था। वह मेहमानों से घिरी होने पर भी राधा के विषय में सोच-सोचकर मन ही मन कुढ़ रही थीं। विचार विष बुझे बाणों की तरह उसकी आत्मा को छलनी किए जा रहे थें।राधा तो अपनी ही धुन में मगन होकर ताली बजाकर मंगलगीत का आनंद ले रहीं थीं। वह इस बात से अनभिज्ञ थीं कि उसकी उपस्थिति से किसी मन के आनंद का सागर सूख गया है।मंगला के चेहरे की उड़ी हुई रंगत को उनकी समधन ललिता ने भाँप लिया था। वह बोली , "क्या बात है ब्यानजी...? पोता होने की ख़ुशी चेहरे पर दिखाई न दे रही।"मंगला ने अपनी समधन के कान में फुसफुसाते हुए जहर उगलती जबान में कहा , "क्या बताऊँ समधन सा ! यूँ समझो रंग में भंग पड़ गया। मेरा तो जी बड़ा घबरा रहा है। कहीं कुछ अनर्थ न हो जाए ?"चिंता और आश्चर्य से अपनी आँखें फैलाकर ललिता ने तेज़ आवाज में पूछा , " हाय राम ! ऐसा भी क्या गज़ब हो गया ?"ललिता के चेहरे की भाव भंगिमा व स्वर में आवेग को जानकर आसपास बतिया रहीं महिलाएं यकायक चुप हो गई। उनके चुप्पी साधते ही ढोलक बजा रही महिला के हाथ भी जैसे जम से गए। वातावरण एकदम शांत हो  गया।

बिंदु काकी घूंघट की ओट से झांकते हुए बोली , "ऐ बड़की बाई ढोलक बजाना क्यों बन्द कर दिया ?"मंगला भनभनाते हुए भीड़ से निकलकर बोली , " बन्द ही रहेगा ढोल। यह कलमुँही राधा जो आ गई। जहाँ यह होंगी वहां उत्सव हो सकता है भला ?"भीड़ की नजरें एक साथ राधा पर पड़ी। सबकी नजरों में उसके प्रति घृणा के भाव थे। राधा पर तो जैसे वज्रपात हो गया। वह सन्न रह गई। कातरभाव से उसने चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए ऐसे देखा मानों अपनी बेगुनाही साबित कर रही हो। मगर, अफ़सोस रूढ़िवादी सोच के सामने उसकी उम्मीद चकनाचूर हो गई।

मंगला की पड़ौसन संपत ताव से खड़ी होते हुए बोली, "हाय ! हाय ! यह क्या गज़ब हो गया..?"संपत का साथ पाते ही मंगला की शक्ति बढ़ गई। वह बोली , " हाँ , बहिन...ज़रा देखो तो यह 'बाँझ' इस शुभ अवसर पर राहु-केतू सी आ गई हमारी खुशियों पर ग्रहण लगाने को। ज़रा भी लज्जा व संकोच न किया। शास्त्र भी कहते हैं शुभ कार्य में विधवा व बाँझ की परछाई भी न पड़नी चाहिए। ऐसे पर यह करमजली यहाँ चली आई।"राधा का कोमल हृदय ऐसे कठोर वचनों से छलनी हो गया। उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती रहीं। उस पर किसी को तरस नहीं आया।

भीड़ से आवाज़ आई , " अरी इतनी बात ही क्यों करना ..? इसे यहाँ से बाहर कर दो।"इतना सुनते ही...मंगला , संपत सहित चार-पांच महिलाओं ने राधा की बाहं पकड़कर उसे झटके से उठा दिया और बाहर की तरफ़ ले जाने लगीं।महिलाएं जोर जबर्दस्ती करके जब राधा को ले जा रही थीं कि उन्हें सामने से डॉक्टर राधिका हाथ में गुलदस्ता लेकर आती हुई दिखाई दी। नजदीक आकर डॉक्टर राधिका ने हैरत से पूछा , " यह क्या तमाशा हो रहा है ..?"डॉक्टर राधिका ने ही गाँव की अधिकांश महिलाओं की डिलीवरी करवाई थीं , इसलिए महिलाएं उनका बड़ा सम्मान करती थीं।राधिका की बांह छोड़कर मंगला हाथ जोड़कर बोली , "डॉक्टर साहिबा ,  यह राधा बाँझ है और फिर भी सुरजपूजन में चली आई। कोई अपशगुन ना हो जाए इस डर के कारण हम इसे बाहर कर रहे हैं।"डॉ राधिका का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उनकी भौहे तन गई। उनका गला भर्रा गया। वह तैश में आकर बोली , " धिक्कार है ! धिक्कार है ! स्त्री होकर भी ऐसी सोच रखने वाली हर स्त्री धिक्कार है..!"इतना कहने के बाद डॉक्टर राधिका ने गुलदस्ता जमीन पर फेंक दिया और राधा की ओर गई। उन्होंने राधा के कंधों पर अपनी दोनों हथेलियों को रखते हुए कहा , "तुम्हें अपमानित करने वाली यह भीड़ सत्य नहीं जानती है।"भीड़ में खड़ी हर महिला ने एक दूसरे की तरफ़ आश्चर्य से देखा। मानों, आखों ही आंखों में पूछ रहीं हो कि डॉक्टर राधिका किस सत्य की बात कह रही है।मंगला ने सकुचाते हुए पूछा , " आप किस सत्य की बात कह रही है..?"डॉक्टर राधिका ने कहा , " राधा का पति श्यामू 'ओलिगोस्पर्मिया' या 'एजुस्पर्मिया' से ग्रस्त है।"मंगला व अन्य महिलाओं को यह दोनों ही शब्द समझ नहीं आये मंगला ने उत्सुकता से पूछा - " इन दोनों ही शब्दों को मैंने पहली बार सुना है। इनका क्या अर्थ होता है ?"डॉक्टर राधिका , मंगला को समझाते हुए कहती है - " मेडिकल कि भाषा में कम शुक्राणु होने को ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं। यदि वीर्य में शुक्राणु न हो तो इसे एजुस्पर्मिया कहते हैं। जो पुरूष इन दोनों में से किसी एक से ग्रसित होते हैं तब वह सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं। ऐसे पुरुष अपना वंश नहीं बढ़ा पाते हैं। आम बोलचाल में इसी को पुरुषों का बांझपन कहते हैं।"डॉक्टर राधिका की बात सुनकर महिलाएं सन्न रह गई।

मंगला अचंभित होकर पूछती है - " पुरुष भी बांझ होते हैं..?"डॉ. राधिका कहती है - " हॉं ! होते हैं। यह सच है ! हमारे समाज की यह रीत है कि हर बात का ठीकरा महिलाओं के सिर पर फोड़ दिया जाता है , इसीलिए अपनी कमी को छुपाने के लिए ऐसे लोग ही सारा इल्जाम महिला के सिर मढ़ देते हैं और फिर महिला सामाजिक व पारिवारिक शर्मिंदगी का सामना अकेली ही करती है।"डॉक्टर राधिका की बात सुनने के बाद सभी महिलाओं को अपने बर्ताव पर शर्मिंदगी महसूस होती है। सभी राधा से माफ़ी मांगती है। मंगला तो राधा के पैर छूकर माफ़ी मांगने लगती हैं , जिन्हें रोकते हुए राधा उन्हें अपने गले से लगा लेती है।ढोल की थाप फिर से बजने लगती है। सभी महिलाएं राधा के साथ उसके इर्दगिर्द झूम-झूमकर नाच रही होती है।

...........समाप्त..............